गुजराती कहानी - लुगाइयाँ - मूल – किरीट दूधात - अनुवाद - डॉ॰ रानू मुखर्जी

SHARE:

“सभी तैयारियां हो गई है न जादू?” सवजी दादा ने पूछा “जादव मामा ने हामी भरी” “जी दादा”। “रसोई का माहौल कैसा है?’ “लुगाइयों का तो वहाँ जबर्दस्त...

“सभी तैयारियां हो गई है न जादू?” सवजी दादा ने पूछा “जादव मामा ने हामी भरी” “जी दादा”।

“रसोई का माहौल कैसा है?’

“लुगाइयों का तो वहाँ जबर्दस्त विरोध है अभी तक तो मेरी माँ और चाची यही कह रही हें कि मंजू को तो नहीं ही भेजना है।“

सवजीदादा गुस्से से भर उठे, “सब गंवार के गंवार ही रही। सबको समझाया कि बेकार के झंझट को छोड़ो फिर भी अड़ी हुई हैं, बहुत हो गया अब तो उनसे निबटना ही पड़ेगा।“ कहते हुए सवजीदादा ऑफिस से निकालकर रसोई की ओर चल दिए।

“लुगाइयाँ तो बड़ी जिगरवाली निकली।“ कहते हुए जड़ाव मामा ऑफिस के फर्श पर चाक से तीन गोटी से खेलने वाले खेल की रेखाएँ खींचने लगे। फिर मुझे देख कर बोले, “भांजे तेरी दादी से कह देना कि तुझे सुबह सबेरे तैयार कर दे, कहीं तेरी वजह से देर न हो जाए।“

और तभी जादवमामा के पिताजी रामजी दादा बाहर से आए। उन्होंने पूछा, “भाई कहाँ गए सब? क्या हुआ पूरी बात का?”

“देखिए न मेरी माँ और चाची अभी तक इस बात से सहमत नहीं हैं। दादाजी उधर रसोईघर की ओर ही गए हैं।“

“इसका मतलब ये निकाला कि कल अमरेली जाने की कोई निश्चितता नहीं हॅ क्यों? आज ही बतकों मेडी गया, मैंने उसके हाथ संदेश भेज दिया है कि कल की बात पक्की हैं?”

“मेरी माँ कहती है कि इस रिश्ते पर यहीं धूल डालो। हमें विराणी के सिवाय दूसरे भी बहुत सारे रिश्ते मिल जाएंगे। वो एक ही है क्या ? जो वो जैसा कहें हम वैसा हे करते जाएँ।“

“तेरी माँ की तो मती तो मारी गई है ये कोई माली-तेली के घर का रिश्ता है क्या जो छोटी मोटी मामूली सी बात पर रिश्ता तोड़ डालें? क्या मंजू हमें प्यारी नहीं हैं? अभी-अभी मैं मगना दर्जी को कहकर आ रहा हूँ कि गुरुवार से अपने ऑफिस में सिलाई मशीन रख दे, विराणी का एक पूरा कमरा मंजू के दहेज से भर जाए। हम चारों भाइयों में वो अकेली ही तो है, बेचारी!”

इतने में सवजी दादा हाँफते हुए ऑफिस में आए और सर पर की पगड़ी को खटिया पर पछाड़ते हुए बोले “ऑफ हो! ये हमारे रीति रिवाज, व्यवहार, बाप रे बाप, हद हो गई...”

[post_ads]

“क्या हुआ भैया?” रामजी बापा ने पूछा।

“माँ को रूलाना पड़ा, और क्या? मैंने तो माँ से साफ-साफ कह दिया माँ, आप और ये चार लुगाइयाँ आप लोग सब यहाँ से चलते बनो। हमें आप लोगों की कोई जरूरत नहीं। फिर तो माँ खूब रोई और कहा कि अगर ऐसा है तो कर लो अपनी मर्जी की और फेंक दो लड़की को कुएं में। कल सुबह ही मंजू को तैयार कर देते हैं। जादू ये व्यवहार मतलब ये बात खत्म, ठीक है?”

और तभी बाघजी दादा और माथुर मामा ट्रैक्टर लेकर आए। बाघजी दादा मंजू के पिता, पर उनको अपनी बेटी के चल रही बातों पर कोई रूचि नहीं है। वो तो बस इतना जानते हैं कि व्यवहार की बातों की पूरी ज़िम्मेदारी सवजी भाई का है। वो सब निभा लेंगे। मुझे तो बस खेती-बाड़ी का काम ही संभालना है। पर सवजी बापा के बेटे माथुर मामा एक शौकीन इंसान हैं। उन्होने ट्रेलर पर से छलांग लगाते हुए पूछा, “क्यों भांजे क्या कह रहे हैं, कामरू देश के सेनानी”?

जादव मामा बोले, “बड़ी मुश्किल से लाइन पर गाड़ी आई है, अब कल सब कुछ सही हो जाए तो शांति”

वाघाजी दादा चुपचाप आकार ऑफिस में बैठ गए। वाघजी दादा एक सच्चे भगत थे। सारा दिन राम नाम की माला जपते रहते हैं। भगत बनाने से पहले तो वे तीनों भाइयों के जैसे संसारी थे। एक दिन उन्होने अपनी पत्नी चंचला से कहा, “कल से मैं और मेरा भगवान और कोई नहीं। समाज के नियमानुसार तुम मेरी पत्नी हो यह सही है पर कल से मेरा नया जीवन शुरु। कल से संसार के सारे काम बंद और वो भगत बन गए। नया जन्म। गाँव वाले कहते हैं कि भगत पर भक्ति की लाली चढ़ गई है। पर गाँव के कुछ लोग, कुछ और ही बातें करते हैं, भगत, भगत बनाने से पहले गाँव के मजदूरों से बीड़ी मांगकर पीते थे। इसलिए उनके दिमाग में मुफ्त की बीड़ी का धूआं भर गया है। भक्ति तो मात्र दिखावा है। भगत भगवान को छोड़कर और किसी विषय पर बात नहीं करते हैं। हाँ, कभी, कभी जब मैं आँगन में खेल रहा होता तब मुझे बच्चा समझकर बुलाते, “आओ भांजे” मेरे नजदीक जाने पर कहते “आज तो मीरा बाई की एक भजन की रचना की है।“ भगत कभी कभार मीराबाई या नरसिंह मेहता के भजनों की रचना कर लेते थे। मुझे पूछते “सुनाऊँ?”

मैं हामी भरता। तब लकड़ी के पुराने सन्दूक पर जंग लगे हुए पुराने पतरे पर अठन्नी से बजाकर भजन सुनाने लगते, फिर पूछते, “कुछ समझ में आया?”

मैं सर हिलाकर ना कहता, तो भी भगत खुश हो जाते और हँसते हुए कहते, “कहाँ से समझ में आएगा, ये तो भक्ति है भक्ति, क्या है?” तब मैं कहता “भक्ति”।

असली बात तो यह थी कि भगत अपनी भजन सुनाने के बाद मुझे दस पैसे खर्च करने के लिए देते थे । इसलिए जब तक मुझे दस पैसे खर्च करने के लिए मिलते हैं तब तक इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं थी कि ये भक्ति है या पागलपन।

मथुर मामा ने कहा, “माँ को रूलाया ये ठीक नहीं किया” बात सही थी। पूरा गाँव जकल माँ का आदर करता है। उनकी कही बात को मानता है। जब जकल माँ नजदीक होती तब माँ बच्चों को मारते पिटते वक्त अपशब्द नहीं बोलती है। सवजी दादा भी वक्त बेवक्त जरूरत पड़ने पर जकल माँ से सलाह मशवरा करते हैं। पर ये बात तो एकदम अनोखी है।

मंजू की मंगनी बचपन में मेडी के सरपंच रतिभाई विराणी के बेटे दिनेश से तय हो गई थी। दिनेश इकलौता बेटा है। उसकी माँ उसके बचपन में ही गुजर गई थी। इतने साल तक सब ठीक ठाक चल रहा था। पर जब शादी के दो तीन महीने रह गए तब किसी ने दिनेश के कान में यह बात दाल दी कि मंजू की जांघ पर सफ़ेद दाग है।

[post_ads_2]

पहले भी गाँव में दो एक के साथ ऐसा हुआ कि सुहागरात को उनके दागों का पता चला और फिर दुल्हन को घर से निकाल दिया गया। भविष्य में ऐसा न हो इसलिए दिनेश निश्चिंत होना चाहता था। उसने कहला भेजा था कि या तो मैं वहां आकार निश्चिंत हो जाऊं या आप मंजुला को यहाँ भेज दें।

गर्मी की दोपहर को मैं पढ़ाई पूरी करके सवजी दादा के घर खेलने के लिए जाता हूँ तब अंधेरे सीलनवाले घर में दोपहर का काम खत्म करके नहा धोकर मंजू कंघी करती हो या दिनेश को चिट्ठी लिख रही होती तब मैं पहुंचता और मंजू से पूछता, “मंजू क्या कर रही है?”

संकोच से भर मंजू कह उठती “देख न दिनेश को लेटर लिख रही हूँ”

“इसमें मेरा नाम लिखा या नहीं?” आती-जाती चिट्ठियों में मेरा नाम हो ऐसी मेरी इच्छा रहती। नखरे दिखाकर मंजू कहती, “तेरी घरवाली जब तेरे को पत्र लिखेगी तब उसमें तेरा नाम लिखेगी।“ पर मैं अपनी परेशानी दिखाता हुआ कहता, कि मेरी तो घरवाली है ही नहीं।

फिर मंजू कहती, “एक दिन तेरी बहू आएगी न। अगर जल्दी है तो घर जाकर मटके में कंकड़ डाल।”

घर जाकर मैं पिताजी को पूछता, “मेरी बहू कब आएगी बाबा”? बाबा खुश होकर कहते, “तू कहे तो अभी लेकर आएँ। बोल एक चोटीवाली लानी है या दो चोटीवाली?”

मैं परेशान हो जाता, दादी को जाकर पूछता कि इसमें क्या फरक पड़ता है? फिर दादी समझाती एक चोटीवाली काम ज्यादा करती है जबकि दो चोटीवाली अपना साज शृंगार खत्म करेगी तब न घर का काम करेगी और मैं थोड़ी देर तक सोच विचार में खोया रहता और फिर कहता, “मुझे तो एक चोटीवाली बहू ही चाहिए, काम न करे ऐसी घरवाली किस काम की?”

मंजू दो चोटी बनाती और घर के काम काज में उतनी रूचि नहीं लेती। मंजू की माँ तो अक्सर कहा करती, “निर्लज्ज, यहाँ बाप के घर में कुछ काम काज सीख ले नहीं तो ससुराल जाकर तू तो बातें सुनेगी ही हमें भी सुनाएगी।“ पर भगत की पत्नी चंचल बा कहती, “मंजू तो अपने घर की लक्ष्मी है। इसके जन्म के बाद ही हमारे घर का सारा कर्ज खत्म हुआ। हमें इससे काम थोड़े ही करवाना है।”

घर में इस बात का कोई विरोध नहीं करता था। इसका एक कारण यह भी था कि चंचल माँ को उनकी देवरानी-जेठानी जैसा संस्कारी नहीं माना जाता हॅ। सवजी दादा कहते “ये तो मजदूरों की बेटी है। इसको दूसरी बातें कैसे समझ में आएगी। दिन में चार-पाँच बार पेट जल जाए इतनी उबलती हुई गरम चाय पिएगी और जानवरों के जैसे दिन भर काम करती रहेगी। ये तो हमारे पिताजी और इसके दादा बचपन के दोस्त थे इसलिए हमारे पिताजी ने दोस्त की बात रख ली।

अर्थात चंचल माँ थोड़ी असंस्कारी है सही पर अगर बोलने मे आए तो किसी को नहीं छोडती हैं। मुंह से गंदी गाली भी निकाल आती है। फिर जकल माँ उसको समझाती है कि “चंचल बहू यह अच्छा नहीं लगता।“ इसलिए माँ की बात को मानती हुई चंचल माँ ने दिनेश की बात पर दो चार गालियां सुनाई और इस बात पर दिनेश और उसके बाप का गला दबा देने की इच्छा भी व्यक्त की थी और यह भी कहा था कि “मंजू मेरे बेटी है, आए तो कोई इसको परखने थोबड़ा ही न तोड़ डालूँ उसका।”

इस पर घर की सभी लुगाइयाँ एक हो गई। जकल माँ जैसी बुद्धिशाली स्त्री की अंतरात्मा भी थरथरा उठी।

सभी लुगाइयों का एक ही मत था कि भले ही ये रिश्ता टूट जाए पर मंजू की जांच तो कभी नहीं करने देगें।

सावजीबापा तुरंत मेडी गए। उन्होने रतिभाई को कहा, भला आदमी, हमारे इतने वर्षों के संबंध है और आपको, मैं झूठा मोती दूंगा भला ? पर रतिभाई का एक ही जवाब था, “दिनेश जब बहुत छोटा था तभी उसकी माँ चल बसी थी। उसका पालन पोषण एक राजा के जैसे हुआ है, वह कहे दिन है तो दिन है अगर कहे रात है तो रात है।”

इस जवाब के साथ लौटने के बाद घर के सभी पुरुष इकट्ठे हुए और विचार विमर्श करने बैठे कि क्या किया जाए? वाघजीबापा ने इसका एक ही समाधान निकाला कि दिनेश की बात मान ली जाए।

सवजी दादा ने कहा कि “जादू माँ को कहकर आओ कि कल सुबह मंजू को तैयार करके रखे। उसे कल सुबह अमरेली में डॉ॰ खोखर के दवाखाने भेजना है। कोई पूछे तो कहना कि मंजू की भाभी बीमार है उसे डॉ॰ खोखर के दवाखाने में भर्ती किया है इसलिए उनका हालचाल पूछने जा रही है। और दिनेश को जो जांच करानी है करा ले बात खत्म करो यही पर, बस।

जादव मामा जितनी तेजी से गए उतनी तेजी से ही लौट आए, “लुगाइयाँ तो कह रही है कि ये रिश्ता तोड़ दें।“ इतना आश्चर्य तो सावजी बापा को दिनेश की बातों से भी हुआ था।

“लो कर लो बात, कह रहें है कि संबंध तोड़ दो। और भई, अगर दूसरा संबंध करने जाएंगे तो उनको क्या जवाब देंगे कि पहला संबंध क्यों टूटा?”

राघवजी दादा के चेहरे पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रा जी जैसा तेज छा गया। उन्होने कहा, “जादू बैलगाड़े में बैठाकर तेरी चाची को उनके पिता के घर छोडकर आ।”

वाघजी बापा ने कहा, “भई हम कल से सब काम काज छोडकर खाना पकाने बैठ जाएँ।”

जादव मामा ने कहा, “भांजे! एक जगह पर आकार लुगाइयों की अक्कल काम करना बंद कर देती है। इसलिए उनसे ज्यादा बात करेंगे तो हम ही मूर्ख कहलाएंगे।“ बड़ा होने पर इस बात का ध्यान रखना समझे?”

मावजी दादा बोले, “घाघरा टोली ने कहा अर्थात बात खत्म”।

फिर सब ठहाका लगाने लगे। इतना आनंद तो भवाई देखने जाएँ और गले में ढ़ोल लटकाकर सवजी दादा जैसे प्रतिष्ठित लोगों से, पैसा दे दो माई बाप हम आपके भंगी है कहकर चतुराई से पैसा ऐंठ ले तो भी नहीं आता है। ये तो मैं पास में ही बैठा था इसलिए नहीं तो कोई बाहर से आनेवाला तो यही समझता कि सब इकट्ठे होकर जकल माँ का शोक माना रहे हैं।

दूसरे दिन मंजू को अमरेली भेजना तय हुआ। जादव मामा बैलगाड़ी लेकर जानेवाले थे और काम पूरा होने पर शाम को वापस आनेवाले थे। मैंने कहा कि अमरेली में जेसल-तोरल फिल्म लगी है। मुझे देखना है। इसलिए मुझे भी साथ लेकर जाना तय हुआ। सबेरे से मंजू रो रही थी और कमरे में पालती मार्कर बैठ गई थी और उठने का नाम भी नहीं ले रही थे। सवजी दादा गुस्से हो गए, “माँ अब और कितनी देर? जल्दी निबटाओ न इस बात को।”

फिर तो जकल माँ की आँखों में आँसू आ गए। उन्होने मंजू को बानहे पकड़कर उठाते हुए बोला, “जा नभ्भाई (बिन भाई के) अब न कहने से क्या होने वाला है?” चारों ओर नीरवता फैली थी केवल मात्र बैल की साँसे और मंजू की सिसकियाँ ही गूंज रही थी।

जैसे भगवान ऊपर हे चढ़कर बैठे हो इस तरह से ऊपर देखते हुए भगत ने कहा, “बहन मंजू तो नासमझ है इसलिए रो रही है, बाकी तो सभी को अपने किए का फल भोगना ही है। क्यों भगवान?” कहते हुए भगत खुश हुए। मंजू ने रोते हुए जादव मामा से कहा,” भाई अभी भी वक्त है गाड़ी को लौटा ले न।” एक बार तो जादव मामा को, मेरी भाभी की कसम गाड़ी लौटा लो न, ऐसा भी कहा फिर तो जादव मामा ने चिढ़कर कहा, “तेरी भाभी अगर मरे तो मे दूसरी कर लूँगा पर ये गाड़ी तो अब लौटने वाली नहीं है। और उसके बाद रास्ते भर मंजू ने जादव मामा को एक शब्द भी नहीं कहा।

जब सब लोग डॉ॰ खोखर के दवाखाने पर पहुंचे, तब वहाँ दिनेश के मोटर साईकल खड़ी थी। जादव मामा ने मुझसे कहा, भांजे मैं तंबाकू लेकर आता हूँ, तू यही पर रहना। तभी एक रूम में से दिनेश निकाला और मंजू को एक कमरा दिखाकर बोला, “यहाँ पर आ जा”। मंजू ने मुझे दोनों हाथों से जकड़ रखा था।“ तू मेरे साथ ही रहना।“ दिनेश ने कहा,” इसका कोई काम नहीं है।“ वह माजू को कमरे मे ले गया और एक आध मिनट के बाद सीटी बजाता हुआ बाहर आया और अपना बुलेट लेकर चलता बना। पीछे से मंजू बाहर आई। मैंने पूछा, “क्या हुआ मंजू?” उसने जवाब दिया, “इससे तो मर जाना बेहतर है।“ मॅ बार बार पूछता गया पर उसने कोई जवाब नहीं दिया बस रोती रही। “ठीक है, कोई बात नहीं जल्दी चलो वरना फिल्म शुरू हो जाएगी।

लौटते समय रास्ता भर मंजू रोती ही रही। घर पहुँचने पर सभी ने पूछा क्या हुआ? जादवमामा ने जवाब दिया मेरे लौटने से पहले ही दिनेश निकाल चुका था और मंजू तो तब से ही रो रही है।

दूसरे दिन जादव मामा नारियल और पेड़े का डिब्बा लेकर आए और खबर दी कि रति भाई ने शादी की तारीख पक्की करने को कहा है। फिर बोले, ‘चलो ये नारियल मंजू के माथे पर फोड़ते है। यों तो ये सभी लुगाइयों के माथे पर फोड़ना चाहिए। मूर्ख सब मिलकर विलाप कर रही थी।“

बाद में वाघजी बापा और रामजी दादा सब एक के बाद एक आकार लुगाइयों पर व्यंग कसकर गए। “जरा भी बुद्धि नहीं है देखा! आपके कहने पर चलते तो पूरे समाज में फजीता न होता?” अंत में सवजी दादा आए और टोककर गए कि कुछ समस्या आकर खड़ी होती है तो अक्कल से काम लेना चाहिए सोचे समझे बगैर गालियां देने नहीं बैठ जाना चाहिए। समझ में आया? पर आप लोगों के सामने समझदारी की बात करने का क्या फायदा और नहीं करें तो भी क्या? निरे पत्थर पर पानी डालना ही है। मूर्ख लुगाइयाँ”।”

जकल माँ कोने में बैठकर चुपचाप माला फेर रही थी। वह कुछ नहीं बोली पर जैसे ही सवजी दादा ऑफिस के लिए मुड़े और कुछ ही कदम चले होंगे कि चंचल माँ रोटी बनाते हुई धधकते चूल्हे में से जलती हुई लकड़ी को लेकर खड़ी हो गई और चीख पड़ी, “तुम्हारी माँ के खासम, अब आए हो सयाने बनकर, तुम्हारे कूल्हों पर तो ये अंगारे दाग देने चाहिए॰ ॰ ॰ मेरी रतन जैसी बेटी॰ ॰ ॰ कहकर चंचल ने ज़ोर से बगैर लिपि, पपड़ी वाली दीवार पर जलती लकड़ी ठोकी, उसके कोयले चारों ओर उड़े, फिर चंचल माँ नीचे बैठकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। एक सिसकी लेकर दूसरों के लिए जब उन्होने सांस अंदर लिया तब तक तवे की रोटी जलकर कोयला बन चुकी थी।

--

परिचय – पत्र

नाम - डॉ. रानू मुखर्जी

जन्म - कलकता

मातृभाषा - बंगला

शिक्षा - एम.ए. (हिंदी), पी.एच.डी.(महाराजा सयाजी राव युनिवर्सिटी,वडोदरा), बी.एड. (भारतीय

शिक्षा परिषद, यु.पी.)

लेखन - हिंदी, बंगला, गुजराती, ओडीया, अँग्रेजी भाषाओं के ज्ञान के कारण आनुवाद कार्य में

संलग्न। स्वरचित कहानी, आलोचना, कविता, लेख आदि हंस (दिल्ली), वागर्थ (कलकता), समकालीन भारतीय साहित्य (दिल्ली), कथाक्रम (दिल्ली), नव भारत (भोपाल), शैली (बिहार), संदर्भ माजरा (जयपुर), शिवानंद वाणी (बनारस), दैनिक जागरण (कानपुर), दक्षिण समाचार (हैदराबाद), नारी अस्मिता (बडौदा), पहचान (दिल्ली), भाषासेतु (अहमदाबाद) आदि प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं में प्रकशित। “गुजरात में हिन्दी साहित्य का इतिहास” के लेखन में सहायक।

प्रकाशन - “मध्यकालीन हिंदी गुजराती साखी साहित्य” (शोध ग्रंथ-1998), “किसे पुकारुँ?”(कहानी

संग्रह – 2000), “मोड पर” (कहानी संग्रह – 2001), “नारी चेतना” (आलोचना – 2001), “अबके बिछ्डे ना मिलै” (कहानी संग्रह – 2004), “किसे पुकारुँ?” (गुजराती भाषा में आनुवाद -2008), “बाहर वाला चेहरा” (कहानी संग्रह-2013), “सुरभी” बांग्ला कहानियों का हिन्दी अनुवाद – प्रकाशित, “स्वप्न दुःस्वप्न” तथा “मेमरी लेन” (चिनु मोदी के गुजराती नाटकों का अनुवाद 2017), “गुजराती लेखिकाओं नी प्रतिनिधि वार्ताओं” का हिन्दी में अनुवाद (शीघ्र प्रकाश्य), “बांग्ला नाटय साहित्य तथा रंगमंच का संक्षिप्त इति.” (शिघ्र प्रकाश्य)।

उपलब्धियाँ - हिंदी साहित्य अकादमी गुजरात द्वारा वर्ष 2000 में शोध ग्रंथ “साखी साहित्य” प्रथम

पुरस्कृत, गुजरात साहित्य परिषद द्वारा 2000 में स्वरचित कहानी “मुखौटा” द्वितीय पुरस्कृत, हिंदी साहित्य अकादमी गुजरात द्वारा वर्ष 2002 में स्वरचित कहानी संग्रह “किसे पुकारुँ?” को कहानी विधा के अंतर्गत प्रथम पुरस्कृत, केन्द्रिय हिंदी निदेशालय द्वारा कहानी संग्रह “किसे पुकारुँ?” को अहिंदी भाषी लेखकों को पुरस्कृत करने की योजना के अंतर्गत माननीय प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयीजी के हाथों प्रधान मंत्री निवास में प्र्शस्ति पत्र, शाल, मोमेंटो तथा पचास हजार रु. प्रदान कर 30-04-2003 को सम्मानित किया। वर्ष 2003 में साहित्य अकादमि गुजरात द्वारा पुस्तक “मोड पर” को कहानी विधा के अंतर्गत द्वितीय पुरस्कृत।

अन्य उपलब्धियाँ - आकशवाणी (अहमदाबाद-वडोदरा) को वार्ताकार। टी.वी. पर साहित्यिक

पुस्तकों क परिचय कराना।

--

डॉ॰ रानू मुखर्जी

17, जे। एम॰ के॰ अपार्टमेंट

एच॰ टी॰ रोड, सुभानपुरा

बड़ौदा – 390 023

E-mail – ranumukharji@yahoo॰co॰in

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: गुजराती कहानी - लुगाइयाँ - मूल – किरीट दूधात - अनुवाद - डॉ॰ रानू मुखर्जी
गुजराती कहानी - लुगाइयाँ - मूल – किरीट दूधात - अनुवाद - डॉ॰ रानू मुखर्जी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDb6ytCMJoEdbQgCnFMr4CT3S0mGqVHWKhH37PrBDlMDyaRupdHQM-isiLK2EO1CVi94YJPht3k3VtE185op7KB-2gk3Y3FFq0idS_ccL05MK9W3aYZRk0VVUoFw0v17QKtXsx/s320/mcmobhlomfdjenfj-717423.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDb6ytCMJoEdbQgCnFMr4CT3S0mGqVHWKhH37PrBDlMDyaRupdHQM-isiLK2EO1CVi94YJPht3k3VtE185op7KB-2gk3Y3FFq0idS_ccL05MK9W3aYZRk0VVUoFw0v17QKtXsx/s72-c/mcmobhlomfdjenfj-717423.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2019/08/blog-post_37.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2019/08/blog-post_37.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content