स्वच्छता-(कथात्मक बाल-कविता) *वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ रचना काल-1998 सातवीं कक्षा का वो विद्यार्थी था ये कहानी जिसकी है सीधा-सादा, भोला-भाला और...
स्वच्छता-(कथात्मक बाल-कविता) *वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’
रचना काल-1998
सातवीं कक्षा का वो विद्यार्थी था
ये कहानी जिसकी है
सीधा-सादा, भोला-भाला
और पढ़ने में भी तेज
नाम गौरव क्लास में अच्छा था क्रेज़
इम्तिहानों के सभी पर्चे हुए थे ख़त्म
कल था स्वच्छता मूल्यांकन
जिसमें होती है सफाई की परीक्षा
वेषभूषा और पहनावे का खासा इम्तिहान
हाँ तो यह मूल्यांकन होता है
व्यवहारिक परीक्षा के तहत हर साल
जिसमें सबसे ज़्यादा अंक पा जाना
प्रतिष्ठा का रहा है प्रश्न छात्रों के लिए
क्योंकि यह मूल्यांकन प्रतियोगिता के रूप में
सम्पन्न होता है
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इसमें पहला, दूसरा और तीसरा स्थान
लाने वाले होते हैं पुरस्कृत
यह रिवायत है पुरानी
इस मिडिल स्कूल की
और हैं दो अन्य व्यवहारिक परीक्षा के विषय
पर वे महज हैं औपचारिकता
हाँ तो व्यवहारिक परीक्षा का प्रथम सोपान है
यह स्वच्छता मूल्यांकन
जो कि कल सम्पन्न होना है
प्यारे-प्यारे सारे बच्चे
अपने अपने घर में, कल के वास्ते
तैयारियों में व्यस्त हैं
रिन से धोकर
सर्फ़ एक्सल में डुबोने जा रहे हैं
ड्रेस गौरव
और केशव,
अपने जूतों की मरम्मत में जुटे हैं
सारी डिब्बी आज ‘चेरी’ की
ख़तम करने पे आमादा
और इधर सनसिल्क शेम्पू के लिए
आख़िर प्रियंका ने
झगड़ कर अपनी मम्मी से
वो देखो ले लिए पैसे
उसे विश्वास है
की उसके लम्बे-लम्बे, काले बाल
होंगे डेंड्रफ से मुक्त
तो नम्बर दिलाएंगे
और उधर तलवार जैसी धार वाली
क्रीज़ के चक्कर में अनवर ने
जला डाला है अपना पेंट इस्त्री में
जो नया बिल्कुल नया है
कल ही इस कस्बे के
सबसे अच्छे टेलर के यहाँ से
सिल के आया है
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डाँट मम्मी की धड़ाधड़ पड़ रही है
एक कोने में खड़े अनवर
सिसकते जा रहे हैं
और उधर वो रामफल मज़दूर है बेहद दुखी
क्योंकि कल के वास्ते वो
अपनी नन्हीं लाडली खुशबू को
देना चाहता था
ख़ूब अच्छी सी नई इक फ्रॉक
किन्तु उसके मन का हो पाया नहीं
ओवरसियर छुट्टी पे था
मिल नहीं पाये उसे पैसे समय पर
यूँ तो दो फ्राकें हैं पहले से
मगर दोनों फ़टी हैं
दो बरस पहले की हैं, कितनी चलेंगी
नन्हीं खुशबू में समझदारी बहुत है
ताड़ ली पापा की मजबूरी और बोली-
‘मेरे अच्छे अच्छे पापा
आपके चेहरे पे क्यों है ये उदासी
चलिए मेरे वास्ते हँस दीजिये
देखिए तो, यह गुलाबी फ्रॉक है
अब तक नई सी
बस ज़रा सी ही फटी है
मैं अभी सील कर इसे धो डालती हूँ
देखना कितनी जंचेगी
मुझको ही नम्बर मिलेंगे सबसे ज़्यादा’
आ गया मूल्यांकन का दिन
या कहो प्रतियोगिता का दिन
साफ़ सुथरे, सजे सँवरे फूल से बच्चे
अच्छे से अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रतिबद्ध
लो जमा होने लगे स्कूल प्रांगण में
और यह स्कूल प्रांगण
रंग-बिरंगे गुलों वाला
कोई गुलदस्ता नज़र आने लगा
विविधता में एकता का दे रहा संदेश पावन
आज यह स्कूल प्रांगण
लीजिए गौरव भी अपने दोस्तों को साथ लेकर
चल पड़ा स्कूल को
उसकी व्हाइट शर्ट, नीला पेंट कितने जँच रहे हैं
छोटे छोटे बाल काले क्या सलीके से सजे हैं
जिसने भी देखा उसे
वो देखता ही रह गया
क्या बात है-ये कह गया
हाँ तो अपने दोस्तों के साथ
गौरव चल पड़ा स्कूल को
आके चौराहे पे लो पकड़ी गली स्कूल की
देखा तभी गौरव ने, उसके दोस्तों ने
एक बूढ़ा, इक बड़ी सी पोटली थामे
सड़क पर गिर पड़ा सीधा
तुरत गौरव बढ़ा उस ओर
बूढ़े को उठाने के लिए
फ़ौरन बढ़ाये हाथ
केशव ने उसे टोका
‘ये बूढ़ा है बहुत गन्दा
ये उसकी पोटली भी कितनी मैली है
तुम्हारी शर्ट व्हाइट
रह न जाएगी किसी भी काम की
और फिर स्कूल भी जल्दी पहुँचना है
किन्तु गौरव ने सुनी न एक
बूढ़े को सहारा देके कंधों का
उठाया और फिर पूछा-
‘कहाँ जाना है बाबा आपको, यूँ गिर पड़े कैसे?
वो बूढ़ा हाँफते बोला-
‘अरे बेटा, मैं पैदल पास के ही गाँव से आया हूँ
जाना है इसी कस्बे के चमरौला मुहल्ला’
मेरी बेटी की वहाँ ससुराल है
घर से निकला था भला चंगा
अचानक रास्ते में क्या पता क्या हो गया है
जी बहुत मचला रहा है
साँस भी अंदर समाती ही नहीं है
एक पग चलना भी दूभर हो रहा है
और उस पर पोटली ये दो पसेरी की
अचानक आ गया चक्कर
सम्हल पाया नहीं, बस गिर पड़ा
तुम मुझे यदि मेरी बेटी के यहाँ तक छोड़ दोगे
तो बड़ा उपकार होगा’
‘आप चिता मत करें बाबा
ये अपनी पोटली दे दें मुझे
मैं टाँग लूँगा पीठ पर अपनी
मेरे कंधों का सहारा लेके चलिए
आपको जाना जहाँ मैं छोड़ देता हूँ
इतना कह कर चल दिया गौरव
लेके उस बूढ़े को अपने साथ
उसके दोस्तों ने राह ली स्कूल की
मन ही मन केशव बहुत खुश था
कि सत्यानाश होगी ड्रेस गौरव की
जीत लूँगा स्वच्छता प्रतियोगिता मैं ।
छोड़ कर बूढ़े को गौरव
आ गया स्कूल
सारी ड्रेस मटमैली हुई थी
बाल बिखरे और चेहरा था पसीने धूल से लथपथ
और उसके काले जूते ख़ूब गोबर में सने थे
हँस रहे थे ख़ूब बच्चे देखकर उसको
सभी खिल्ली उड़ाने में जुटे थे
अब तो नीचे से प्रथम स्थान आएगा
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
किन्तु विचलित था नहीं गौरव
उसे संतोष था-
जो भी किया उसने, किया अच्छा
भले प्रतियोगिता में हार जाये
लीजिये अब आ गया वह क्षण
जिसकी सबको ही प्रतीक्षा थी
नाम होना हैं विजेताओं के घोषित
थाम कर अपने जिगर बैठे हैं बच्चे
हॉल में छाया है सन्नाटा
आये तभी माइक पे गुप्ता सर
और बोले-“ साथियों, अभिभावको
प्रिय छात्र-छात्राओ
है सफ़ाई देह की, कपड़ों की भी बेहद ज़रूरी
यह सफ़ाई हमको देती है निरोगी तन
स्वस्थ तन, जीवन सरल-सुखमय बनाता है
किन्तु तन की ही तरह
मन की भी निर्मलता ज़रूरी है
बल्कि मन की स्वच्छता के बिन
स्वच्छता तन की अधूरी है
हैं अगर लोगों के मैले मन
तो ये जीवन की व्यवस्था नष्ट होगी
इस समूची सृष्टि में फैलेगी पशुता
श्रेष्ठ मानव जाति यदि पथ-भ्रष्ट होगी।
है विजेता प्रथम इस प्रतियोगिता का
ऐसा लड़का, जो कि मन से है बहुत निर्मल
आचरण है जिसका गंगाजल
जो कि करुणा, दया, परहित से सुपरिचित है
जिसने ऐ बच्चो
दिया है यथोचित सम्मान
मन की स्वच्छता को
जिसका मन भी तन के जैसा साफ़-सुथरा है
ऐसा लड़का जानते हो कौन है?
सातवीं कक्षा का गौरव वाजपेयी ।
मिल गई है हमको सारी जानकारी
क्यों नहीं गौरव समय पर आ सका
और उसकी साफ़ सुथरी ड्रेस क्यों मैली हुई
जान कर निर्णायकों ने वास्तविकता
कर दिया गौरव को ही घोषित विजेता
गर्व है मुझको कि
गौरव छात्र है मेरा ।“
सुन के गुप्ता जी का ये वक्तव्य
तालियों की तड़तड़ाहट गूंज उट्ठी
सबने गौरव का तहे-दिल से किया स्वागत ।।
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