जब भी सड़क मार्ग से गुजरता हूँ किसी न किसी बनते बिगड़ते फ्लाई ओवर पर नज़र पड़ जाती है. मैं समझ जाता हूँ सरकार विकास की तैय्यारी कर रही है, ठेक...
जब भी सड़क मार्ग से गुजरता हूँ किसी न किसी बनते बिगड़ते फ्लाई ओवर पर नज़र पड़ जाती है. मैं समझ जाता हूँ सरकार विकास की तैय्यारी कर रही है, ठेकेदार इंजीनियर कमीशन का हिसाब लगा रहे हैं और आस पास की जनता परेशान हो रही हैं टोल नाके वाले आम वाहन वाले को पीटने की कोशिश में लग जाते हैं. फ्लाई ओवर का आकार -प्रकार ही ऐसा होता हैं की बजट लम्बा चौड़ा हो जाता है. अफसरों की बांछें खिल जाती हैं. सड़क मंत्री संसद में घोषणा करते हैं और लगभग उसी समय सड़क पर कोई मर जाता है जिसे कोई नहीं उठाता न मंत्री, न ठेकेदार न सरकार न अफसर न टोल नाके वाले. बस यहीं विकास के नाम के फ्लाईओवर हैं, जहाँ आम आदमी मरने के काम आता है. सड़कें विकास के राज पथ हैं जहाँ से राजा की सवारी निकलती है. राज पथ का चौड़ा होना जरूरी है. किसान के खेत की जमीन को सड़क में मिला दो फ्लाईओवर को चौड़ा कर दो. विदेशी मेहमान खुश हो जायगा तो बुलेट ट्रेन के लिए बिना ब्याज के लोन दे देगा.
एक सरकार गलत फ्लाई ओवर बनाती है दूसरी सरकार तुड़वा कर दूसरा बनवाती है. यह खेल सत्तर सालों से चल रहा है. मैं एक फ्लाई ओवर से गुजर रहा हूँ. मैंने सोचा सरकारें फ्लाई ओवर से भी बनती बिगड़ती हैं. एक सरकार एक संसद सदस्य को तोड़ कर अपने लिए सत्ता का फ्लाई ओवर बनाती है. दूसरी पार्टी न्यायालय में जाती है और सत्ता पक्ष के फ्लाई ओवर को तोड़ती है, यह खेल निरंतर चलता रहता है. कई बार मैं देखता हूँ फ्लाई ओवर के नीचे एक पूरा शहर बस जाता है. अवैध चलने वाले वीडिओ कोच, असामाजिक तत्त्व, चाय वाले, ढाबे वाले, भिखारी, आवारा कुत्ते, टेम्पो वाले. रिक्शा वाले, और देर रात को चलने वाले सस्ते देह व्यापारी, दलाल सब फ्लाई ओवर के नीचे जगह पा जाते हैं. हर मेट्रो स्टेशन के नीचे भी यही हाल होता है. फ्लाईओवर के नीचे एक अवैध शहर बस जाता है. प्रशासन, सरकार, व्यवस्था आंखें मूँद लेती है. लोकल नेता अपना सिट्टा सेंकने में लग जाते हैं. कुछ वोट और बढ़ जाते हैं. पुलिस रंगदारी में व्यस्त हो जाती है. सर पर छत नहीं है तो क्या हुआ, ऊपर फ्लाईओवर की छत तो है.
पहले एक छोटी सड़क बनती है, फिर डबल लेन फिर फॉर लेन फिर सिक्स लेन और फिर फ्लाई ओवर. गाँव नीचे रह जाता है सड़क ऊपर से निकल जाती है याने विकास ऊपर से निकल गया. गाँव, ढाणी शहर नीचे रह गए. छोटी सड़कों के गड्ढे भरने का नाम मत लो, सरकारें फ्लाईओवर बनाने में व्यस्त है.
मैंने एक ग्रामीण से पूछा –तुम्हारे गाँव की सड़क का स्वास्थ्य कैसा है वो बोला जैसा मेरा स्वास्थ्य वैसा मेरे गाँव की सड़क का स्वास्थ्य, दोनों में गड्ढे पड़ गए हैं.
हर शहर को इस बात से नापा जा रहा है कि वहां फ्लाई ओवर कितने हैं ये कोई नहीं गिनता की इन फ्लाई ओवरों के नीचे दबे कुचले गरीब कितने हैं?
कवि फ्लाई ओवर पर कविता लिखता है, कहानीकार कहानी का प्लाट ढूंढ़ता है बस विकास का यही किस्सा है. संपादक पत्रकार अपने हिस्से की मलाई के लिए नए प्रशिक्षु को दौड़ाता है.
आसपास बनते इस विकास को देखने कभी कभी चीफ सा ब, मंत्री आते हैं गिट्टी, सीमेंट, बजरी, पानी की जाँच के नाम पर चौथ वसूलते हैं और चले जाते हैं. रोड रोलर, डामर बनाने की मशीन भयंकर आवाज़ के साथ घूमती है और सरकारी फ्लाईओवर योजना फाइलों से निकल कर दौड़ने लगती है.
यदि आप किसी से पूछें इस फ्लाई ओवर की जरूरत क्या है ?इसे कौन और क्यों बनवा रहा है. कनिष्ठ अभियंता व विभाग का नाम क्या है तो आपकी मोब लिंचिंग हो जायगी. उपर फ्लाई ओवर नीचे मेट्रो की लाइन फिर नीचे एक छोटा फ्लाईओवर फिर पुराना सड़क व् स्लिप लेन. जहाँ चौराहा बनता है वहां पर रोज़ दुर्घटनाएं सड़क पर मौत का नंगा नाच, कानून इतना कमज़ोर की जिम्मेदार की एक दिन में जमानत.
छोटी सड़कों पर स्पीड ब्रेकर्स तो हैं, इन पर तो कोई स्पीड ब्रेकर भी नहीं होता. सड़कों पर रोज़ मर रहें है, मगर कौन सुनता है मर गया, लो मुआवजा, भरो टोल टैक्स. फिल्म वाले सड़क पर सड़क नाम से ही फिल्म बना देतेहैं फिर हाईवे पर फिल्म बना देते हैं, अब फ्लाई ओवर का नम्बर है. पैसे के लिए क्या क्या नहीं करता बड़ा आदमी. सड़क, हाईवे, फ्लाईओवर पर नाचती गाती इठलाती हिरोइन और पीछा करता सेंसर बोर्ड. फिल्म नहीं तो वेब सीरीज बना दो. मनोरंजन के नाम पर भी फ्लाई ओवर परोस दो.
पहले टूटी फूटी सड़क के किस्से चलते थे अब चिकनी सड़क के किस्से मशहूर हो रहे हैं.
काम करने वाली गरीब मजदूरन अपने बच्चे को एक पेड़ के नीचे लिटा कर तगारी उठा रही हैं, मेट सोच रहा है आज इस जवान मजदूरन को साहब को परोस दूँ तो फर्जी बिल तुरंत पास हो जायगा, मगर साली ये आजकल आसानी से मानती भी नहीं है. पिछड़े लोग पिछड़ा सोच. रोड रोलर हेली कोप्टर की तरह शोर मचा रहा है. तेज़ गर्मी है, मजदूरन सोच रही है अगर आज भुगतान मिल गया तो उज्ज्वला योजना वाला चूल्हा जला लुंगी, नहीं तो कंडे व लकड़ी से ही काम चलेगा.
आस पास के लोग रात बिरात सीमेंट, बजरी रोड़ी अपने काम में ले लेते हैं. चौकीदार हड़काता है, मगर एक थैली में चुप हो जाता है. अरबों के ठेके करोड़ों का कमिशन फिर भी दार्शनिक अंदाज़ क्या लेकर आया है और क्या लेकर जायेगा, वैसे तू अभी पूरा कमीशन निकाल नहीं तो बिल को ऑब्जेक्शन में डाल दूंगा. गरीब मजदूरन पानी पीकर मेट की और भुगतान लेने जाती है मगर बिल पास नहीं हुआ है, यह खबर पाकर बच्चे को लेकर अधूरे बने फ्लाईओवर के नीचे अस्थायी चूल्हा सुलगाने में लग जाती है.
आखिर इस फ्लाईओवर का काम पूरा होने के बाद दूसरी जगह भी काम ढूँढना है, मनरेगा में तो काम मिलेगा नहीं. चलो फ्लाई ओवर से विकास करें.
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यशवंत कोठारी, ८६, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर-२
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