काव्य श्री सीरीज- जिस प्रकार लोगों के पास लक्ष्मी या श्री धन दौलत के रूप में होती है उसी प्रकार हम कवियों के पास हमारी कविताएं किसी...
काव्य श्री सीरीज-
जिस प्रकार लोगों के पास लक्ष्मी या श्री धन दौलत के रूप में होती है उसी प्रकार हम कवियों के पास हमारी कविताएं किसी धन दौलत से कम नहीं। काव्य के रूप में जो हमारे पास अनमोल खजाना है, वह है काव्य श्री। जिसे हम जितना लुटाते हैं, वह उतना ही ज्यादा बढ़ता जाता है।
कविताएं
1. कवि और कविता
कवि देह है तो उसके प्रान है, कविता।
कवियों के सपनों की जान है, कविता।
भोर की पहली किरण सा कवि,
तो उसका उजाला है, कविता,
मस्त मतवाला मयनशीं कवि,
उसकी मधुशाला है कविता।
कवि धरा गगन सा तो,
दोनों के मिलन का स्थान है, कविता।
चंचल चपल हिरन सा कवि,
कविता उसकी कस्तूरी है,
एक दूसरे के बिना दोनों
की जिंदगी अधूरी है।
कवि परिंदा है तो उसके,
परों की उड़ान है, कविता।
कल कल करती ध्वनि है कविता,
सरिता बन गया कवि,
शाखाएं हैं कविता जिसकी,
जड़ बन गया कवि।
गहन सागर सा कवि, उसके,
मन की लहरों की उफान है, कविता।
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2. बड़ी बात..........
सहज और सरल रास्ते पर चल कर तो,
सभी मंजिल को पा सकते हैं।
बड़ी बात तो तब होगी.......
जब कांटों भरे कठिन मार्ग पर चल कर,
अपनी मंजिल को पा ले कोई।
प्यार मोहब्बत के नगमें तो इस दुनिया में,
गुनगुना लेते हैं सब आसानी से।
बड़ी बात तो तब होगी..........
जब अपने गीत राग से इस दुनिया में,
प्रेम का उजाला फैला दें कोई।
सूरज की किरणें तो हर रोज आकर जग के,
अंधियारे को मिटा देती हैं।
बड़ी बात तो तब होगी...........
जब भीतर के अंधेरे को मिटाने के लिए,
मन में भी एक दिया जला लें कोई।
बनी बनाई किस्मत पे तो इतराते हैं सब,
पा के खजाना खुश हो जाते हैं सब।
बड़ी बात तो तब होगी................
जब अपने ही हाथों से खुद अपनी,
तकदीर बना लें कोई।
सात रंग के मधुर सपने तो सब को भाते हैं,
जीवन की रंगीनियों में खो जाते हैं।
बड़ी बात तो तब होगी.......................
जीवन के उस काले रंग को भी,
हंस के गले लगा ले कोई।
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3. कांटों के बीच
काँटों के बीच जैसे गुलाब, वह इंसान बन जाना चाहती हूँ|
वीरों के दिलों में है जो , वह ईमान बन जाना चाहती हूँ|
जान भी देनी पड़े गर कभी तो हिचकिचाहट न हो,
धड़कते हुये हर दिल में, यही अरमान बन जाना चाहती हूँ|
जिन्दगी में साँसों का हिसाब रहे तो क्या बात है,
जीने का मजा बढ़ा दे जो, उस मौत की कदरदान बन जाना चाहती हूँ|
नफरत न बसे कभी भी मेरे इस दिल में,
गिले शिकवे भुला दे जो उस मोहब्बत का फरमान बन जाना चाहती हूँ|
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4. मैं गीत हूं।
मैं गीत हूं, शब्दों में ढल कर जीवन पाता हूं।
मैं अनमोल श्री हूं उनकी, जिनकी कल्पना से रच जाता हूं।
कागज के खेत पर, कलम का हल चलाकर, शब्दों के बीज उगाते हैं।
मैं उनकी अनमोल निधि हूं, जो मुझको इतने चाव से बनाते हैं।
बह जाती है जब मुझमें मधुर संगीत की धारा,
बेसुध हो कर उसके सुरों में रम जाता हूं।
विशाल पर्वतों का जब मुझसे जिक्र होता है, शान मेरी बढ़ जाती है।
नदियों की लहरों के आते ही मेरी भी चाल बहक जाती है।
छिड़ती है जब मुझमें बात फूलों की, तो उनकी खुशबू से खुद भी महक जाता हूं।
आंसुओं की झड़ी बन कभी, रोता हूं किसी कोने में जाकर,
कभी हंसी बन कर किसी के होंठों से झर जाता हूं।
जिंदगी के हर रंग को अपनी तरह से दर्शाता हूं, जब मौत आती है तो खामोश अफसाना बन जाता हूं।
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5. मन की व्यथा
मेरे मन की व्यथा, क्या बताऊं सखियों तुम्हें।
मत बहाओ नीर, कितना समझाऊं अंखियों तुम्हें।
हमें तो हमारी आंखों में कैद ख्वाबों का हिसाब चाहिए।
हम भी पिरोना चाहते हैं, अरमानों की लड़ियों तुम्हें।
इक शब्दों के हमले से क्या क्या न बिखर जाता है।
हम हैं जो खामोशी से जोड़ कर रखते हैं रिश्तों की कड़ियों तुम्हें।
दोष तो उन नजरों का है जो पल में बहक जाती हैं।
अपनी इतनी सुंदरता पर क्यों न हो नाज परियों तुम्हें।
उसमें मुझमें फर्क क्या जो उसके जैसा रुप बनाऊं मैं भी।
वो बोए कांटे मेरी राहों में, मैं दूंगी उसे कलियों तुम्हें।
हां मैंने आसमां को भी झुकते देखा है ज़मीं के लिए।
मेरी हौसलों की उड़ान से कौन बचाएगा अब मंजिलों तुम्हें।
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6. बेहतर समाज
बड़ा सोचना अच्छी बात है |
अच्छा होगा धैर्य साथ है |
स्वतंत्र सोच का हो विकास |
औरतों को मिले पूरा सम्मान |
हो करूणामयी समाज की स्थापना |
भूत को छोड़कर, भविष्य की योजना |
दृढ़ इच्छाशक्ति और हो ईमानदारी |
पर एकरूपता लाना है बहुत जरूरी |
बेहतर पढ़ाई और स्वच्छता का हो ध्यान |
नियोजन से करें धर्म जाति का मान |
दया व परोपकारी की ही भावना न हो |
रोजगार के रूप में काम कोई बड़ा हो |
समाज की जरूरत को महसूस करना है |
मिलजुल कर सबको दुनिया बदलना है |
छोटे बदलाव हैं बड़े काम के |
लक्ष्यों को तय कर लगें काम पे |
परिवर्तन तो समाज का नियम है |
चाल में चाल मिलाना अपना करम है |
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7. ये जो तुम्हारा शहर है।
ये जो तुम्हारा शहर है, दोस्तों,
वो कभी मेरा भी था।
मेरी विदाई कर दी गई और,
मुझे पराया बना दिया गया।
अब कभी यहां आती हूं
तो मेहमान बन कर।
और हर बार मेरा दिल
मुझसे ये सवाल करता है।
क्यों आती हो यहां पर,
क्या रखा है यहां पर तुम्हारा।
लब तो खामोश रहते हैं,
पर भीगी पलकें ज़वाब देती हैं।
मेरी बाईस वर्ष की जिंदगी की दौलत रखी है।
बिना कुछ किए ही मिली वो शोहरत रखी है।
मेरी सुनहरी जिंदगी की सुनहरी यादें रखी है।
कभी न भूलने वाली अनमोल मुलाकातें रखीं हैं।
मेरी नानी और दादी के किस्से रखें हैं।
मेरी आत्मा के कुछ हिस्से रखें हैं।
इस घर की दीवारों से मेरा पुराना नाता है।
मेरे दिल का एक टुकड़ा हर बार यहीं छूट जाता है।
मेरी मां का ममता भरा आंचल रखा है।
थाम के बड़े हुए जिसे पिता का वो दामन रखा है।
मेरे भाई की सूनी कलाई रखी है।
बहनों से हुई बचपन की लड़ाई रखी है।
मेरे स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई रखी है।
मेरे बचपन के खेल और नादानियां रखी है।
और मेरी आधी अधूरी जवानी रखी है।
पहले प्यार की प्यारी सी कहानी रखी है।
दोस्तों के साथ गुजरा हुआ वक्त रखा है।
गलियों और चौराहों से गुजरना रखा है।
बाजारों में घूमने का दीवानापन रखा है।
मेरे अपनों का अपनापन रखा है।
मेरा मुंह का स्वाद रखा है जो यहां नहीं मिला।
मेरे सच्चा लिबास रखा है जिसकी यहां कोई कद्र नहीं।
पहले सावन की अहसास वाली बरसातें रखी है।
गर्मियों की छुट्टियां और सर्दी की मस्तियां रखी है।
मेरा हंसना रोना रूठना मनाना
सब कुछ तो रखा है यहां पर।
आज भी लगता है कि मुझे कोई बुलाता है।
जिसे मैं कभी भूलना नहीं चाहती हूं।
इसलिए
इनसे मिलने चली आती हूं।
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8. प्यार की सरहद
न कम जरा सा इधर पे, न उधर पे ज्यादा।
गुलाबों की खुशबू को कौन बांट सकता है आधा आधा।
चांद सूरज और सितारे एक साथ चमकते हैं सब जगह।
प्यार का पैगाम लेकर आ ही जाती है बैरन हवा।
ज़मीं बंट गई है मगर आसमान तो एक है।
उड़ान भरते प्यार के परिंदों की कोई सरहद नहीं होती।
हुश्न पाया जाता है और आशिक भी बनते हैं।
दुनिया में इसी तरह तो प्यार के अफसाने बनते हैं।
धड़कने एक सी होती है यहां पर सबके दिलों की।
हर राह मुश्किल होती है प्यार की मंजिलों की।
बांध कर रख सकते नहीं किसी भी सीमा में।
अरे यार, प्यार बांटने की कोई हद नहीं होती।
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9. मृत्यु के बाद
मृत्यु के बाद, तुम मेरे घर आओगे शोक मनाने,
आज क्यों नहीं आ जाते दो पल साथ बिताने।
मृत्यु के बाद, तुम मुझे कांधे पर उठाओगे,
आज क्यों नहीं आ जाते थोड़ा सा प्यार जताने।
मृत्यु के बाद, तुम मेरे लिए आंसू बहाओगे,
मेरे सामने आज दो आंसू क्यों नहीं बहा लेते।
मृत्यु के बाद, तुम मेरी अच्छी बुरी याद करोगे,
आज ही सारे गिले-शिकवे क्यों नहीं मिटा देते।
मृत्यु के बाद, तुम लोगों से मेरी बातें कहोगे,
तो आज ही कह दो न दिल की सारी बातें।
मृत्यु के बाद, तुम लोगों से मेरी तारीफ करोगे,
तो आज ही बोल दो न चंद लफ्ज़ मेरे सामने।
मृत्यु के बाद, तुम मेरी बरसी पे आओगे खाने,
क्यों न हम आज साथ में दो निवाले खा लें।
मृत्यु के बाद, तुम मेरे लिखे गीत गाओगे,
क्यों न हम आज साथ में ही गुनगुना लें।
मृत्यु के बाद, तुम सब कुछ करोगे मेरे लिए,
पर मुझको तो पता भी न चल पाएगा।
आज ही पूरी कर लो न अपनी हर हसरत,
जो हर दिन हर पल मुझको याद आएगा।
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10. मैं कौन हूं।
मैं कौन हूं, मैं एक आत्मा हूं।
मैं अपने घर में रहती हूं।
मेरा घर मेरा ये शरीर है, और
मैं अपने घर के हर कोने से बहुत प्यार करती हूं।
मेरे घर के सबसे अहम हिस्से मेरे पैर हैं,
क्योंकि, वे मेरे बोझ को उठाते हैं, और
मेरी मंजिल की तरफ चलने में मेरी मदद करते हैं।
इसलिए, मैं इनकी खूब सेवा करना चाहती हूं,
ताकि ये कभी न थके, और मुझे,
सफलता की सबसे ऊंची चोटी तक पहुंचाएं।
मेरे ये दोनों हाथ जिनकी मदद के बिना,
मैं कुछ भी नहीं कर सकती,
ये सिर्फ मेरा ही नहीं बल्कि परिवार के,
सभी सदस्यों के पेट भरने का इंतजाम करते हैं।
जो दुनिया में सबसे बड़ा पुण्य का काम है,
मैं इनसे खूब प्यार करना चाहती हूं, ताकि
ये इसी तरह हर वक्त मेरा साथ देते रहें।
मेरा पेट हर अच्छी बुरी चीज को हजम कर,
मुझे सब कुछ सहने की ताकत देता है।
साथ ही मुझे मां बना कर मां का पद देता है,
जिसका नाम दुनिया में सबसे ऊपर है।
मेरे वक्ष मेरे पुत्र को पोषण देते हैं,
ये गुण दुनिया की किसी भी शक्ति में नहीं होता,
इसलिए, मुझे अपने स्त्री होने पर,
गर्व महसूस होता है।
मेरे कान सिर्फ अपनी प्रशंसा ही नहीं बल्कि
अपनी आलोचना सुनना भी पसंद करते हैं।
ताकि, मैं अपने अंदर की कमियों को सुधार सकूं।
मेरी खूबसूरत आंखें मुझे ये खूबसूरत दुनिया दिखाती हैं।
मेरे होंठ मुझे हंसना रोना और मेरी जीभ मुझे बोलना सिखाती है।
मेरी नाक मुझे इस बात का अहसास दिलाती है,
कि दुनिया में सबसे जो सुगंधित चीज है वो मैं हूं।
ये सब मिलकर मेरे एक खूबसूरत चेहरे का निर्माण करते हैं।
जिस पर कोई भी कवि कविता किये बिना नहीं रह पाता।
मेरे बालों ने अपनी तुलना घटाओं से करवा के मुझे आसमान में जगह दिलाई है।
मेरा ये दिमाग जिसने मुझे शिक्षित, संस्कारी और चरित्रवान बनाया।
जिसके बिना मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है।
इन सबको मैं इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूं।
सबसे प्यारा कोना मेरे घर का मेरा दिल है।
जो मेरी जान है, मेरी जिंदगी है।
जिसके बिना मैं कुछ भी नहीं,
मैं अपने घर के इस कोने में सबके लिए,
प्यार और अच्छी भावनाएं रखना चाहती हूं।
ताकि, मुझे हर रिश्ते को निभाये रखने
की मजबूती मिलती रहे और
खुदा से दुआ करती हूं कि भूले से भी
मेरे दिल में गंदे विचारों रूपी गंदगी कभी न फैले।
क्योंकि ऊपरी शरीर की गंदगी तो सबको दिखाई दे जाती है।
मगर दिल की गंदगी किसी को भी दिखाई नहीं देती।
जो खुद को तकलीफ़ देने भर के लिए बहुत है।
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सुशी सक्सेना इंदौर
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