प्रकाशनार्थ :पुस्तक समीक्षा जीवन के विभिन्न रंगों से रँगी कविताएँ :खोजना होगा अमृत कलश ●समीक्षक :सत्या शर्मा "कीर्ति" प...
प्रकाशनार्थ :पुस्तक समीक्षा
जीवन के विभिन्न रंगों से रँगी कविताएँ :खोजना होगा अमृत कलश
●समीक्षक :सत्या शर्मा "कीर्ति"
पुस्तक -- खोजना होगा अमृत कलश ( काव्य संग्रह )
लेखक -- राजकुमार जैन ' राजन '
प्रकाशन --अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नईदिल्ली -110030
मूल्य - 240 /-
राजकुमार जैन राजन जी से मेरा परिचय फेसबुक के माध्यम से ही हुआ । राजन जी न केवल अच्छे सहित्यकार , कुशल सम्पादक हैं बल्कि एक अच्छे इंसान भी है जिनके अंदर बाल सुलभ संवेदनाएं हैं और इसी बालपन पर इनकी 36 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है । अपने लेखन के साथ ही इन्होंने कई पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया है ।
इतना ही नहीं इनकी साहित्यधर्मिता के कारण इन्हें कई सम्मानों से नवाजा भी गया ।
किन्तु इन उपलब्धियों के बाबजूद इनके अंदर का एक सच्चा साहित्यकार सदा बेचैन रहा समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार , असमानता , भेदभाव , प्रकृति से छेड़ - छाड़ इन्हें अक्सर विचलित करती रही । और फिर ये निकल पड़े ऐसे 'अमृत कलश की खोज में' जिसके द्वारा भटके संसार के लिए कुछ तो मार्ग का मार्ग निकाल सकें । और यही एक सच्चे साहित्यकार का फर्ज भी है कि ना केवल वो साहित्य सृजन करे बल्कि अपनी लेखनी के माध्यम से समाज को उन समस्याओं के प्रति सचेत करे और सही मार्ग भी दिखाए ।
इनके इसी गहन चिंतन की स्पष्ट छाप काव्य संग्रह " खोजना होगा अमृत कलश " में देखने को मिलती है । जिसे पढ़कर मैं अभिभूत हूँ। सच में आज जीवन की आपा- धापी में हम सभी सिर्फ और सिर्फ भाग रहें हैं बिना सोचे कि इसके बाद क्या और क्यों ??
पर राजन जी भागते नहीं हैं बल्कि ठहरते हैं , सोचते हैं और अपनी कलम के माध्यम से समाज में व्याप्त परेशानियां, भूख , बेरोजगारी , अशिक्षा, संस्कारहीनता को लोंगों के सामने लाते हैं और उसे दूर करना भी चाहते हैं तभी तो कवि मन ढूंढना चाहता है एक ऐसा कलश जो संस्कार , सच्चाई , सामाजिक सौहार्द और आध्यत्मिक जीवन मूल्यों के अमृत से भरा हो ।
समीक्ष्य कृति में आपकी पचास कविताएँ हैं जो जीवन के विभिन्न रंगों से रँगी हैं। मानव जीवन के कई आयाम इनकी कविताओं में देखने को मिलते है जो कभी आपको झझकोरते है तो कभी आपको सोचने को मजबूर करते हैं । सभी कविताएँ जिंदगी के फलसफे को व्यक्त करती हुई उनके शब्दों में ढल जाती है ।
राजन जी प्रकृति के बीच जीते ही नहीं हैं वरन प्रकृति उनके अंदर बसती हैं । तभी तो इनकी कविताएँ प्रकृति और उसके सौंदर्य से भरी है। प्रकृति से छेड़- छाड़ इन्हें व्यथित करती है ।
तभी तो " तुम कौन हो ?" में कवि प्रकृति और भारतीय संस्कृति के साथ हो रहे छेड़ - छाड़ से मायूस दिखते हैं और उस अज्ञात से पूछते हैं - कौन हो तुम ? - जो फूलों के चेहरे से मुस्कुराहट चुरा लेते हो , जो हवाओं के आँचल में बंधी खुशबुओं को खोल बारुद भर देते हो....धरती के अमृत कोष में विष बीज बो देते हो ।
" जिंदगी के गीत में " कवि लिखते हैं- "यह सब क्या हो गया है / धरती के अमृत कोष में / विष बीज कौन बो गया है? .. आओ हम मिलकर कुछ करें / मौत का सन्नाटा बुनती अंगुलियों को /जिंदगी का गीत लिखना सिखाएं ।"
समाज में हिंसा और भटकाव से कवि हृदय आहत हो उठता हैं और
शस्य - श्यामला भूमि को खंडहर में बदलते देख पीड़ा से भर उठता है। चारों ओर पनप रही अनगिनत परेशानियों के बीच उनके अंदर भी कोमल भावनाएं हिलोरें लेती हैं और वो स्वतः ही ' नियति ' कविता में लिखते हैं--" काश! तुम आते तो तुम्हें आसमानी हवाओं की खुशबू , नदी की कल- कल , चिड़ियाँ की चिहूँ - चिहूँ के साथ अपनी मुस्कुराहटें भी देता ।"
"हारा भी नहीं हूँ मैं " में कवि लिखते हैं - "जीवन संघर्ष की दौड़ में अनगिनत महत्वकांक्षाएं लिए ,मैं कई बार रुका पर हर बार अपने लिए नए रास्ते चुन चलता रहा , वर्जनाओं की देहरी लाँघ जीत न पाया तो क्या हुआ मैं हारा भी तो नहीं ।"
यही जिजीविषा कवि को अलग करती है । इनकी कविताओं में कहीं भी निराशा के आँसू नहीं हैं । हमेशा जितने को प्रेरित करते इनके ऊर्जावान शब्द हैं । "खण्ड - खण्ड आस्तित्व " कविता में वर्तमान रिश्तों का कड़वा सच लिखने को मजबूर हो जाते हैं कि कैसे आज सभी रिश्ते सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ पर टिके हैं और स्वार्थ पूर्ण होने पर रिश्तों की मौत हो जाती है जिसे उम्र भर यूँ ही कंधों पे बेबजह ढोना होता है । किन्तु भावुक कवि उसे पुनर्जीवित करने हेतु शिव जैसा विषपान करने को भी तैयार हैं -"चाहे पूरा आस्तित्व खण्ड - खण्ड हो जाये किन्तु हृदय में जलते विश्वास का दीपक धूमिल न हो पाए।"
यह विश्वास ही तो है जो भारतीय समाज में परिवार की भूमिका को जीवित रखे है।
कई कविताएँ सामाजिक मुद्दे को उठाती है और सहज ही पाठकों से करती है " एक सवाल " -" यह दुनिया ऐसी क्यों है ? चारों ओर जहर का व्यापार क्यों हो रहा है। गाँव - शहर , संसद - धर्मस्थल सभी जगह लोग विष बीज वो रहें है। आखिर हमारी सुंदर दुनिया क्यों बदल रही है।"
" नहीं देखा समुद्र" में कवि लिखते हैं- "नहीं देखा समुद्र, किंतु उसके ज्वार - भाटे , उसकी बेचैनी खुद के अंदर महसूस करता हूँ, उसके अंदर की खामोशी मेरे अंदर शोर मचाती है ।
कविता "एकांत" मुझे बहुत अच्छी लगी--- "सुबह की पीली धूप में
चलते हुए ठोकर लगी तो समझ आया, गलतियां रास्ते भी करते हैं....नदी में बह आई रेत को प्यार से हथेली से सहलाया, तो जाना पत्थर भी जानते हैं
मिट जाना ।" पूर्णतः दार्शनिक भाव लिए जिंदगी के फलसफे को उजागर करती बहुत कुछ कह जाती है।सच के बिल्कुल करीब है यह कविता।
" एक नया संघर्ष " आशावादी कविता है जिसमें राजन जी कहते हैं- "पुरानी पत्तियों के गिरने से मरता नहीं कोई पेड़ .... जो परिस्थितियों से जीतता है वही पाता है उत्कर्ष, एक नए सृजन के साथ।"
सच ही तो है हिम्मत ही तो मनुष्य को हर मुश्किल में राह दिखाती है असफलता को सफलता में बदलना सिखाती है । इसलिए हताशा के अंधकार में भी प्रकाश की खोज करनी चाहिए।
इसी तरह "संदर्भ हीन संदर्भ " में कवि निराशा के घोर तिमिर में भी आशा के दीप जलाते हैं -"एक नई सुबह में" कवि की सच्चाई और अपनों के लिए स्नेह झलकता है । कवि लिखते हैं - "उड़ाता रहूंगा हौसलों की उड़ान/ दिखता रहूंगा तुम्हें भविष्य के सुनहरे सपने" ...यह भरोसा ही तो है जो हमारे अंदर हिम्मत देता है जीवन की सभी कठिनाइयों को जितने का । "मरना चाहते हैं" में कवि लोगों के हारने की मनोवृत्ति से दुःखी दिखते हैं । क्यों हम संघर्ष करने के पहले ही हारना चाहते हैं, जीने के पहले ही मरना चाहते हैं । इसलिए कवि लोगों में जितने का जज्बा भरने का प्रयास करते हैं। इसी तरह संग्रह की सभी कविताएँ कभी प्रश्न , कभी आश्चर्य , कभी वेदना तो कभी संघर्ष से जन्म लेती है । कविताएँ बेचैन होती है , रास्ते तलाशती है , उतर की प्रतीक्षा करती है और स्वयं ही समाधान का मार्ग दिखाती है ।
संग्रह की सबसे सकारात्मक बात यह है कि कवि राजकुमार जैन राजन का मन चाहे कितना ही व्यथित हो , कविताएँ चाहे कितना भी विचलित करे अंत सभी का सुखद है। शुरुआत चाहे कितनी भी निराशा से हुई हो , अंत में आशा की किरण जरुर दिखाई देती है। और यही इस संग्रह की उपलब्धि है । अयन प्रकाशन द्वारा बहुत ही सुंदर साज -सज्जा के साथ इसका मुद्रण/ प्रकाशन किया गया है । इस संग्रह का असमिया, पंजाबी, मराठी, सहित नेपाल से नेपाली व श्रीलंका से "संहली" भाषा में अनुदित संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, जो इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है। पाठक व साहित्य जगत इस कविता संग्रह का भरपूर स्वागत करेगा ऐसा विश्वास है। कवि हृदय राजन जी को असीम शुभकामनाएं ।
--
●समीक्षक: सत्या शर्मा ' कीर्ति '
डी -2 , सेकेंड फ्लोर,
महाराणा अपार्टमेंट
पी. पी. कम्पाउंड,
रांची - 834001
झारखण्ड
COMMENTS