अक्षय चौथी कक्षा में पढ़ता था। पढ़ाई में अच्छा था, पर शरारतें भी ख़ूब करता था। अपनी शरारतों से वह बाज़ नहीं आता था, चाहे जितना भी समझा लो। किसी...
अक्षय चौथी कक्षा में पढ़ता था। पढ़ाई में अच्छा था, पर शरारतें भी ख़ूब करता था। अपनी शरारतों से वह बाज़ नहीं आता था, चाहे जितना भी समझा लो। किसी-न-किसी शरारत की योजना उसके दिमाग़ में हमेशा कुलबुलाती ही रहती। न जाने कैसे उसे नई-नई शरारतें सूझ जाती थीं।
उसकी शरारतों की सबसे ज़्यादा शिकार उसकी मम्मी ही बनती थीं। अपने पापा से तो वह बहुत डरता था और उनसे कोई शरारत करने की हिम्मत कर नहीं पाता था। पापा तो वैसे भी सारा दिन ऑफिस में ही होते थे, मगर मम्मी घर में ही होती थी। शरारतें भी बड़ी अनोखी होती थीं अक्षय की। स्कूल जाने से पहले किसी दिन वह घर की चाबियाँ कहीं छुपा देता। पापा के ऑफिस चले जाने के बाद घर के काम पूरे करके किसी काम से मम्मी को जब बाज़ार जाना होता, तो चाबियाँ न मिल पाने के कारण वे घर के ताले लगाकर बाजार भी न जा पातीं। कभी वह घर के मुख्य दरवाज़े पर लगानेवाले पीतल के बड़े ताले को ही कहीं छुपा देता। अब चाबियाँ होने पर भी मम्मी घर को ताला लगाकर बाज़ार न जा पातीं। कभी वह दोपहर को स्कूल से आने पर पेट दर्द का बहाना बनाता। फिर जब मम्मी उसके पेट दर्द के लिए कुछ इलाज करने की तैयारी करने लगतीं, तो वह अपने बिल्कुल ठीकठाक होने की बात कहकर बहुत हँसता। किसी दिन वह मम्मी के टूथपेस्ट का ढक्कन खोलकर थोड़ा-सा टूथपेस्ट निकालकर वहाँ नमक डाल देता और उसके ऊपर निकाला हुआ टूथपेस्ट भर देता। बाद में मम्मी जब टूथपेस्ट करतीं, तो उस नमक के मारे उनकी हालत ख़राब हो जाती। दोपहर के समय मम्मी जब थोड़ी देर के लिए झपकी ले रही होतीं, तो वह कभी-कभी उनके मोबाइल फ़ोन में दो मिनट बाद का अलार्म लगा देता। फिर जब अलार्म बजता तो मम्मी हड़बड़ाकर उठ जातीं। तब वह तालियाँ बजा-बजाकर हँसने लगता।
मम्मी अक्षय को बहुत समझातीं कि वह इतनी शरारतें न किया करे, लेकिन ऐसी बातें वह एक कान से सुनता और दूसरे से निकाल देता। अक्षय की शरारतें होती भी ऐसी नई-नई थीं कि आमतौर पर यह पता ही नहीं चलता था कि उसकी किस बात में क्या शरारत छुपी होगी। मगर इस सब के बावजूद मम्मी अक्षय से कभी नाराज़ नहीं होती थीं। वे हमेशा उसे बड़े प्यार से समझातीं, लेकिन अगर वह फिर भी शरारत करता तो वे उसपर ग़ुस्सा बिल्कुल नहीं करती थीं।
एक दिन अक्षय को स्कूल के किसी साथी ने बताया कि फर्श पर साबुन के घोल को गिराकर भी शरारत की जा सकती है। उसके साथी ने बताया कि जब कोई साबुन के घोल से फिसलकर गिरता है, तो गिरे हुए व्यक्ति को देखने में बहुत मज़ा आता है। अक्षय ने सोचा कि वह इस शरारत की शुरुआत घर से ही करेगा।
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अगले दिन अक्षय के स्कूल की छुट्टी थी, पर पापा को अपने ऑफिस जाना था। सुबह पापा जब तैयार होकर ऑफिस चले गए, तो उसने सोचा कि अब उस शरारत को मम्मी पर आज़माया जाए। उसने देखा कि मम्मी रसोई में व्यस्त थीं। वह चुपचाप बाथरूम में गया और एक बाल्टी में थोड़ा-सा पानी लेकर उसमें तरल साबुन डालकर उसने उसका घोल बना लिया। फिर वह धीरे से बाल्टी को बाथरूम के दरवाज़े तक लाया और ख़ुद बाहर निकलकर बाल्टी का पानी उसने बाथरूम के फर्श पर बिखरा दिया। फिर ख़ाली बाल्टी को अंदर की तरफ़ खिसका दिया। उसके बाद वह चुपचाप कमरे में आकर अपनी कोई क़िताब खोलकर बैठ गया। उसने अपने सामने क़िताब रखी ज़रूर हुई थी, पर उसका सारा ध्यान मम्मी की ओर ही था। उसे मालूम था कि मम्मी अभी थोड़ी देर में नहाने के लिए बाथरूम में जाएँगी।
कुछ देर बाद मम्मी ने उसे नहा लेने के लिए कहा, लेकिन उसने कह दिया कि वह बाद में नहा लेगा, अभी नहाने का उसका मूड नहीं है। उसके बाद वह फिर से अपनी क़िताब पढ़ने का नाटक करने लगा।
फिर थोड़ी देर बाद उसने मम्मी की आवाज़ सुनी,”बेटू, मैं नहाने जा रही हूँ। दरवाज़े की घँटी बजे तो ध्यान रखना।“
“ठीक है, मम्मी।“ कहते हुए अक्षय ने फिर क़िताब में अपनी नज़रें गढ़ा दीं।
इसके बाद जैसे ही मम्मी नहाने के लिए बाथरूम के अंदर गईं, तभी उनके फिसलकर धड़ाम से गिरने की आवाज़ आई। अक्षय तो बस इसी पल का इंतज़ार कर रहा था। वह झट-से उठा और बाथरूम की तरफ़ लपका। उसे उम्मीद थी कि अब तक मम्मी फर्श से उठने की कोशिश कर रही होंगी। उसे लग रहा था कि शायद इस तरह उठते हुए वे एक बार फिर फिसलकर गिर पड़ें। अक्षय सोच रहा था कि मम्मी को इस तरह फिसलते देखकर बड़ा मज़ा आएगा। लेकिन जैसे ही वह बाथरूम के सामने पहुँचा, उसने देखा कि मम्मी फर्श पर गिरी हुई हैं और उनके सिर से ख़ून बहकर फर्श पर गिर रहा है। अक्षय के आने की आहट सुनकर उन्होंने दर्दभरी आवाज़ में उससे कहा,”बेटू, बाथरूम से बाहर ही रहना। तुम्हारा पैर न फिसल जाए कहीं।“
फिर मम्मी किसी तरह दीवार का सहारा लेकर धीरे-धीरे उठीं और बाथरूम से बाहर आ गईं। उनके सिर से टपकता हुआ ख़ून फर्श पर गिर रहा था। उन्होंने अपने दाएँ हाथ से अपनी बाईं बाँह को भी पकड़ा हुआ था। अक्षय को लगा शायद उन्हें बाईं बाँह में बहुत दर्द हो रहा है।
मम्मी धीरे-धीरे चलती हुई बरामदे में पड़ी कुर्सी पर बैठ गईं। फिर उन्होंने अक्षय को कहा कि पड़ोस की करुणा आँटी को फ़ोन करके बुला ले।
कुछ देर में करुणा आँटी आ गईं और मम्मी की हालत देखकर उन्हें हस्पताल ले गईं। अक्षय का ध्यान रखने के लिए उन्होंने अपने बड़े बेटे, नीरज, को भेज दिया। अक्षय के घर आकर नीरज टी वी पर कोई मैच देखने लगा। तब अक्षय ने चुपचाप बाथरूम में जाकर फर्श पर पड़े साबुन के घोल को अच्छी तरह साफ़ कर दिया। उसे डर लगने लगा था कि उसकी इस शरारत का पता जब पापा को लगेगा तो वे बहुत नाराज़ होंगे।
लगभग तीन घण्टे बाद मम्मी करुणा आँटी के साथ हस्पताल से वापिस आ गईं। मम्मी के सिर पर पट्टी बँधी थी और बाईं बाँह पर प्लास्टर भी लगा हुआ था। करुणा आँटी ने बताया कि मम्मी के सिर पर चार टाँके लगे हैं और बाईं बाँह की हड्ड़ी टूट गई है। आँटी ने यह भी बताया कि मम्मी की बाँह पर लगा प्लास्टर छह सप्ताह बाद ही उतरेगा। यह सब जानकर अक्षय का मन रोने-रोने को हो रहा था। उसे बहुत पछतावा हो रहा था कि उसकी शरारत की वजह से मम्मी की ऐसी हालत हुई है।
कुछ देर में पापा भी ऑफिस से लौट आए। शायद मम्मी के कहने पर करुणा आँटी ने उन्हें फ़ोन पर सारी बात बता दी थी। पापा के आ जाने पर करुणा आँटी और नीरज अपने घर चले गए। पापा ने जब मम्मी से पूछा कि वे कैसे गिरीं, तो मम्मी ने कह दिया कि बाथरूम के अंदर जाते ही उन्हें चक्कर-सा आ गया था, इसलिए वे गिर गई थीं। यह सुनकर अक्षय को बहुत हैरानी हुई। मम्मी अगर पापा को सच्ची बात बता देतीं, तो वे तो उसकी खाल ही खींच लेते।
कुछ देर बाद मम्मी के लिए दवाइयाँ ख़रीदने के लिए पापा बाज़ार चले गए। अक्षय मम्मी के पास गया और पूछने लगा,”मम्मी, आपको क्या सचमुच चक्कर आया था बाथरूम में?”
अक्षय की बात सुनकर मम्मी बोलीं,”बेटू, मुझे पता है कि बाथरूम में फर्श पर साबुन का घोल तुमने ही डाला था क्योंकि साबुन वाली बोतल फर्श पर ही पड़ी हुई थी।“
अक्षय को अपने किए पर इतना पछतावा हो रहा था कि उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। रोते-रोते वह कहने लगा,“मम्मी, आपने पापा को मेरी शिकायत न लगाकर मुझे बचा लिया है। मेरी वजह से आपको इतना दर्द हुआ है न। मैं वादा करता हूँ कि अब इस तरह शरारतें नहीं किया करूँगा।“
अक्षय की बात सुनकर मम्मी ने उसे प्यार से गले से लगा लिया और उसके आँसू पोंछने लगीं। तभी अक्षय के मुँह से निकल पड़ा,”आप दुनिया की सबसे अच्छी मम्मी हो! सबसे अच्छी मम्मी!”
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संक्षिप्त परिचय
नाम हरीश कुमार ‘अमित’
जन्म मार्च, 1958 को दिल्ली में
शिक्षा बी.कॉम.; एम.ए.(हिन्दी); पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
प्रकाशन 800 से अधिक रचनाएँ (कहानियाँ, कविताएँ/ग़ज़लें, व्यंग्य, लघुकथाएँ, बाल कहानियाँ/कविताएँ आदि) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित
एक कविता संग्रह ‘अहसासों की परछाइयाँ’, एक कहानी संग्रह ‘खौलते पानी का भंवर’, एक ग़ज़ल संग्रह ‘ज़ख़्म दिल के’, एक लघुकथा संग्रह ‘ज़िंदगी ज़िंदगी’, एक बाल कथा संग्रह ‘ईमानदारी का स्वाद’, एक विज्ञान उपन्यास ‘दिल्ली से प्लूटो’ तथा तीन बाल कविता संग्रह ‘गुब्बारे जी’, ‘चाबी वाला बन्दर’ व ‘मम्मी-पापा की लड़ाई’ प्रकाशित
एक कहानी संकलन, चार बाल कथा व दस बाल कविता संकलनों में रचनाएँ संकलित
प्रसारण लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण. इनमें स्वयं के लिखे दो नाटक तथा विभिन्न उपन्यासों से रुपान्तरित पाँच नाटक भी शामिल.
पुरस्कार (क) चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट की बाल-साहित्य लेखक प्रतियोगिता 1994,
2001, 2009 व 2016 में कहानियाँ पुरस्कृत
(ख) ‘जाह्नवी-टी.टी.’ कहानी प्रतियोगिता, 1996 में कहानी पुरस्कृत
(ग) ‘किरचें’ नाटक पर साहित्य कला परिष्द (दिल्ली) का मोहन राकेश सम्मान 1997 में प्राप्त
(घ) ‘केक’ कहानी पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान दिसम्बर 2002 में प्राप्त
(ड.) दिल्ली प्रेस की कहानी प्रतियोगिता 2002 में कहानी पुरस्कृत
(च) ‘गुब्बारे जी’ बाल कविता संग्रह भारतीय बाल व युवा कल्याण संस्थान, खण्डवा (म.प्र.) द्वारा पुरस्कृत
(छ) ‘ईमानदारी का स्वाद’ बाल कथा संग्रह की पांडुलिपि पर भारत सरकार का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार, 2006 प्राप्त
(ज) ‘कथादेश’ लघुकथा प्रतियोगिता, 2015 में लघुकथा पुरस्कृत
(झ) ‘राष्ट्रधर्म’ की कहानी-व्यंग्य प्रतियोगिता, 2017 में व्यंग्य पुरस्कृत
(ञ) ‘राष्ट्रधर्म’ की कहानी प्रतियोगिता, 2018 में कहानी पुरस्कृत
(ट) ‘ज़िंदगी ज़िंदगी’लघुकथा संग्रह की पांडुलिपि पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान, 2018 प्राप्त
सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त
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पता 304, एम.एस.4 केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56, गुरूग्राम-122011 (हरियाणा)
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