तेजपाल सिंह ‘तेज’ की दस ग़ज़लें -एक- गए रोज मैं देखा किया यूँ चाँद सा चेहरा, रोशनी कम-कम थी कुछ, दाग था गहरा। गो चाँद की फितरत नहीं, मेरा नस...
तेजपाल सिंह ‘तेज’ की दस ग़ज़लें
-एक-
गए रोज मैं देखा किया यूँ चाँद सा चेहरा,
रोशनी कम-कम थी कुछ, दाग था गहरा।
गो चाँद की फितरत नहीं, मेरा नसीब है,याकि है मेरे इश्क पर इक्लाख का पहरा।
न मुमकिन हुआ मिलना मिरा उससे कभी,बुनती रही ताउम्र जो, मिरे नाम का सेहरा।
वो आदमी जो न्याय की नज़रों में चोर था,नज़ारों में खासो-आम की वो आदमी ठहरा।
उनने जाना जिन्दगी दरिया है हर-नजर,पे ‘तेज’ ने जाना किया है जिन्दगी सहरा।
@@@@-दो-
ये कैसी हिमाकत है, रिश्तों में बगावत है,
कहने को तो असली है, किंतु मिलावट है।
चलने का हुनर तो है, रस्तों में रुकावट है,भूखों के पाँव छूकर उभरी याँ सियासत है।
उसके नहीं, ये मेरे हाथों की लिखावट है,कि उससे ही नहीं मेरी खुद से अदावत है।
करता है कौन मेरी धरती पे हिमायत है,मतलब की बात करना दुनिया की रिवायत है।
हैं चादर में झोल खासे, ये कैसी बुनावट है,हैं ’तेज’ सब ही अपने, फिर कैसी शिकायत है।
@@@@-तीन-
सरे - राह मैं गुजरा तो पर कुछ-कुछ यूँ,
काम मेरा कुछ निबड़ा तो पर कुछ-कुछ यूँ,
ना घर का ना रहा धाट का, क्या कहिए,
नाम मेरा सच उछला तो पर कुछ-कुछ यूँ।
कब रात हुई कब दिन निकला मैं क्या जानूँ,गिर-गिर के मैं सम्भला तो पर कुछ-कुछ यूँ।
न बहा कभी, ना पत्थर बन आराम किया,मैं बर्फ सरीखा पिघाला तो पर कुछ-कुछ यूँ।
उठ-उठ गिरना, गिर-गिर उठ्ना लगा रहा,’तेज’ सफर में निकला तो पर कुछ-कुछ यूँ।
@@@@-चार-
इक दिन मुझे तू आँख भरके देख तो,
कि सीने पे मेरे हाथ धरके देख तो।
कुछ सुनाई दे अगर, तो चुप रहना,,दिल्ल्गी का हौसला इक बार करके देख तो।
जो कुछ हुआ सो हो गया अब छोड़ भी,जीतने पर भी कभी, तू हार करके देख तो।
हर घड़ी हर सिम्त आऊँगा नजर, किसुधियों की खिड़की, खोल करके देख तो।
‘तेज’ है कि उलफत में तेरी जब्त है,अबकि दिल तू उसपे वार करके देख तो।
@@@@-पांच-
फाकाकशी में ही दम लिया है आज तक मैंने,
कि देखा नहीं है शहर क्या, बाजार तक मैंने।
कहने को हम आजाद है, आबाद है, लेकिन,देखी नहीं दिल्ली कभी, न ही राजपथ मैंने।
खून का इल्जाम यूँ, उसके सिर पर था,खुद ही खुद को है किया पर नामजद मैंने।
यहाँ एक खत तक भी मिरा अक्षर न हुआ,लिखने को यूँ लिक्खा किए हैं लाख खत मैंने।
दिल्लगी भी खूब है कि दिल्लगी में ‘तेज’,हाँ! पूछा न कभी यार का है नाम तक मैंने।
@@@@-छ:-
हम कुछ ऐसे उदार हो निकले,
जैसे पुरव बयार हो निकले।
कितना अच्छा हो कि घर ही में,दर्द दिल का गुबार हो निकले।
बहुत शब्दों को छला था हमने,शब्द आखिर सवार हो निकले।
वो शिकारी जो शौक-फरमा थे,खुद ही खुद का शिकार हो निकले।
घर के बाहर जो शेर बनते थे,’तेज’ घर में वो सयार हो निकले।
@@@@-सात-
खिरामाँ-खिरामाँ चला कीजिए,
बियाबाँ-बियाबाँ जिया कीजिए।
जिंदगानी असल जिंदगानी नहीं,मौत से रू-ब-रू हो जिया कीजिए।
रिंदों की सोहबत है अच्छी नहीं,कि अकेले-अकेले पिया कीजिए।
कब तक किसी का एहसान लोगे,चाक दामन स्वयं ही सिया कीजिए।
‘तेज’ खुद ही उजालों से महररूम है,न उसका सहारा लिया कीजिए।
@@@@-आठ-
पल-पल यूँ ही गुजारा जीवन,
कदम-कदम पर हारा जीवन।
थ हमने जाना एक चुनौती,पर उनने जाना नारा जीवन।
मौत को आना है, आएगी,फिर-फिर लाख सँवारा जीवन।
समझे थे हम चाँद सरीखा,लेकिन निकला तारा जीवन।
मौत की चिट्ठी साथ लिए है,कि मानो है हलकारा जीवन।
@@@@-नौ-
बहुत मुश्किल से जिया जाता है,
हक़ मिलता नहीं लिया जाता है।
जहर पीने की बात क्या कीजे,जहर मुश्किल से पिया जाता है।
कर्ज लेना तो सहज है लेकिन,कर्ज किश्तों में दिया जाता है।
हम तो हम है कि जवाँ दिल ठहरे,पर, दिल मुश्किल से दिया जाता है।
बात करने में कुछ नहीं जाता,जख्म मुश्किल से सिया जाता है।
@@@@-दस-
आँखों-आँखों प्रीत लिखाकर,
अधरों-अधरों गीत लिखाकर।
सरदी-सरदी धूप का नग्मा,गरमी-गरमी शीत लिखाकर।
अपने हिस्से हार भली है,उनके हिस्से जीत लिखाकर।
कि अपने तो अपने हैं माना,गैरों को भी मीत लिखाकर।
‘तेज’ के नगमें नाकाफी है,साँसों में संगीत लिखाकर।
@@@@(‘गुज़रा हूँ जिधर से’ ग़ज़ल संग्रह से )
तेजपाल सिंह ‘तेज’ (जन्म 1949) की गजल, कविता, और विचार की कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं- ‘दृष्टिकोण ‘ट्रैफिक जाम है’, ‘गुजरा हूँ जिधर से’, ‘तूफाँ की ज़द में’ व ‘हादसों के दौर में’ (गजल संग्रह), ‘बेताल दृष्टि’, ‘पुश्तैनी पीड़ा’ आदि (कविता संग्रह), ‘रुन-झुन’, ‘खेल-खेल में’, ‘धमा चौकड़ी’ आदि ( बालगीत), ‘कहाँ गई वो दिल्ली वाली’ (शब्द चित्र), पाँच निबन्ध संग्रह और अन्य सम्पादकीय।
तेजपाल सिंह साप्ताहिक पत्र ‘ग्रीन सत्ता’ के साहित्य संपादक, चर्चित पत्रिका ‘अपेक्षा’ के उपसंपादक, ‘आजीवक विजन’ के प्रधान संपादक तथा ‘अधिकार दर्पण’ नामक त्रैमासिक के संपादक रहे हैं।
स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर आप इन दिनों स्वतंत्र लेखन के रत हैं।
सामाजिक/ नागरिक सम्मान सम्मानों के साथ-साथ आप हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार ( 1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से सम्मानित किए जा चुके हैं।
आजकल आप स्वतंत्र लेखन में रत हैं।
सम्पर्क : फोन—9911414511 : E-mail — tejpaltej@gmail.com
सुन्दर ग़ज़लें
जवाब देंहटाएंये कैसी हिमाकत है, रिश्तों में बगावत है,
जवाब देंहटाएंकहने को तो असली है, किंतु मिलावट है।
वाह।
बहुत सुन्दर गजलें।