-एक- टूट गया भ्रम सम्बन्धों का सुरभित शोभित चपल चाँद ने घर-आँगन को खूब ठगा, साँसों में उन्माद जगाकर सपनों ने दी खूब दगा, नवयुग की दे...
-एक-
टूट गया भ्रम सम्बन्धों का
सुरभित शोभित चपल चाँद ने
घर-आँगन को खूब ठगा,
साँसों में उन्माद जगाकर
सपनों ने दी खूब दगा,
नवयुग की देहर पे अविरल,
मान बढा है अनुबन्धों का।
टूट गया भ्रम सम्बन्धों का।
दूषित है अब यमुना तट भी
लौट गईं घर को गैया,
कान्हा की नीयत बदली है
भूल गईं सुत को मैया,
मानव मूल्य गिरे इस तह तक
बुरा हाल है सम्बन्धों का।
टूट गया भ्रम सम्बन्धों का।
बेसुर हुई बाँसुरी मन की
दिल टूटा , तन क्षीण हुआ,
पंख काटने वाले ही अब
उड़ने की दे रहे दुआ,
चौतरफा बाजार गर्म है,
झूठ कपट के धंधों का।
टूट गया भ्रम सम्बन्धों का।
****
-दो-
तुम आओ तो बात बने
बचपन की देहर से उठकर,
इठलाओ तो बात बने ।
तुम आओ तो बात बने ।
कौन बसा है नयनाँगन में,
दिखलाओ तो बात बने ।
तुम आओ तो बात बने ।
अधरों पर बैठी मुस्काहट,
बिखराओ तो बात बने ।
तुम आओ तो बात बने ।
मेघों-सी कजरारी अलकें,
छिटकाओ तो बात बने ।
तुम आओ तो बात बने ।
उम्र के द्वारे यौवन मदिरा,
छलकाओ तो बात बने ।
तुम आओ तो बात बने ।
कल को किसने आते देखा,
तुम आओ तो बात बने ।
तुम आओ तो बात बने ।
****
-तीन-
ऐ पथिक! ……..
ऐ पथिक! वीरान तेरा क्या करेगा ?
राह का व्यवधान तेरा क्या करेगा ?
बन्द तेरी कनखियों में रात है,
आकाश में डूबा हुआ प्रशांत है,
शक नहीं कि ज़िन्दगी का सिलसिला,
रात में सिमटी, इक सुहानी प्रातः है
विश्वास की गर्मी है तेरी श्वास में,
उद्दाम वेगों से भरा तूफान तेरा क्या करेगा ?
ऐ पथिक! वीरान तेरा क्या करेगा ?
देख मत तू रास्ते की मुश्किलें,
आशीष है^ वरदान हैं ये मुश्किलें,
प्यार के नग्में सुनाता तू चल चला चल,
दुख-दर्द का संगीत हैं ये मुश्किलें ।
दीप हैं प्रदीप्त जब तक राह में,
ये तिमिर संहार तेरा क्या करेगा ?
ऐ पथिक! वीरान तेरा क्या करेगा?
कठनाईयाँ हर साँस हैं बढ़ना सिखातीं,
हाँ, प्रेम का उत्थान का रस्ता दिखातीं,
जिन्दगी के हर कठिनतम मोड़ पर,
लक्ष्य की ज़ानिब सदा मुड़ना सिखातीं ।
आत्म-सत्ता का सदा सम्मान कर,
त्रास और संत्रास तेरा क्या करेगा ?
ऐ पथिक! वीरान तेरा क्या करेगा?
****
-चार-
कब खुलेगी नींद तेरी
भोर का सूरज उगा है,
चाँद भी कुछ कुछ जगा है,
हर गली में रतजगा है,
कब खुलेगी नींद तेरी ?
बाद मुद्दत वो मिले हैं,
फूल बगिया में खिले हैं,
प्यार के बस सिलसिले हैं,
कब खुलेगी नींद तेरी ?
बढ़ गया आगे जमाना,
छोड़ भी दे अब बहाना,
सहर ने थामा ठिकाना,
कब खुलेगी नींद तेरी ?
****
-पाँच-
मन के द्वार………
पुरवाई में गंध घुली है,
साँसों में उन्माद बहुत है,
सच जानो तुम चाँद फलक का,
अपने से अनजान बहुत है,
पोर-पोर में अगन पली है,
मन का राज तनिक खोलो ना।
मन के द्वार तनिक खोलो ना।
फुनगी-फुनगी, पत्ती-पत्ती,
आपस में कर रही ठिठोली,
सूरज के संग काली बदली,
खेल रही है आँख मिचौली,
बीत गया सो बीत गया अब,
दिल का मैल तनिक धो लो ना।
मन के द्वार तनिक खोलो ना।
कल होली है, रंग बरसेगा,
आज धरा पर नभ बरसे है,
ऐसे भीगे मौसम में भी,
मैं तरसू हूँ, तू तरसे है,
झीलों सी गहरी आँखों में,
तनिक वफ़ा का रंग घोलो ना।
मन के द्वार तनिक खोलो ना।
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- छ: -
रात गई…..
रात गई कब हुआ सवेरा ? ....
मेरा तन-मन डोल गया,
भेद हिया के खोल गया,
खुद ही खुद से पूछ रहा है,
जाने कब छँट गया अँधेरा ।
रात गई कब हुआ सवेरा ?
ममता को ममता से तोल,
कुछ-कुछ सीधा-सीधा बोल,
पैसे से ममता मत तोल,
है पल दो पल का रैन बसेरा ।
रात गई कब हुआ सवेरा ?
ना सोई ना जागी मैं,
खुद अपने से भागी मैं,
पता नहीं किस ओर चलूँ मैं,
तिमिर घिरा चहुँओर घनेरा ।
रात गई कब हुआ सवेरा ?
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- सात -
बिन तेरे…….
बिन तेरे विरहन हो निकली । .....
तूने मुझे कहा था अपना,
बेशक एक बुना था सपना,
नींद आई ना सपना आया,
फकत एक सिरहन हो निकली ।
बिन तेरे विरहन हो निकली ।
न तन बेचा न मन हारी,
न कभी जीती न कभी हारी,
मैं तेरे साँसों की मलिका,
सोचों की सौतन हो निकली ।
बिन तेरे विरहन हो निकली ।
कल की कल देखेंगे छोड़ो,
हां, कल को कल पर ही छोड़ो,
आज तो अपना है सोचो पर,
मैं क्यों कर विरहन हो निकली ।
बिन तेरे विरहन हो निकली
****
- आठ -
नींद न जाने……
नींद न जाने कब आएगी ?
सावन आया चला गया,
गरज-गरज कर हँसा गया,
थकी घटाएँ थकी पवन,
नींद न जाने कब आएगी ?
हाँ, टूटे सारे पंख निराले,
मूक हुए सब बोल निराले,
जीवन की नीरस राहों में,
नींद न जाने कब आएगी ?
सजना और संवरना कैसा,
आहों में स्वर भरना कैसा,
धूप के साये में अलबेली,
नींद न जाने कब आएगी ?
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- नौ -
ना जागी, ना सोई मैं
ना जागी ना सोई मैं।........
गिन-गिन साँस गुजारी मैंने,
जीती बाजी हारी मैंने,
बेशक रात नींद में गुजरी,
ना सपनों में खोई मैं ।
ना जागी, ना सोई मैं।
उसने लाख बहाने मारे,
लेकिन हम हिम्म्त ना हारे,
लाख गोलियाँ दागी उसने,
पर अपने में खोई मैं ।
ना जागी, ना सोई मैं।
जीवन अनबूझ पहेली है,
मौत की फ़कत सहेली है,
चैन-अमन मेरा सब छीना ,
सुबक-सुबक कर रोई मैं।
ना जागी, ना सोई मैं।
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- दस -
दिल के माफिक……
दिल के माफिक गीत लिखूँगा,
हार हुई पर जीत लिखूँगा ।
कौन है अपना कौन पराया,
सबको अपना मीत लिखूंगा ।
जेठ की दोपहरी को खुलकर,
धूप नहीं मैं शीत लिखूँगा ।
औरौं की हालत पर हंसना,
दुष्ट—जनों की रीत लिखूँगा ।
अपने नग्मे जैसे भी हैं,
उन पर मैं संगीत लिखूँगा ।
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(‘टूट गया भ्रम संबंधों का’ गीत संग्रह से )
तेजपाल सिंह ‘तेज’ (जन्म 1949) की गजल, कविता, और विचार की कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं- ‘दृष्टिकोण ‘ट्रैफिक जाम है’, ‘गुजरा हूँ जिधर से’, ‘तूफाँ की ज़द में’ व ‘हादसों के दौर में’ (गजल संग्रह), ‘बेताल दृष्टि’, ‘पुश्तैनी पीड़ा’ आदि (कविता संग्रह), ‘रुन-झुन’, ‘खेल-खेल में’, ‘धमा चौकड़ी’ आदि ( बालगीत), ‘कहाँ गई वो दिल्ली वाली’ (शब्द चित्र), पाँच निबन्ध संग्रह और अन्य सम्पादकीय। तेजपाल सिंह साप्ताहिक पत्र ‘ग्रीन सत्ता’ के साहित्य संपादक, चर्चित पत्रिका ‘अपेक्षा’ के उपसंपादक, ‘आजीवक विजन’ के प्रधान संपादक तथा ‘अधिकार दर्पण’ नामक त्रैमासिक के संपादक रहे हैं। स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर आप इन दिनों स्वतंत्र लेखन के रत हैं। सामाजिक/ नागरिक सम्मान सम्मानों के साथ-साथ आप हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार ( 1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से सम्मानित किए जा चुके हैं। आजकल आप स्वतंत्र लेखन में रत हैं।
सम्पर्क : E-mail — tejpaltej@gmail.com
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