व्यंग्य रचना - कुर्सी का उठावना - कमल किशोर वर्मा कन्नौद एक अच्छे देश के लिये जितने जरूरी नेता है उतनी ही जरूरी ...
व्यंग्य रचना - कुर्सी का उठावना
- कमल किशोर वर्मा कन्नौद
एक अच्छे देश के लिये जितने जरूरी नेता है उतनी ही जरूरी है उनके लिये कर्तव्यनिष्ठ और मेहनती धोबी, आप कहेंगे वो कैसे ? पर ये बात है सोलह आने सच , देश के लिये एक उज्जवल नेता की जरूरत होती है और उसे नेता बनाये रखने के लिये एक उज्जवल छबि की जरूरत होती है तथा उज्जवल छबि बनाये रखने के लिये एक शानदार धोबी की जरूरत होती है धोबी यदि ठीक ढंग से कपडे़ न धोए तो नेताजी की पोषाक में दाग रह जायेंगे और सारा देश नेताजी की करतूत जान जायेगा । इसलिए जैसा जलवा हमारे नेताजी का था वैसा ही उनके घोबी का भी था ! वैसे भैयाजी बुरा मत मानना रामजी ने भी धोबी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की । वैसे तो हम कहना नहीं चाहते थे पर अब बात निकली है तो बता देते है - हमारे नेताजी भी किसी से कम नहीं है वे किसी से नहीं डरते सिवाय अपने धोबी के ,
..........न ..न.. न.....वे डरते थोड़े ही हैं वे तो उसका आदर करते हैं इसलिये उसके सामने ज्यादा नहीं बोलते हैं पर विपक्ष का क्या ? वे तो बिना सिर पैर की हाँकते ही रहते हैं सो कुछ कह दिया होगा ?
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नेताजी के यहाँ उनके चाहने वालों की लाइन लगी रहती है किसी को मिलना हो तो पहले से अपाइमेन्ट लेना पड़ता है ,पहले गोरखा तलाशी लेता है फिर अन्दर जाने देते है पर धोबी तो धोबी है वह तो सब कानून से ऊपर है न ! उसको न अपाइमेन्ट की जरूरत है, न किसी चेकिंग की । जब चाहा आया ,जब चाहा गया, उसके भाग्य से तो चापलूसों को भी ईर्ष्या होती है । अब किसी को कोई काम है तो नेताजी के यहाँ जाओ, लाइन में लगो , घण्टों खडे़ रहो ,बाप रे ! सौ झंझट , सो लोगों ने अपना काम निकलवाने के लिये नेताजी के धोबी से अपनी सिफारिश शुरू करवा दी अब धोबी के भी दाम बढ़े सुबह शाम नेताजी के साथ उसके लिये भी भेट आने लगी , धोबी का निजी घर नेताजी का अघोषित दफ्तर बन गया । शहर में धोबी का जलवा हो गया , पडोसी भी धोबी से जलने लगे , कहने लगे अब तो धोबी के भी पत्र आने लगे भेंट आने लगी अब तो धोबी के भी दाम बढेंगे , बेचारा सरलता से कहता भैया पत्र आवे भेंट आवे तो हम सब के लिये ही अच्छा है पर लोगों का क्या ? उनको तो धोबी की उन्नति फूटी आँख न सुहाती थी पर वे कर ही क्या सकते थे सिवाय जलने के ?
जब भी किसी आदमी को मंत्रीजी से कोई काम होता तो वह नेता-अधिकारी को छोड़ कर सिर्फ धोबी को आश्वस्त कर लेता ,धोबी धीरे से मंत्रीजी के कान में मंत्रणा कर देता और काम हो जाता । धीरे -धीरे काम बड़ा आमदनी बढ़ी , अब ग्राहक धोबी पर ऐसे ही झूमने लगे जैसे गुड़ पर मक्खियाँ । और धोबी भी पान खाते हुए मुस्कराकर उनकी बातों का ऐसा समर्थन करता कि ग्राहक अपन जन्म सफल मानने लगता परन्तु हर गमले में फूल नहीं खिलता ,हर प्रश्न का उत्तर नहीं होता । सबका भाग्य प्रबल कहाँ होता है ?
इसी निष्ठुर और निर्बल भाग्य के मारे बेचारे मोहनलाल थे जिनके मन में किसी अशुभ घडी में यह ख्याल आ गया कि देश से भ्रष्टाचार मिटाया जाय । सो मोहनलालजी ने कुछ कारिन्दों की शिकायत ऊपर करदी । फाइलें चलती रही ऊपर से नीचे ,नीचे से ऊपर दौड़ती रही उसके साथ कुछ नेग भी आते जाते रहे और अन्त में उस समस्त काण्ड की जाँच का जिम्मा उनको ही सौंप दिया गया जिनकी शिकायत थी । उन्होंने जो रिपोर्ट भेजी उसमें कहा गया - यह समस्त शिकायत झूठी और काल्पनिक है यहाँ कोई मोहनलाल नाम का आदमी नहीं है । अब मोहनलाल को अपना होना सिद्ध करना था । बेचारे पटवारी से लगाकर अधिकारी तक गये , पहले तो सबने कहा कल आना । फिर कल-कल करते महीनों बात जाने के बाद , आफिस के गेट पर विराजित दरबान को नेग देने के बाद ही उनको साहब से मुलाकात का सौभाग्य आया ।
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साहब ने बडे प्यार से मोहनलाल को समझाया -देखो मोहनलाल आप सीधे-साधे ईमानदार ,समझदार बाल-बच्चे वाले व्यक्ति है आप कहाँ इस झंझट में पड़ गये ? साहब ने बड़ी शालीनता से आत्मीयता से कहा - देखिये ये तो दस्तूर है आप देंगे हम लेंगे , इससे देश में मुद्रा का चलन बढ़ेगा , देश की उन्नति होगी , समृद्धि आयेगी ,हमारा पैसा विदेशी बैंक में जायेगा इससे विदेश में हमारी साख बढेगी क्या आप अपने देश की उन्नति नहीं चाहते ? इस पुनीत कार्य में आपको खुले दिल से हमारा सहयोग करना चाहिये । परन्तु बेचारे मोहनलाल खुले दिल के नहीं थे ना ? सो वे इसकी भी शिकायत लेकर मंत्रीजी के पास जाने लगे और उसका सबसे सरल रास्ता था -धोबी । अब मोहनलाल ने धोबी के पास जाने का संकल्प लिया पर धोबी तो अब मँजा हुआ खिलाड़ी हो चुका था ? क्या वह बिना भेंट लिये मोहनलाल से मिलता ?
मोहनलाल ने घर-घर जाकर लोगों को भ्रष्टाचार के विरुद्ध समझाया , उनको अपना साथ देने के लिये अनुरोध किया , युवाओं का आह्वान किया , काले धन का विरोध किया ,विदेश से काला धन लाने के लिये अनशन किया , मोहनलाल की मेहनत रंग लाई जनता में जागृति आई ईमानदार लोगों ने भ्रष्ट नेताओं को समर्थन देना बन्द कर किया । मंत्रीजी की कुर्सी चली गई कुर्सी चले जाने के गम में मंत्रीजी भी चले गये ,उसके साथ ही धोबी का जलवा खत्म हो गया अब उसके घर की दीवार पर लिखा था - बडे़ दुःख के साथ सूचित करने में आता है कि हमारे पूज्य मंत्रीजी की कुर्सी का देहान्त हो गया है , वे अब मंत्रीजी नहीं रहे थे ,जिसके कारण मंत्रीजी भी नहीं रहे , उनकी आत्मशांति के लिये उनकी कुर्सी का उठावना रखा गया है सो कृपाकर पधारना आपके पधारने से मंत्रीजी की आत्मा को शांति मिलेगी ।
लेखक की अन्य रचनाएँ - गड्ढे का स्मारक
सरकारी भोजन , भालूनाथ अमर रहे आदि
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