Smiling Buddha: भारत के पहले परमाणु विस्फ़ोट की कहानी - शामिख़ फ़राज़

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साल 1974 की 18 मई. सुबह आकाशवाणी के दिल्ली केंद्र पर चल रहे फिल्मी गीतों के प्रोग्राम को अचानक ही बीच में रोककर उद्घोषणा हुई. कृपया एक महत्त...

साल 1974 की 18 मई. सुबह आकाशवाणी के दिल्ली केंद्र पर चल रहे फिल्मी गीतों के प्रोग्राम को अचानक ही बीच में रोककर उद्घोषणा हुई. कृपया एक महत्त्वपूर्ण प्रसारण की प्रतीक्षा करें। कुछ ही पल के बाद आवाज़ आई  "आज सुबह 8.05 पर शांतिपूर्ण कार्यों के लिये भारत ने एक भूमिगत परमाणु परीक्षण किया है।"

आज से 45 साल पहले सुबह 8.05. राजस्थान के थार मरुस्थल में जैसलमेर से 110 किमी. दूर पोखरण में  107 मीटर नीचे ज़मीन में गड़ी 1400 किलो वजनी और 1.25 मीटर चौड़ी एक चीज़ तेज़ धमाके के साथ फटी और आस-पास की धरती २ किमी तक हिला गई। पोखरण-1 को " Smiling Buddha" कोड नाम दिया गया था। " Smiling Buddha " कोड दिए जाने के पीछे तर्क यह था कि परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यो के लिये होगा। क्योंकि बुद्ध शांति के प्रतीक माने जाते हैं. कुछ लोगों का दावा है कि परीक्षण के लिए जो दिन चुना गया था उस दिन बुद्ध पूर्णिमा थी। इसलिए यह नाम दिया गया था।  बाद में 11और 13 मई 1998 को भारत ने पाँच और भूमिगत परमाणु परीक्षण किये और स्वयं को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया।

                                                                                                                                      सांकेतिक तस्वीर


कैसे थे अंतरराष्ट्रीय हालात

अंतरराष्ट्रीय हालात ठीक नहीं थे. देश 1962 में चीन से युद्ध में हार चुका था. भारत के बड़े इलाके पर चीन ने कब्जा कर लिया था। इसके बाद 1964 में चीन ने परमाणु परीक्षण कर महाद्वीप में अपना वर्चस्व हासिल करने की होड़ शुरू कर दी। 1965 में हालाँकि भारत, पाकिस्तान को हरा चुका था. लेकिन आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. इसके अलावा परमाणु विस्फ़ोट को लेकर भी दुनिया में एक अलग ही माहौल था. साल 1974 में कई देशों ने 37 परमाणु विस्फ़ोट किए थे. इनमें से 19 सोवियत रूस ने किए थे और नौ अमेरिका ने. फ्रांस, चीन और इंग्लैंड भी इस सूची में शामिल थे. माहौल कुछ ऐसा था जैसे किसी देश की तरक़्क़ी को सिर्फ और सिर्फ उसके परमाणु विस्फ़ोट से ही नापा जा सकता हो । ऐसे माहौल पर एक शायर की त्रिवेणी याद आती है

कभी फ़लक से गिरा के मौत

कभी ज़मीं में दबा के मौत

अब कुछ यूँ अपनी तरक़्क़ी जाँचते हैं मुल्क   

कैसे थे देश के हालात

इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं. देश में माहौल बदल रहा था. वैज्ञानिक इंदिरा गांधी पर परमाणु परीक्षण करने के लिए ज़ोर डालने लगे. वैसे देश में भारी राजनितिक उथल पुथल भी थी। जेपी आंदोलन अपने चरम पर था. इंदिरा सरकार के तमाम मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे. खुद इंदिरा गांधी पर भी संविधान से छेड़छाड़ करने का इलज़ाम था. जेपी ने 1973 में गांधी मैदान में एक रैली को अंजाम दिया. कुलदीप नैयर अपनी किताब “Beyond the Lines” में लिखते हैं कि जेपी ने इस रैली में उन्हें भी बुलाया था और उन्हें इस बात का जरा भी एहसास नहीं था कि यही रैली इंदिरा सरकार को जड़ से खत्म भी कर सकती थी. गुजरात में चिमन भाई पटेल की सरकार को जेपी ने पूरी तरह से घेर लिया था. भ्रष्टाचार के बहुत से इल्जाम के बाद चिमनभाई को ‘चिमन चोर’ कहा जाने लगा. आखिरकार उनकी सरकार बर्खास्त हो गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा.

परमाणु परीक्षण को लेकर देश के नेता भी दो हिस्सों में बँटे हुए थे। कुछ का कहना था कि दूसरे देशों की बराबरी पर आने के लिए भारत के पास भी परमाणु शक्ति होना चाहिए, तो कुछ का कहना था कि इस तरह के परीक्षण करने से देश गाँधी की विचारधारा से भटक जाएगा ।



इन सब के बीच 1974 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के पहले परमाणु परीक्षण को इजाज़त दे दी, हालाँकि यह इजाज़त मौखिक थी.इसके लिए स्थान चुना गया राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित छोटे से शहर पोखरण का रेगिस्तान। पोखरण-1  और पोखरण-2  हमेशा ही परीक्षण के लिये पोखरण को इसलिये चुना गया क्योंकि यहाँ से मानव बस्ती बहुत दूर है ।

पोखरण टीम

1967 के बाद परमाणु बम बनाने की दिशा में काम तेज़ होने लगा. इंदिरा गांधी ने अपने प्रधान सचिव प्रेम नारायण हक्सर की सलाह के बाद इस पर काम शुरू करने की इजाज़त दी. कुछ वैज्ञानिकों को सोवियत रूस भेजा गया जहां उन्होंने रूसी परमाणु रिएक्टरों को समझा. वहां से प्रेरित होकर भारतीय वैज्ञानिकों ने पूर्णिमा नाम से रिएक्टर विकसित किया जो प्लूटोनियम का इस्तेमाल करता.

        वैज्ञानिक राजा रमन्ना 

इस पूरे अभियान को सफल बनाने में बड़ी भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक राजा रमन्ना ने अपनी आत्मकथा 'इयर्स ऑफ पिलग्रिमिज' में लिखा है कि इस पूरे ऑपरेशन के बारे में पीएम इंदिरा गांधी के अलावा, मुख्य सचिव पीएन हक्सर, पीएन धर, वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. नाग चौधरी और एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन एच. एन. सेठना और खुद राजा रमन्ना को ही जानकारी थी. यहाँ तक कि रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम को भी ऑपरेशन सफल होने के बाद ही जानकारी दी गई. इस टॉप सीक्रेट प्रोजेक्ट पर लंबे समय से एक पूरी टीम काम कर रही थी. 75 वैज्ञानिक और इंजीनियरों की टीम ने 1967 से लेकर 1974 तक 7 साल जमकर मेहनत की. इस प्रोजेक्ट की कमान BARC के निदेशक डॉ राजा रमन्ना थे.

                                                                                                                     

अन्य वैज्ञानिकों के साथ अब्दुल कलाम

रमन्ना की टीम में तब एपीजे अब्दुल कलाम भी थे जिन्होंने 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण की टीम की कमान संभाली थी. इस परीक्षण में भारत के परमाणु वैज्ञानिकों पीके आयंगर, राजगोपाल चिदंबरम, नागपत्तानम सांबशिवा वेंकटेशन, वामन दत्तात्रेय पंट्टवर्धन, होमी एन. सेठना आदि की टीम ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी।


जब जीप के कारण परीक्षण में हुई 5 मिनट की देरी

परमाणु बम का व्यास 1.25 मीटर और वजन 1400 किलो था. सेना इसको बालू में छिपाकर लाई थी. सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर यह राजस्थान के पोखरण में विस्फोट किया था. बताया जाता है कि 8 से 10 किमी इलाके में धरती हिल गई। परमाणु टेस्ट के लिए सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. विस्फोट पर नज़र रखने के लिए मचान को 5 किमी दूर लगाया गया था. इसी मचान से सभी बड़े सैन्य अधिकारी और वैज्ञानिक नज़र रखे हुए थे. आखिरी जांच के लिए वैज्ञानिक वीरेंद्र सेठी को परीक्षण वाली जगह पर भेजना तय हुआ. जांच के बाद परीक्षण स्थल पर जीप स्टार्ट ही नहीं हो रही थी. विस्फोट का समय सुबह 8 बजे तय किया गया था. वक्त निकल रहा था और जीप स्टार्ट न होने पर सेठी दो किमी दूर कंट्रोल रूम तक चलकर पहुंचे थे. इसके घटना के चलते परीक्षण का समय 5 मिनट बढ़ा दिया गया.

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ

परीक्षण से पूरी दुनिया चौंक उठी, क्योंकि सुरक्षा परिषद में बैठी दुनिया की पांच महाशक्तियों से बाहर भारत परमाणु शक्ति बनने वाला पहला देश बन चुका था। भारत के परमाणु परीक्षण की पूरी दुनिया में प्रतिक्रिया हुई। कुछ देशों ने परमाणु होड़ बढ़ाने वाला बताया, जबकि कुछ चुप्पी साध गए। भारत अब गैरआधिकारिक रूप से उस समूह में शामिल हो गया था जहां अब तक सिर्फ पांच देशों का राज था. ज़ाहिर है, उन्हें दिक्कत तो होनी ही थी. दुनिया भर में इस पर चर्चा होने लगी. परमाणु परीक्षण की निंदा हुई. परीक्षण से  नाराज़ अमेरिका ने परमाणु सामग्री और इंधन के साथ कई तरह के और प्रतिबंध लगा दिए थे. इस मुश्किल वक़्त में रूस ने भारत का साथ दिया। उधर, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो पोखरण विस्फोट से इतने डर गए कि उनका बयान आया कि उनका मुल्क भारत के परमाणु ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा. जबकि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यो के लिये था.

अमेरिका ने असफल माना भारत का परमाणु कार्यक्रम

अमेरिका ने भारत के पहले परमाणु परीक्षण को करीब-करीब असफल माना था, लेकिन इसके पीछे वजह नहीं बताई थी । अमेरिकी वैज्ञानिक संघ ने अपनी वेबसाइट पर दावा किया कि भारत द्वारा किया गया परमाणु परीक्षण आंशिक रूप से ही सफल था । एफएएस ने कहा कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने वास्तविक विस्फोटक शक्ति के चार से छह किलोटन के बीच होने का अनुमान लगाया है । परीक्षण से 47 से 75 मीटर के दायरे में दस मीटर गहराई का गड्ढ़ा हो गया था।

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रचनाकार: Smiling Buddha: भारत के पहले परमाणु विस्फ़ोट की कहानी - शामिख़ फ़राज़
Smiling Buddha: भारत के पहले परमाणु विस्फ़ोट की कहानी - शामिख़ फ़राज़
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