मेरा शहर अमृतसर डॉ. मधु संधु पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर, पंजाब. अमृतसर भारत के उत्तर में ...
मेरा शहर अमृतसर
डॉ. मधु संधु
पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग,
गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर, पंजाब.
अमृतसर भारत के उत्तर में स्थित पंजाब राज्य का एक महत्वपूर्ण, ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध शहर है। विश्व में इसकी ख्याति एक सांस्कृतिक, पवित्र धर्मस्थल एवं महातीर्थ के रूप में है। अपनी अलग जीवन शैली इसकी पहचान है। गुरु अमरदास जी के निर्देशन में 1574 में गुरु रामदास जी ने तुंग गाँव के जमींदारों से 700 रुपये में ज़मीन खरीदकर इसकी स्थापना की थी। तब इसका नाम रामदासपुर या चक रामदास था। एक बाज़ार का नाम गुरु बाज़ार भी रखा गया, जिसमें गुरु का महल भी है। यह शहर योजनाबद्ध ढंग से बनाया और बसाया गया था। यहाँ आभूषण, बर्तन, बांस, पापड़-वड़ियाँ, मुनियारां- सब के अलग-अलग बाज़ार हैं। नमक मंडी, आटा मंडी, घी मंडी, सब्जी मंडी, बाँसा वाला बाज़ार, पापड़ा वाला बाज़ार, मजीठ मंडी, स्वांक मंडी जैसे नाम भी यहाँ मिलते हैं। यहाँ अनेक सरोवर हैं- स्वर्ण मंदिर, दुर्ग्याना मंदिर, संतोख सर, रामतलाई, रामतीर्थ सरोवर, शहीदा साहब का सरोवर। ,
दक्षिण भाग बारह दरवाजों वाला पुराना शहर है। हाल गेट/ गांधी गेट, हाथी गेट, लोहगढ़ गेट, लाहोरी गेट, खज़ाना गेट, सुलतानविंड गेट, महा सिंघ गेट, चाटीविंड, गेट हकीमा, भगतावाला, राम बाग, दोबुर्जी/ घी मंडी, शेरां वाला गेट आदि। इन दरवाजों के साथ-साथ शहर की बाउन्ड्री वाल भी थी, जिसे महाराजा रणजीत सिंह ने सुरक्षा के मद्देनजर बनवाया था। यह दीवार आज पूर्णत: नहीं है। अनेक स्थलों के नाम के साथ कटरा लगता है जैसे- कटरा हरीसिंह, कटरा बगियाँ, कटरा आहलुवालियाँ, कटरा कन्हैया, कटरा खजाना, चिट्टा कटरा, कटरा शेर सिंह ।
शहर के दक्षिण भाग में अनेक ऐतिहासिक स्थल हैं, जबकि उत्तरी भाग अत्याधुनिक और हाई टेक सुविधाओं से सम्पन्न है। यहाँ सिक्खों का सबसे बड़ा गुरुद्वारा श्री हरमंदिर साहिब/ स्वर्ण मंदिर स्थित है। चारों ओर विशालकाय पवित्र सरोवर है। श्रद्धालुओं के लिए लंगर हर समय तैयार मिलता है। ताजमहल के बाद सबसे अधिक पर्यटक स्वर्ण मदिर के दर्शनार्थ पहुँचते हैं। कहते हैं कि मंदिर के निर्माण के दो शताब्दी बाद महाराजा रणजीत सिंह ने इस पर सोने की परत चढवाई थी ।
स्वर्ण मंदिर से दो- तीन सौ मीटर के फासले पर जालियाँवाला बाग है। 13 अप्रैल 1919 में बैसाखी के दिन जनरल डायर ने मशीनगन से 300 के लगभग निहत्थे और बेगुनाह लोगों की हत्या कर विश्व इतिहास में निर्ममता तथा सत्तांधता का रोंगटे खड़े करने वाला एक क्रूर पृष्ठ जोड़ दिया था। कुछ दूरी पर ही संतोखसर का विशालकाय सरोवर और गुरुद्वारा है।
कम्पनी गार्डेन अमृतसर का विशाल बाग है। यह अनेक छोटे बागों का समूह है। फूलों के, फलों के अनेक उपवन लहलहाते हैं। फव्वारों की क्यारियाँ मोहित करती हैं। एक भाग में क्लब भी बने हैं। बीचों-बीच महाराजा रणजीत सिंह के चित्रों, फ़र्निचर, हथियारों का एक अजायब घर/ संग्रहालय भी है। कहते हैं कि लाहौर का शालीमार पार्क भी ऐसा ही है।
1921 में स्वर्ण मंदिर की स्थापत्य शैली पर ही श्री हरसाई मल कपूर द्वारा दुर्ग्याना मन्दिर/ लक्ष्मी नारायण मंदिर/ सीतला मंदिर की स्थापना की गई, जिसका उदघाटन पंडित मदनमोहन मालवीय ने किया। यहाँ भी जलाशय की परिक्रमा में अनेक पूज्य स्थल आते हैं। परिसर में स्थित श्री हनुमान जी का मंदिर पुत्रेच्छा पूर्ति मे लिए प्रसिद्ध है। इच्छा पूर्ण होने पर दशहरे के नवरात्रों में लोग बालकों को लंगूर बनाकर हनुमान जी के प्रति श्रद्धा सुमन प्रकट करते हैं। चेत्र मास में माता के मंदिर में कच्ची लस्सी चढ़ाने वालों की मुंह अंधेरे से ही भीड़ लगनी शुरू हो जाती है।
दुर्ग्याना मन्दिर के पास ही किला गोविन्द गढ़ है। कहते हैं कि इस ऐतिहासिक सैन्य किले का निर्माण सुरक्षा के मद्देनजर 1760 ई0 में राजा गुज्जर सिंह भंगी ने करवाया था । महाराजा रणजीत सिंह के काल में (1805-1809) इसका पुनर्निर्माण किया गया। 2009 में प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के समय पंजाब सरकार ने पर्यटकों के लिए इस किले को खोलने का निर्णय लिया। धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ इसका पूर्ण रूपांतर कर दिया गया। एक विशालकाय दरवाजे के अंदर जाते ही मानों एक अलग दुनिया के द्वार खुल जाते हैं। खाने- पीने की ढेरों चीजें हैं। देखने के लिए दो शो हैं- एक खुले में और एक थिएटर में। भांगड़ा है, गिद्दा है, गतका है, तोपें हैं, तोशाखाना है, म्यूज़ियम है, पुरानी जेल है, खरीददारी का आयोजन है।
शहर की रेलमपेल से दूर जालंधर- अमृतसर हाइवे पर विरासत हवेली का अद्वितीय क्लासिक रेस्तराँ है। शहर की पुरातन समृद्ध संस्कृति की झलक यहाँ की दीवारों, दरवाजों, छतों, दुकानों, सजावट, रख-रखाव, प्रतिमाओं, खाद्य सामाग्री, भोजनालय, द्वारपाल, सेवादार- सब में पुनर्जीवित हो रही है।
12 एकड़ में फैला ‘साडा पिंड’ नाम से एक पंजाबी ग्राम रिज़ॉर्ट अमृतसर से कोई आठ और हवाई अड्डे से सात किलोमीटर की दूरी पर है। गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के पिछले दरवाजे से यह थोड़ी सी दूरी पर ही है। लोहार की, कुम्हार की, बढ़ई की, दूकाने हैं, जादूगर के करतब हैं, पुराने जमाने के घर और रहन-सहन है, पंजाबी खाना है। लस्सी, मक्की की रोटी, सरसों का साग, बच्चों के पसंद की वस्तुएं, खेल-खिलौने – यानी हर वह आयोजन है- जो पर्यटकों को पुरातन जीवन से जोड़ता भी है और उनका मनोरंजन भी करता है।
माना गया है कि अमृतसर की इसी पावन धरती पर महर्षि बाल्मीकी का आश्रम था। यहीं पर उन्होंने रामायण की रचना की थी। यहीं पर सीता माता ने लव- कुश को जन्म दिया था। यहीं पर लव-कुश ने श्री राम के अश्ममेघ यज्ञ का घोडा पकड़ा था।
अमृतसर सीमावर्ती शहर है। वाघा- अटारी बार्डर यहाँ से 30-32 और लाहौर से कोई 22 किलोमीटर की दूरी पर है। 1959 से यहाँ बीटिंग रिट्रीट समारोह होता है। इसमें नित्य शाम सूर्यास्त से पहले दोनों देशों के झंडों को सम्मानपूर्वक उतारा जाता है और औपचारिक रूप से सीमा को बंद किया जाता है। दोनों देशों के सैनिक मैत्री भाव से एक- दूसरे से हाथ मिलाते हैं। राष्ट्र गान होता है। देश भक्ति के गीत गूँजते हैं। नित्य बहुत बड़ी संख्या में स्थानीय लोग और पर्यटक इस समारोह को देखने के लिए पहुँचते हैं।
अमृतसर हवाई अड्डे का नाम पहले राजा सांसी हवाई अड्डा था। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के समय में इसका नाम श्री गुरु रामदास जी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कर दिया गया।
अमृतसर खाने-पीने के शौकीन लोगों का शहर है। केसर के ढाबे में जाओ या भरावां के ढाबे में- अपनी बारी के लिए हमेशा आपको प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी। घी से सने पराँठे, पेड़ों वाली लस्सी, मक्खन वाले कुलचे, ब्रजवासी चाट- किसी का कोई मुक़ाबला नहीं। आप देश के किसी और शहर में जाओ या विदेश में- कहीं न कहीं आपको अमृतसरी लस्सी, अमृतसरी भोजनालय का बोर्ड पढ़ने को मिल ही जाएगा। यहाँ सैंकड़ों होटल हैं। बड़े बड़े माल हैं। ट्रिलियम माल तो बहुत कुछ दुबई के माल जैसा है। फैशन में इस शहर की तुलना फ़्रांस के पेरिस से की जाती है।
अमृतसर के हिन्दी साहित्यकारों ने इस शहर की हर सांस को अपने साहित्य में सुरक्षित बनाए रखा है। इस शहर के इतिहास को अपनी जीवंत लेखनी से अमर बना दिया है। जब पाठक चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ पढ़ते है तो द्वितीय विश्वयुद्ध की इस प्रेम कहानी में समाये मानवता, समाज, संस्कृति के चित्र उन्हें सम्मोहित कर लेते हैं। उपेन्द्त्नाथ अश्क की ‘चारा काटने की मशीन’, ‘कांकड़ा का तेली’ अविस्मरणीय रचनाएँ हैं। सीमावर्ती इस शहर ने विभाजन को झेला है। भीष्म साहनी की ‘अमृतसर आ गया है’, हो अथवा मोहन राकेश की ‘परमात्मा का कुत्ता’, ‘मलबे का मालिक’, ‘क्लेम’, ‘ कम्बल’ विसंगतियों का मारा लहूलुहान व्यक्ति सर्वत्र पछाड़ें खा रहा है।
गामा पहलवान यहीं का था। 1988 में अमृतसर के हाकी खिलाड़ी बलविंदर सिंह ने कीनिया में ओलंपिक मैच में गोल्ड मैडल जीतकर शहर का नाम ऊंचा कर दिया। हॉकी खिलाड़ी जरमनप्रीत सिंह, रमनदीप सिंह अमृतसर से है। यहाँ की गांधी ग्राउंड पर अंतर्राष्ट्रीय मैच हुआ करते थे।
हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायक, शहंशाह-ए-तरन्नुम, 1940 से 1980 तक 26000 गीतादि गाने वाले मोहम्मद रफी अमृतसर से हैं। अमृतसर से 32 किलोमीटर दूर कोटली सुल्तानसिंह गाँव में इस अमर संगीतज्ञ का जन्म हुआ था।
इस शहर ने देश को डॉ. मनमोहन सिंह जैसा वित्त विशेषज्ञ और प्रधान मंत्री दिया है, तो देश का नम्बर वन हास्य अभिनेता कपिल शर्मा भी इसी शहर की देन है। अजय देवगन के पिता एक्शन डाइरेक्टर वीरू देवगन इसी शहर से हैं। सुपर स्टार राजेश खन्ना का जन्म भी यहीं का है। एक्शन हीरो अक्षय कुमार के पास आज भले ही कैनेडा की नागरिकता हो, लेकिन उनका जन्म स्थल अमृतसर ही है। कलात्मक और अर्थपूर्ण फिल्मों में अपने सशक्त अभिनय से पहचान बनाने वाली दीप्ति नवल भी अमृतसर से हैं।
इस शहर के पास एक सम्पन्न अतीत है और प्रगतिशील वर्तमान। शैक्षिक ऊँचाइयाँ हैं और नैतिक संवेदनाएं। वैश्विक प्रगति के खुले चिंतन कपाट हैं और धार्मिक आस्थाएं। यह पंजाब का मान है, पंजाबी संस्कृति की पहचान है।
madhu_sd19@yahoo.co.in
सुन्दर लेखा
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