मिस यू माँ" ( संस्मरण) - डॉ कविता"किरण"

SHARE:

मां! तुम मुझको छोड़ के तन्हा ऐसे कैसे जा सकती हो....???? 28 जनवरी 2019 की वह भयावह रात मुझसे कभी भी भुलाई नहीं जा सकेगी जब मेरी जन्मदात्री ने...

मां! तुम मुझको छोड़ के तन्हा

ऐसे कैसे जा सकती हो....????

28 जनवरी 2019 की वह भयावह रात मुझसे कभी भी भुलाई नहीं जा सकेगी जब मेरी जन्मदात्री ने मेरे साक्ष्य में अपनी मृत्यु के रसीदी टिकट पर अपने हस्ताक्षर किए। कितने सारे संयोग हुए थे उस दिन। जो किसी अकल्पनीय कहानी से कम नहीं हैं।

25 जनवरी को मुझे अपनी भांजी के वैवाहिक कार्यक्रम में सम्मिलित होने मुम्बई जाना था। 23 जनवरी को मैं फालना से... मेरी बेटी अहमदाबाद से... और मम्मी मेरे मौसेरे भाई भाभी एवं उनके दो छोटे बच्चों के साथ उदयपुर से मुम्बई पहुंचे। पांच दिनों तक हम तीन पीढ़ियों मैं, मेरी मम्मी और मेरी बेटी ने 24 घण्टे प्रतिपल हंसी-खुशी के साथ बिताये एवम विवाह समारोह का भरपूर आनंद लिया। 27 जनवरी को हमारी घर वापसी थी। मौसेरे भैया एवम मेरी बिटिया वापसी के लिए निकल चुके थे। क्योंकि उन्हें अगले दिन ऑफिस जॉइन करना था। लेकिन मम्मी,भाभी एवम बच्चे एक दिन और रुकने वाले थे। मेरी भी 27 जनवरी की ही फालना की वापसी की ट्रेन टिकट थी...जो वेटिंग ही रह गयी। ऐसे में सबकी सलाह से मैंने फिर अगले दिन की नई टिकट बनवाई। लेकिन संयोगवश वह भी कन्फर्म नहीं हो सकी।

इधर एक और संयोग ये हुआ कि उदयपुर के लिए मम्मी की सिंगल स्लीपर की बजाय डबल स्लीपर टिकट बुक हो गयी । अतः मम्मी मुझसे लगातार आग्रह कर रही थी कि मैं उसके साथ उदयपुर चली चलूं और वहां एक दिन रुककर फिर फालना निकल जाऊं। लेकिन क्योंकि मेरी ट्रेन की रिटर्न टिकट पहले से बुक हो चुकी थी और मुझे बस का सफर प्रायः सूट नहीं करता, इसलिए मैंने मम्मी से ये कहकर कि " मैं एक बार फालना जाकर वापस आपके पास आ जाऊँगी" साथ जाने से इंकार कर दिया।

लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंज़ूर था।

सच तो ये है कि हमारे भविष्य की स्क्रिप्ट विधाता पहले से ही लिख चुका होता है। हमें तो बस उस स्क्रिप्ट के अनुसार एक्ट करना होता है।

28 जनवरी को शाम 5 बजे मम्मी भाभी एवं बच्चों के साथ बस पकड़ने के लिए कैब में बैठ चुकी थी।दीदी उनको बस तक छोड़ने जा रही थी। ठीक उसी समय 5 बजे चार्ट प्रिपेयर होते ही मेरी बेटी ने फोन पर सूचना दी कि आपकी टिकट वेटिंग ही रह गयी है। टिकट कन्फर्म न होने की वजह से मैं बहुत परेशान और पेशोपेश में थी। क्या करूँ क्या न करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा था। जीजाजी ने फिर वही अगले दिन निकलने की सलाह दी। लेकिन तभी एकाएक मेरे विवेक ने निर्णय ले लिया। मुझे लगा यहां और रुकने से बेहतर है मैं मम्मी के साथ उदयपुर तक बस से निकल जाऊं..कम से कम घर के नज़दीक तो पहुंच जाउंगी। सो मैं भागकर लिफ्ट से नीचे पहुंची। दीदी को कैब से उतारा और स्वयम उसमें सवार हो गयी मम्मी के साथ उदयपुर जाने के लिए।मुझे देखकर ममी के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी।

शाम को लगभग साढ़े छह बजे ट्रेवल्स की एयरकंडीशंड बस के डबल स्लीपर में मैं अपनी मम्मी के साथ उदयपुर के लिए यात्रा कर रही थी। भाभी बगल वाले केबिन में अपने बच्चों के साथ थीं। रात साढ़े आठ बजे तक ममी ने मुझसे ढेर सारी बातें कीं।जैसा कि कहा जाता है माँ अपने दुख-सुख की सारी बातें हमेशा अपनी बेटी के साथ ही साझा करती है। वही हुआ। कुछ शिकवे शिकायतें उलाहने और बहुत सी घर परिवार की बातें। शादी की बहुत थकान थी मुझे। फिर एक दिन पहले मम्मी को रात में थोड़ी बैचेनी और सांस लेने में तक़लीफ़ भी हो रही थी। मुझे लगा ये मुम्बई की आर्द्र वायु और सफोकेशन की वजह से है जैसा प्रायः कई लोगों को हो जाता है।लेकिन दिन में मम्मी एकदम सामान्य दिखीं। फिर भी वापसी वाले दिन दोपहर में मैं और दीदी मम्मी को निकट के आरोग्य निधि अस्पताल में ले गए। डॉक्टरी परामर्श के अनुसार कुछ ज़रूरी जांच औऱ टेस्ट करवाकर 5 दिन की दवा दिला लाये। बाकी कुछ टेस्ट उदयपुर में लौटकर करवाने थे।अतः दवा की एक खुराक ममी ने उसी समय ले ली थी। बस में रात वाली दूसरी ख़ुराक ममी को देने के बाद हम दोनों सो गए।

आधे ही घण्टे बाद लगभग 9 बजे ममी ने मुझे ज़ोर से हिलाया। मैं नींद से हड़बड़ा कर उठ बैठी। मम्मी को फिर से बैचेनी हो रही थी। मेरे समझ में नहीं आया मैं क्या करूँ। कैसे उनकी तक़लीफ़ दूर करूँ। उनकी छाती एवम पीठ को सहलाया। पानी पिलाया। लेकिन उनकी घबराहट कम नहीं हुई। मुझसे उसकी यह दशा देखी नहीं जा रही थी। मेरी आँखों में आंसू आ गए । उसी समय तुरंत मैंने उदयपुर अपने छोटे भाई को फोन लगाकर मां की स्थिति से अवगत कराया। मगर इतनी दूर होने से वो सिवाय सलाह देने के और कुछ कर भी नहीं सकता था। उसका कहना था आप मम्मी को लेकर वापस मुम्बई लौट जाओ और उनको वहीं किसी डॉक्टर को दिखाओ। जोकि सम्भव नहीं था।क्योंकि एक तो हम ममी को अस्पताल में दिखाकर और डॉक्टर की परमिशन लेकर ही निकले थे। दूसरी बात उस दिन दीदी के यहां दुल्हन का पग फेरा था। बेटी दामाद पहली बार खाने पर आनेवाले थे। वे सब परेशान हो जाते। उस पर मुम्बई से निकले हमें चार घण्टे हो गए थे। हम अंधेरी रात में हाइवे पर ऐसी जगह से गुज़र रहे थे जहां से आगे पीछे जाने के लिए कोई भी साधन मिलना लगभग असंभव था।दूर दूर तक कोई बस्ती नज़र नहीं आ रही थी।

कुल मिलाकर मुझे ही इस विकट परिस्थिति का सामना करना था। सो मैंने सबसे पहले तो केबिन के शटर सरका दिये ताकि ममी को थोड़ी ताज़ा हवा मिल सके। लेकिन स्थिति यथावत बनी रही। कुछ देर बाद उस ज़ोर से हिलती हुई बस में मैं जैसे-तैसे अपनी बाहों का सहारा देकर उन्हें सम्हालते हुए धीरे-धीरे बाहर ड्राइवर की सीट तक ले आयी।बोनट के पास वाली सीट पर बैठा दिया। और चालक से बस धीरे चलाने का आग्रह किया। बस का मुख्य द्वार भी खुलवा दिया जिससे मम्मी ताज़ी हवा में सांस ले सके एवम ऑक्सीजन की कमी न हो। लेकिन कोई असर होता नज़र नहीं आ रहा था। उनकी बैचेनी और तड़प बरक़रार थी। मैंने देखा ममी को इस सर्दी में भी पसीने आ रहे थे। इधर मेरे पैरों में न जूते थे न शरीर पर कोई गरम कपड़ा। मैं ठंड से ठिठुर रही थी। रात दस बजे का वक़्त था। ठंडी हवा मेरे कपड़ों के आर पार गुज़रकर मेरी हड्डियों को कंपकंपा रही थी। लेकिन तेज़ चलती हुई गाड़ी के कारण कहीं ममी का संतुलन न बिगड़ जाये इसलिए मैं अपने दोनों हाथ उनके दाएं बाएं टिकाकर लगभग बारह किलोमीटर तक ऐसी ही अडिग खड़ी रही और अपनी बाहों के घेरे में अपनी माँ को पल-पल अपनी साँसो के साथ संघर्ष करते हुए असहाय सी देखती रही । मेरी आँखों में आंसू आ गए।एक बेटी के लिए इससे अधिक दारुण दृश्य क्या हो सकता है। कि वह अपनी जननी को इतनी कष्टप्रद स्थिति में देखने के बाद भी उसके लिए कुछ नहीं कर सकती।अभी तो रात के दस बज रहे थे। उदयपुर पहुंचने में अभी बारह घण्टे लगने थे। तभी मैंने ड्राइवर से कहा किसी तरह किसी ऐसी जगह बस रोके जहां कोई क्लीनिक, कोई डिस्पेंसरी कोई अस्पताल या कोई मेडिकल स्टोर नज़र आये। ताकि मम्मी को प्राथमिक चिकित्सा दी जा सके और किसी तरह उदयपुर तक मैं उसे सही सलामत ले जाने में सफ़ल हो सकूँ। लेकिन बस हाइवे पर थी। बाहर घना अंधेरा। हाड़ कँपा देनेवाली ठंडी हवा। दूर- दूर तक ऐसी कोई सुविधा नज़र नहीं आ रही थी। लगभग 12 किलोमीटर बाद वापी से 40 किलोमीटर पहले एक छोटा सा गांव आया "चारोटी"। वहां ड्राइवर ने बस रोकी। तब तक कुछ पैसेंजर्स भी हमारे आस पास जमा हो गए थे। और ममी को ढाढ़स बंधाने लगे।वहाँ भाग्य से एक ऑटो रिक्शा पहले से खड़ा था।पूछने पर उसने वहां से एक किलोमीटर की दूरी पर एक अस्पताल बताया।

मम्मी उतरकर रिक्शा में बैठने एवम साथ चलने की स्थिति में बिल्कुल नहीं थी।उसकी हालत बहुत ख़राब थी। ऐसे सर्द मौसम में भी उसे पसीने आ रहे थे। तब जाकर मैंने हमारे बगल के केबिन में बच्चों के साथ सोई हुई भाभी को नींद से जगाया और ममी की स्थिति बताकर उन्हें  सम्हालने के लिए उनके पास खड़ा रहने को कहा । ममी की हालत देखकर वह भी घबरा गयीं।बस के सभी यात्री मम्मी के आस पास एकत्रित हो गए थे एवम उसे तसल्ली बंधा रहे थे।

मैं फ़ौरन डॉक्टर को अपने साथ लिवा लाने के लिए बिना सोचे समझे ऑटो रिक्शा में जाकर बैठ गयी। कुछ दूर जाने के बाद जंगल सा शुरू हो गया। चारों तरफ़ घना अंधेरा था। कोई रोडलाइट्स भी नहीं थीं।एकाएक मुझे होश आया और जैसे मैं नींद से जागी। मैं एक अनजान जगह अनजान लोगों के साथ एक अनजान दिशा में बढ़ रही थी। मैं भयभीत हो गयी ।अब मुझे अपना डर सताने लगा। और मैंने एकाएक ज़ोर से कहा भैया किधर ले जा रहे हो इधर तो सिर्फ अंधेरा और जंगल दिखाई दे रहा है। अस्पताल कहाँ है।तभी मेरे बगल में बैठे व्यक्ति ने कहा ,'मैडम घबराइए मत मैं उस बस का ड्राइवर ही हूं। मैं आपके साथ ही हूं और ये अच्छे लोग हैं।आप चिंता मत करिए। उसकी बातों से मुझे थोड़ी राहत महसूस हुई। आगे जाने पर हमें एक हॉस्पिटल नजर आया।दरवाजा अंदर से बंद था। खटखटाने पर एक महिला ने खिड़की से झाँका। पूछने पर बोली डॉक्टर साहब अभी अपने घर पर हैं हॉस्पिटल में नहीं है। मैंने उनसे कहा तुरंत मेरी उनसे फोन पर बात करवाओ मेरी मम्मी बहुत सीरियस है। उस महिला ने डॉक्टर से बात की लेकिन जवाब यही दिया कि इस समय वह नहीं आ सकते सॉरी। मैं एकदम घबरा गई और उसे ज़ोर से डांटने लगी कि कोई डॉक्टर भला ऐसा कैसे कर सकता है। यह तो पेशे के खिलाफ़ बात है।

तभी ऑटो रिक्शा चालक ने कहा पास ही एक सरकारी अस्पताल भी है चलिए वहां चलते हैं। मैंने तुरंत कहा चलिए भैया जल्दी चलिए। हम लोग तुरंत उस सरकारी अस्पताल की तरफ बढ़े। संयोग से वहां बाहर कार में ही कुछ डॉक्टर्स बैठे हुए मिल गए जो शायद अपने घर लौट रहे थे । मैंने उनसे प्रार्थना की कि मेरी मम्मी की तबीयत खराब है प्लीज जल्दी चल कर उसे देख लिजीए। डॉक्टर ने कहा मैडम पेशेंट को यहां लाना पड़ेगा हम वहां नहीं जा सकते। मैंने उनसे बहुत अनुनय विनय की देखिए वह यहां आने की स्थिति में नहीं है आप प्लीज वहां चलकर उन्हें देख लीजिए।वस्तु स्थिति समझ कर वह डॉक्टर कार में पीछे पीछे हमारे साथ चल दिए और  हम लोग आगे आगे  ऑटो में बैठकर बस की तरफ बढ़े।

बस में चढ़कर उन्होंने मम्मी का चेकअप किया और कहा इनको अभी तुरंत एडमिट करना पड़ेगा। मम्मी उतरने की स्थिति में नहीं थी और उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। मैंने हाथ जोड़कर बस के ड्राइवर से प्रार्थना की प्लीज कृपा करके आप हमें अस्पताल तक पहुंचा दीजिये। बस ड्राइवर और यात्री सभी मुझे परेशान होते हुए, संघर्ष करते हुए देख रहे थे और मम्मी की हालत भी प्रत्यक्ष थी अतः किसी ने कोई विरोध नहीं जताया और मैं पूरी यात्रियों से भरी हुई बस लेकर अस्पताल पहुंची। पहुंचते ही तुरन्त स्ट्रेचर लाया गया और कुछ यात्रियों की मदद से मम्मी को बस से उतार कर उस पर बिठाया गया। एक डॉक्टर ने सीढ़ियों की तरफ इशारा करते हुए मुझे कहा आप इधर से मेरे साथ आइये। ममी को शायद लिफ्ट से ले जाया जाएगा.. इसलिए मैं भागकर डॉक्टर द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब देती हुई

सीढियां चढ़ने लगी। ऊपर पहुंचकर सामने स्ट्रेचर पर ममी आती हुई दिखाई दी। उसकी गर्दन झुकी हुई थी। मैंने भागकर उसे अपनी बाहों का सहारा दिया।वार्ड की तरफ तेजी से ले जाते हुए ही मम्मी ने अचानक अपना शरीर ढीला छोड़ दिया। मानो इतने संघर्ष के बाद उसने मृत्यु के सामने हथियार डाल दिये हों। मैं एकाएक घबराकर ममी ममी चिल्लाकर उसे झिंझोड़ने लगी।मेरी ऊपर की सांस ऊपर नीचे की सांस नीचे अटक गई थी। मैं अनिष्ट की आशंका से कांप रही थी।फिर भी उमीद की किरण शेष थी।डॉक्टर्स ने मम्मी को बेड पर लेटा कर मुझे बाहर भेज दिया गया।मैं सांस रोककर प्रतीक्षा करने लगी।

डॉक्टर ने बहुत देर तक पंपिंग की ऑक्सीजन की नली लगायी। और न जाने क्या क्या प्रयास किया। लेकिन....

पंछी पिंजरे से उड़  चुका था। डॉक्टर ने जैसे ही कहा कि इनके साथ कौन हैं कृपया मेरे साथ आइये। मैं एकदम ब्लेंक हो गयी। पता नहीं क्या सुनने को मिलेगा।

डॉक्टर ने गंभीर मुद्रा में बताया कि.. आपकी मदर को साइलेंट अटैक आया है..हमने अपनी ओर से पूरी कोशिश की बट सॉरी.. शी इज नो मोर..." सुनते ही मेरे होश उड़ गए और मैं जोर से चीख पड़ी अरे ऐसे कैसे। ये आप क्या कह रहे हैं ...मेरी मम्मी अभी तो सही सलामत यहां पर मैं उसे लेकर आई हूं और आप बोल रहे हैं कि.... मैं अपना आपा खो दिया और मम्मी के ऊपर गिर कर जोर-जोर से रोने चीखने लगी..मम्मी बोलो न...मम्मी कुछ तो बोलो ..चुप क्यों हो.. लेकिन...मम्मी होती..तब तो बोलती..भाभी मुझे संभालने की कोशिश करते हुए खुद भी रोने लगी।

बस चालक और सहयात्री.. सब दर्शक बने देख रहे थे। वे अचानक उनकी आँखों के सामने घटी इस घटना को देखकर उदास और सकते में थे।

इधर डॉक्टर्स ने पता नहीं कब पुलिस को फोन करके हॉस्पिटल बुला लिया। वे पंचनामा बनाने की बात कर रहे थे। मैं इन सब चीजों से अनभिज्ञ थी। मैंने रोते हुए विनयपूर्वक कहा भी कि मुझे अपनी माँ को ले जाने दो। सभी बस यात्रियों और ड्राइवर ने भी मेरा साथ दिया। लेकिन उन्होंने कहा आप बिना noc के डेडबॉडी साथ नहीं ले जा सकते। आप अपने घर से किसी पुरुष को बुलवा लीजिये। यहां बहुत सारी कानूनी औपचारिकताएं करनी पड़ेंगी।         

सुनकर मैं लगभग पत्थर सी हो गयी। हे

भगवान! अभी आधे घण्टे पहले जो मेरी माँ थी। उसके लिए बार-बार डेडबॉडी शब्द का इस्तेमाल किया जाना....कानों को असहनीय पीड़ा दे रहा था।

मैंने तुरंत फालना में अपने पति को फोन लगाया जो पेशे से वकील हैं। उन्हें सारी वस्तुस्थिति बताई। उन्होंने डॉक्टर और थानाधिकारी से फोन पर बात की। उनसे कहा भी कि वो सारी आवश्यक डिटेल्स लेकर जहां चाहे मुझसे साइन करवा लें और हमें छोड़ दें। लेकिन वे निर्दयी लोग सहयोग करने को बिल्कुल तैयार नहीं हुए।

इधर हालात को भांपकर बस के कुछ यात्रियों में सुगबुगाहट शुरू हो गयी। कुछ ने कहा मेडम ये लोग अब आपको ऐसे नहीं छोड़ेंगे। अब आपको सुब्ह तक यहां रुकना ही पड़ेगा। हम लोग जितना सहयोग कर सकते थे किया। अब हमे बस छोड़नी पड़ेगी।

सचमुच लगभग ढाई घण्टे तक पूरी बस ने मेरे साथ शारीरिक और मानसिक रूप से सफर किया था। अब उन्हें और लेट करना मुझे भी उचित नहीं लगा। कोई मतलब नहीं था। बस को छोड़ने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था। ड्राइवर बड़ा ही भला इंसान था।  हर वक़्त हर जगह मेरे साथ खड़ा रहा। यात्रियों ने खुद ही हमारा सामान उतारकर हॉस्पिटल में रखवा दिया। अंततः मैंने हाथ जोड़कर रोते हए सभी यात्रियों का धन्यवाद किया और असहाय सी कातर मुद्रा में सबको जाते हुए देखती रही। मैं अब एकदम अकेली हो गयी थी। मेरे पक्ष में बोलनेवाला कोई नहीं था। मैं भारी कदमों से चलकर भाभी और बच्चों के पास आई।मम्मी को मोर्चरी में ले जाया जा चुका था। हमें वार्ड में ही दो बेड दे दिए गए। भाभी और मैं गले मिलकर ख़ूब रोये। बच्चे उनींदे और हैरान थे।उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ।

पति और भाई लगातार फोन से सम्पर्क में थे। पति ने धीरज बंधाते हुए मुझे फोन पर समझाया कि जितना समय हम लोग को वहां पहुंचने में लगेगा उतने समय मे तो तुम ही उदयपुर पहुंच जाओगे। इसलिए अब थोड़ा हौसला और दिखाओ। किसी तरह हिम्मत करके वहां से एम्बुलेंस में उदयपुर तक मम्मी को ले आओ। मैं व्यवस्था करवा देता हूं। फिर यहां हम सब संभाल लेंगे।

जहां हम थे..वहां से 40 किमी दूर था पालघर। जहां संयोग से पतिदेव के एक मित्र रहते थे। वकील साहब ने उनको फोन करके सारी स्थिति से अवगत कराया। लगभग डेढ़ घण्टे में उनके मित्र पालघर के अपने एक परिचित सुप्रसिद्ध डॉक्टर..दो रिश्तेदार एवम एम्बुलेंस सहित  मेरे पास पहुंच गए। वे डॉक्टर साहब वहां के डॉक्टर्स से सम्पर्क करने का प्रयास करते रहे ताकि वो रात में ही हमें एम्बुलेंस में भिजवा सकें। लेकिन आधी रात होने के कारण सबके मोबाइल स्विटच्ड ऑफ आ रहे थे। सभी सो गए थे। अतः वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने में असमर्थ थे।अतः मजबूरन हमे ड्यूटी कर्मचारी के निर्देशों का पालन करना पड़ा। अब सुबह होने पर ही कुछ हो सकता था।

इस दरम्यान एक पुलिस कर्मचारी मेरे पास आया और पूछताछ तथा पंचनामे के लिए मुझे अपने साथ थाने चलने को कहा। भाभी बच्चों के साथ हॉस्पिटल में थी। रात के दो बज रहे थे।         बाहर भयंकर सर्दी और हवा थी। थाना वहां से 15 मिनिट की दूरी पर था। वो मुझे पैदल ही थाने तक ले गया। मेरे हाथ पैर ठंडे हो चुके थे।

थाना चारों तरफ से खुला था। लगभग ढाई घण्टे तक वो मुझसे पूछताछ करते रहे। साथ ही साथ रिपोर्ट टाइप भी करते जा रहे थेे। सिर्फ मेरे ही नहीं.. पूरे खानदान की जन्मपत्री पूछ लेने के बाद उन्होंने सुबह साढ़े चार बजे फिर उसी ठंड में मुझे पैदल-पैदल हॉस्पिटल तक लाकर छोड़ दिया।

सुबह के 5 बज चुके थे। पालघर से मदद के लिए आये पतिदेव के मित्र ने बहुत आग्रह किया कि वे वहां किसी होटल में हमारे रुकने की व्यवस्था कर दें..या हम उनके साथ पालघर चले जाएं और सुबह लौटकर उनके साथ वापस आ जाएं। लेकिन मैंने मना कर दिया। मैंने कहा मैं यहीं रुकूँगी..अपनी मम्मी के साथ। हारकर वो सुबह आने का कहकर वापस चले गए।

मैं उसी बेड पर लेट गयी जिस बेड पर 6 घण्टे पहले ममी की निष्प्राण देह पड़ी हुई थी।लेटी हुई मैं पिछले 5 दिनों से मम्मी की आखिर में कही हुई बातों एवम स्मृतियों के साथ सफर करती हुई रोती रही। सुबह 7 बजे के आस पास सूर्य की किरण ने वार्ड की खिड़कियों से अंदर प्रवेश किया। मैं सोच रही थी ..आज ये किस अनजान और अपरिचित भूमि पर सूर्य दर्शन नसीब हुआ है।ये कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

दस बजे डॉक्टर आया और पोस्टमार्टम की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। मैंने बहुत अनुनय विनय की कि प्लीज़ मुझे मेरी माँ की देह ज्यों की त्यों ले जाने दीजिए। लेकिन वे निर्मम नहीं माने।           दोपहर बारह बजे तक सारी ओपचारिकताएँ सम्पन्न हुईं।वकील साहब के मित्र ने एम्बुलेंस का बंदोबस्त कर दिया था। ममी के शव को कॉफिन में लपेटकर एक बक्से में रखकर पिछले भाग में रख दिया गया। भाभी बच्चों के साथ आगे ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ गईं। क्योंकि शव पर छिड़के गए इत्र की गंध उनके लिए सहनीय नहीं थी। मैं अधमरी हालत में रोती सिसकती पीछे उस बॉक्स के साथ जिसमें मेरी माँ लेटी हुई थी वाली सीट पर बैठ गई।  दोपहर के 12 बजे मैं ममी की पार्थिव देह को लेकर उदयपुर के लिए रवाना हो सकी। पिछले 12 घण्टे उस अनजान जगह चारोटी के अस्पताल में गुज़ारने के बाद अब अगले 12 घण्टे उदयपुर के लिए  मुझे अपने बगल में बक्से में लेटी हुई अपनी माँ और पिछली स्मृतियों के साथ सफ़र करते हुए गुज़ारने थे।

कल शाम को गहनों और नए कपड़ों से लदी जिस माँ के साथ हंसते बतियाते मैं बस में सवार हुई थी..उसे अब इस तरह एक बॉक्स में पैक करके घर ले जाना पड़ रहा है। ये अहसास पिछले 48 घण्टे से मेरी जागी और पथराई हुई आंखों को सोने नहीं दे रहा था। आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। मै शारीरिक और मानसिक रूप से बुरी तरह थक चुकी थी। टूट चुकी थी।जैसे-जैसे उदयपुर पास आता जा रहा था..मेरे दिल की धड़कन और बैचेनी बढ़ती जा रही थी।

पतिदेव बराबर फोन पर तसल्ली दे रहे थे।साथ ही शाबाशी भी। कि तुमने बहुत बड़ा काम किया है। एक बेटा होने का फर्ज अदा किया है तुमने।जिन परिस्थितियों में अच्छे अच्छे पुरुष तक घबरा जाते हैं तुमने उनका हिम्मत से सामना किया है। बस किसी तरह उदयपुर पहुँचो फिर हम सब संभाल लेंगे। भाई भी लगातार ख़बर ले रहा था। उदयपुर में घर पर सभी रिश्तेदार इकट्ठे होकर हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। रात को लगभग साढ़े बारह बजे हमने उदयपुर में प्रवेश किया। मैंने फोन कर दिया था। सारे लोग द्वार पर ही खड़े हुए थे।उतरते ही निढाल होकर मैं पति लिपटकर ज़ोर से रो पड़ी। भाई भाभी भी गले मिलकर रोने लगे।मुझे किसी तरह कमरे में पहुँचाया गया। और फिर शुरू हो गयी माँ के अंतिम संस्कार की रस्में। अगले तेरह दिन तक आने जानेवाले मेहमानों को सारी घटना की जानकारी देते हुए मुझे जाने कितनी बार पीड़ा की उसी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ा।

ये मेरे जीवन का एक अप्रत्याशित पहला दुखद अनुभव रहा जिसे मैं चाहकर भी कभी भुला नहीं सकूंगी। पंच तत्व में विलीन हो गयी माँ..। मां की कमी जीवन में कभी पूरी नहीं हो सकती। अभी तक सकते में हूं। शून्य-सी हो गयी हूं। एकाएक एकाकी...सी। कुल मिलाकर.. मातृहीना का अर्थ समझा गयी माँ..


डॉ कविता"किरण" फालना,राजस्थान

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: मिस यू माँ" ( संस्मरण) - डॉ कविता"किरण"
मिस यू माँ" ( संस्मरण) - डॉ कविता"किरण"
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhrFrKH-6R9E2Hx55N63oYtFkIInhCHIA7pbf8i11LD0osOLJIaaVIA-w1PSDk8rKSNhxIJS7Xbl99CChPOmet8A28jejwNRFba26AGaOooBa9pk-8nPXCeFYfkaxrvowEcZGN/s320/IMG_20190204_080226+%2528Phone%2529-749197.jpeg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhrFrKH-6R9E2Hx55N63oYtFkIInhCHIA7pbf8i11LD0osOLJIaaVIA-w1PSDk8rKSNhxIJS7Xbl99CChPOmet8A28jejwNRFba26AGaOooBa9pk-8nPXCeFYfkaxrvowEcZGN/s72-c/IMG_20190204_080226+%2528Phone%2529-749197.jpeg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2019/05/blog-post_67.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2019/05/blog-post_67.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content