।। ऊॅ नमः शिवायः।। ।।श्री।। ।। स्त्री -पुरूष जीवनी।। हमारे प्रेरणा पुंज श्री जगन्नाथ प्रसाद जी श्रीवास्तव लेखक श्री गौरीशंकर श्रीवास्तव वर्...
।। ऊॅ नमः शिवायः।।
।।श्री।।
।। स्त्री-पुरूष जीवनी।।
हमारे प्रेरणा पुंज
श्री जगन्नाथ प्रसाद जी श्रीवास्तव
लेखक
श्री गौरीशंकर श्रीवास्तव
निवासी-परसोन पहली बार 1000 प्रतियां
तहसील-खुरई, जिला सागर म.प्र सर्वाधिकार लेखक द्वारा सुरक्षित
।।दांपत्य जीवन की शुरूआत करें तो शिकायत से बचें, खुशहाली रचें।।
।। श्री।।
।। श्री गणेशायः नमः।।
।। स्त्री-पुरूष उत्पत्ति और व्यवहार।।
पद- कृष्णमय है सारा संसार।
बांय अंग से प्रगटी राधा तन से भू सँहार।
मुख से प्रगटी श्री सरस्वती, चरणों से गंगा धार ।।कृष्ण।।
नाभि से प्रगटे श्री ब्रम्हाजी, रच दई सृष्टि अपार।
मन से प्राकट भयो विष्णु को सब जन विश्वाधार।।कृष्ण।।
जब पृथ्वी पर पाप बढ़त है लेत यही अवतार।
राक्षस मार, भार को हर कर, बसत गौ लोक मझार।।कृष्ण।।
गौरीशंकर मन भायो है ऐसा चरित्र अपार।
प्रभु की लीला यह पुराण में कीन्हा है प्रचार।
कृष्णमय है सारा संसार।
पद- राधा जी से प्रगटी लक्ष्मी इनसे प्रगटी नारी है।
क्षीर सागर में एक लक्ष्मी वह विष्णु की नारी है।
दूजा प्राकट राज्य लक्ष्मी जो राजों की नारी है।
जैसे रानी दुर्गावती अरू झाँसी वाली रानी हैं।।0।।
चौथा प्राकट गृह लक्ष्मी है जो हरजन की नारी है।
इस नारी से ही जीवन की चलती गाथा सारी है।।0।।
आपस में जिन जन गृहणी में रहता कलह जो जारी है।
लाज मर्यादा को खोता है और सम्पत्ति सारी है।।0।।
चेतो सब जन नर अरू नारी जीवन करो सुखकारी है।
इसकी विधि दोनों के मन से होती है उपकारी है।।0।।
अपनी-अपनी मती सुधारो सोचो अकल निराली है।
गौरीशंकर सोच समझ मन इस पद को किया प्रचारी है।।0।।
वार्ता - यह सारा संसार कृष्णमय है श्री कृष्ण जी की प्रकृति ही बांय अंग से श्री राधाजी प्रगट हुई हैं इन्हीं से लक्ष्मी जी का प्राकट्य हुआ है। चार लक्ष्मी से विख्यात हुई हैं। जो उपरोक्त पद में दरशाया गया है। श्री कृष्ण जी के मुखारबिन्दु से श्री सरस्वती जी व चरणों से गंगा जी प्रगट हुई हैं। तन से श्री शिवजी और नाभी से ब्रम्हा जी प्रगट हुये। इन्होंने सब सृष्टि की रचना की, एक स्त्री वह थी। श्री अत्रि मुनि की पत्नी अनसुईया जी जिन्होंने श्री सीता जी को ज्ञान दिया था, व स्त्री चार तरह की प्रकृति की बतलाई थी :- 1. उत्तम 2. मध्यम 3. निकष्ट 4. अधम।
चौपाई -
उत्तम के अस बस मन माही। सपनेहु आन पुरूष जग नाही।।
मध्यम पर पति दिखहिं कैसे। भ्राता पिता पुत्र निज जैसे।।
धर्म विचार समझि कुल रहई। सो निकष्ट त्रिय श्रुति असकहई।।
बिन अवसर भय तेरह जोई। जानहुं अधम नारि जग सोई।।
पति वंचक पर पति रति करई। रौरब नर्क कल्प शत परई।।
धन सुख लागि जन्म सत कोटी। दुख न समुझ तेहि सम को खोटी।।
बिन श्रम नारि परम गति लहई। पतिव्रत धर्म छाड़ि छल गहई।
पति प्रतिकूल जन्म जहँ जाई। विधवा होय पाय तरू नाई।।
वार्ता - उत्तम स्त्री वह है जो अपने पति के सिवाय सपने में भी दूसरा पुरूष संसार में नहीं समझती। मध्यम वह है जो पराये पुरूष को, पिता, भ्राता, पुत्र के समान देखती है। निकृष्ट वह है जो मन तो चलायमान है मगर धर्म कुल की मर्यादा देखती है। अधम वह है जो पराये पति से रति करती है। यह सात कल्प तक रोरब नर्क में पड़कर दुःख भोगती है व पति प्रतिकूल रहने से जहाँ जन्म लेती है तो जवानी में ही विधवा हो जाती है। स्त्री के सुरक्षित आचार विचार से ही संतान जन्म लेती है जैसे प्रहलाद, ध्रुव, लवकुश आदि, स्त्री ही अपने पुत्र को भक्त शूरवीर व कायर बना सकती है।
कवित्त -
नारी से धर्म कर्म नारी से शाक नाक,
नारी से लक्ष्मी पास में रहत है।
नारी हौ से उपजत हरि भक्त और शूरवीर
रण में मरत भव सागर तरत हैं।।
नारी ही से पैदा होत फूर-अरू मूरख जन
पाय कर करके नरक में परत हैं।
कहत गौरीशंकर सुनहु सब जग के जन
नारी, बिनमर्द के घैरा सब करत हैं।।
कवित्त -
सीता ने लाज राखी लंका में राम जी की
राधा ने लाज रखी विन्द्रावन श्याम की।
द्रोपदी ने लाज रखी पांडबन की सभा बीच,
सावित्री ने लाज रखी है सत्यवान की।
मीरा ने लाज रखी अपने पति राना की,
सब सखियों ने लाज रखी अपने-अपने सत्य की।
गौरीशंकर मन विचार, ऐसी ही नारियों ने
बाजी लगाई प्राण की।।
वार्ता - रावण कितना बलकारी था जिसने सब संसार को व देवताओं तक को वश में कर रक्खा था, व स्वर्ग को सीढ़ी लगाना चाहता था वह सीता जी को हर कर लंका ले गया था मगर उनके पतिव्रत सत्य के कारण उनका कुछ नहीं कर सका। अन्त में सर्वनाश को प्राप्त हुआ।
पद - नारी का है धर्म एक निज पति ही को जाने।
पति कैसा भी हो आखिर तब भी उसके गुण गाने।।0।।
नित्य क्रिया सेवा पूजन कर भगवान सरोखा माने।
नारी धर्म इसी को कहते पतिव्रत धर्म पहचाने।।0।।
पति भी अपनी पत्नी को गृहलक्ष्मी सम जाने।
मन के बुरे सब भेदभाव को छोड़ देय अरू प्रण ठाने।।0।।
गौरीशंकर अधिकारी वह जन्म मरण के दुःख मिटाने।
नारी का है धर्म एक निज पति ही को जाने ।।0।।
वार्ता - नारी धर्म में कहा है कि पति कैसा भी हो, रोगी हो, कोढ़ी हो, मूर्ख हो, पागल हो गया हो, मगर स्त्री को उसकी सेवा ही करना चाहिए। लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए। आज्ञा मानना चाहिए, अगर पति मूर्ख है और वह कोई खराब काम करने की आज्ञा देता है, उसको उचित सलाह से काम करना चाहिए, जिससे नेकनामी रहे।
पद - पति बिन नारी रहत मलीन
नारी को पति ही ईश्वर है पति की सेवा कीन्ह।
अपने पति को खुश रक्खे अरू आज्ञा में प्रवीन।।0।।
पति अरू पत्नी खुश मिजाज हों ईश्वर भक्ति कीन।
यही उपाय मोक्ष पाने का इसमें हो-लवलीन ।।0।।
घर गृहस्थी अंदर का भार सब नारी के आधीन।
गौरीशंकर मन कहता पति से सदा ही रहना दीन।।0।।
पद - पति का गौरव ही नारी है, नारी बिन कुछ नहीं भाता है।
नारी से सब धर्म कर्म अरू नारी जग का ताँता है।।
भाई बन्धु अरू कुटुम्ब कबीला सब स्वारथ का नाता है।।0।।
पति-पत्नी में अगर कलह हो कुछ भी नहीं सुहाता है।
बुरे विचार उठत हैं मन में दिल में धीर्य न आता है।।0।।
मन से खराब रखा इस तन को चिन्ता अग्नि जलाता है।
समय की कुछ भी याद न रहती भूख प्यास सह जाता है।।0।
इससे रोग ग्रसित हो कर के भारी विपत्ति उठाता है।
पैसा अगर पास में न हो बिना मीत मर जाता है।।0।।
ब्रम्हा ने जब सृष्टि रची तब यह जोड़ मिलाया है।
जन्म-जन्म जिस योनि में जाता अपना दावा चुकाता है।।0।।
पूर्व जन्म की करणी से ईश्वर ने जोड़ मिलाया है।
गौरीशंकर पति पत्नी की गाई है यह गाथा है।।0।।
वार्ता - पति के बिना स्त्री का मन मलीन रहता है, और स्त्री बिना मर्द को भी कुछ नहीं सुहाता है। इससे यह जानकर पति-पत्नी को सदैव ही खुशमिजाज से रहकर जीवन बिताना चाहिए और दोनों को ईश्वर भजन करना चाहिये। यही एक मोक्ष का साधारण उपाय बतलाया है।
दोहा - चार सखी अंगना खड़ी करती हास विलास।
अपने-अपने पति को वरणों रूप हुलास।।
उमा रमा अरू सरस्वती अनसुईया सखी चार।
अनसुईया ने यह कहा अपने पति लेलो निहार।।
सिर पर मुकुट श्यामली मूरत हाथ में धनुष विशाल।
कानों में मकरा कृत कुण्डल जग से लेत निकाल।।
।। विष्णुजी।।
दोहा -सिर पर मुकुट जड़ाव को अंग भवूत लगाय।
मुण्ड माल गले में सोहत जहर रात दिन खाय
।। महादेव।।
चार मुखार बिन्द अति सोहत करते वेद उचार।
जग रचना में रहत हैं कर्म रेख निरधार
।। ब्रम्हा।।
पद - अँगना में ठाड़ी चार गुईॅयाँ कहो किन के कैसे सइँयाँ।
सिर पर मुकुट श्यामली मूरत हाथ में लये धनईयाँ।
कानों में मकराक्रत कुण्डल भव सागर पार करईया
।। विष्णुजी।।
सिर पर जटा माथे पर चन्द्रमा मुर्दा भस्म रमईया।
हाथ त्रशूल गले मुण्ड माला जहर के पान करईया
।। महादेव।।
चार मुखार बिन्द जो कहिये चारों वेद पढ़ईया।
जग रचना को काम करत हैं कर्म की रेख लिखईया
।। ब्रम्हा।।
।।ऊँ नमः शिवायः।।
वैवाहिक जीवन में ग्रहों का प्रभाव
हिन्दू विवाह मात्र स्त्री पुरूष का साथ रहने का समझौता नहीं है। यह ऋषियों की उच्चतम मानसिक स्थिति से बनाया गया विधान है। हिन्दू धर्म विधान में निर्माता ऋषियों ने स्त्री पुरूष के जन्म जन्मांतर के संबंधों के आधार पर वैदिक विवाह पद्धति के विधानों का सृजन किया है।
विवाह के वैदिक विधान स्त्री-पुरूष के वैवाहिक जीवन को अधिक सुखद और मधुर बनाने के लिये सृजित किये गए हैं। इसी हेतु विवाह संबंध में वर-कन्या के शारीरिक गुण-दोष, शिक्षा, बुद्धि, सामाजिक परिवेश आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है। ऋषियों ने वर कन्या के रंग रूप कद और शरीर के अवयवों के आधार पर भी उसका वर्गीकरण किया है।
ऋषियों ने चिंतन मनन करते हुए यह देखा कि वर और कन्या के ग्रह एक-दूसरे के जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। ग्रहों के अनुसार दाम्पत्य जीवन को अधिकतम सुखी बनाने के लिए उन्होंने वर-कन्या की कुण्डली मिलाने का विधान बनाया।
दोष का विचार :- हिन्दू समाज में कुण्डली में प्रायः नक्षत्रों के अनुसार गुणों का और ग्रहों के अनुसार मंगली दोष का विचार करने का विधान है। ऐसा देखा गया है कि यदि वर और कन्या में कोई एक मंगली दोष से युक्त है तो वैवाहिक जीवन सुखद नहीं होता है। वर-कन्या की कुण्डली में यदि चन्द्रमा एक-दूसरे से नवे, पांचवे, दूसरे-बारहवें या छठे-आठवीं राशि में स्थित है तो इसे क्रमशः नौ पंचक, द्विद्वार्दश और षड़ाष्टक दोष कहा गया है।
इसके अतिरिक्त नक्षत्र विचार से गुण-दोष, योनी बैर तथा नाड़ी दोष आदि का विचार किया जाता है। नक्षत्र विचार से 24 से अधिक गुण मिलना श्रेष्ठ होता है।
शुभ योग
वर के सांतवें भाव का स्वामी कन्या की चन्द्रमा की राशि में हो तो विवाह सुखद होता है। वर का सप्तमेश जिस राशि में उच्च होता है उस राशि में यदि कन्या का चन्द्रमा है तो विवाह संबंध अनुकूल होता है। वर या कन्या के चन्द्रमा से सप्तम स्थान में जो राशि हो वही राशि दूसरे का लग्न होना वैवाहिक जीवन के लिए सुखद होता है। वर का लग्नेश जिस राशि में स्थित हो यदि वह राशि कन्या की भी हो तो विवाह अनुकूल होता है।
वर की कुण्डली में सप्तम स्थान में जो राशि हो वही यदि कन्या की भी राशि हो तो विचार अनुकूल होता है। वर के शुक्र की राशि कन्या की चन्द्रमा की राशि हो तो भी विवाह सुखद होता है।
बाधा योग
छठे, आठवें या बारहवें भाव के स्वामी के सप्तम स्थान पर होने से दाम्पत्य जीवन अधिक सुखी नहीं रहता। शुक्र और चन्द्रमा किसी भाव में युत हो तो उस स्थान से सातवें भाव में शनि और मंगल हो तो विवाह में बाधा होती है और यदि विवाह हो भी गया तो दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं रहेगा। सप्तम भाव में शनि-चन्द्रमा की युति विवाह संबंध में बाधक है। ऐसे योग में प्रायः अधिक आयु में विवाह होता है, किन्तु वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता।
पाप ग्रह से युत-शुक्र के पंचम, सप्तम अथवा नवम स्थान में होने पर भी वैवाहिक जीवन में दुःख होता है।
सातवें भाव में वृश्चिक राशि में शुक्र पत्नी के लिए घातक होता है। पंचमेश का सातवें भाव में होना अथवा सप्तमेश का पंचम भाव में होना विवाह संबंध में बाधक होता है, जिस स्त्री के सातवें भाव में शनि और चन्द्रमा की युति हो, उसका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं होता और दूसरे विवाह की आशंका होती है। स्त्री की कुण्डली में कन्या लग्न होने पर सातवें भाव में शनि अथवा मंगल अनिष्टकारी होगा। सातवें भाव में मकर राशि का गुरू पति या पत्नी के लिए अनिष्टकारी होगा। सप्तमेश और शुक्र का द्विस्वभाव राशि में होना वैवाहिक जीवन के लिए अनुकूल नहीं होता है।
मंगली दोष - स्त्री या पुरूष की कुण्डली में सातवें, आठवें, बारहवें, दूसरे और चौथे भाव में मंगल का होना मंगली दोष कहलाता है। चन्द्रमा से इन भावों में मंगल का होना चन्द्र मंगली दोष कहलाता है। सुखी वैवाहिक जीवन के लिये शुक्र से सातवें, आठवें, चौथे, बारहवें और दूसरे भाव में मंगल का होना भी अशुभ कहा गया है। इसमें सर्वाधिक प्रबल दोष लग्न से मंगल की उपरोक्त स्थिति का है। मंगल के अतिरिक्त इन्हीं भावों में शनि, सूर्य, राहू या केतू की स्थिति भी मंगली दोषप्रद है।
दोष का निवारण - मंगली कन्या का विवाह समान रूप से मंगली वर से करने पर इस दोष का निवारण हो जाता है अन्यथा वैवाहिक जीवन में अनेक कठिनाईयां, मतभेद, अलगाव और वियोग आदि की आशंका होती है। सभी प्रकार से मंगली दोष पर विचार करने पर पचास प्रतिशत से अधिक लड़के-लड़कियां किसी न किसी प्रकार मंगली दोष से युक्त रहते हैं। अतः मंगली वर या कन्या की प्राप्ति कठिन नहीं होती और तदनुसार मंगली दोष और नक्षत्र विचार से कुण्डली मिलाकर ही विवाह करना चाहिए जिससे वैवाहिक जीवन पूर्णतः सुखद व्यतीत हो।
उम्र की सोच - जिनके सामने पूरा जीवन पड़ा है और लम्बा समय है उन्हें यह जानने की आवश्यकता है कि जीवन कैसे जीया जाये? क्या लाभप्रद है और क्या हानिप्रद? जीवन का उद्देश्य, एवं क्या लक्ष्य होना चाहिए और वहां तक पहुंचने के लिए उचित मार्ग कौन-सा होना चाहिए? कौन-सा मार्ग हमें नुकसान पहुंचा कर हमारे विनाश का कारण बन सकता है जिससे हमें सचेत रहना चाहिए?
जग में जब तू आया था जग हँसा तू रोया था।
बसर कर जिंदगी ऐसी जग रोये तू हंसता जा।।
राशियों में तलाशें जीवन साथी
क्र | राशि | अनुकूल संबंध | प्रतिकूल संबंध |
1 | मेष | मेष, कर्क, सिंह, तुला धनु, कुम्भ | वृषभ, मिथुन, कन्या, वृश्चिक, मकर, मीन |
2 | वृषभ | वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर मीन | मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, कुंभ |
3 | मिथुन | मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, तुला, धनु, कुंभ, मीन | वृषभ, कन्या, वृश्चिक, मकर |
4 | कर्क | मेष, वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर, मीन | मिथुन, तुला, धनु, कुंभ |
5 | सिंह | मेष, मिथुन, कर्क, सिंह तुला, धनु | वृषभ, कन्या, वृश्चिक मकर, कुंभ,मीन |
6 | कन्या | वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक मकर | मेष, मिथुन, धनु, कुंभ, मीन |
7 | तुला | मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, तुला, कन्या, धनु, मकर, कुंभ, मीन | वृषभ, वृश्चिक |
8 | वृश्चिक | वृषभ, कर्क, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन | मेष, मिथुन, सिंह |
9 | धनु | मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, कुंभ | वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, मीन |
10 | मकर | वृषभ, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, मीन | मेष, सिंह, कुंभ |
11 | कुंभ | मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, तुला, वृश्चिक, धनु, कुंभ, मीन | वृषभ, कन्या, मकर |
12 | म्ीन | वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ | मेष, मिथुन, तुला |
राशि सम्राट के दरबारी नवरत्न
1. मेष -
इस राशि के व्यक्तियों को मूंगा, पुखराज और माणिक शुभ रत्न हैं। मूंगा आयु वृद्धि और स्वास्थ्य में उन्नति के लिए, पुखराज ज्ञान-विद्या और भाग्य में वृद्धि के लिए और माणिक संतान सुख और राज्य कृपा के लिए धारण करना चाहिए।
2. वृष -
इस राशि के व्यक्तियों के लिये हीरा, नीलम, फिरोजा या पन्ना शुभ हैं। हीरा महंगा रत्न हैं अतः इसके स्थान पर सफेद पुखराज भी पहना जा सकता है। हीरा आयु में वृद्धि, स्वास्थ्य लाभ और जीवन में उन्नति के लिए, नीलम सुख समृद्धि, मान-प्रतिष्ठा और धन लाभ के लिए और पन्ना पारिवारिक शान्ति, धन लाभ और संतान सुख के लिए धारण करना चाहिए।
3. मिथुन -
इस राशि के व्यक्तियों के लिए हीरा, पन्ना और नीलम शुभ है। हीरा संतान सुख और भाग्योन्नति के लिए, पन्ना शारीरिक सुख, मानसिक शान्ति, गृह भूमि वाहन सुख के लिए तथा नीलम धन लाभ के लिये धारण करना चाहिए
4. कर्क -
इस राशि के व्यक्तियों के लिए मूंगा, पुखराज, मोती अथवा गोदंती शुभ रत्न हैं। मूंगा संतान सुख, बुद्धि, बल, प्रतिष्ठा और व्यवसाय में सफलता के लिये, पुखाज भाग्योन्नति, पितृ सुख और धन प्राप्ति के लिए एवं मोती आयु में वृद्धि और स्वास्थ्य लाभ के लिए धारण करना चाहिए।
5. सिंह -
इनके लिए माणिक, मूंगा और पुखराज शुभ रत्न हैं। माणिक शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा और शत्रुओं पर विजय, मूंगा गृह तथा भूमि लाभ, मातृ सुख, धन लाभ, पुखराज संतान सुख के लिये शुभ है।
6. कन्या -
इनके लिये हीरा और पन्ना शुभ रत्न हैं। हीरा हर प्रकार की उन्नति एवं धन लाभ के लिये तथा पन्ना आयु वृद्धि, स्वास्थ्य रक्षा, व्यवसाय में लाभ और राज्य कृपा के लिये पहनना शुभकारी है।
7. तुला -
तुला व्यक्तियों के लिए हीरा, नीलम, पन्ना और मोती शुभ रत्न है। हीरा आयु एवं स्वास्थ्य में वृद्धि के लिए, पन्ना भाग्योन्नति और मोती नौकरी एवं व्यवसाय में सफलता के लिये धारण करना चाहिए।
8. वृश्चिक -
इस राशि वालों के लिए माणिक, मोती, मूंगा और पुखराज शुभ रत्न है। माणिक नौकरी अथवा व्यवसाय में वृद्धि, राज्य कृपा और मान प्रतिष्ठा के लिये, मोती पितृ सुख, यश मान, भाग्योन्नति के लिये, मूंगा आयु वृद्धि और स्वास्थ्य लाभ तथा पुखराज धन लाभ एवं संतान सुख के लिये धारण करना चाहिए।
9. धनु -
इस राशि के व्यक्तियों के लिए पुखराज, माणिक और मूंगा शुभ रत्न हैं। पुखराज आयु वृद्धि और रक्षा कवच के लिये, माणिक भाग्योन्नति, पितृ सुख और हर प्रकार के लाभ तथा मूंगा यश, मान वृद्धि और संतान सुख के लिए धारण करना चाहिए।
10. मकर -
इस राशि के व्यक्तियों के लिये नीलम, हीरा, पन्ना शुभ है। नीलम आयु वृद्धि एवं सुख सम्पन्नता के लिये, हीरा उन्नति के लिए तथा पन्ना भाग्य एवं पितृ सुख के लिये धारण कर सकते हैं।
11. कुम्भ -
इस राशि के व्यक्तियों के लिए नीलम और हीरा शुभ है। नीलम आयु वृद्धि एवं सुख सम्पन्नता के लिए तथा हीरा हर प्रकार की उन्नति के लिए धारण किया जा सकता है।
12. मीन -
मीन राशि के व्यक्तियों के लिए पुखराज, मोती और मूंगा शुभ रत्न है। पुखराज आयु वृद्धि और हर मनोकामना पूरी करने के लिए, मोती संतान सुख, विद्या लाभ, यश मान के लिए तथा मूंगा भाग्योन्नति और धन लाभ के लिए धारण करना चाहिए।
अच्छा स्वभाव और अच्छा व्यवहार परिवार के लिए सुखद होता है।
कुण्डली में ग्यारहवें भाव का महत्व
जन्म कुण्डली में ग्यारहवें भाव में स्थित राशि से आय धन लाभ का विचार किया जाता है। यदि लाभ भाव (ग्यारहवें भाव) में मेष राशि हो तो राज्य पक्ष से चौपायों से घूमने-फिरने से लाभ होता है। वृष राशि हो तो खेती से, अच्छे लोगों की संगति से और महिलाओं से लाभ रहता है। मिथुन हो तो कपड़े के धंधे से, सवारी किराये पर चलाने से, स्त्री वर्ग से लाभ मिलता है। कर्क राशि होने पर बर्तनों, कपड़े, खेती व्यापार से लाभ होता है।
सिंह होतो दादागिरी से, राहजनी से, कुमार्ग से आय होती है। कन्या हो तो कथा भागवत करने से, व्याख्यान देने से, लेखन-संपादन से बड़े लोगों की संगति से लाभ होता है। तुला हो तो जंगलों की ठेकेदारी से, मशीनरी से, वृश्चिक हो तो धोखेबाजी से, जेब काटने से आय होती है। धनु हो तो पूजा-पाठ से, मकर हो तो राज्य पक्ष से, होटल के धंधे से, विदेशों में घूमने से, कुम्भ हो तो बड़े लोगों की संगति से, मशीनरी से, मीन राशि हो तो कई प्रकार के उद्योगों से लाभ होता है।
ग्यारहवें भाव में शुभ ग्रह होने पर उचित न्याय मार्ग से धन लाभ होता है। यदि पाप ग्रह हो तो गलत तरीके से धन का आगमन होता है।
ज्योतिष संबंधी और भी जानकारी ''श्रीराम महिमा पुस्तक में''
जन्म कुण्डली में ग्रहों का महत्व
1. शुक्र से चतुर्थ एवं अष्टम स्थान में पाप ग्रह हो तो दाम्पत्य कलह के कारण उसकी पत्नी आत्महत्या कर लेती है।
2. जिस स्त्री की कुण्डली में तीन पाप ग्रह सप्तम स्थान में हों वह अपने पति की हत्या कर देती है।
3. सप्तम में राहू हो तो स्त्री से क्लेश प्राप्त होता है।
4. सप्तम में शुक्र 12 वें चन्द्रमा होने पर व्यक्ति दाम्पत्य कलहवश पत्नी की हत्या कर देता है।
5. लग्न में दो पाप ग्रह हों तो दाम्पत्य कलह से परेशान होकर व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है।
6. यदि राहू सप्तम और शनि द्वितीय में हो तो व्यक्ति की दो शादियाँ होती हैं।
7. द्वितीय भाव में सूर्य होने पर दाहिनी आंख में तकलीफ रहती है।
8. पंचम भाव में शनि मंगल राहू से हार्ट डिसीज (हृदय रोग) होता है।
9. यदि अष्टम भाव में मंगल हो तो स्त्री पति से अलग परपुरूषों से प्रेम करती है।
-कामना-
सभी प्राणी सुखी रहें, सभी प्राणी निरोगी रहें
हम सभी को अच्छी दृष्टि से देखें। सभी प्राणियों के दुःख दूर हों
ग्रहों का फल
सूर्य : परे भानु तन भवन में, होय बालपन दुःख।
और स्त्री-पुत्र से कवहूं न पावे सुख।।
चंद्र : जो तीजे घर शशि परे, तिय राखे बहु हेतु।
सभी वस्तु से सुख रहे, विद्या मित्र समेतु।।
मंगल : दसवें घर मंगल परे, करे सदा उपकार।
द्रव्यमान उत्साह युत, कुल में श्रेष्ठ विचार।।
बुध : दूजे घर बुध को प्रिय काव्य कुशल अति जान।
प्रीत युक्त धनवान हो, विमल शील गुणवान।।
गुरू : तन घर में जो गुरू पड़े बहु विद्या जस मान।
करे हेतु भूपति सबै, अति उदार बुद्धिमान।।
शुक्र : द्वादस घर में शुक्र पड़े रहे, सौ चित्त मलीन।
क्रोधी अति कामी सदा, रहता सत्यविहीन ।।
शनि : परे शनिश्चर षष्ट में कोई शत्रु नहीं होय।
पुष्ट अंग बलवान नित रहे यह सुख में सोय।।
राहू : राहू केतु सप्तम परे रहे सदा सुख माह।
पुण्यदान थोड़ा जिये त्रिया तेहि नाहि।।
केतू : तन घर में यह ग्रह पड़े, राहू केतू सुन मित्र।
रहे निरोग तन सदा अरू सर्दी होय निमित्त।।
ज्योतिष और आधुनिक मान्यता
ए, बी, सी, डी और विवाह
ए | एज (आयु) | विवाह में आयु का महत्व है। |
बी | ब्यूटी (सुन्दरता) | सुंदरता जीवन का आवश्यक अंग है। |
सी | केरेक्टर (चरित्र) | चरित्र एवं व्यक्तित्व जीवन का आधार |
डी | डिवेलिटी (परिस्थिति) | परिवार की स्थिति की प्रमुख भूमिका |
ई | एजुकेशन (शिक्षा) | शिक्षा जीवन के लिए अनिवार्य है। |
एफ | फैमिली बेकग्राउण्ड | पारिवारिक पृष्ठभूमि को देखना आवश्यक है। |
जी | ग्रेविटी (गंभीरता) | युवक एवं युवती में गंभीरता होना भी जरूरी है। |
एच | हेल्थ (स्वास्थ्य) | स्वास्थ्य का भी काफी महत्व है। |
:: भजन ::
मानस जीवन पायके, कछु कीजै शुभ काम
कीर्ति कमाई कीजिए, अमर रहे जग में नाम
मन को मैला मत करो, भजन करो रघुवीर
जो मन को मैला करे, मैला होय शरीर
जननी दो प्रकार की, जन्मभूमि अरू मात
भजन करो इन दुहिन का यही देयगी साथ
गुरू बनाओ शम्भु को इष्ट लवे श्री राम
तीन वार प्रतिदिन भजो, बन जाये सब काम
तन सेवा हरि की करें, मन भटके कहीं ओर
भगत कहावे जगत में मिले न नंदकिशोर
पढ़-पढ़ कर ज्ञानी भये, कमाई करी विशेष
दो अक्षर चीन्हे नहीं मूरख रहे हमेश (राम)
रामायण से राम नहीं, भगवत से नहीं कृष्ण
मन को शोधन नहीं करो, राम मिले नहीं कृष्ण
मन को तो एका करो तन को दो कछु कष्ट
हृदय बिठारो राम-कृष्ण को पाप होय सब नष्ट
इधर-उधर तन मन नहीं जिव्हा चले न होंठ
तन-मन को फिर भूलकर भजन की बांधी मोठ
इसी तरह जो नियम से राम भजो चाहे कृष्ण
तन मन में दर्शन करो, झूठ नहीं यह प्रश्न
ध्यान धरे जो इस तरह बन जाये सब काम
गौरी जग को छोड़कर जावे सुरपुर धाम
।। ऊं नमः शिवायः।।
लेखक परिचय
श्री गौरीशंकर श्रीवास्तव का जन्म 20 अगस्त 1907 को ग्राम परसोन, तहसील खुरई, जिला-सागर मध्यप्रदेश में हुआ। इनके तीन बेटे, तीन बेटियां हुईं। सभी का विद्याध्ययन, विवाह संस्कार कराया और अच्छी जीविकोपार्जन से जोड़ा।
लेखन की प्रेरणा इन्हें अपने पिता श्री जगन्नाथ प्रसाद जी श्रीवास्तव से मिली। सन् 1972 में पुस्तक तैयार की। 12 दिसम्बर 1999 को 93 वर्ष की आयु में रात्रि लगभग 10 बजे खुरई में देवलोक गमन हुआ।
मेरे पिता वैद्यक एवं ज्योतिष शास्त्र के अद्भुत ज्ञाता थे। यह व्यवहार में जितने सादगी से भरपूर थे, विचारों में उतने ही उच्च थे। वे किसी प्रकार की बुराई की भावना से न तो कभी समझौता करते और न ऐसी सलाह देते। वे स्वभाव से समुद्र की तरह गंभीर और संकल्प में हिमालय की तरह अडिग थे।
श्री रघुवीर सहाय श्रीवास्तव
एवं
श्रीमती राधा देवी श्रीवास्तव
संकलनकर्ता एवं मार्गदर्शक
।। ऊं नमः शिवायः।।
प्रकाशक के विचार
हमारा देश भारत कृषि प्रधान तथा प्राकृतिक सौन्दर्य से समृद्ध देश है। देश में रहने वाले अनेक धर्म, जाति, विचारों तथा पुरानी परंपराओं को मानने वाले हैं। हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि देश में कोई भी गरीब न रहे, कोई भी बेरोजगार न रहे, जिस दिन गरीब-अमीर की खाई देश से समाप्त हो जाएगी, उस दिन हमारा राष्ट्र समृद्धशाली देशों में गिना जाएगा और इसका गौरव देश की युवा पीढ़ी को होगा।
गीता में योगेश्वर कृष्ण कहते हैं कि जो सभी प्राणियों में किसी से द्वेष नहीं करता, जो मित्रता करता है, जो दया पूर्ण है, जो अभिमान रहित है, जो सुख या दुःख से विचलित नहीं होता, जो क्षमा करने वाला है, जो निरंतर संतुष्ट रहता है, जो धीर है, सहनशील है, दृढ़ विश्वासी है, जिसने अपने आपको वश में कर लिया है, जो वचन का पक्का है, जो अपने मन तथा बुद्धि को मेरे अर्पण कर देता है। निःसंदेह इस प्रकार का व्यक्ति मुझे प्रिय है।
क्रोध, प्रतिशोध एक ऐसा मानसिक ज्वर है जो मन की समस्त शक्तियों को भस्म कर डालता है। बुरा मानना एक तरह का मानसिक रोग है जो दया और सहृदयता के स्वस्थ प्रवाह को अवरूद्ध कर देता है। क्षमा से पांच लाभ हैं :-
1. स्नेह की प्राप्ति का सुख
2. मेलजोल की वृद्धि का सुख
3. सुखी और शान्त रहने का सुख
4. क्रोध और अहंकार पर विजय पाने का सुख
5. दूसरों से नम्र व्यवहार प्राप्त करने का सुख
परमपिता परमेश्वर की असीम अनुकंपा से रचित पुस्तक का लाभ उठायें। यही पूर्वजों द्वारा लिखित, संग्रहित पुस्तक को पुनः प्रकाशित कराने का उद्देश्य है।
- रघुवीर सहॉय श्रीवास्तव
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यवंदनय
विविधता में एकता
''अनेक पंथ हैं, अनेक सम्प्रदाय,
अनेक मत हैं, अनेक मार्ग,
परंतु दयालु कैसे बनें
यह जानना आवश्यक है, क्योंकि
दुःखी संसार को
दया की आवश्यकता है।''
/रघुवीर सहाय श्रीवास्तव
प्रकाशन सहायक : आशीष श्रीवास्तव
कृष्ण सहाय श्रीवास्तव (उच्च न्यायालय अधिवक्ता)
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