स्मार्ट फोन छोटे बालकों के लिए प्राणघातक ही नहीं अपितु जीवन्त मृत्यु - डॉ. शारदा मेहता

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स्मार्ट फोन छोटे बालकों के लिए प्राणघातक ही नहीं अपितु जीवन्त मृत्यु विज्ञान के अनेक चमत्कारपूर्ण आविष्कार प्रतिदिन होते रहते हैं। स्मार्ट फ...

स्मार्ट फोन छोटे बालकों के लिए

प्राणघातक ही नहीं अपितु जीवन्त मृत्यु

विज्ञान के अनेक चमत्कारपूर्ण आविष्कार प्रतिदिन होते रहते हैं। स्मार्ट फोन भी उनमें से एक ऐसा ही आविष्कार है। वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व के ताजा तरीन समाचार पल भर में एक कोने से दूसरे कोने तक पहॅुच जाते हैं। अनेक घटनाओं को तो हम अपने टी.वी. स्क्रीन पर जीवन्त होते हुए ही देख लेते हैं। वास्तव में यह एक अद्वितीय चमत्कार ही है। जरा सोचिए हमारी पीढ़ी पूर्व के व्यक्ति आज तक जीवित होते तो दैनिक जीवन में आये परिवर्तन को देखकर उनकी मन:स्थिति क्या होती? शायद वे किंकर्तव्यविमूढ़़ होकर दांतों तले उँगली दबा लेते।

आज प्रत्येक घर में हर सदस्य के पास स्मार्ट फोन है। घर के वरिष्ठ सदस्य अपने आवश्यक कार्य के लिए इनका उपयोग करते ही हैं, यह तो उचित है पर शिशु जो अपनी जननी की गोद में है वे भी स्मार्ट फोन को देखकर रोना बंद कर हँसने का उपक्रम करने लगते हैं। माताएँ भी अपने ममता भरे हाथों से उन्हें स्मार्ट फोन दे देती हैं मानो कोई खिलौना है।

वर्तमान में बाजार की हर वस्तु स्मार्ट फोन के माध्यम से ऑनलाइन क्रय की जाती है। न पर्स में पैसे रखने की झंझट, न घर से थैला ले जाने का कार्य। ऑनलाइन पेमेन्ट करो और मनचाही वस्तु आपके द्वार पर। आज से पाँच-दस वर्ष पूर्व हमें बाजार जाते समय साथ में नोटों की गड्डी लेना, खुल्ले पैसे का भी ध्यान रखना, जेब कतरों से सावधान रहना, थैले ले जाना, सारा सामान उठाना, टेम्पो टेक्सी या सीटी बस की प्रतीक्षा करना, इसमें अच्छी खासी कसरत हो जाती थी। चार पहिया वाहन तो सभी के पास था नहीं। पैदल चलना और हाँफते हुए घर आना यही जीवन था।

अध्ययन करने वाले बच्चे तो अपना अधिकांश गृह कार्य स्मार्ट फोन के माध्यम से ही करते हैं, वो इसका उपयोग खेल के लिए करते हैं। अभी कुछ समय पूर्व 'ब्लू व्हेल गेम के कारण कई बालक अपना जीवन समाप्त कर चुके हैं। स्मार्ट फोन के माध्यम से बच्चे वे सब जानकारी प्राप्त कर लेते हैं, जिन्हें इस उम्र में अभी नहीं जानना चाहिये। इस कारण समाज में चारित्रिक पतन होता जा रहा है। नर्सरी तथा प्रायमरी कक्षा में पढ़ने वाले बालक भी इससे अछूते नहीं हैं। गुरुग्राम में एक नन्हें बालक की हत्या टायलेट में कर दी गई। आये दिन अबोध बालक-बालिकाएँ जिनमें कुछ तो एक-दो वर्ष की थी के साथ गलत कार्य किया गया। ये घटनाएँ सभ्य समाज को शर्मसार करने के लिए पर्याप्त है।

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हमारी गरिमामय संस्कृति कलंकित हो रही है। हमारे समाज के प्रबुद्धवर्ग आगे आएं और इस नई स्मार्ट फोन पीढ़ी को पतन की और जाने से बचाएँ। माता-पिता को अपने लाड़ले-लाड़लियों के स्मार्ट फोन-ज्ञान पर गौरवान्वित नहीं होना चाहिए। उनका यह ज्ञान उन्हें पतन की ओर धकेल सकता है। हायस्कूल तथा इससे बड़ी कक्षाओं में स्मार्ट फोन विद्यार्थियों के लिए अध्ययन में सहायक हो सकता है किंतु माध्यमिक स्तर तक के बच्चे मिट्टी के कच्चे घड़े के समान होते हैं। उन्हें तो इस डिवाइस से दूर ही रखना चाहिए। स्मार्ट फोन पर समय व्यतीत करने के बजाय यदि वे खेल के मैदान में शारीरिक खेल खेलेंगे तो वे तंदुरुस्त रहेंगे। उनका मानसिक व शारीरिक विकास भी होगा। खेल भावना का विकास होने से वे सक्षमतापूर्वक किसी समस्या का समाधान कर पायेंगे। तैराकी, संगीत, मलखंभ, कबड्डी, फुटबाल, क्रिकेट आदि खेलों की ओर पर्याप्त रुझान होने पर बालक स्वयं ही गजेट से दूरी बनाये रखेगा तथा उसका सीमित उपयोग करेगा। योग कक्षाओं में जाना, वहाँ योग सीखने से उनका शारीरिक तथा मानसिक विकास होगा। वे स्वस्थ रहेंगे। आने वाली पीढ़ी को भी अच्छा संदेश देंगे। भारत ही नहीं अपितु विदेशों में भी वहाँ के निवासी योग शिक्षा से प्रभावित हो रहे हैं। वे उत्तम स्वास्थ्य के लिए इसे उचित मानते हैं।

स्मार्ट फोन ने बालकों की दिनचर्या को बिगाड़ दिया है। देर रात तक गजेट पर आँखें गड़ाए सीरियल, कार्टून तथा फिल्म देखते रहना फिर प्रात: देर से सोना, जिससे उनकी पाचन क्रिया प्रभावित होती है। अँाखों पर मोटा चश्मा लग जाता है। सम्पूर्ण शारीरिक क्रियाएँ अस्त-व्यस्त हो जाती हैं। देर रात तक जागरण करने के कारण कई बालक विद्यालयों में डेस्क पर सिर रखकर सोते हुए देखे जा सकते हैं। यदि यही बच्चे प्रात: जल्दी उठे, सैर पर जावे, दौड़ें, स्नान करें तो जीवन में सफलता मिलती जावेगी। बच्चे यदि ग्रीष्मावकाश में अपने गृह के सदस्यों को उनके कार्य में सहयोग करें। माँ को रसोई घर में मदद कर नाश्ता आदि बनाना सीखें। ये कार्य भविष्य में आपको काम आवेगा। बेस्ट आउट आफ वेस्ट बनाकर अपनी सुप्त प्रतिभा को जाग्रत करें।

गेजेट के लुभावने विज्ञापनों से बच्चे-बड़े सभी इतने प्रभावित होते हैं वे उन्हीं वस्तुओं को घर में लाना पसंद करते हैं। टूथपेस्ट, ब्रश, तेल, मसाले, शेम्पू, पाउडर, साबुन, बिस्किट, चाय, कॉस्मेटिक, जूते, चप्पल, कपड़े आदि आदि सभी कुछ विज्ञापनों के आधार पर ही खरीदा जाता है। नाश्ता तथा भोजन की बात करे तो ऑनलाइन आर्डर कर घर बैठे बुलवाया जा सकता है। पिछले पाँच-छ: वर्षों में हम जब भी किसी वैवाहिक कार्यक्रम पारिवारिक समारोह, सामाजिक कार्यक्रम यहाँ तक की धार्मिक आयोजन में उपस्थित होतेे हैं तो औपचारिक चर्चा के पश्चात् उपहार देकर लगभग सभी आगन्तुक अपने-अपने स्मार्ट फोन निकाल कर अपने आपको व्यस्त कर लेते हैं। बतलाइयें इसे हम अपनी संस्कृति की कौन सी अवस्था कहेंगे। एक समय था जब आगन्तुक अतिथि परस्पर चर्चा करते थे। सुख-दु:ख पूछते थे। हँसी ठिठोली होती थी। अब सब लुप्त प्राय: है।

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''१९ मार्च २०१९ के दैनिक ''पत्रिका समाचार पत्र में मैंने समाचार पढ़ा कि दिमाग शांत रखने के लिए लोग कर रहे हैं, ''इन्टरनेट उपवास। इनमें ७० युवा वर्ग सम्मिलित है। इनमें इरान, इराक तथा ब्राजील के भी चालीस व्यक्ति सम्मिलित हैं। जसपुर के समीप गलता पहाड़ियों के बीच धम्मस्थली विपासना मेडिटेशन सेंटर है। यहाँ डॉक्टर से लेकर ब्यूरोके्रट्स दस दिन का कोर्स कर रहे हैं। वे सभी मौन रहते हैं। मोबाइल, इन्टरनेट, परिजन तथा रिश्तेदारों से दूर रहकर ध्यान करते हैं। प्रात: चार बजे उठना, नौ बजे सोना होता है। यह कोर्स नि:शुल्क है। सभी डिवाइस से दूर रहना होता है। खाने-पीने की व्यवस्था सेंटर करता है। केवल व्यक्ति को अपने कपड़े लेकर वहाँ जाना है। एक बार में तीन सौ लोगों की क्षमता वाला एक सेंटर होता है। यह एक अतुल्य प्रयास है। इससे मानसिक शांति मिलती है।

कई बार नेट पर जिन सूचना को स्थान दिया जाता है, वे भ्रामक भी होती है। किशोर वय बालक पब जी, ब्लू व्हेल आदि गेम के इतने आदि हो जाते हैं कि यदि उन्हें स्मार्ट फोन न मिले तो वे आत्महत्या कर लेते हैं या हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। अभी ग्रेडर नोयडा से समाचार है कि एक किशोर ने अपनी माँ और बहन की हत्या कर दी क्योंकि उन्होंने उसके हाथ से स्मार्ट फोन छीन लिया था।

बच्चों को महानगरों में निवास स्थान से काफी दूर विद्यालय जाना होता है। किसी आवश्यक कार्य से उन्हें घर से संपर्क करना होता है। ऐसे समय यदि उनके पास छोटा मोबाइल फोन हो, जिनमें कुछ आवश्यक नम्बरों के द्वारा घर के सदस्यों से बात कर उन्हें वस्तु स्थिति से अवगत करा सके तो उचित होगा। स्मार्ट फोन का उपयोग यदि करना ही हो घर के किसी बड़े व्यक्ति के सम्मुख उनके निर्देशन में करे, ताकि अध्ययन सम्बन्धी आवश्यक जानकारी प्राप्त कर लेवें। अकेले में स्मार्ट फोन का उपयोग बालक के स्वर्णिम भविष्य में घातक सिद्ध होगा।

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डॉ. शारदा मेहता

सीनि. एमआईजी-१०३, व्यास नगर,

ऋषिनगर विस्तार, उज्जैन (म.प्र.)

Email : drnarendrakmehta@gmail.com

पिनकोड- ४५६ ०१०

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रचनाकार: स्मार्ट फोन छोटे बालकों के लिए प्राणघातक ही नहीं अपितु जीवन्त मृत्यु - डॉ. शारदा मेहता
स्मार्ट फोन छोटे बालकों के लिए प्राणघातक ही नहीं अपितु जीवन्त मृत्यु - डॉ. शारदा मेहता
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