धूप प्यारी बच्ची सी भोर होते ही सूरज की बग्घी से कूद आती है नन्ही किरन, गुदगुदाती है मेरे तलुओं को लिपट जाती है मेरे पैरों से शैता...
धूप प्यारी बच्ची सी
भोर होते ही सूरज की बग्घी से
कूद आती है नन्ही किरन,
गुदगुदाती है मेरे तलुओं को
लिपट जाती है मेरे पैरों से
शैतान बच्ची सी मुझे देखती है
आ बैठती है मेरी गोदी में
खिलखिलाती , खेलती , मुस्कराती है
प्यार से सहलाती है
झूल जाती है गले से
थपथपाती ले लेती है बांहों में
गालों से सटकर बैठ जाती है
भोली बच्ची सी जैसे गुनगुना रही हो
सुनने लगती हूं उसकी मीठी बातें
उसके तन की खुशबू से
अंदर तक महक जाता है मन
घोड़ों की टाप ठहरने लगती है
कूद जाती है पीछे कंधे से
मुड़कर कहती है फिर कल आउँगी
दादा से सुनी कहानी सुनाउँगी
कल फिर आउँगी ।
धूप प्यारी बच्ची सी।
3
अवगुँठन
धूँघट में जो देखा है रूप तेरा
अवगुंठन से मुझको जलन हो गई
पास कितना है वो तेरे रूप के
आवरण बनने की ललक हो गई
छू छू करके इठला रहा चांद को
बादलों के ह्रदय में जलन हो गई
गीत कितने हवाओं ने गा जो दिये
सावन की गमक सी पवन हो गई
काली जुल्फों ने छिपकर उतारी नजर
दीठ का सा दिठौना लहर हो गई
नयन के दीप जब जल उठे नेह से
विरह के डर से पलकें सजल हो गईं
बारहा बार धूँघट ने चूमे अधर
कैसी धूँघट की दुनिया चमन हो गई।
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4
नहीं भूलता बचपन
नहीं भूल पाता वो प्यारा सा बचपन
न्यारा सा बचपन हमारा वो बचपन
नहीं भूल पाता नन्हा सा बचपन
सदा याद रहता हमको वो बचपन
मिट्टी के अनगढ़ खिलौने बनाना़
कॉपी के पन्नों से नावें बनाना
छोटी सी गुड़िया को दुल्हन बनाना
सहेली के गुड्डे से शादी रचाना
दीदी की चुन्नी को साड़ी बनाना
आँगन में कागज की तुरही बजाना
विदा करके गुड़िया को रोना रुलाना
जिद करके वापस वो गुड़िया को लाना
चिपका के छाती से उसको लगाना
वो हॅंसना वो रोना वो माँ का मनाना
बाबू की गोदी में सोना सुलाना
दादी की बांहों का झूला बनाना
चीनी खटाई को चुपके से खाना
छत की मुंडेरों पर कुदकी लगाना
डर कर के अम्मा का छाती लगाना
वो छिप्पन छिपाई पतंगें उड़ाना
नहीं लौट सकता हमारा वो बचपन
नहीं आयेगा फिर से प्यारा वो बचपन
बच्चों के बचपन में देखेंगे बचपन
अनोखा वो बचपन प्यारा सा बचपन
बचपन की नन्ही सी यादें है जीवन
खट्टी सी मीठी सी यादों की सीवन
तितली सी मंडराती फिरती वो यादें
आँखों में रहती हैं सपनीली यादें ।
5
बसँत का उपहार
बसॅंत तुम आये
लेकर मेरे लिये उपहार
प्रकृति का शृंगार
टाँग दिये झूमर,पहनाये गलहार,
सूरज ने छीन लिये मुझ से आभूषण
तपती दोपहरी ले गई सुगंध
किरणों ने पत्तों का पोंछ दिया रंग
हवाओं ने उड़ेल दिये धूल के गुबार
बसँत तुम आये
लेकर मेरे लिये उपहार
सावन ने पहनाई सतरंगी चूनर
बादल ने छनकाये छनछनछन घूँधर
इठलाई नाची पहन लिया घूमर
तूफानों ने छीन ली मेरी अभिलाषा
मौन हुई मेरी मीठी सी भाषा
रणभेरी सी बज उठी घनघन घन टंकार
अंग अंग बिखर गया घायल हुए गात
बसँत तुम आये
लेकर मेरे लिये उपहार ।
शरद की ठंडी सी बयार ने
मेरा मन मोहा था
लगाये थे सफेद बूटे मेरे आंचल में
चाँद की चाँदनी का बिछाया था बिछौना
रंग छिटका भी न पाई थी
हेमंत हो उठा था निठुर
चुराली मेरे पतों की नरमी
ढकने लगा चाँद तारों को
मेरी हरियाली से
अपने ठंडे पड़ते हाथों को
छिपा लिया था
छीनकर मेरी गरमी
बसॅंत तुम आये
लेकर मेरे लिये उपहार
शिशिर ने छीना था जिसे
बरफीली हवा ने बीना था जिसे
नोंच कर मेरे पंख
भर ली थी अपनी झोली
अपनी सफेद चूनर
टाँग दी मेरे माथे पर
बसँत तुम आये
लेकर मेरे लिये उपहार
टाँग दिये झूमर पहनाये गलहार
कोयल के गीतों की मादक पुकार
हौले से छूती तन मकरंदी बयार
हरा हुआ धरती का मन
छाई फूलों की बहार
तुमने मेरी सूनी डालों को भर दिया
गदरा गई पाकर तेरा साथ
टाँग दिये झूमर पहनाये गलहार
बसँत तुम आये
लेकर मेरे लिये उपहार
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6
फागुन
फागुन के आते ही
सिर पर
हरे पीले गुलालों की
डलिया लेकर
खड़े हो जाते हैं
शैतान बच्चे से
अमलतास गुलमोहर
किंशुक
राही के ऊपर
डाल देते हैं
चुटकी भर गुलाल
रंग देते हैं
खुशी के रंग में
एक एहसास में
पिरो देते हैं
अपनत्व के
बदल देते हैं
पीले पत्ते की
चुर मुर को
संगीत में
बजने लगती है
पत्ते से बांसुरी की धुन
झलकने लगती है
कृष्ण की माधुरी सूरत
झूलने लगती है
राधा डाल पर
नृत्य कर उठती है
धरती छमाछम छमाछम
7
पतंग
जब तब आँखों में एक धुंध छा जाती है
तुम बच्चों की बहुत याद आती है
जब छत से गुजरती है कटी पतंग
तुम्हारे दौड़ते कदम याद आ जाते हैं
पतंग तुम उडाते थे हुचका मुझे पकड़ाते थे
अब तुम्हारी पतंग कहीं और उड़ रही है
कुछ उलझी टूटी डोर के टुकडे़ पीछे छोड़ गये
उनको सुलझाती उन्हें जोड़ रही हूं
बांध रही हूं बार बार तुम्हारी छोड़ी पतंग
उड़ रहे है सारे सपने तुम्हारी यादों के संग ।
8
बन गयी मंत्राणी मैं यार
मेरे सैंया की सरकार
मैंतो नाचूँ छम छम
मेरा रैाब चलेगा यार
मैंतो नाचूँ छम छम
कोठी होगी बंगला होगा
होगी मोटर कार
एक सिपहिया मेरे आगे
पीछे थानेदार
मेरे ----
बडे बडे झुमके पहनूंगी
पहनॅू नौलख हार
अबकी बेटा मंत्री होगा
बेटी अगली बार
मेरे सैंया की-----
इधर उधर ठलुआ डोलत हो
करती बाते रार
बन गई बाई की सरकार
मैं नाचूँ छम छम
9
आद्य शक्ति
आद्यशक्ति
दुर्गा सिंह वाहिनीं
लेकिन पिंजरे में बंद
मैं नारी हूँ नारी
जीवन के कड़वे घूँट पीती
जीवन जी रहीं हूँ
मैं औरत हूँ
तोड़ देती हूँ आइने
क्योंकि झलकता है
समाज का क्रूर चेहरा
लेकिन उस चेहरे को
बिगाड़ने में लाचार
मैं नारी हूँ
न अरि किसी की
जो सहता है
सहता जाता है
सहता जाता है
विद्रोह की चिंगारी
आग लगा देगी
पर नाश से डरती हूँ
मैं नारी हूँ
जो सृष्टि करती है
विनष्टि नहीं
अपनी सृष्टि का नाश करना
आँसुओं की वृष्टि कर देगा
यहाँ उसे बढ़ने से रोक देती हूँ
क्षमा की नरम टहनी सी
झुक जाती हूं
मैं माँ हूँ
इसलिये उत्सर्ग दया क्षमा
यही शब्द है मेरे अपने
धुँधले बादलों के पार
खो जाते हैं सपने
धुँधलाई आँखों में
कौंध जाती है बिजली
कहर बनकर गिर पड़ती है
पर कोमल हाथों से सहलाकर
जला लेती हूँ अपने ही हाथ
मैं नारी हूँ
मैं माँ हूँ
मैं आद्यशक्ति हूँ
फिर भी हूँ लाचार
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