1.गीत-“कब आओगे तुम?” आओ रे आओ, मेरे काले-काले बादल। नाचो मोर मेरे, तुम पुकारो गीत गाकर॥ हो गई है छाया, रवि कहीं खो गया। आओ, तुम उमड़-घुमड़क...
1.गीत-“कब आओगे तुम?”
आओ रे आओ, मेरे काले-काले बादल।
नाचो मोर मेरे, तुम पुकारो गीत गाकर॥
हो गई है छाया,
रवि कहीं खो गया।
आओ, तुम उमड़-घुमड़कर,
बरसाओ रे, पानी बरसकर।
जो चल रही है हवा,
खबर पहुँचाने आयी यहाँ।
धीरे-से वो कहती है सबको,
जरा, आज इस मस्ती में झूमो।
खोये हो किस बात में?
भूले हो रात बने दिन में॥
लग रहे हैं आज भूधर,
यहाँ है या कहीं चले गये उधर।
चैन मिलेगा मुझ वियोगी को,
जब साकार होगा सपना वो।
बादल की छाया,
पवन दूत बनके आया।
बता दो मुझे तुम,
छिपी है कहाँ मेरी पिया?
कितना सुन्दर सरगम है?
कोई कोना नहीं अकेला है॥
जल रही है आग,
मेरे सीने में दिन-रात।
ऐसा ना समझो कि-
वो बुझ गई है आज॥
रे बादल! चलूँगा मैं साथ तेरे।
लाना होगा तुझे, मेरी संगिनी रे॥
हमको ले जाना,
दूर छोर है जहाँ।
तेरे-मेरे-उसके बिना,
कोई नहीं हो वहाँ॥
दिखेंगे दूर-दूर तक,
हम एक ख्वाब बनकर।
गाऊँगा मैं, नाचेगी वो,
तुम बरसना मेघ बनकर॥
नेह-नीर की माला
अपने हाथ में लेकर॥
जहाँ होंगे सब समतल,
बहेगा जल बनके विरल।
सब ओर हो जायेंगे समन्दर,
बीच में होगा भूधर का शिखर॥
जहाँ खड़े होंगे हम,
दौड़ आयेंगे वहाँ घन।
पवन लाई है चिट्टी अपनी।
इन्तजार में है घटा तुम्हारी॥
बोलेगा बादल, अरी पवन! चलो ना तुम।
मेरे आगे-आगे राह अपनी सजाकर अब॥
साथ लेकर अपने संगी-साथियों को,
आता हूँ मैं दौड़े-दौड़े लेने तुझको।
आ जायेंगे हम, जहाँ होंगे काले-काले बादल।
उन बरसते बादलों संग, होगा हरा-भरा धरा का आँचल॥
सुनी है हमने ऐसी ही पुकारें।
जो करे पीउ-पीउ, म्याऊँ-म्याऊँ रे॥
कब आओगे तुम?
- रतन लाल जाट
2.गीत-“आती ठण्डी हवाएं"
आती ठण्डी हवाएं,
राग सुनाती फागुन के।
मनचले गीतों की झँकार,
लाये मेरे जीवन में बहार।
सहमा-सहमा मौसम,
दिल को छूती किरण।
जो सूरज ने फैलायी है,
गगन से आज नीचे आयी है।
ऐसी खुशबू छायी है।
मेरे दिल को भायी रे॥
जो मुझको खूब हँसाये।
दिल को वो पागल कर दे॥
पिया गीत गाती है,
हवा पास आती है।
वो धीरे-से,
मुझको कहती है।
रे पागल साजन तू,
पिया मैं तेरी हूँ।
धोती मेरी उड़ती है।
आँचल तेरा छूती है॥
उलझे-उलझे तेरे बालों की।
कोमलता आज बिखर गयी॥
महकी-महकी खुशबू है।
न जाने कहाँ हूँ मैं?
हरी-हरी फसल है।
लहराती वो खेतों में॥
बाली पास मेरे आती है।
कली दूर क्यों जाती है?
खड़े किनारे लगे,
लम्बे-घने वृक्ष हैं।
उनकी हरी-भरी छाया ने,
मेरे दिल को लुभाया है।
फूल पलाश के खिले हैं।
रंग गुलाबी होली लाये रे॥
उधर डाल आम की,
जो फूलों से लद गयी।
उस पर बैठी है कोयल,
घास हरी जहाँ बोले मोर।
कोयल पिया को बुलाती है।
भँवरे को डगमगाती है॥
कलियाँ रसीली हैं।
फूलों में खुशबू हैं॥
दिल में प्यार,
मन में उन्माद।
चिड़िया चूँ-चूँ करती है,
मोर अपनी पाँखों से।
रंग सात फैलाके,
बहका-बहका नाच करे॥
सरसों बनकर सोना रे।
खेतों में आड़ी सोयी हैं।
चमन हजारी के, कली गुलाब की।
कमल गुलाबी है, पीला सूरजमुखी॥
चाँदी जैसे फूल वहाँ।
अफीम का है खेत जहाँ॥
उस भीनी-भीनी खुशबू में,
मद-मोद भरा है कितना?
सुरीले अनार में, नशा है बड़ा॥
माली सब्जी बोता है,
फूल-माला बनाता है।
जो जाकर देवों का,
सिंगार बढ़ाती है॥
मंदिर के बाहर, गजरों के हार।
फूल गोबी, लाल टमाटर हैं।
हरी भींडी, बैंगनी बैंगन रे॥
लम्बी-लम्बी आल है।
कद्दू कितना गोल है?
गाय दूध देती है।
बछड़ा खेल करता है॥
जंगल में गूँजती हैं दहाड़ें।
हाथी सरोवर में नहाते हैं अकेले॥
ऐसा यह मौसम आया है।
दिल बसंत ने झूलाया है॥
जैसा मैंने चाहा है।
वैसा ही दिल को कहा है॥
पिया कहाँ खड़ी है?
आँखें जरा उसे ढ़ूँढ़ो रे॥
जिसका रंग काला, बड़ा ही प्यारा।
चमन-सी खुशबू, है मेरी सजना॥
आके यहाँ शरमाता।
राजा तीनलोक का॥
ऐसी मेरी धरा और ये जहां है।
जहाँ अम्बर के संग टिमटिमाते सितारे॥
और करे दिन-रात,
चौकादारी रवि-चाँद।
देव रमण करते हैं,
असुर नाश होता है।
सुर-राग गाते हैं,
वियोग हम भूल जाते हैं॥
आती ठण्डी हवाएं,
राग सुनाती फागुन के।
मनचले गीतों की झँकार,
लाये मेरे जीवन में बहार।
- रतन लाल जाट
3.गीत -"रिमझिम-रिमझिम बरखा आये”
रिमझिम-रिमझिम बरखा आये।
महके-महके फूल खिले।
जब कई दिनों से,
दिवाने दो मिले।
मोर नाचे, कोयल गाये।
सब कुछ ये तो देखें॥
दिवाना हँसता है,
पिया शरमाती।
लोग दूर से,
दिखाते है अंगुली॥
अजब नाता है,
गजब का राज ये।
समझे ना कोई जो,
ऐसी ये कहानी रे॥
रिमझिम-रिमझिम बरखा आये
जब दो दिवाने मिलते हैं,
दिल में खुशियाँ उमड़ती है।
आँखों से प्यार के आँसू बरसते है,
और भी कहूँ मैं, सारा जग हँसी लगता है॥
रिमझिम-रिमझिम बरखा आये
- रतन लाल जाट
4.गीत-“गगन-गगन में, काली-काली घटा ये"
गगन-गगन में, काली-काली घटा ये।
आज उमड़-घुमड़के, दिल में आग जलाये॥
साजन बता? तेरे देश में।
मौसम ऐसा, ये बहारें है॥
गगन-गगन में………………………॥
जीया मेरा कोयल-सा धड़के।
गीत ऐसा वो गाये धीरे-धीरे॥
नैनां मेरे बादल बन गये हैं।
बरसात हो ऐसे आँसू बहते हैं॥
गगन-गगन में………………………॥
कर दिया तूने मुझको दिवाना।
बेसब्री से इन्तजार अब टूट गया॥
बरसात हो, तो आग बुझे।
दिल-समन्दर में, प्यार भरे॥
आज गगन से, ऐसी बौछार होये।
कि सावन में बसंत आ जाये॥
गगन-गगन में………………………॥
- रतन लाल जाट
5.गीत-“धरती ने ओढ़ी चुनरिया”
धरती ने ओढ़ी चुनरिया।
आ जा, साजन आ जा॥
रंग-बिरंगा बनके तू आ जा।
खुशबू सा मेरे दिल को छू जा॥
धरती ने ओढ़ी चुनरिया……………
नीला-नीला मेरा आँचल।
लहँगे का है हरिया रंग॥
सब मुझको दिला जा।
प्रेम बादल के जैसा॥
अब लगने लगा, मुझको तू निराला।
कोई मुझमें बसने लगा, धीरे-धीरे दिवाना॥
धरती ने ओढ़ी चुनरिया………….
नीन्दों में आने लगा।
यादों में भाने लगा॥
आँखों में बसने लगा।
दिल को कहने लगा॥
बातें प्यार की दिवाना।
अब मुझसे करने लगा॥
धरती ने ओढ़ी चुनरिया………….
मुझको पिलाने आ जा।
प्रेम-रस तू दिवाना॥
जगे दिवानी, रातें सारी।
हरपल तुमको, बुलाती वो॥
दिल में छुपी बातें।
कहने लगी आँखें॥
जी मेरा करने लगा।
तुमको ही चाहने लगा॥
धरती ने ओढ़ी चुनरिया………….
श्वाँसें चलने लगी रे।
संगीत का सरगम जैसे॥
अब बरसे नैनां उसके।
बादल-सा प्यार बनके॥
कहने लगी दिवाना।
सारे जहाँ को अपना॥
अब प्यार उसका।
छूने लगा आसमां॥
धरती ने ओढ़ी चुनरिया………….’
मैं जलकर प्यार में।
बन गयी धरती रे॥
आ जा, साजन आ जा।
प्रेम-बादल बनके आजा॥
अब लगने लगा, मुझको तू निराला।
धरती ने ओढ़ी चुनरिया………….
- रतन लाल जाट
6.गीत-“वो आलम था"
वो आलम था अपना,
जब साजन को पास पाया।
वो मौसम था प्यारा,
सारा जहाँ भी मचलता था॥
पीछे अपने ठनकती,
पिया नजर आ जाती।
प्यार में वो मुस्कुराती,
अपने दिल को कुछ बताती॥
तू मुझको भाया,
मैं तेरी हूँ सजना।
खुशी रहती कदमों में,
हम दोनों लुटाते जहाँ॥
दिल की कलियाँ खिली थी,
मकरन्द-सी पिया रहती।
मह-मह करता है यह दिल।
झीनी-झीनी खुशबू है वो चमन॥
चाहत थी पूरी होना शेष वो।
कुछ ना अधूरा, सब प्यारा है वो॥
एक तरफ थी हरियाली,
दिल में भी खूमार दिवानगी का॥
- रतन लाल जाट
7.गीत-“मोर बोले, कोयल कूके”
मोर बोले, कोयल कूके।
बादल गरजे, बिजली चमके॥
पानी बरसे, जीया तरसे।
पिया बिन, मन नहीं लागे॥
दिल धड़के रे, आग भी जले।
लेकिन कब साजन आये?
और कब हम मिले?
मौसम है खुशनुमा,
बहारें हैं यहाँ।
चारों ओर प्यारा,
लग रहा है नजारा॥
लेकिन अकेले करूँ क्या मैं?
नहीं पास अपने सपनों का राजा है॥
पिय बिन सारी खुशियाँ,
बन गयी हैं बेचैनियाँ।
उसको भी ऐसा ही लगता,
दिलबर का दिल भी तड़पता॥
मगर वो करे क्या?
मजबूरी है।
दर्द प्यार का,
अब सहना है॥
चाहे सबकुछ हो,
मगर अलग हैं दिवाने।
तो समझो कि-
स्वर्ग भी दुखद लगे रे॥
मोर बोले, कोयल कूके
- रतन लाल जाट
8.गीत-“जीवन के सुन्दर उपवन में”
जीवन के सुन्दर उपवन में।
मन मेरा पपीहा-पपीहा है॥
धीरे-धीरे चहकता।
वो राम-नाम भजता॥
आती हवा के संग जो,
रहता है बेचैन चलता को।
न जाने कब आये?
सन्देश मिलने का।
कौन रोक सकता है?
जाने को मुझे वहाँ॥
जब चाहूँ, तब आऊँ,
जो कहूँ मैं, वो सुन ले।
दिल के अरमान को,
बिन किसी आवाज के॥
यहाँ तो बस इतना ही,
चलता है वश अपना।
जैसे हम हैं, चीज ऐसी,
तेरे हाथों बनी, मेरे रब्बा!
जैसे खिलते फूल की खुशबू,
आज उड़ गयी रे।
सरोवर का पानी,
सूरज सोंख गया रे॥
निशा के हाथों,
उजाला गायब हो चला।
बहते झरने को,
सागर ने बुला लिया॥
- रतन लाल जाट
9.गीत-“ऊपर देखूँ मैं’
ऊपर देखूँ मैं, बादल क्यों ना बरसते हैं?
पिय बिन अब उनको भी, अच्छा ना लगता है॥
तभी तो वो मेरे सिर के ऊपर,
मँडराने लगे हैं काले-काले।
जैसे नाग उड़-उड़कर,
मुझे काटने को आये हैं॥
अरे! काले-काले बादल,
छेड़ते हो तुम मुझको पिया के संग।
जो आते हो पास छिपकर,
धीरे-से मुझको भाग जाते हैं रूलाकर॥
मैं नित रोती हूँ, तुम मुझपे हँसते हो।
तब यह क्या बात दिल को कहते हो?
जो बहती अश्रुधारा में भी बहा नहीं करता है।
पत्थर में भी पानी है, लेकिन दिल तेरा इससे भी भारी है॥
यदि पिय के संग कोई पिय मिल जाये।
तो उस पिया का दिल कितना घबराये?
वो तन-मन से पागल हो,
कैसे समझाये अपने दिल को।
हरदम रोना, उसको बुलाना।
दिल को लग जाता, ऐसा कोई रोग बुरा॥
दिल यादों में तड़पता है,
वो खो गया ख्वाबों में।
इतना ही उसके वश में है,
जो संग साथ निभाता है॥
फिर तू क्यों रोये? हँसने पर पिय आयें।
फिर भी तुम कहती हो कि- ऊपर देखूँ मैं॥
ऊपर देखूँ मैं, बादल क्यों ना बरसते हैं?
पिय बिन अब उनको भी, अच्छा ना लगता है॥
- रतन लाल जाट
10.गीत-“आने वाला पल है।”
आने वाला पल है।
मस्ती से तू झूमे॥
एकपल ऐसा भी,
आयेगा वो कभी।
जहाँ सदा ही,
आग है जलती॥
इसके रंग में तू रंग जाना।
लेकिन जीवन की तस्वीर ना भूलना॥
आने वाला पल है।
मस्ती से तू झूमे॥
कोई पल ले जाते हैं,
उड़ान अपनी अम्बर में।
कुछ पल ऐसे आते हैं गिराने,
कि- धरती भी ना बचा पाती है॥
आने वाला पल है।
मस्ती से तू झूमे॥
किसी के सहारे,
अपने पैर ना फैलाना।
कहानी नित बदलती है,
मस्ती को हराम बनाके जाना॥
आने वाला पल है।
मस्ती से तू झूमे॥
एक पल भी ना बेमतलब है।
पल मिलकर ही जीवन अपना सँवारे॥
किसी पल हम ऊपर, तो कभी नीचे रे।
आने वाला पल है। मस्ती से तू झूमे॥
- रतन लाल जाट
कवि-परिचय
रतन लाल जाट S/O रामेश्वर लाल जाट
जन्म दिनांक- 10-07-1989
गाँव- लाखों का खेड़ा, पोस्ट- भट्टों का बामनिया
तहसील- कपासन, जिला- चित्तौड़गढ़ (राज.)
पदनाम- व्याख्याता (हिंदी)
कार्यालय- रा. उ. मा. वि. डिण्डोली
प्रकाशन- मंडाण, शिविरा और रचनाकार आदि में
शिक्षा- बी. ए., बी. एड. और एम. ए. (हिंदी) के साथ नेट-स्लेट (हिंदी)
ईमेल- ratanlaljathindi3@gmail.com
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