1. कविता- यहाँ पर कभी यहाँ पर नहीं देखा है लोगों को आगे निकलते सिर्फ एक ही काम करते हैं चलते हुए की टाँग खींचते और जरा भी फिक्र नहीं क...
1. कविता- यहाँ पर
कभी यहाँ पर नहीं देखा है
लोगों को आगे निकलते
सिर्फ एक ही काम करते हैं
चलते हुए की टाँग खींचते
और जरा भी फिक्र नहीं कल की
यदि आज भरपेट मिल गया मुफ्त कहीं
नहीं उठाते कोई खतरा कभी
करना है कुछ नया इनको नहीं
दो जून की रोटी
और अपनी झुग्गी बस्ती
इनका सपना भी
और स्वर्ग है बस यही
उत्तम स्तर रहन-सहन
मान-प्रतिष्ठा पद-आसन
हैं इनकी नजरों में दुर्लभ
या फिर लगते इन्हें बदत्तर
कहते चूहे का बच्चा
बिल ही है खोदता
मुश्किल यदि कोई चाहता
इनको ऊपर है उठाना
सही और खरी बात समझे नहीं
झूठ और चापलूसी में हैं सुखी
वही चला आ रहा है पीढ़ी दर पीढ़ी
कभी बदलाव के बारे में सोचा तक नहीं
धन्य हैं ये इनको नमन है
आदम से जो पुरातन हो गये
आश्चर्य नहीं कोई यदि है
अब तक पूरी सदी पीछे
कदमों में चली आये सफलता
तो ये ठोकर मार देंगे भगा
इतने में भी नहीं छूटा पीछा
तो निश्चय ही हो जायेंगे विदा
शिक्षा का मोल दो कौड़ी
अच्छी है लाचारी-भूखमरी
कर्म कर हासिल करते नहीं
भीख में या कर्ज में लेते सभी
चाहे कोई भी हो राजा
इनको ना कोई फर्क पड़ता
हाथ बाँधे हाथ फैला
कुछ माँगने का है बहाना
कोरी बातें हाँकते डिगे
नशा करते काम उल्टे
फुर्सत नहीं सोने से
बोझ लगता है जीने में
ऐसे बीत रहे दिन
गुजर रहा है जीवन
जागरूक खुश हैं निडर
उनकी जीत अटल
- रतन लाल जाट
2. कविता- मेरी सम्पति
न जमीन-जायदाद
न धन-दौलत
न आलीशान घर-बंगला
न कोई गाड़ी-घोड़ा
मेरी सम्पति है
बस, घर के एक पुराने
कमरे की एक ताक में
रखी कुछ पुस्तकों के
अंदर छुपी दौलत है
वही एकमात्र सम्पति है
आधार मेरे जीवन की
आज हूँ जो वजह उसकी ही
सच्चा प्यार है यही
जो देती है हर खुशी
सच ही अनमोल सम्पति है
- रतन लाल जाट
3. कविता- उसका प्रेम
वह खुद
भूखी रहकर
एक-एक चीज
रखे बचाकर
करती है त्याग
अपना जो है सब
खाने-पीने योग्य
कोई मीठी चीज हो
या भौतिक सुख
जिससे मिलता हो
उन सबको वो चाहने की
नजर से देखती भी नहीं
सिवा त्याग करती है
अपने आत्मीयजनों के लिए
और जब उसका अपना कोई आता है
तो वह पलभर में ही सब सौंप देती है
बरसों से सिंचित की हुई दौलत
क्योंकि उसे दौलत से ज्यादा
वो प्यारे हैं
इतना करने के बाद भी
वो अपने यदि उसके प्रेम को ना समझे
तो उनसे ज्यादा मूर्ख कोई नहीं है
- रतन लाल जाट
4. कविता- भविष्य
शिक्षा से दूर
पला गरीबी में
शोषण का शिकार
व्याकुल भूख से
देश का भविष्य है
नशे में डूबा
चोरी से जुड़ा
बेरोजगार हुआ
छेड़छाड़ करता
देश का कर्णधार है
कोरे सपने
प्रयास थोड़े
दूर मंजिल से
राह भटके
देश का चित्र है
दिखावे में अंधी
बहकावे में आती
चाह ऐशोआराम की
लूटा रही जिंदगी
देश के कल की तस्वीर है
- रतन लाल जाट
5. कविता- सबसे सुन्दर प्रकृति
बरसात से पहले की हवा
घने वृक्ष की शीतल छाया
उगते सूरज की लालिमा
चाँद छिटकती चाँदनी वाला
इनसे जो मिलता सुकून
दिल को आराम सुखद
और मन को हर्षोल्लास
कोई नहीं जानता वो राज
न ठंडक एयरकंडीशनर की
न हवा कूलर से आती हुई
न जगमग रंग-बिरंग रोशनी
न कभी बराबरी करती
फूलों की खुशबू
पत्तों का हरापन
कलियों की कोमलता
स्वाद पके फलों का
नदी का बहना
झरने का गिरना
लहरें उठना
बादल बरसना
यह सब अपने में
अनुपम सौगात है
जो विज्ञान के
नहीं आधुनिक यंत्रों में
सबसे सुंदर प्रकृति
और सुरम्यता उसकी
है अलौकिक शक्ति
जो जादू नये दिखाती
- रतन लाल जाट
6. कविता- वक्त
सोचा नहीं था
होगा कभी ऐसा
वो मेरे बिना
पल एक ना रहता
अब नही है पता
वो कैसे रहता
दिन-रात सपने सँजोता
हरपल मुझे निहारता
अब क्यों नहीं मिलता
ना कभी रूक निहारता
सत्य किसी ने कहा
वक्त सब बदल देता
धीरे-धीरे जीना
सबको सीखा देता
- रतन लाल जाट
7. कविता- है साथ
कभी वो गोद में
उठाये उसको
करते थे काम-धंधे
दिन भर सारे
क्योंकि उसके
प्यारे दादाजी हैं वो
आज वो हाथ
पकड़ उनको
देती है साथ
हर कदम पर
इसीलिए कहते
लाडली बिटिया है वो
- रतन लाल जाट
8. कविता- बिना तुम्हारे
लहराती जीवन बगिया जैसे
पल में सूख गयी बिना तुम्हारे
खिलता हुआ चेहरा जैसे
मुरझा-सा गया बिना तुम्हारे
न जाने लबों की हँसी मेरे
कहाँ गुम हो गयी बिना तुम्हारे
हाल बेहाल-से हो गये
फिर भी कोई ना जान पाया बिना तुम्हारे
लाख कोशिश की मैंने
पर खुश रह ना सका बिना तुम्हारे
सपने टूट गये थे मेरे
नींद भी उड़ गयी बिना तुम्हारे
- रतन लाल जाट
9. कविता- तेरे आने से
अचानक बरसात हो गयी धूप में
बिना बादल के तेरे आने से
बसन्त आ गया जैसे घोर ग्रीष्म में
बिना फागुन के तेरे आने से
एक नया सूरज उग निकला
बिना आकाश के तेरे आने से
पूरा चाँद निकल आया
बिना पूर्णिमा के तेरे आने से
नजारे रंगीन हो उठे
बिना मौसम के तेरे आने से
ख्वाब कई सँजोने लगे
बिना सपने के तेरे आने से
- रतन लाल जाट
10. कविता- सबसे बड़ी दौलत
अकसर देखा जाता है
लोगों को पैसों के बल
प्यार को जीतने
या पाने की कोशिश करते
और जोर-जबरदस्ती चाहते
छीनकर हासिल करना
लेकिन उनको हार ही मिलती है
क्योंकि प्यार कभी किसी दौलत का
मोहताज नहीं होता है
इसके लिए तो प्यार ही
दुनिया की सबसे बड़ी दौलत होती है
- रतन लाल जाट
11. कविता- जुदा होने पर
बिछुड़ना शब्द जेहन में आते ही
कलेजा मुँह को आ जाता है
तुरन्त दिल धड़ककर कहता कि
नहीं ऐसा कभी नहीं हो सकता है
कोई नहीं चाहता है जुदाई
यदि वश उसका अपना चलता है
लेकिन कभी सच ही
वो काला दिन आ ही पहुँचता है
तब हालत उस वक्त की
मत पूछो बयां करना बड़ा मुश्किल है
उसका लाख कोशिशों के बाद भी
अंदाजा लगाना सम्भव नहीं है
उसका दर्द तो जानता है वही
जिसका दिल चिर टुकड़ा अलग होता है
उसे चाहकर भी रोना आता नहीं
ना दिल को एकपल चैन आता है
एक-एक पल गुजरना भी
साल जैसे लगने लगता है
ऐसा लगता है कि
अब मिलन दुबारा नामुमकिन है
जीवन बदतर मौत से भी
जुदाई के बाद हो जाता है
अलविदा दिल को सच ही
निचोड़कर रख देता है
- रतन लाल जाट
कवि-परिचय
रतन लाल जाट S/O रामेश्वर लाल जाट
जन्म दिनांक- 10-07-1989
गाँव- लाखों का खेड़ा, पोस्ट- भट्टों का बामनिया
तहसील- कपासन, जिला- चित्तौड़गढ़ (राज.)
पदनाम- व्याख्याता (हिंदी)
कार्यालय- रा. उ. मा. वि. डिण्डोली
प्रकाशन- मंडाण, शिविरा और रचनाकार आदि में
शिक्षा- बी. ए., बी. एड. और एम. ए. (हिंदी) के साथ नेट-स्लेट (हिंदी)
ईमेल- ratanlaljathindi3@gmail.com
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