Dr. Ishwar Prakash Sharma 1. मंजिल पास है मैं राही हूँ उस पथ का जिसका मुझको ज्ञान नहीं। दुःख कितने हैं इस पथ में इसकी मुझको पहचान नहीं। मं...
Dr. Ishwar Prakash Sharma
1. मंजिल पास है
मैं राही हूँ उस पथ का
जिसका मुझको ज्ञान नहीं।
दुःख कितने हैं इस पथ में
इसकी मुझको पहचान नहीं।
मंजिल है मेरी मैं एक तारा तोड़ लाऊँ
पर सोचूँ पथ कहा से बनाऊं
सोचता हूँ उस चोटी पर जाकर
कहीं आसमान को छू पाऊं
सपने देखूं यही मैं......
उस चोटी तक उड़ कर जाऊँ
जाकर देखूं छत में तो
दोनों हाथ फरफराऊं
जैसे ही देखूं नीचे तो
नीचे देख घबराऊँ
तभी ये बात सोचूं
कस्तूरी नाभि में बसी
मृग को ये बताऊँ
क्या मैं भी मृग हूँ?
जो इसे ना समझ पाऊं
क्यों चारों तरफ मेरे अँधियारा है
मैं जहां रहता हूँ
वह धरती खुद एक तारा है।
2. सुंदरता बनाम अहंकार
मैंने पुष्प को देखा इस कदर
पत्तियों के बीच बना रखा उसने घर
जरा लालिमा लिए अपने अपने चेहरे पर
झाँक रहा बार बार वो पत्तियों से झाँककर
मैंने पुष्प को देखा इस कदर
बड़ा मासूम लग रहा था उसका चेहरा
हरी हरी पत्तियां कर रही उसका पहरा
बाहर निकल आया वो पत्तियों को हराकर
मैंने पुष्प को देखा इस कदर
चिपकी हुई पंखुड़ियां अब खुलने लगी
महकी महकी सी महक उनसे बिखरने लगी
अहम् में भर आया पुष्प इस पहर
मैंने पुष्प को देखा इस कदर
मधुर चाल से भोरों का दल आया
देख कर अभिमानी को वह गुनगुनाया
नाचने लगे वो पुष्प के चारों तरफ
मैंने पुष्प को देखा इस कदर
भौरें गुनगुनाकर अपनी सुधा मिटाने लगे
पुष्प से लिपट लिपट पुष्प को बताने लगे
अपनी सुंदरता का न तू अहंकार कर
मैंने पुष्प को देखा इस कदर
तरुवर ने भी अब साथ छोड़ दिया
अहंकार मिट गया मिट्टी में मिलकर
मैंने पुष्प को देखा इस कदर......
3. एहसास
आज एहसास हुआ कि जिंदगी क्या है....
जीना मरना जब अकेले है....
तो दो पल के साथ का भी क्या है....
यूँ तो रिश्ते बनते हैं ऊपर से....
पर इन रिश्तों का भी क्या है....
असल रिश्ता तो वो है जो ऊपर से भी नहीं बना........
पर हमारे बनाये रिश्तों का भी क्या है....
जिस पर लुटाते थे जान से भी ज्यादा....
ये जान लुटाने का भी क्या है....
यूँ तो खुश रहता हूँ मैं सबकी नजर में....
इस खुश रहने का भी क्या है....
दर्द हो सीने में तो तो छुपाया करते हैं....
इस दर्द को छुपाने का भी क्या है....
अब सीख रहा हूँ जीना धीरे धीरे....
क्योंकि................
अब एहसास हुआ की जिंदगी क्या है....
4. पहचान
आखिर कोई कब तक खुद को नहीं जानेगा......
अपनी जिंदगी को कभी तो पहचानेगा......
कोई खुद क्या है, ये कोई नहीं जानता......
लेकिन वक्त के साथ वो खुद को पहचानेगा....
आज मैं खुद कुछ भी नहीं हूँ......
लेकिन तेरे सहारे से मैं खुद को जानूंगा......
तेरा शुक्रिया है कि तूने मुझे पहचाना......
वरना कोई कैसे मुझे पहचानेगा......
5. क्या कहेंगे लोग
मैं वहाँ खड़ा था अचानक वो गए
जाने ऐसा क्या हुआ जो वो मुझको भा गए
बस डर लगता है तो खुद से
कि….
क्या कहेंगे लोग....
मैंने तो यूँ ही कह दी दिल की बातें
उन्हीं बातों में वो मगरूर हो गए
जाने क्या ऐसा हुआ वो फिर से दूर हो गए
बस यही डर था उनको कि
क्या कहेंगे लोग....
समझते तो वो भी थे हमारी ख़ामोशी को
पर खुद खामोश रह के वो सब कह गए
चाहते हैं तुमको हम खूब
ये उनकी ख़ामोशी में झलक रहा था
बस यही कारण था की में
बार बार उनकी तरफ़ पलट रहा था
यही सोच रहा था उनसे निगाहें मिलाने में की
क्या कहेंगे लोग....
क्या कहेंगे लोग....
6. मेरी कल्पना
मेरी कल्पना हो तुम
तुम्हें कविता में लिख रहा हूँ।
करिश्मा हो किसी का या
तुम ही करिश्माई हो
जन्नत सी लगती है जिंदगी
जब से तुम आई हो
नाक नक्श हुस्न-ए-बहार
क्या-क्या फिजायें पाई हो
कल्पना हो मेरी
वो सब लिख रहा हूँ
मेरी कल्पना हो तुम
तुम्हें कविता में लिख रहा हूँ।
वो पहली दफा
आवाज सुनते ही तुम घबरा जाती हो
पहली मुलाकात में तुम नजर नहीं आती हो
इंतज़ार किया था तुम्हारे दीदार का
तब कही शर्माती तुम नजर आती हो
मैं वो सब लिख रहा हूँ
मेरी कल्पना हो तुम
तुम्हें कविता में लिख रहा हूँ।
8. ये हिंदुस्तान है
भारत एक खोज है, भारत एक पहचान है।
भारत एक उम्मीद है, भारत एक शान है।
ये हिंदुस्तान है। ये हिंदुस्तान है॥
भारत की मिट्टी जो देशभक्तों की शान है।
जिसके कण कण में हर शहीद बिराजमान है।
ये बहती हवा का रुख जो देती इसको पहचान है।
ये हिंदुस्तान है। ये हिंदुस्तान है॥
खेत खलियानों की हरियाली में भी एक नया एहसास है।
एक नन्हा सा पौंधा भी नहीं कोई लाश है।
इसमें भी देशवासियों का एक विश्वास है।
ये हिंदुस्तान है। ये हिंदुस्तान है॥
बादलों की गड़गड़ाहट में भी इनकी आवाज है।
बिजली की चमचमाहट में भी इनका विश्वास है।
पुष्प की खुलती पंखुड़ी में एक नया एहसास है।
ये हिंदुस्तान है। ये हिंदुस्तान है॥
नदियों की सरसराहट में, चिड़ियों की चहचहाहट में,
पेड़-पोंधो की हरियाली में, अमावस्या की काली में,
देशवासियों का त्याग है, देशवासियों का विश्वास है।
ये हिंदुस्तान है। ये हिंदुस्तान है॥
एक ओस की बूंद में भी दिखती नई किरण है।
चारों तरफ आज फैला चैनो अमन है।
सहनशील-प्रगतिशील आज मेरा वतन है।
ये हिंदुस्तान है। ये हिंदुस्तान है॥
प्रेमभाव-भाईचारा ही इसका नारा है।
नई दृष्टि-नई राह की और भारतवर्ष हमारा है।
हमें गर्व है की भारतवर्ष हमारा है।
ये हिंदुस्तान है। ये हिंदुस्तान है॥
जेठ की तपती धूप में,
वह गड़गड़ाती कांपती पूस में
काम कर रहा मजदूर भी देख रहा नया हिंदुस्तान है।
ये हिंदुस्तान है। ये हिंदुस्तान है॥
9. एक बिनती
एक बिनती है इंसान
बन जा अब तू महान
भगा दे अंदर बैठा शैतान
एक बिनती......
क्यों बैठी दिल में नफरत?
क्यों बैठी दिल में दहशत?
क्यों कम हो रही मोहब्बत?
क्यों बढ़ रहा है अज्ञान?
एक बिनती......
भाई चारा तू बढ़ा दे
सबको नई राह दिखा दे
सबको तू प्यार दिला दे
बढ़ा दे तू सबका ज्ञान
एक बिनती......
क्यों है अब ये मज़बूरी
कम कर दे तू ये दूरी
पूरी कर ले तू अधूरी
अब बढ़ा दे अपना मान
एक बिनती......
धोखाधड़ी तू छोड़ दे
घूसखोरी को छोड़ दे
जिंदगी को नया मोड़ दे
क्यों बन रहा तू बेईमान?
एक बिनती......
खेत खलियानों को महका दे
चारो तरफ हरियाली ला दे
महकते फूलों से घर आगन सजा दे
क्यों खो रहा तू अपना मान?
एक बिनती......
तारे सारे तोड़ दे
हवा का रुख तू मोड़ दे
गलती करना छोड़ दे
अब तो बन जा शक्तिमान
एक बिनती......
कांटों में चलना सीख ले
बिन हवा के उड़ना सीख ले
राह को चुनना सीख ले
अब कर दे तू सब कुछ आसान
एक बिनती......॥
10. एक मजहब
अब तो कोई मजहब ऐसा भी चलाया जाये….
कोई विरोधियों के मन में भी तो देश के प्रति सम्मान जगाये….
हर देश विरोधी को देश के प्रति प्यार सिखाये….
बस अब तो हाल ये है मेरे वतन का कि….
कही से तो मोदी का विरोध आ जाये...
जो लगा है देश के लिये देश बचाने को...
जो मिट चुकी थी साख वो साख बचाने को...
जो हो चुकी थी बन्जर...
उसको हरा बनाने को...
क्या ले जायेगा…. किसके लिये ले जायेगा...
कोई तो बताये, विरोध करने वालों को...
काश जन जन के मन में कोई ऐसा भाव आये….
अब तो कोई मजहब ऐसा भी चलाया जाये….
निरन्तर देश सेवा में जो तत्पर है...
जन जन कि सेवा में जो तत्पर है...
देश को जो दिया है नया मुकाम….
विश्व में दी है जिसने देश को नई पहचान...
काश उसके अभियान में
खुद को भी मिलाया जाये…...
अब तो कोई मजहब ऐसा भी चलाया जाये.......
11. याद सब है
याद तो वो सब है
जब पटेल बहुमत होते हुए भी
अल्पमत हो गए थे
याद वो भी है
जब सिक्ख आंदोलन किये गए थे
वो सब भी याद है
जब देश के टुकड़े कर दिए गए थे
जो करते रहे अंग्रेजों की गुलामी
वही बाप और चाचा बने हुए थे
एक गोली क्या चला दी गोडसे ने
वो देशद्रोही बने हुए थे
खाई थी जिसने गोलियां
जो अल्पायु में ही शहीद हुए थे
शायद कोई सपने देखे थे उन्होंने भी
वो सारे कुचल दिए गए थे
चीन जो हुआ आजाद १९४८ में
वो आज विश्वशक्ति बना हुआ है
हम जो पहले ही आजाद थे
आज भी गुलाम बने हुए थे
आया एक (मोदी) निकल के
जो अतीत के कारनामों को उजागर कर रहे थे
नहीं मिल रहा दो नंबर का जिन्हें
वो बिन पानी की मछली तड़फ रहे थे
याद सब है..........
याद सब है..........
12. धरती और आसमान
धरती और आसमान का प्यार है महान
नहीं कर रहे ये इसको बयान
दोनों जानते हैं यह बात
दोनों हैं एक दूजे के साथ
आसमां सोचता है जमीं कुछ कहे
धरती सोचती है आसमां कुछ कहे
पर ये नहीं स्पष्ट नहीं कह पाते
तब ये अपने दूत भेज जाते
आसमां भेजता है-
कभी बारिश की बूंदें, कभी बादलों का झरोखा
कभी सूरज की किरण, कभी इंद्रधनुष का तोहफा
कभी चाँद की रोशनी, कभी बिजली की चमचमाहट
कभी गिरते उल्का, कभी बादलों की गड़गड़ाहट
पर भोली धरती ये नहीं समझ पाती
वह मन ही मन सोचती जाती
मेरे पास कभी तो आसमां आएगा
मुझसे वो दिल की बात कह जायेगा
पर आसमां नहीं आया
न ही कुछ कह पाया
अब धरती सोचती है मैं खुद ही कुछ कह पाऊं
पहले सन्देश भेजूं पर कैसे भिजवाऊं
जीव, जन, पौधे हैं सब संतान मेरे
इन्हीं से ये काम करवाऊं
एक एक करके सब काम करने लगे
बात धरती की वो बताने लगे
सबसे पहले चिड़ियों ने मधुर गाना गाया
मगर आसमां ये नहीं समझ पाया
अब खेत खलियान भी हरी चादर बिछाने लगे
प्यार धरती का धरती का आसमां को बताने लगे
पुष्प भी पत्तियों से झांकने लगे
पंखुड़ियां अपनी वो फैलाने लगे
भौरों का दल भी अब मधुर सुधा बरसाने लगा
पुष्प पर वो मधुर सुधा बरसाने लगा
पानी भी भाप बन आसमां में जाने लगा
पवन भी रुख मोड़ कुछ बताने लगा
मगर आसमां को कुछ समझ नई आ रहा
वह हर पल हर घडी धरती को देखता रहा
दोनों का प्यार मन में ही रह पाया
न धरती कुछ कर पाई, न आसमां कुछ कर पाया।
13. मेरा ध्यान
कटे हुए पेड़ से मैंने कहा
किस दरिद्र ने तुमपर प्रहार किया
पर वो चुप ही रहा, उसने कुछ नहीं कहा
सभी दुःख दर्दों को उसने सहा
तभी मुझे ध्यान आया....
इसी ने हमें जीना सिखाया
सांसों को जिन्दा रखा
पानी बरसाया
खेत खलियान लहराए
गर्मी से बचाया
पर आज का दानव
इसे नहीं समझ पाया
हर अच्छे प्राणी का आज यही हाल है
दरिद्रता बढ़ रही न कही प्यार है॥
14. मैं अकेला कैसे
मैं सोचता हूँ
इस भरी भीड़ में,
अकेला हूँ मैं
तन्हा हूँ मैं
पर मेरे साथ है.......
मेरी तन्हाई, मेरा मन, मेरा जिगर
और मेरी प्रकृति का निशुल्क उपहार
धूप की किरण घूमती है मेरे चारों तरफ
मंद हवा जकड़े रहती मुझे हर पहर
चाँद की रोशनी मिलती मुझे रात भर
बादल दिखते मुझे आसमान पर
तो मैं अकेला कैसे?
चलता जब मैं राह में
बैठता पेड़ की छाव में
पेड़ की वो मस्त छाया
मेरे चारों तरफ वो प्रकृति की काया
जो जकड़े है मुझे हर पहर
तो मैं अकेला कैसे?
व याद मेरे साथ है
व हर एक लम्हा उसकी मुलाकात का
हर पल का आगाज है
जो रहता हर पल साथ मेरे
ऐसी ही कुछ याद है
तो मैं अकेला कैसे?
सिलसिला व यादों का
जो छुटपन से मेरे साथ है
व हर लम्हा, व हर पल जिसमें कुछ बात है
वही लम्हा हर पल मेरे साथ है
जब हर कोई मेरे साथ है
तो मैं अकेला कैसे?
15. पुष्प और भौंरा
भोर भंवर का भौंरा बैठा
पुष्प की पांच पंखुड़ियों में
चट से चटका गया व सब
जो कुछ था पुष्प की गलियों में
मधु सुधा मन को भाया
जब मोहन प्यारे को
चट से चाटने लगा व
पुष्प के प्याले को
प्रसन्न मन से प्रफुल्लित हो उठा
मधुर गान गुनगुनाने लगा
फर-फ़रयाये फ़टाफ़ट और
फर-फरफराने लगा
गा के गया गान नया
पाया फिर पुष्प की पांच पंखुड़ियों को
चाट से चाट गया चटपटा
पिराये पराग प्यार से
प्यार भरे उस पुष्प को
पाके प्यारे पराग को
पुष्प झूमने लगा
जाके परागनली पराग
वर्तिका से जाने लगा
देखते ही देखते एक प्यारा फल बनने लगा
भोर भंवर का भौंरा बैठा....
16. एस एम एस का खेल
मैंने भेजा था उनको दिल से पैगाम
वो दे बैठे इसको अय्याशी का नाम
इसलिए अब छोड़ दिया हमने
एस एम एस का काम
पता नहीं फिर कभी कुछ लिख बैठू
और हो जाऊं फिर बदनाम।
मेरे आँखों से जब निकले थे आंसू
वो उनपर हंस दिए
आंसू नहीं पानी बहा रहे हो तुम
बस ये कह कर चल दिए
मैंने पूछा आंसुओं से जब
क्या हो तुम?
वो भी ये सुनकर खुद ब खुद रो दिए
मैं तनहा था और आँखें थी नम
खुशियां दिख नहीं रही थी दिख रहे थे गम
तन तो संभाला नहीं जा रहा था
मन को संभाल रहे थे हम
हम फिर से बदनाम नहीं होना चाहते
इसलिए कर दिया एस एम एस का सिलसिला कम
अब मैं खुश हूँ.......
अब मैं खुश हूँ अपने जीवन की डोर के साथ
उनको भी खुश पाया था हमने
कल किसी और के साथ
अब वो मुझसे मिलते हैं तो
देखते हैं गौर के साथ
एस एम एस का सिलसिला बंद है अब
ये कहते हैं हम बड़े जोर के साथ।
17. काश
काश जिंदगी तू ऐसी होती
मैं तुझमें जीता तू मुझमें जीती
काश जिंदगी...........
जरा याद कर उन लम्हों को
जब तू डरी डरी सी रहती थी
सहमी सहमी सी रहती थी
डरी डरी सहमी सहमी सी मुझसे ये कहती थी
हर पल हर लम्हा साथ हूँ तेरे
काश अब भी तू मेरे साथ ही होती
काश जिंदगी............
अकेला तन्हा सा रहता हूँ मैं
सदमे में सा रहता हूँ मैं
न किसी से कुछ कहता हूँ मैं
आज भी वो सब याद है मुझको
जब तू मुझसे बातें करती थी
देख के हर पल तू मुझको आहें भरती थी
काश अब भी तू वही सब करती
काश जिंदगी............
आज तू दूर है मुझसे
जाने क्यों मजबूर है मुझसे
जरा याद कर उस ज़माने को
अपने व बहाने को
जब तू छोटे छोटे बहाने बनाती थी
जब तू मुझको सताती थी
काश तू आज भी मुझको सताती
काश जिंदगी.........
18. सौगात
दो लफ़्ज क्या कह दिये कि चार बातें बन गई!!
जिन्दगी जहां थी वही कि वही थम गई!
दो लफ़्ज क्या कह दिये कि चार बातें बन गई!!
दस्तूर है जिन्दगी का
एक को दो कर देना
वरना हमारी जिन्दगी तो यूं ही गुजर गई!
दो लफ़्ज क्या कह दिये कि चार बातें बन गई!!
यूं तो महफ़िल भी हमें सौगात नजर आती है
हर जिन्दगी में कुछ वारदात नजर आती है
अब तो कुछ कहना भर भी
मशक्कत बन गई!
दो लफ़्ज क्या कह दिये कि चार बातें बन गई!!
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