तेजपाल सिंह 'तेज' के कुछ गीत -एक- तुम आओ तो बात बने तुम आओ तो बात बने । बचपन की देहर से उठकर, इठलाओ तो बात बने । तुम आओ तो बात...
तेजपाल सिंह 'तेज' के कुछ गीत
-एक-
तुम आओ तो बात बने
तुम आओ तो बात बने ।
बचपन की देहर से उठकर,
इठलाओ तो बात बने ।
तुम आओ तो बात बने ।
कौन बसा है नयनाँगन में,
दिखलाओ तो बात बने ।
तुम आओ तो बात बने ।
अधरों पर बैठी मुस्काहट,
बिखराओ तो बात बने ।
तुम आओ तो बात बने ।
मेघों-सी कजरारी अलकें,
छिटकाओ तो बात बने ।
तुम आओ तो बात बने ।
उम्र के द्वारे यौवन मदिरा,
छलकाओ तो बात बने ।
तुम आओ तो बात बने ।
कल को किसने आते देखा,
तुम आओ तो बात बने ।
तुम आओ तो बात बने ।
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-दो-
आती हो नित मेरे अँगना
आती हो नित मेरे अँगना,
प्रियतमा! तुम शशि प्रभा- सी ।
थिरक-थिरक इठलाती गाती,
सुर-संगति से अलख जगाती,
आती हो नित मेरे अँगना,
प्रियतमा! तुम प्रेम लता-सी ।
फूलों-सी मनहर तुम निर्मल,
शबनम की बूँदों सी उज्ज्वल,
आती हो नित मेरे अँगना,
प्रियतमा! तुम नव प्रभा-सी ।
झुठला जन-जीवन का अन्तर,
मुस्काती स्वछंद निरन्तर,
आती हो नित मेरे अँगना,
प्रियतमा! तुम धवल निशा-सी ।
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-तीन-
कौन आया मेरी बस्ती में
कौन आया मेरी बस्ती में,
मधुर मिलन की आस लिए ।
ऐ! सखि हँसता और हँसाता,
कुछ गाने बे-गाने गाता,
कौन आया मेरी बस्ती में,
बाहों में मधुमास लिए ।
मधुर मिलन की आस लिए ।
तोड़ अँधेरे की दीवारें,
खुशियों की उम्मीद सँवारे,
कौन आया मेरी बस्ती में,
रूप-राशि मृदु-भाष लिए ।
मधुर मिलन की आस लिए ।
करे इशारे पास बुलाए,
आशाओं के दीप् जलाए,
कौन आया मेरी बस्ती में,
प्यार भरा अन्दाज लिए ।
मधुर मिलन की आस लिए ।
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-चार-
मैं बड़भागन साजन आए
मैं बढ़भागन साजन आए ।
मन की वीणा स्वर बरसाए ।
तारों की बारात लिए
सपनों की बरसात लिए,
यौवन की सौगात लिए,
मैं बड़भागन साजन आए ।
सागर-सा ठहराव लिए,
पर्वत-सा प्रभाव लिए,
नदिया-सा प्रवाह लिए,
मैं बड़भागन साजन आए ।
बाहों में ऋतुराज लिए,
प्यार भरा अन्दाज लिए,
पावन मन छवि जाल लिए,
मैं बड़भागन साजन आए ।
*****
-पाँच-
बचपन के दिन ढलते ही गए
बचपन के दिन ढलते ही गए,
ढलते ही गए यौवन की तरह ।
अन्तर्मन के भेद लजीले,
मन-भावन और रंग-रंगीले,
खुलते ही गए खुलते ही गए,
खुलते ही गए घावों की तरह ।
प्यार भरे अरमान सजीले,
आशाओं के दीप नशीले,
बुझते ही गए बुझते ही गए,
बुझते ही गए सँसों की तरह ।
दहकी-दहकी-सी हर साँस,
महकी-महकी-सी हर साँझ,
बढ़ती ही गई बढ़ती ही गई,
बढ़ती ही गई यादों की तरह ।
*****
-छह-
दिल दरिया मन आवारा है
दिल दरिया मन आवारा है।
कातिक की उजियारी रातें,
बैठ अटारी प्रेम लुटातीं,
फागुन-सी रंगीली रातें
हृदय में उन्माद जगातीं,
धरती-धरती मधुर-मधुर पर,
आलम-आलम आवारा है।
दिल दरिया मन आवारा है।
पीपल की फुनगी पर बैठी,
गौरैया ने नीड़ बुना है,
पत्ती-पत्ती झूम रही है
बूटा-बूटा रँग घना है।
बस्ती-बस्ती आग पगी है
सावन-सावन आवारा है।
दिल दरिया मन आवारा है।
*****
-सात-
यहाँ सब कुछ बिका दुकानों में
यहाँ सब कुछ बिका दुकानों में,
बस! रुपया पैसा आनों में ।
संगीत थिरकते झरनों का,
और अक्स रुहानी किरणों का,
इधर बिका कुछ उधर बिका
उन्माद थिरकते हिरनों का ।
बस! रुपया पैसा आनों में ।
पुरकैफ़ जवानी की मस्ती,
और सावन-भादों की हस्ती,
बेबात बिकी बेमोल बिकी,
हाँ, हंस विहंगों की बस्ती ।
बस! रुपया पैसा आनों में ।
शायर के फ़न का रंग भी,
संगीतकार की सरगम भी,
आई बिकने चौराहों पर,
कानन देवी की छम-छम भी ।
बस! रुपया पैसा आनों में ।
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-आठ-
मेरा मन मन्दिर सूना है
मेरा मन मन्दिर सूना है ।
मौसम की बाहों में साँझ,
देखो, रही बाँझ की बाँझ,
किससे कहूँ दर्द दूना है ।
मेरा मन मन्दिर सूना है ।
पी को प्रीत की रीत न आई,
बेदर्दी ने सुधि बिसराई,
विरहानल ने तन भूना है ।
मेरा मन मन्दिर सूना है ।
होने चली सजन अब रात,
सोची है तूने क्या बात,
आ भी जा यौवन झूमा है ।
मेरा मन मन्दिर सूना है ।
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-नौ-
आई सजन साँझ की बेला
आई सजन साँझ की बेला ।
बिजुरी चमके शोर मचाए,
सावन आया तुम नहीं आए,
धड़के मेरा जिया अकेला ।
आई सजन साँझ की बेला ।
मस्ती में अम्बर झूमा है,
मेरा मन-मन्दिर सूना है,
है प्यार भी एक झमेला,
आई सजन साँझ की बेला ।
सोई पर नींद कहाँ आई,
ना तेरी याद भुला पाई,
तुझ बिन सूना जीवन मेला,
आई सजन साँझ की बेला ।
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-दस-
ये कैसी बस्ती है
ये कैसी बस्ती है ?
ना घर ना आँगन है,
अँखियों में सावन है,
चौतरफा पतझर है,फागुन ना मस्ती है ।
ये कैसी बस्ती है ?
हर्षाते मरघट हैं,
वीराने पनघट हैं,
चौपालें सूनी हैं, तन्हाई डसती है ।
ये कैसी बस्ती है ?
मुर्झाए चेहरे हैं,
होठों पर पहरे हैं,
पगलाती धनिया है, रोती ना हँसती है ।
ये कैसी बस्ती है ?
खेती ना क्यारी है,
भूखी हरप्यारी है,
धनपत के पाँवों में, अम्बर ना धरती है ।
ये कैसी बस्ती है ?
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तेजपाल सिंह तेज (जन्म 1949) की गजल, कविता, और विचार की कई किताबें प्रकाशित हैं- दृष्टिकोण, ट्रैफिक जाम है, गुजरा हूँ जिधर से, हादसों के दौर में व तूफाँ की ज़द में ( पाँच गजल संग्रह), बेताल दृष्टि, पुश्तैनी पीड़ा आदि (कविता संग्रह), रुन-झुन, खेल-खेल में आदि ( बालगीत), कहाँ गई वो दिल्ली वाली ( शब्द चित्र), पाँच निबन्ध संग्रह और अन्य। तेजपाल सिंह साप्ताहिक पत्र ग्रीन सत्ता के साहित्य संपादक और चर्चित पत्रिका अपेक्षा के उपसंपादक और अधिकार दर्पण नामक त्रैमासिक के संपादक रहे हैं। स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर इन दिनों आप स्वतंत्र लेखन में रत हैं। आपको हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार ( 1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से सम्मानित किया जा चुका है।
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