ख्याति प्राप्त शायर ज़नाब अनुराग मिश्र 'ग़ैर' के सद्य प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह 'खेत के पाँव' में महबूबा महबूब की शाइरी भी है तो आ...
ख्याति प्राप्त शायर ज़नाब अनुराग मिश्र 'ग़ैर' के सद्य प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह 'खेत के पाँव' में महबूबा महबूब की शाइरी भी है तो आज की विद्रूपता का असल चेहरा भी है।इश्क से मानवता तक की ग़ज़लों का संग्रह न केवल पठनीय है बल्कि संग्रहनीय भी है।
पुस्तक की समीक्षा से पूर्व ग़ज़ल क्या है इस पर चर्चा कर लेना समीचीन है।
हिन्दी काव्य शास्त्र का आधार पिंगल या छन्दशास्त्र है लेकिन ग़ज़ल क्योंकि सबसे पहले फ़ारसी में कही गयी इसलिये इसके छ्न्द शास्त्र को इल्मे-अरूज़ कहते है।
एक बात स्पष्ट करना आवश्यक है कि बिना बहर के ग़ज़ल आज़ाद नज़्म होती है ग़ज़ल कतई नहीं। और आज़ाद नज़्म का काव्य में कोई वजूद नहीं है। लेकिन शायर अनुराग मिश्र की गज़लें बहर में हैं।
वर्णों का समूह रुक्न और रुक्न का बहुवचन अरकान होता है। इन्हीं अरकानों के आधार पर फारसी में बहरें बनीं।
मूल रूप से आठ अरकान हैं-
फ़ा-इ-ला-तुन(2-1-2-2)
मु-त-फा-इ-लुन((1-1-2-1-2)
मस-तफ-ई-लुन((2-2-1-2)
मु-फा--ई-लुन(1-2-2-2)
मु-फा-इ-ल-तुन(1-2-1-1-2)
मफ-ऊ-ला-त(2-2-2-1)
फा-इ-लुन(2-1-2)
फ़ारसी में 18 बहरों में ग़ज़ल कही गयी है । श्री ग़ैर की ग़ज़ल बहर में है। ये एक सिद्धहस्त शायर की पहचान है।
वैसे गज़ल का प्रत्येक शेर स्वतंत्र होता है। यदि एक ही विषय पर लिखी गयी ग़ज़ल है तो उसे ग़ज़ल मुसल्सल कहते हैं।
ग़ज़ल के बहर के इल्म को अरूज़(छंदशास्त्र)कहते हैं और इसका इल्म रखने वाले को अरुजी(छंदशास्त्री) कहा जाता है।
इस किताब की भूमिकाओं में कई जाने माने अरुजी हैं जिनका आशीष मिला है श्री ग़ैर जी को।
ग़ज़ल में दो चीजें महत्वपूर्ण हैं मश्क(अभ्यास)और सब्र(धैर्य)। जो इसे अपनाते हैं वे बड़े शायर हो जाते हैं। ये दोनों ही चीजें श्री अनुराग मिश्र 'ग़ैर' को बड़ा शायर बनातीं हैं।
श्री ग़ैर की ग़ज़लों की अन्तर्यात्रा में जो कुछ पाया उसे इस प्रकार रेखांकित करने का प्रयास किया है।
पुस्तक की पहली ग़ज़ल की पहली शेर बनी उसका शीर्षक-
धूप के फूल खिल रहे होंगे
खेत के पाँव जल रहे होंगे।
बुजुर्गों का आशीर्वाद हमेशा फलित रहा है-
बुजुर्गों की दुआओं का तो साया,
हमेशा सर पे अम्बर सा रहा होगा।
इक्यावनवीं ग़ज़ल में भी -
ये बापू की पाती है।
रखलो बेटे थाती है।
मोबाइल के इस युग में,
चिठ्ठी किसकी आती है।
सूर्य को भी औकात बताने वाले मिल ही जायेंगे।
टिमटिमाया सूर्य जुगनू की तरह,
अर्श पर जब भी घना कुहरा रहा।
माँ एक ऐसा पावन नाम जिसका हर कवि शायर वर्णन करता ही है
आँगन में इक धूप का टुकड़ा
सुनता बूढ़ी माँ का दुखड़ा।
एक नसीहत मां की-
सच की जीत हुआ करती है,
माँ यह बात कहा करती है।
न जाने गाँव कब लौटेगा बेटा,
गिने माँ उंगलियों पर साल अब तो।
एक मुस्कराहट पर तो ताजमहल भी बन जाते है-
दर्द को आसरा दीजिए,
कम से कम मुस्करा दीजिए।
सभ्यता के नाम पर कहाँ आ पहुँचे ,व्यंजना में देखिए-
पेड़ बरगद के अजाने हो गए,
यूकेलिप्टस क्या सयाने हो गए।
लोकतंत्र की विडम्बना का चित्र-
बचपन से मैं देख रहा हूँ,
दंगे में मुफ़लिस मरता है।
फूलों की किस्मत तो देखो
काँटो संग रहना पड़ता है।
शायर लिखता है-
केवल अपना ग़म लिखता हूँ,
मैं अब थोड़ा कम लिखता हूँ।
मृग मरीचिका जैसा जीवन,
फिर भी इसे सुगम लिखता हूँ।
आज रिश्ते गायब हैं, अपनापन कहाँ रह गया है-
मैं कबीर का चेला हूँ।
भीड़ में बहुत अकेला हूँ।
रात में हूँ तन्हा लेकिन,
दिन में पूरा मेला हूँ।
सत्ता जब गलत हाथों में पड़ जाये तो सोचना पड़ता है-
जब सिकन्दर महान होता है।
खौफ़ में ये जहान होता है।
कल्पना के लोक में उपमायें देता शायर-
क्षितिज में डूबने वाला है सूरज,
गगन सिंदूर फिर मलने लगा है।
ग़ज़ल में मोहब्बत की बात न हो ऐसा हो ही नहीं सकता है-
रेत पर नाम मेरा लिख के मिटा देता है।
वो फजाओं में मुहब्बत को छिपा लेता है।
दे दूँगा जान जिगर दोनों ही लेकिन,
मैं तेरी मुहब्बत को तोल रहा हूँ।
जब आये मधुमास प्रिये,
फूलों सी तू महका कर।
आसमां है बहुत बुलन्द मगर,
हुस्न के आगे सर झुकायेगा।
जमाने को अपनी खबर लग गयी है।
मुहब्बत को सबकी नजर लग गयी है।
रिश्ते सामने वाले को देखकर बदलने पड़ते है-
जब से वो ग़द्दार हो गया।
मैं भी कुछ खुद्दार होगया।
जैसे जैसे शायर आगे बढता है आध्यात्मिक हो गया है-
एक सांस का फेरा है।
लेकिन लम्बा डेरा है।
कुछ लेकर जाना है कब,
क्या तेरा , क्या मेरा है।
कवि शायर आशावादी स्वर जरूर रखता है
बात आगे न टाली जाएगी।
कोई सूरत अब निकाली जाएगी।
आयेगा सूरज नयी लेकर सहर,
देखना यह रात काली जाएगी।
सौवी ग़ज़ल का ये शेर जमीनी हकीकत को बयां करता है-
हारता जा रहा मैं हर बाजी,
कौन सकुनी सी चाल चलता है।
हो गया है खोखला बहुत मानव,
खुद की परछाईं से भी डरता है।
शायर की भाषा हिन्दी उर्दू मिश्रित है लेकिन आम जन की भाषा है कहीं भी दुरूह नहीं हुई है। यह बात उसके पक्ष में है क्योंकि अधिकतर शेरो शायरी के शौकीन पाठकों के हाथों में पहुंचकर अपना असर छोड़ेगी।
अंत में शायर को ढेर सारी शुभकामनाएं और आशाएं कि इसी प्रकार अन्य ग़ज़ल संग्रह भी माँ भारती का भंडार भरेंगे।
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समीक्ष्य कृति- खेत के पाँव(ग़ज़ल संग्रह)
ग़ज़लकार-अनुराग मिश्र 'ग़ैर'
पृष्ठ -192, मूल्य-250 रुपये
प्रकाशक- गगन स्वर बुक्स
समीक्षक- डॉ राजीव पाण्डेय
पता- 1323/भूतल,सेक्टर-2
वेबसिटी, गाजियाबाद
Email_kavidrrajeevpandey@gmail .com
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