रोक नहीं अपने अन्तर का वेग किसी आशंका से, मन में उठें भाव जो, गीत बना कर गाता चल- "दिनकर" समुदाय-भ्रमण एक अलग दृष्टिकोण- हमारी धरत...
रोक नहीं अपने अन्तर का वेग किसी आशंका से, मन में उठें भाव जो, गीत बना कर गाता चल- "दिनकर"
समुदाय-भ्रमण एक अलग दृष्टिकोण-
हमारी धरती पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो निरंतर सोचते हुये नयी-नयी कल्पनालोक में विचरण करता रहता है| और यही सोच और कल्पना शक्ति मनुष्य को कुछ न कुछ और भी बेहतर करने की ओर अग्रसर करती है| ऐसी मनःस्थिति में व्यक्ति कुछ सृजित करने की ओर प्रेरित होता है जिस प्रकार से मैं स्वयं समुदाय – भ्रमण के दौरान एक अलग नजरिए से परिस्थितियों को महसूस कर पाया| बच्चों के बीच जाकर उनके चश्मे से उनके अनुभवों को देखना एक अलग ही अनुभव रहता है| जिसमें एक घोर निराशा भरे माहौल में भी बच्चे कुछ बेहतर सृजित करने की ओर अग्रसर हो रहे है| और कही न कही बच्चों में यह सृजनशीलता थोड़े से स्वतंत्र माहौल में फूल की भांति खिलकर अपनी सुगंध चारो ओर फैलाती दिखाई पड़ती है| हमारे समाज में भिन्न-भिन्न प्रकार के समुदाय होते हैं और इस समुदायों में रहने वाले लोगों की रहन-सहन और संस्कृति भी अलग-अलग होती है जिसमें उनकी आर्थिक स्थिति का उनकी मनःस्थितियों पर भी असर होता है| जो अपने पारंपरिक क्रियाकलापों और अनुभवों से निरंतर आगे की ओर अग्रसर होते रहते हैं| समुदाय के बीच जाना अपने आप में एक अलग एहसास लिए हुए होता है जिसमें बच्चों और उनके पालकों से मिलना, उनके अनुभव और उनके संघर्ष को सुनना और फिर अपने अनुभवों से उसे जोड़कर देखने का प्रयास करना भी एक अलग अनुभव होता है| कहना न होगा कि आज के वर्तमान परिदृश्य में अधिकांश समुदाय के लोग शिक्षा प्राप्ति के प्रति सजग और सचेत दिखायी दे रहे हैं पर फिर भी हम सभी को मिलकर बचे – खुचे कसर को पूरा करने की जरूरत है | आज के वैश्विक दौर में जब हम यथार्थ रूप से इन महत्वपूर्ण सवालों से टकराते है तो पता चलता है कि नहीं अभी तो हमें अथक परिश्रम करने की जरूरत है |
समुदाय-भ्रमण का मुख्य उद्देश्य यह रहा कि हम चिल्ड्रेन कैंप के आयोजन में बच्चों की अधिक से अधिक उपस्थिति सुनिश्चित कर पाए| जिसमें हम छ: दिवसीय चिल्ड्रन कैंप का आयोजन करने की योजना बनाकर समुदाय-भ्रमण हेतु निकलते हैं और इसी समुदाय-भ्रमण के मेरे कुछ अनुभव है जिसमें एक अलग नजरिए से विषय को समझने का प्रयास किया गया है| जो की उनके आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर समझा गया, कि कैसे हमारी आर्थिक स्थिति का हमारे मनःस्थितियों पर भी प्रभाव पड़ता है| बात यह है कि इस समुदाय-भ्रमण में मुझे तीन स्तर (आर्थिक) के लोगों से मिलने और रूबरू होने का मौका मिला| जिसमें पहला वर्ग वह था जो बिल्कुल ही निम्न वर्ग से था| जो हर रोज कठिन परिश्रम करके अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं| उनके जीवन में मानसिक तौर पर हमेशा एक संघर्ष और द्वंद बना रहता है जिससे वह हर दिन, हर सुबह जूझते रहते हैं जिनसे बात करते हुए मुझे इन अनुभवों की अनुभूति भी हुई| बात यह थी कि जब मैं उनके घर की ओर से गुजर रहा था तो कुछ बच्चे इधर-उधर आसपास नालियों और गटर के पास खेल रहे थे। तभी मैं उनसे चिल्ड्रेन कैंप के संदर्भ में बात करने की कोशिश करता हूं और उसी बीच बगल में बैठे एक बहुत ही बुजुर्ग व्यक्ति ने मुझे आवाज दिया, जिन्हे देखकर यह साफ दिखाई पड़ रहा था कि उनकी तबीयत कुछ ठीक नही थी और उन्हे बहुत ख़ासी भी आ रही थी| उनके पास जाकर उनकी बातों से मुझे सर्वप्रथम यह एहसास हुआ कि वह मन ही मन कुछ सोच रहे थे| उनके मन में कुछ चल रहा था मुझे ऐसा लगा कि वह एक प्रकार का डर था जो वह लोग रोज लेकर जीते है| कि आखिर कोई क्यों इतनी प्यार से उनके बच्चों से बात कर रहा है हो सकता है वह उनके बच्चों के साथ कुछ बुरा या गलत ना कर दे| और यह डर रहना स्वाभाविक भी है क्योकि यही डर हम सभी को हर प्रकार के खतरों व समस्याओं के प्रति आगाह व सचेत करता है| अगर हम अपने जीवन में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हर वक्त संघर्ष करते हैं तो कहीं ना कहीं अपनों की सुरक्षा का डर निरंतर बना रहता है कि कहीं कुछ उनके साथ गलत ना हो जाए| और फिर जैसे ही मैंने उस बुजुर्ग व्यक्ति से कहा कि हम स्कूल के पास पार्क में बच्चों के साथ चिल्ड्रेन कैंप करने वाले हैं| यह सुनते ही एक झटके में वह बुजुर्ग व्यक्ति सहज महसूस करने लगे| जिसमें मुझे यही देखने को मिला कि यह पूरा पल दो अलग-अलग मन:स्थितियों को लिए हुए था पहला वह जो उनसे बात करने से पहले की मनः स्थिति और दूसरा उनसे बात करने के बाद की स्थिति| जिसमें एक ही पल में उस व्यक्ति की सारी शंकाएं चकनाचूर हो जाती है|
दूसरा वर्ग वह था जो मध्यम परिवार से जुड़ा हुआ था| उन सदस्यों से बात करते हुए कुछ अनुभव ऐसे रहे जो मेरे स्वयं के पारिवारिक अनुभव से जुड़ते हुए दिखाई पड़ रहे थे| जैसे मैंने एक बच्चे के घर के बाहर गली में जाकर बात किया, कि हम लोग कल पास के पार्क में एक चिल्ड्रेन कैंप करने वाले हैं और वहां पर हम लोग कुछ पेंटिंग और कलाकारी करेंगे और फिल्म भी देखेंगे| बच्चे तो यह सुनकर बहुत खुश होते हैं और तभी अंदर से बच्चे की मां आती है और वह चिल्ड्रन कैंप के बारे में पूछने लगती हैं| कि क्या आप लोग इसका पैसा लेंगे? यह प्रश्न सुनने में भले छोटा लगे पर यह उस मध्यम वर्ग के उन स्थितियों की ओर संकेत करता है| जो वह अपने परिवार और बच्चों के तमाम जरूरतों और ख्वाहिशों को सोच-सोच कर चिंतित रहते हैं कि आखिर अगर कुछ होने वाला है तो जरूर उसमें पैसे लगेंगे| मैं स्वयं एक मध्यम परिवार से हूं और मुझे यह भली प्रकार से अनुभव है कि मैं कैसे अपनी जरूरतों को पूरा करने में ही निरंतर संघर्षरत रहता था ख्वाहिशें तो मेरी कुछ थी ही नहीं और जो थी भी, तो उनका गला घोटना मेरे लिए कोई छोटा काम नहीं था बस मध्यम वर्ग का यही एक मनोगत समाजवाद है जो अपनी जरूरतों को लेकर हमेशा प्रयासरत रहता है|
तीसरा वर्ग वह था जो पूरी तरह संपन्न था जिनके बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूल में बस में बैठकर पढ़ने जाते हैं, उनके घरों के बाहर बड़े से गेट लगे हुए हैं, और गेट के भीतर एक कुत्ता भी बंधा हुआ है जो इन बड़े घरों की रखवाली करता है पर मैं यहां यह नहीं कहना चाहता कि यह कुछ गलत है| बल्कि मुझे यहां एक अलग दृष्टिकोण और मनःस्थिति देखते को मिलती है जो मैं आप लोगों के बीच रखना चाहता हूँ| जिस समय मैं चिल्ड्रन कैंप की बात करके समुदाय-भ्रमण से वापस आ रहा था और उसी दरमियान जोर से बारिश होने लगी और मैं उसी अट्टालिका जैसे भवन के ओट में बारिश से बचने के लिए छुप गया| और फिर वहां पर खेल रहे बच्चे मुझसे तुरंत कहते हैं आप गेट के भीतर आ जाइए नहीं तो भीग जाएंगे| यहां मुझे यह लगा कि इन बच्चों में कोई झिझक नहीं है वह पूरी तरह से स्वतंत्र भाव से अपनी बात मुझसे कह रहे थे| और फिर ऐसा होना लाजिमी भी है क्योंकि जब पेट भरा हो तो किसी तरह का डर और चिंता नहीं रहती| हो सकता है मेरे यह अनुभव आपके अनुभवों से पूरी तरह जुड़ने में सफल ना हो पाए, कुछ हद तक आप मुझसे और मेरी बातों से मतभेद भी करें पर मतभेद भी आवश्यक है बिना मतभेद के कोई भी बात आगे और गति के साथ बढ़ने में कहीं ना कहीं असमर्थ रह जाती है| कहना न होगा कि यह जो ऊपर तीन तरह के वर्ग विशेष पर बात की गई हैं वह हमारे आसपास के समाज में देखने को हर दिन मिलती है और इतनी गहराई से चीजों को देखने का हमें इतना समय भी नहीं मिल पाता कि हम एक अलग दृष्टिकोण से इन मनोगत विषयों को सोचने-समझने में आगे की ओर बढ़े| फिर भी यह मानसिक द्वंद्व हमें निरंतर अनुभव करने को मिलता रहेगा, इस पूरी बात में मैंने आर्थिक स्तर पर भिन्न-भिन्न वर्ग विशेष के अलग-अलग मन: स्थितियों पर अपनी बात रखने का प्रयास किया है और एक हद तक एक अलग नजरिए से समुदाय के हर व्यक्ति विशेष के मन:स्थिति को समझने का प्रयास किया है| मैं इसमें कितना सफल हो पाया वह एक पाठक ही बता सकता है जो अपने स्वयं के मन:स्थितियों के साथ इन अनुभवों को जोड़ने में सफल हो सके।
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परिचय- चंद्रभान सिंह मौर्य का साहित्यिक उपनाम "भानु" है| 18 सितंबर 1994 को वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में जन्मे है| वर्तमान में छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के कुरुद ब्लाक में रहते है | जबकि स्थाई पता - दीनदयालपुर जिला वाराणसी है | आपको हिन्दी, भोजपुरी, संस्कृत, अँग्रेजी, छत्तीसगढ़ी, सहित अवधी, ब्रज, खड़ी बोली, भाषा का ज्ञान है| उत्तर प्रदेश से नाता रखने वाले चंद्रभान की पूर्व शिक्षा- बी. ए.( हिन्दी प्रतिष्ठा ) और एम. ए. ( हिन्दी ) है| वर्तमान में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन (छत्तीसगढ़) में एसोसिएट के पद पर कार्यरत है| सामाजिक गतिविधि में शिक्षा में नवाचार, बाल साहित्य और छत्तीसगढ़ी स्थानीय शब्दकोश को लेकर क्रियाशील है| लेखन विधा में कविता, कहानी, नाटक, शिक्षा और सामाजिक सरोकार से जुड़े लेख और पुस्तक समीक्षा तथा स्वतंत्र समीक्षा करते है| आपकी विशेष उपलब्धि शिक्षक प्रशिक्षक और समाज सेवक के रूप में है| आपकी लेखनी का उद्देश्य साहित्य के विकास को आगे बढ़ाने के साथ - साथ शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे नवाचार व प्रयोग तथा सामाजिक समस्याओं से सभी को रूबरू कराना है| आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक- नागार्जुन, निराला, प्रेमचंद, दुष्यंत कुमार और रामधारी सिंह दिनकर है| आपके लिए प्रेरणा पुंज- नागार्जुन है| अपने राष्ट्र और हिन्दी भाषा के प्रति मेरे विचार- "हिन्दी नही है केवल एक भाषा, यह तो है बड़े सपने की भाषा, हिन्दी ही वह द्वार है जो अभिव्यक्ति के खतरो को उठाने से पीछे नही हटती||
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