आत्मप्रवंचनात्मक कहानियों का दौर है--यह नई सदी (समीक्षा) --डॉ. मनोज मोक्षेंद्र

SHARE:

बी सवी सदी के अवसान के बाद, इक्कीसवी सदी का मुश्किल से पंचांश ही गुजरा है और हम इस नवकाल खंड में कहानियों में आवेष्टित बदलावों को देखते हुए ...


बीसवी सदी के अवसान के बाद, इक्कीसवी सदी का मुश्किल से पंचांश ही गुजरा है और हम इस नवकाल खंड में कहानियों में आवेष्टित बदलावों को देखते हुए अचंभित हो रहे हैं। क्या एक काल-बिंदु से विपथन ही कुछ नई बातों के सूत्रपात का सबब बन सकता है? कथाकार इतने भी अंतर्मुखी, एकात्म और आत्मप्रवंचनात्मक कैसे हो सकते हैं तथा दीन-दुनिया से विमुख होते हुए अपनी कहानियों में, सिर्फ़ अपने लिए एक ऐसी दुनिया कैसे गढ़ सकते हैं जो केवल उन्हीं की कुंठाओं को मुखरित करती हो? उनकी संवेदनाएँ स्वयं तक सीमाबद्ध होकर अत्यंत व्यक्तिपरक कैसे हो सकती? समीक्षकों, आलोचकों, आचार्यों, शोधार्थियों और कथा-साहित्य के रसिया पाठकों के लिए यह अच्छी ख़बर नहीं है कि कथाकार आम आदमी और आम जनजीवन से विमुख होता जा रहा है। लोकतांत्रिक भाषा को दरकिनार करते हुए और अत्यंत भाव-गुंफ़ित, जटिल और ऊष्ण भाषा का ग्राहकी बनते हुए, इक्कीसवी सदी का कथाशिल्पी हिंदी की समृद्ध कथा-विरासत को अचानक तिलांजलि कैसे दे सकता है और प्रेमचंद्र, प्रसाद, महादेवी वर्मा, जैनेंद्र, रेणु, यशपाल, मनोहर श्याम जोशी, अमृतलाल नागर, भीष्म साहनी, कमलेश्वर आदि जैसे मील के पत्थरों की अनदेखी कैसे कर सकता है? क्या जो हश्र हिंदी कविताओं का हुआ है और हो रहा है, वही हश्र अब कहानियों का होने जा रहा है? क्या वैश्विक आधार पर सोशल मीडिया की देखरेख में आ रहे बाजारवादी परिवर्तनों की सुनामी में बहते हुए कथाकार को केवल अपनी ही हित-साधना दिखाई दे रही है? वर्तमान कथाकारों को पढ़ते हुए यह साफ परिलक्षित हो रहा है कि उनमें आत्ममुग्धता का ज्वार हिलोरें ले रहा है और वे साहित्य के परम लक्ष्य से भटकते जा रहे हैं।

[post_ads]

कथा-साहित्य में बहु-चर्चित मनुवादी, दलितवादी, स्त्रीवादी, दक्षिणपंथी, वामपंथी, मार्क्सवादी आदि-आदि जैसे कहानीकारों को अपना-अपना वर्ग बनाकर सिर्फ़ अपनी और अपने वर्ग-विशेष की भावनाओं को संप्रेषित करते हुए देखकर, यह मन तो पहले से ही बड़ी जुगुप्सा से आप्लावित हो चुका था। इनमें मात्र अपने-अपने वर्ग की कुंठाओं को सार्वजनिक करने और दूसरे वर्गों की भावनाओं की अनदेखी करने की प्रबल इच्छाओं ने हिंदी कथा-साहित्य को केवल उन पाठकों तक ही सीमित कर रखा है जो सिर्फ़ उनके ही वर्गों से संबंध रखते हैं। यह तो कुछ-कुछ वैसा ही है जैसाकि हम सड़क से गुजरते हुए किसी दुर्घटना में घातक रूप से घायल किसी व्यक्ति को देखकर उसकी जाति या उसका वर्ग-संप्रदाय पूछते हैं और यदि वह हमारी जाति, धर्म-संप्रदाय का नहीं हुआ तो हम मुँह फ़ेरकर चलते बनते हैं। अभी कुछ ही दशक तो गुजरे हैं ऐसे वर्गवादी-गुटवादी कथाकारों के पल्लवित-पोषित होते हुए और उन्होंने यह चलन बना लिया है कि वे पीड़ित मानवता और विभीषक सामाजिक समस्याओं के लिए कुछ भी नहीं लिखेंगे; बस, लिखेंगे तो सिर्फ़ अपने समुदाय-संप्रदाय के हितार्थ जिसकी व्यापक तौर पर कोई सामाजिक और मानवीय सार्थकता हो या न हो। निःसंदेह, ऐसे लेखकों की सूची में बड़े-बड़े नामदार और दिग्गज कथाकार भी शुमार होते हैं। वे गोष्ठियाँ भी करते हैं तो सिर्फ़ अपने सीमित स्वार्थों के लिए अपने वर्ग-विशेष से संबंधित किसी ऐसे विषय पर जिसमें मानवीय स्पर्श का लेशांश भी नहीं होता। गोष्ठियों में आमंत्रित भी करते हैं तो केवल उन्हें ही, जो उनकी ज़बान में बोल सकें और उनके ‘माउथपीस’ बन सकें।

कथा-साहित्य में बंटवारे और वर्ग-विभाजन की इस नव-सृजित परंपरा ने ख़ासकर पाठकों को बुरी तरह से हतोत्साहित कर रखा है और साहित्य को उनके लिए अस्पृश्य बना रखा है। साहित्य के लिए चिंताग्रस्त हम जैसे चहेते इस कोशिश में फिर से लगे हुए हैं कि किस तरह से साहित्य को मुख्य धारा में लाया जाए ताकि इसे हर वर्ग के पाठक दत्तचित्त होकर पढ़ सकें और समाज के सौष्ठवीकरण के लिए साहित्य से अभिप्रेरित हो सकें। दलित कथाकार दलित वर्गों की दलितावस्था और उनके लिए ख़ास सुविधा-व्यवस्था निर्धारित करने का रोना रोते हैं जबकि वामपंथी कहानीकार मुस्लिमों की निराधार समस्याओं और नक्सलियों का पक्ष प्रस्तुत करते हुए राष्ट्रीयता को ढकोसला करार देते हैं। दक्षिणपंथी कथाकारों को भी खोखले राष्ट्रवाद की सड़ी हुई सांस्कृतिक विरासत सहेजने की पड़ी होती है और वे आम आदमी की उपस्थिति को एक सिरे से ख़ारिज़ कर देते हैं। ऐसे में, क्या वे, जैसाकि वे सोचते हैं, ‘एक-विश्व, एक-राष्ट्र’ के सपने को साकार करने का दमख़म दिखा सकते हैं। बिल्कुल नहीं, क्योंकि वे अपने निहित स्वार्थों के ग़ुलाम हैं। दकियानूस विचार-प्रवाह में बहते हुए एकांगिक होकर कहानी लिखने की इस धारा ने उनके आनुभविक ज्ञान पर भी पत्थर डाल रखा है। इसे ऐसा भी कहा जा सकता है कि इस प्रकार से उनके विचार-संप्रेषण में भी अत्यंत संकीर्णता आई है। घोर निराशाजनक तथ्य यह है कि कहानियों के समीक्षकों-आलोचकों की दृष्टि भी अपने-अपने खेमे के कहानीकारों पर ही टिकी होती है। उदाहरण के लिए वामपंथी आलोचक उदारवादी लेखकों की बखिया उधेड़ने से बाज़ नहीं आता। उसे कथा-साहित्य के सारे अच्छे लक्षण वामपंथी कथाकारों में ही नज़र आते हैं। इसके अतिरिक्त, वे किन्हीं संकीर्ण विचारधारा वाली लीक पर न चलकर व्यापक सामाजिक परास पर कहानियाँ लिखने वाले कथाकारों को भी घसीटकर अपने खेमे में ले जाने के लिए विवश करते हैं। यह तो बिल्कुल वैसा ही है जैसाकि सातवीं सदी के उत्तरवर्ती काल में अरब देशों के आततायियों ने यहाँ ज़बरन घुसकर यहाँ की बहुसंख्यक जनता का धर्म-परिवर्तन करने के लिए सारे साम-दाम-दंड भेद नीति पर अमल किया था। वामपंथ की आँधी में बहने वाले कथाकारों को यह समझाना कि यह दुनिया प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है, यहाँ भिन्न-भिन्न जातियों-प्रजातियों तथा वर्गों-संप्रदायों के लोग साथ-साथ रह सकते हैं, मानव समाज स्नेह-सहानुभूति से ही खुशहाल बना रह सकता है, धनी व्यक्ति भी मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत होकर समतावादी समाज के सृजन के लिए उत्सुक होता है, ग़रीबी की महामारी का प्रकोप कुछ ख़ास जातियों पर ही नहीं होता है, शोषक-शोषित वर्गों की कोई विशेष जाति नहीं होती है आदि-आदि जैसी बातें नाको चने चबाने जैसी ही है। हम ऐसे दकियानूस ‘बुद्धिजीवियों’ का कभी हृदय-परिवर्तन नहीं कर सकते।

अब एक सवाल यह उठता है जो विचारणीय भी है और जिस पर न केवल हम कथाकारों और कथा-साहित्य के आलोचकों-समीक्षकों को गहन चिंतन-मंथन भी करना है—कि हम गुट-निरपेक्ष होकर कहानियाँ क्यों नहीं लिखते? हम जैसा-कुछ मानव-समाज में घटित हो रहा है—उसे उसी रूप में अपनी कहानियों में पेश क्यों नहीं करते? कथाकार इतना आत्मकेंद्रित होकर कहानियों में केवल आत्मप्रवंचना क्यों कर रहा है? प्रेमचंद्र जी की तर्ज़ पर किसी हामिद को पात्र बनाकर, प्रसाद की तरह अरुण और मधूलिका को प्रेमी-प्रेमिका बनाकर, जैनेन्द्र के ‘बहादुर’ की भाँति गरीब-मेहनती बच्चे का सामाजिक हतावस्था का चित्रण और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करके, रेणु के ‘हिरामन की गाड़ी’ को केंद्र में रखकर, महादेवी वर्मा के नाचीज़ जीव ‘गिल्लू’ (गिलहरी) के साथ अपनी समस्त मानवीय संवेदना जोड़कर, अमरकान्त के शकलदीप के रूप में बाप की भूमिका में रखकर, अमृतलाल के राजबहादुर गिर्राज की तरह अक्खड़ मिजाज़ के पात्र जैसा चित्रांकन करके, दूधनाथ की तरह मर्दुमशुमारी कराकर (अम्माएँ), पदुमलाल पन्नालाल बख्शी की तरह वृद्धावस्था की आत्मसंतुष्टि वर्णित करके, भीष्म साहनी की तर्ज़ पर एक गाड़ी के भीतर का और स्टेशन का मार्मिक वर्णन प्रस्तुत करके (अमृतसर आ गया है), मनोहर श्याम जोशी के यशोधर बाबू की तरह सभी से शिकायत रखने वाले पात्र को सामने रखकर, अमृत राय की भाँति व्यथा की सरगम सुनाकर, आचार्य चतुरसेन शास्त्री की तर्ज़ पर भूख को मूर्त बनाकर (फंदा), कमलेश्वर की तरह माँ के मुख से राजा निर्बंसिया की कहानी सुनाकर, रवींद्र कालिया की तरह बे-शादीशुदा और बेफ़िक्र भैंगे की ज़िंदग़ी में कैलिडोस्कोप की तरह झाँककर, काशीनाथ सिंह की तरह अकाल का ब्योरा देकर, राहुल सांकृत्यायन की भाँति विश्वाटन को ज़िंदग़ी बनाकर आदि-आदि जैसे कथानकों की तर्ज़ पर, व्यापक परास में कथाकार कहानियों का ताना-बाना क्यों नहीं बुनना चाहता है जिसके साथ हर वर्ग, हर समाज, हर वय और हर लिंग का पाठक स्वयं को जोड़ सके तथा आत्मीय हो सके। अत्यंत निजता से अपनी ही आपबीतियों को कथानक बनाकर एकांगिक कहानियों को सरासर ख़ारिज़ किया जाना चाहिए।

[post_ads_2]

आज कहानियों में सामाजिक समस्याएँ मुखर न होकर, व्यक्तिगत समस्याओं का निरूपण धड़ल्ले से हो रहा है। प्रायः ऐसा लगता है कि कथाकार अपनी कहानियों में अपनी रामकहानी बयां कर रहा है। कतिपय नामचीन कथाकारों की भी ऐसी ही मनोवृत्ति है। ध्यातव्य है कि आप किसी वरिष्ठ और ख्यात कथाकार के पास जाएं और उसे अपनी कहानियाँ दिखाएं तो वह मिलते ही आपसे प्रसन्न-मुद्रा में कहेगा कि आपकी कहानियों में आपका जीवन झाँक रहा है और क्या आपकी अमुक कहानी में अमुक समस्या या घटना आपके जीवन से संबंधित है। इतना ही नहीं, यदि उसे लगता है कि आपकी अमुक कहानी आपके जीवन से संबंधित नहीं है तो वह मुँह बिचकाते हुए कहेगा कि यह क्या आपने लिख दिया। अर्थात वह कथाकार की कहानियों में व्यक्तिगत उपस्थिति से कोई गुरेज़ न करते हुए उसकी तारीफ़ करता है तथा अन्यथा लिखी हुई कहानियों से नाखुश होता है। यह स्थिति बड़ी विचित्र है। मैं यह नहीं कहता कि कहानियों में कहानीकार का अक्स नहीं आना चाहिए। आना तो चाहिए; पर, उसी सीमा तक, जहाँ तक वह अपनी आपबीतियों को बड़े परास पर आम ज़िंदग़ी से संबद्ध कर सकता है।

बहरहाल, क्या कहानियों में कथाकार का जीवन ही रूपायित होना चाहिए? अधिकतर वर्तमान कथाकारों के पात्र आत्ममुग्ध हैं और उन्हें दुनिया में स्वयं के सिवाय अन्यों का हित दिखाई ही नहीं देता। उन्हें अपने जैसा लेखक कहीं दूर-दूर तक नज़र नहीं आता; अपने जैसी सूक्ष्म दृष्टि रखने वाला कोई सामाजिक चितेरा दिखाई नहीं देता; स्वयं जैसा कालजयी रचनाएँ देने वाला रचनाकार उनके पल्ले नहीं पड़ता। ऐसे में, उनके पात्र भी अत्यंत कुंठित, मायोपिक, विषादग्रस्त और आत्मकेंद्रित से लगते हैं और पाठकों को तो वे परग्रही जीव जैसे दुर्लभ लगते हैं; लेकिन, उन्हें पाठक स्वयं से जोड़ पाने में असमर्थ पाता है। निःसंदेह, ये कथाकार ऐसे ही पात्रों का सृजन करने में दत्तचित्त हैं। इसे हम दूसरे शब्दों में उनकी कूपमंडूकता भी कह सकते हैं।

एक वरिष्ठ कथाकार का यह कहना भी मुझे नामुनासिब नहीं लगता है कि आज की कहानियों में हमारे समाज की ज्वलंत समस्याएं ऐसे ग़ायब हैं जैसेकि गधे के सिर से सींग। कहानियों में सामाजिक जीवन के यथार्थपरक विश्लेषण देने की चिंता में बहुत गिरावट आई है। कथाकार का “ईगो” इन समस्याओं के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बनकर आता है। ग़रीबी, बेकारी, जनसंख्या विस्फ़ोट, धर्मांधता, लंपटता, अफ़वाहतंत्र का बढ़ता नेटवर्क, मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया, फ़ैशन में नग्नता का प्रदर्शन, बौद्धिक छिछलापन, बाज़ारवाद में जकड़ता समाज, सभी मानवीय गतिविधियों का इंटरनेटीकरण, सोशल मीडिया के फुसलाहट और झाँसेपन में उलझता आदमी, इलेक्ट्रॉनिक प्रविधियों में लिप्तता के कारण लुप्तप्राय होते मानवीय संबंध-संसर्ग, आदमी का सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति उदासीनता, राज-प्रदत्त सुविधाओं का अनुचित वितरण, प्रेम का अनैतिक व्यापार, देह-व्यापार, मानव तस्करी, थर्ड जेंडर की सामाजिक स्वीकार्यता में अड़चनें, संस्थाओं एवं निकायों आदि में आम आदमी के पैसे को धुआंधार लूटने-ऐंठने की कुप्रवृत्ति, स्त्रियों की स्वयं के प्रति बदलती सोच और बाजारीकरण के दौड़ में शामिल होने में नैतिकता का अपरदन, सियासतदारी का उद्योगीकरण, जातीय एवं वर्णगत बढ़ता द्वेष, चिकित्सा-व्यवसाय जैसे क्षेत्र में डॉक्टरों और आरोग्य केंद्रों-अस्पतालों का नैतिक पतन, युवाओं में बढ़ता यौन अपराध, अविवाहित जोड़ों की बढ़ती संख्या या दूसरे शब्दों में ‘लिव-इन’ का बढ़ता प्रचलन, पति-पत्नी की साहचर्य के प्रति जुगुप्सा और तलाक़ की बढ़ती घटनाएं, भाषाई द्वेष, संयुक्त परिवार के बजाय न्यूक्लियर परिवारों का बढ़ता फ़ैशन, वृद्धों की उपेक्षा, योग्यता के बजाय धन का बढ़ता वर्चस्व, प्रकृति का अत्यधिक क्षरण, जलाभाव और प्रदूषण, अतीत के प्रति घृणा, अस्मिता और वर्चस्व के लिए लड़ाई आदि-आदि जैसे असंख्य विषय कहानियों में केंद्रीभूत होने चाहिएं।

कहानियाँ भड़ास निकलने का माध्यम नहीं बननी चाहिएं। अगर किसी व्यक्ति के मन में किसी व्यवस्था, किसी समुदाय या किसी व्यक्ति के प्रति विरोधी विचार हैं तो सोशल मीडिया है ना, इस प्रयोजन को पूरा करने के लिए। भड़ास निकालने के लिए कहानियाँ क्यों लिखी जाएं क्योंकि इस प्रवृत्ति से कहानी का स्वरूप बदरंग होता है, विरूपित होता है। कथा-साहित्य न केवल हिंदी और अन्य सभी भारतीय भाषाओं में, अपितु दुनियाभर की भाषाओं में जनमानस को सकारात्मक दिशा देते हुए सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त माध्यम है। दुनियाभर में जब-जब कालजयी कहानियाँ लिखी गईं, समाज के निर्माण में सकारात्मक प्रवृत्तियों का योगदान आँका गया। यह तब हुआ जबकि व्यक्तिगत कुंठाओं के बजाय, सामाजिक कुंठाओं को स्वर दिया गया। स्वयं के अंतर्मन में पल रहे अवसादों को सार्वजनिक करने के बजाय, पूरे समाज के जनमानस में सड़ांध पैदा कर रहे अवसादों को कुरेद-कुरेद कर निकालने के लिए कथानक बुना जाए।

(नोट--मैं उन कथाकारों के नामों और रचनाओं का उल्लेख इस आलेख में नहीं कर रहा हूँ, जिनकी कहानियाँ आत्मप्रवंचनात्मक हैं। क्योंकि यह कुछ-कुछ व्यक्तिगत आक्षेप जैसा प्रतीत होगा। कृपया, कथा-साहित्य के संबंध में अगले आलोचनात्मक आलेख का इंतज़ार करें!)

***

जीवन-चरित

लेखकीय नाम: डॉ. मनोज मोक्षेंद्र {वर्ष 2014 (अक्तूबर) से इस नाम से लिख रहा हूँ। इसके पूर्व 'डॉ. मनोज श्रीवास्तव' के नाम से लेखन}

वास्तविक नाम (जो अभिलेखों में है) : डॉ. मनोज श्रीवास्तव

पिता: (स्वर्गीय) श्री एल.पी. श्रीवास्तव,

माता: (स्वर्गीया) श्रीमती विद्या श्रीवास्तव

जन्म-स्थान: वाराणसी, (उ.प्र.)

शिक्षा: जौनपुर, बलिया और वाराणसी से (कतिपय अपरिहार्य कारणों से प्रारम्भिक शिक्षा से वंचित रहे) १) मिडिल हाई स्कूल--जौनपुर से २) हाई स्कूल, इंटर मीडिएट और स्नातक बलिया से ३) स्नातकोत्तर और पीएच.डी. (अंग्रेज़ी साहित्य में) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से; अनुवाद में डिप्लोमा केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो से

पीएच.डी. का विषय: यूजीन ओ' नील्स प्लेज़: अ स्टडी इन दि ओरिएंटल स्ट्रेन

लिखी गईं पुस्तकें: 1-पगडंडियां (काव्य संग्रह), वर्ष 2000, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, न.दि., (हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा चुनी गई श्रेष्ठ पाण्डुलिपि); 2-अक़्ल का फलसफा (व्यंग्य संग्रह), वर्ष 2004, साहित्य प्रकाशन, दिल्ली; 3-अपूर्णा, श्री सुरेंद्र अरोड़ा के संपादन में कहानी का संकलन, 2005; 4- युगकथा, श्री कालीचरण प्रेमी द्वारा संपादित संग्रह में कहानी का संकलन, 2006; चाहता हूँ पागल भीड़ (काव्य संग्रह), विद्याश्री पब्लिकेशंस, वाराणसी, वर्ष 2010, न.दि., (हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा चुनी गई श्रेष्ठ पाण्डुलिपि); 4-धर्मचक्र राजचक्र, (कहानी संग्रह), वर्ष 2008, नमन प्रकाशन, न.दि. ; 5-पगली का इंक़लाब (कहानी संग्रह), वर्ष 2009, पाण्डुलिपि प्रकाशन, न.दि.; 6.एकांत में भीड़ से मुठभेड़ (काव्य संग्रह--प्रतिलिपि कॉम), 2014; 7-प्रेमदंश, (कहानी संग्रह), वर्ष 2016, नमन प्रकाशन, न.दि. ; 8. अदमहा (नाटकों का संग्रह) ऑनलाइन गाथा, 2014; 9--मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में राजभाषा (राजभाषा हिंदी पर केंद्रित), शीघ्र प्रकाश्य; 10.-दूसरे अंग्रेज़ (उपन्यास); 11. संतगिरी (कहानी संग्रह), अनीता प्रकाशन, ग़ाज़ियाबाद, 2017; चार पीढ़ियों की यात्रा-उस दौर से इस दौर तक (उपन्यास) पूनम प्रकाशन द्वारा प्रकाशित, 2018; 12. महापुरुषों का बचपन (बाल नाटिकाओं का संग्रह) पूनम प्रकाशन द्वारा प्रकाशित, 2018; चलो, रेत निचोड़ी जाए, नमन प्रकाशन, 2018 (साझा काव्य संग्रह) आदि

संपादन: महेंद्रभटनागर की कविता: अन्तर्वस्तु और अभिव्यक्ति”

संपादन: “चलो, रेत निचोड़ी जाए” (साझा काव्य संग्रह)

--अंग्रेज़ी नाटक The Ripples of Ganga, ऑनलाइन गाथा, लखनऊ द्वारा प्रकाशित

--Poetry Along the Footpath अंग्रेज़ी कविता संग्रह शीघ्र प्रकाश्य

--इन्टरनेट पर 'कविता कोश' में कविताओं और 'गद्य कोश' में कहानियों का प्रकाशन

--वेब पत्रिकाओं में प्रचुरता से प्रकाशित

--महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्याल, वर्धा, गुजरात की वेबसाइट 'हिंदी समय' में रचनाओं का संकलन

--सम्मान--'भगवतप्रसाद कथा सम्मान--2002' (प्रथम स्थान); 'रंग-अभियान रजत जयंती सम्मान--2012'; ब्लिज़ द्वारा कई बार 'बेस्ट पोएट आफ़ दि वीक' घोषित; 'गगन स्वर' संस्था द्वारा 'ऋतुराज सम्मान-2014' राजभाषा संस्थान सम्मान; कर्नाटक हिंदी संस्था, बेलगाम-कर्णाटक द्वारा 'साहित्य-भूषण सम्मान'; भारतीय वांग्मय पीठ, कोलकाता द्वारा ‘साहित्यशिरोमणि सारस्वत सम्मान’ (मानद उपाधि); प्रतिलिपि कथा सम्मान-2017 (समीक्षकों की पसंद); प्रेरणा दर्पण संस्था द्वारा ‘साहित्य-रत्न सम्मान’ आदि

"नूतन प्रतिबिंब", राज्य सभा (भारतीय संसद) की पत्रिका के पूर्व संपादक

"वी विटनेस" (वाराणसी) के विशेष परामर्शक, समूह संपादक और दिग्दर्शक

'मृगमरीचिका' नामक लघुकथा पर केंद्रित पत्रिका के सहायक संपादक

हिंदी चेतना, वागर्थ, वर्तमान साहित्य, कथाक्रम, समकालीन भारतीय साहित्य, भाषा, व्यंग्य यात्रा, उत्तर प्रदेश, आजकल, साहित्य अमृत, हिमप्रस्थ, लमही, विपाशा, गगनांचल, शोध दिशा, दि इंडियन लिटरेचर, अभिव्यंजना, मुहिम, कथा संसार, कुरुक्षेत्र, नंदन, बाल हंस, समाज कल्याण, दि इंडियन होराइजन्स, साप्ताहिक पॉयनियर, साहित्य समीक्षा, सरिता, मुक्ता, रचना संवाद, डेमोक्रेटिक वर्ल्ड, वी-विटनेस, जाह्नवी, जागृति, रंग अभियान, सहकार संचय, मृग मरीचिका, प्राइमरी शिक्षक, साहित्य जनमंच, अनुभूति-अभिव्यक्ति, अपनी माटी, सृजनगाथा, शब्द व्यंजना, साहित्य कुंज, मातृभाषा डॉट कॉम वैचारिक महाकुम्भ, अम्स्टेल-गंगा, इ-कल्पना, अनहदकृति, ब्लिज़, राष्ट्रीय सहारा, आज, जनसत्ता, अमर उजाला, हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, दैनिक भास्कर, कुबेर टाइम्स आदि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं, वेब-पत्रिकाओं आदि में प्रचुरता से प्रकाशित

आवासीय पता:--सी-66, विद्या विहार, नई पंचवटी, जी.टी. रोड, (पवन सिनेमा के सामने), जिला: गाज़ियाबाद, उ०प्र०, भारत. सम्प्रति: भारतीय संसद में संयुक्त निदेशक के पद पर कार्यरत

ई-मेल पता: drmanojs5@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: आत्मप्रवंचनात्मक कहानियों का दौर है--यह नई सदी (समीक्षा) --डॉ. मनोज मोक्षेंद्र
आत्मप्रवंचनात्मक कहानियों का दौर है--यह नई सदी (समीक्षा) --डॉ. मनोज मोक्षेंद्र
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj48cF7uCQ0zdTu6hbySpob24rHEF63IAq3Yy5ctLt0Q1KhXo50xZ0uZF1YxSwc7pU6fyqjdCk6JR43W02dvc-Z6KSLBqhZtZDEUgymJVm2yzVntVk78ViQ4nAT78cJSG9jn4_K/s320/Photo-new-739625.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj48cF7uCQ0zdTu6hbySpob24rHEF63IAq3Yy5ctLt0Q1KhXo50xZ0uZF1YxSwc7pU6fyqjdCk6JR43W02dvc-Z6KSLBqhZtZDEUgymJVm2yzVntVk78ViQ4nAT78cJSG9jn4_K/s72-c/Photo-new-739625.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2019/07/blog-post_34.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2019/07/blog-post_34.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content