वो एक दिन मैंने जल्दी-जल्दी काम निबटाये, कपड़े पहने और आँख बचाकर, निकलना चाहा जब घर से, कि नन्हीं कुंजू मुझसे लिपट गई, ‘माँ तुम कहीं मत जा...
वो एक दिन
मैंने जल्दी-जल्दी काम निबटाये,
कपड़े पहने और आँख बचाकर,
निकलना चाहा जब घर से,
कि नन्हीं कुंजू मुझसे लिपट गई,
‘माँ तुम कहीं मत जाओ, मैं तुम
संग खेलूंगी, बातें करूंगी,
मैं तुम्हें तंग न करूंगी।’
मैंने एक दस का नोट उसकी
तरफ बढ़ाया और कहा कि लो
चॉकलेट ले लेना।
वह दौड़ी अन्दर गई व अपनी
गुल्लक उठा लाई,
धड़ाम से पटकी जमीन पर दे
उसने सारे पैसे समेट कर,
मेरी झोली में डाल दिए,
व कहा माँ सारे पैसे ले लो
पर आज मुझे छोड़ मत जाओ।
मैं कितनी निष्ठुर बन गई थी कि
सब कुछ समेट, मुस्कराकर उसे
दे दिया और चल दी, अपनी
ममता का गला घोंट कर,
चन्द कागज़ के टुकड़े बटोरने,
जो मुझे सुख तो दे सकते हैं
पर खुशी नहीं। न जाने कब
स्कूल आ गया, मैंने इस्तीफा
प्रधानाचार्य की मेज़ पर रखा
और आ गई उस संग कुछ अनमोल
पल बिताने, जो एक बार जाकर
फिर कभी न आयेंगे।
- शबनम शर्मा, अनमोल कुंज, पुलिस चौकी के पीछे, मेन बाजार, माजरा, तह. पांवटा साहिब, जिला सिरमौर, हि.प्र. – १७३०२१,
लहूलुहान अखबार
एक दिन सुबह उठते ही
इक लहूलुहान अखबार
मुझे लिपट गई व चीख-चीख कर रोने लगी।
मैंने उसे ढांढस बंधाया
और उसकी दास्तान
सुनने के लिए, उसे
कुर्सी पर बिठाया।
बोली सीना फाड़कर वह
देख-देख कितने शहीदों
का खून मुझ पर लगा है,
ये ही नहीं कितनी दुर्घटनाओं,
बलात्कारों व कई हवाई
दुर्घटनाओं के उलीचे हुए
खून के छींटे भी पड़े हैं मुझ पर।
ये एक दिन की बात नहीं
रोज़मर्रा की बात बन गई है
थक गई हूँ, हार गई हूँ,
कुछ रास्ता दिखा मुझे
वह चुपचाप अपना आंचल
संभाल बैठ गई, जब उसने
देखा कि उसे देख मेरी
आँखों से खून टपक रहा था।
- शबनम शर्मा, अनमोल कुंज, पुलिस चौकी के पीछे, मेन बाजार, माजरा, तह. पांवटा साहिब, जिला सिरमौर, हि.प्र. – १७३०२१,
हाँ, मैं मिट्टी हूँ
आँचल में लावा समेटे
हीरे, मणिकों का बिछौना लपेटे
हाँ, मैं मिट्टी हूँ।
भूखों की खुराक संभाले,
लाखों दिलों का दर्द समेटे
हाँ, मैं मिट्टी हूँ।
वक्ष पर मेरे तू बैठ, ऐ मानव
तू इम्तिहान लिये जाता है
करोड़ों का बोझ समेटे
हाँ, मैं मिट्टी हूँ।
शान्त हूँ, चुप हूँ, ऐ मानव,
तुझसे मैं कभी कुछ नहीं माँगती,
देवों का सा बल समेटे,
हाँ, मैं मिट्टी हूँ।
सागर की लहरों को पकड़े,
सम्पूर्ण सृष्टि की जड़े हूँ जकड़े,
कई लाशों की राख समेटे,
हाँ, मैं मिट्टी हूँ।
कहीं बर्फ सी जम जाती हूँ,
कहीं तूफान सी बन जाती हूँ,
नदियों, पहाड़ों, पर्वतों को
समेटे, हाँ, मैं मिट्टी हूँ।
ऐ मानव, तेरे महल, मन्दिर,
गुरुद्वारे, मस्जिद, तेरा साँस,
तेरी अग्नि खुद में समेटे,
मैं शान्त मूक, तेरे पाँव तले की मिट्टी हूँ,
हाँ, मैं तेरे पाँव तले की मिट्टी हूँ।
- शबनम शर्मा, अनमोल कुंज, पुलिस चौकी के पीछे, मेन बाजार, माजरा, तह. पांवटा साहिब, जिला सिरमौर, हि.प्र. – १७३०२१,
ये जीवन अनमोल है यारों
ये जीवन अनमोल है यारों,
मिलता नहीं बारम्बार है,
तुम इसे खुशहाल बना लो,
यही अरज़ हमार है।
तन की हवस मिटाने वालों,
बोलो परस्त्री, परसंग को
दूर से ही नमस्कार है
तुम इसे खुशहाल बना लो,
यही अरज़ हमार है।
लगाम दिल की कस कर थामो,
नज़रें कभी न मैली न हों,
हवस के आगे झुको कभी न,
यही प्रार्थना हमार है
ये जीवन अनमोल है यारों
मिलता नहीं बारम्बार है।
सात फेरों का बंधन जानो,
घर में ही तुम स्वर्ग पहचानो,
देखो, ज़रा प्यार से ऐसे कि
मुन्ना-मुन्नी करे दुलार है
ये जीवन अनमोल है यारों
मिलता नहीं बारम्बार है।
रहें समाज में मूंछ तान कर,
माने तुम्हें सब सरदार हैं,
देख तुम्हें फिर आगे-पीछे,
सुधरे सब संसार है,
जीवन सदा सुखी रहे तुम्हारा,
ये ही अरज़ हमार है,
ये जीवन अनमोल है यारों
मिलता नहीं बारम्बार है।
कसम खाओ आज हमारे संग,
क्षणिक सुख के लिये न फिसलोगे तुम,
देख किसी भी मौके को टपके न तुम्हारी लार है
ये जीवन अनमोल है यारों,
मिलता नहीं बारम्बार है।
तुम मर्दों से देश की ताकत,
डरता सब संसार है,
छोड़ क्षणिक सुख, भोगो जीवन,
जो मिलता नहीं बारम्बार है
तुम इसे खुशहाल बना लो
ये ही अरज़ हमार है।
स्वर्ग सा नशाहीन समाज हो,
आओ छोड़ें सब नशा, यही प्रण आज हो।
- शबनम शर्मा, अनमोल कुंज, पुलिस चौकी के पीछे, मेन बाजार, माजरा, तह. पांवटा साहिब, जिला सिरमौर, हि.प्र. – १७३०२१
सोने की चिड़िया
सोने की चिड़िया कहलाने वाला,
ऋषियों का देश बतलाने वाला,
यह भारत देश क्या से क्या हो गया,
सोना मिट्टी बनता चला गया,
और ऋषि चंबल में जाते चले गये।
संस्कृति जो संसार का मुकुट
कहलाती थी,
सौम्य, सभ्य और सिमटी सी थी,
आज कितनी छिछली, घिनौनी
बनती जा रही है।
देश की नारी, पुरुषों से लगाई
दौड़ में, अपना पूजनीय स्थान
खोती जा रही है।
जी चाहता है, मेरी बात
कोई समझे,
कि इस धरा पर सिर्फ
मानव जन्म लेता है,
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई नहीं।
फसादों में खुद को फंसा के
कितना खुश होता है ये आदमी
और सोचता ही नहीं कि हर किसी
शर्त पर, सिर्फ आदमी को खोता है आदमी,
छोड़ पराये चक्करों को
असलियत पर आना होगा
अमन, शांति और अहिंसा अपनाकर
भारत को फिर से सोने की चिड़िया बनाना होगा।
- शबनम शर्मा, अनमोल कुंज, पुलिस चौकी के पीछे, मेन बाजार, माजरा, तह. पांवटा साहिब, जिला सिरमौर, हि.प्र. – १७३०२१
इक माँ का दूजी माँ को पैगाम
आंसुओं में डूबी इक माँ ने,
दूजी माँ के पास ये पैगाम
भेजा है, कि उसे अपने दिल
के टुकड़ों कों, माँ की रक्षा
के लिये सरहदों पर भेजा है,
उसकी अपनी जिन्दगी अब
श्मशान से कम नहीं,
रात-दिन उसे इक अजीब
सा अंदेशा रहता है।
पाला-पोसा, कूट-कूट कर
भरी वीरता उसमें,
मैंने अपने लाल को,
मौसी के घर भेजा है।
रक्षा तेरी वो कर सके,
उसे भरपूर शक्ति देना,
दुश्मनों के छक्के छुड़ा दे,
उसे वो साहस देना।
पर इक गुज़ारिश है मेरी
तुझ से ये धरती माँ,
हो सके तो लाल मेरा
मुझको तू लौटा देना।
- शबनम शर्मा, अनमोल कुंज, पुलिस चौकी के पीछे, मेन बाजार, माजरा, तह. पांवटा साहिब, जिला सिरमौर, हि.प्र. – १७३०२१
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