कहानी सच होते सपने - हरीश कुमार ‘अमित’

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कहानी सच होते सपने हरीश कुमार ‘अमित’ दिनेश ने रवाना होने से पहले राहुल और स्नेहा को हाथ हिलाकर अभिवादन किया और फिर ड्राइवर को गाड़ी बढ़ाने के...

कहानी

सच होते सपने

हरीश कुमार ‘अमित’


दिनेश ने रवाना होने से पहले राहुल और स्नेहा को हाथ हिलाकर अभिवादन किया और फिर ड्राइवर को गाड़ी बढ़ाने के लिए कहा. राहुल और स्नेहा कुछ देर तक जाती हुई कार को देखते रहे.

‘‘कितना सोचता है न दिनेश हम लोगों के बारे में! अब भी इस घर को ससुराल ही मानता है और हम लोगों को पूरा सम्मान देता है.’’ स्नेहा कहने लगी.

‘‘हाँ, यह तो है. सिर्फ़ इतना ही नहीं, दीपिका और उसके बच्चों के बारे में भी चिन्ता है उसके मन में.’’ राहुल बोला.

‘‘सबके बारे में इतना सोचनेवाला ख़ुद कितना अकेला है.’’ स्नेहा का स्वर बुझा हुआ-सा था.

‘‘ऊपर-ऊपर से हँसता-मुस्कुराता ज़रूर नज़र आता है दिनेश, मगर अन्दर से वह कितना अकेला और दुःखी है, इसकी झलक उसकी आँखों से मिल जाती है.’’ राहुल ने उदास-सी आवाज़ में कहा.

‘‘किसे पता था कि गीता शादी के सात साल बाद ही दुनिया छोड़कर चली जाएगी और दिनेश यूँ अकेला रह जाएगा.’’ स्नेहा की आवाज़ में भी उदासी घुली थी.

‘‘मुझसे दो साल ही तो छोटी थी मेरी इकलौती बहन! कोई बच्चा-वच्चा हो गया होता इनका तो उसी के सहारे काट लेता दिनेश अपनी ज़िन्दगी, पर...’’ कहते-कहते राहुल ने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया.

‘‘सुनो, मेरे दिल में एक बात आई है.’’ अर्थपूर्ण नज़रों से राहुल की ओर देखते हुए स्नेहा बोली.

‘‘क्या?’’ कहते हुए राहुल ने प्रश्नवाचक नज़रों से स्नेहा की ओर देखा.

‘‘दिनेश भी अकेला रह गया है और दीपिका भी. अगर इन दोनों की शादी...’’ स्नेहा कहते-कहते रूक गई.

स्नेहा की बात सुनते ही राहुल की आँखों में चमक आ गई. वह चहकती हुई-सी आवाज़ में बोल उठा, ‘‘सच कहूँ स्नेहा, यह बात तो मेरे दिल में भी घुमड़ रही थी. अगर इन दोनों की शादी हो जाए तो इससे बढ़िया बात और क्या हो सकती है!’’

‘‘इसके लिए बात करनी पड़ेगी दोनों से.’’ स्नेहा थी.

‘‘लेकिन मेरे दिमाग़ में यह बात भी आई है कि क्या दिनेश दीपिका को अखिल और निखिल के साथ स्वीकार कर लेगा? हो सकता है कि बच्चों को साथ रखने में आपत्ति हो उसे.’’ राहुल ने शंका ज़ाहिर की.

‘‘बात तो आपकी ठीक है.’’ राहुल की बात सुनकर स्नेहा भी जैसे सोच में पड़ गई. फिर कहने लगी, ‘‘एक बात और भी तो है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘अभी तो हमें थोड़ी-बहुत उम्मीद है कि निखिल हमारे पास आकर रहने लग सकता है, लेकिन अगर दिनेश और दीपिका की शादी हो गई और दोनों बच्चे भी उनके साथ रहने लगे, तब तो निखिल के हमारे यहाँ आकर रहने की संभावना बिल्कुल ही ख़त्म हो जाएगी. निखिल अगर हमारे घर में रहने लगे, तो हमारे घर का सूनापन भी दूर हो जाएगा.’’ स्नेहा ने अपने मन की बात कही.

‘‘दम तो है तुम्हारी बात में.’’ कहकर राहुल कुछ सोचने लगा. फिर कुछ देर बाद बोला, ‘‘सच तो यह है कि अपने बच्चों को साथ रखने का सबसे पहला हक़ तो दीपिका का ही है. अपनी ख़ुशी के लिए हम उसके अरमानों का ख़ून नहीं कर सकते. वैसे भी दीपिका चाहती नहीं कि निखिल हम लोगों के पास रहे. अपने दोनों बेटों को वह अपने पास ही रखना चाहती है.’’

राहुल की बात सुनकर स्नेहा कुछ सोचने लगी. फिर कुछ देर बाद बोली, ‘‘तो ठीक है, निखिल को अपने यहाँ रखने की बात हमें भुलानी होगी. दिनेश और दीपिका का घर बस जाए और अखिल-निखिल को पिता का साया मिल जाए, तो इससे ज़्यादा अच्छी बात और क्या हो सकती है.’’

स्नेहा के मुँह से यह सब सुनकर राहुल फिर से सोचों के भँवर में गोते लगाने लगा. फिर कुछ देर बाद संयत-सी आवाज़ में बोला, ‘‘मुझे तो लगता है स्नेहा, सबसे अच्छा यही रहेगा कि दिनेश और दीपिका की शादी हो जाए और दोनों बच्चे उनके साथ ही रहें.’’

सुनकर स्नेहा चुपचाप शून्य में ताकने लगी और फिर जैसे मन को कड़ा करके कहने लगी, ‘‘हाँ, यही ठीक रहेगा.’’

‘‘तो फिर आज ही बात करते हैं दिनेश और दीपिका से.’’ राहुल ने सुझाव दिया.

‘‘ठीक है. आप दिनेश से बात कीजिए, मैं दीपिका का दिल टटोलती हूँ.’’

तभी राहुल के मोबाइल फोन की घंटी बजी. दिनेश का फोन था. राहुल ने फोन उठाया तो उधर से दिनेश ने बताया कि जयपुर जाते समय उसकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई है. ख़ुद उसे थोड़ी-बहुत चोट लगी है और दाईं बाँह में हल्का-सा फ्रेक्चर भी हो गया है.

दिनेश के मुँह से यह सब सुनकर राहुल घबरा गया. इस पर दिनेश कहने लगा, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं है, भैया. एक नर्सिंग होम में मेरी मरहम-पट्टी हो गई है और बाँह पर प्लास्टर भी चढ़ा दिया गया है.’’

यह सब सुनकर राहुल को तसल्ली-सी हुई. दिनेश ने यह भी बताया कि उसके ड्राइवर को तो खरोंच तक नहीं आई. अलबत्ता गाड़ी की कुछ मरम्मत करवानी पड़ेगी.

‘‘दिनेश, ऐसे में तो तुम्हारा दिल्ली वापिस लौट आना ही ठीक है.’’ राहुल ने कहा.

‘‘हाँ, मैंने भी जयपुर जाकर स्पीच देने का इरादा छोड़ दिया है. दो-तीन घण्टे में जैसे ही ड्राइवर गाड़ी ठीक करवाकर ले आएगा, मैं वापिस दिल्ली के लिए चल पड़ूँगा.’’ दिनेश था.

‘‘ठीक है, दिनेश. मगर ऐसी हालत में तुम्हारा अकेले रहना ठीक नहीं. जब तक तुम पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाते, हमारे यहाँ ही रहना.’’ राहुल ने अपनेपन से कहा.

‘‘यानी कि अपने ससुराल में! ठीक है भैया, वहीं रहूँगा कुछ दिनों तक.’’ दिनेश ने निश्छल-सी हँसी हँसते हुए कहा.

राहुल के फोन रखते-न-रखते स्नेहा सारी बात समझ गई थी. दिनेश की हालत के बारे में राहुल से पूरी जानकारी लेने के बाद वह कहने लगी, ‘‘अब तो दीपिका को यहीं बुला लेना ठीक रहेगा. उसके बच्चों की गरमी की छुट्टियाँ भी हैं इन दिनों. दिनेश और दीपिका जब इस घर में रहेंगे तो हो सकता है कि उनमें एक-दूसरे के लिए भावनाएँ जागृत हो जाएँ.’’

‘‘बिल्कुल सही कह रही हो तुम स्नेहा. मेरे ख़याल से अभी इसी वक़्त दीपिका से बात कर लो.’’ राहुल था.

‘‘एक बार मम्मी-पापा से भी सलाह कर लेनी चाहिए. आखि़र वे इस घर के बुज़ुर्ग हैं.’’ स्नेहा ने सलाह दी.

‘‘सही बात है. चलो, उनके कमरे में ही चलकर करते हैं बाकी बातें. दिनेश के एक्सीडेंट वाली बात भी तो बतानी है उन्हें.’’ राहुल बोला.

दिनेश और दीपिका की शादी के बारे में बात करने पर राहुल के मम्मी-पापा ने भी इस रिश्ते पर अपनी सहमति जताई.

दीपिका राहुल की बुआ जी यानी कि गायत्री देवी की बहू थी. करीब एक साल पहले दीपिका के पति, संजय, की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. फिर दीपिका के ससुरालवालों ने उसे अपने घर से निकाल दिया था. वह बेचारी रोती-कलपती हुई अपनी माँ यानी कि गायत्री देवी के यहाँ आ गई थी - अपने दोनों बच्चों अखिल और निखिल के साथ. मगर आय का कोई साधन न होने के कारण दीपिका की ज़िन्दगी बड़ी मुश्किलों में कट रही थी.

दीपिका और बच्चों का मूड बदलने के लिए कुछ महीने पहले गायत्री देवी उन सबको अपने भाई यानी कि राहुल के पापा के यहाँ लाई थी कुछ दिनों के लिए तब निखिल राहुल और स्नेहा से बहुत हिलमिल गया था. अपना कोई बच्चा तो था नहीं राहुल और स्नेहा का. निखिल तो इसी घर में रह जाना चाहता था, मगर दीपिका जबरदस्ती उसे वापिस ले गई थी.

निखिल के जाने के बाद स्नेहा बड़ी उदास-उदास-सी रहने लगी थी. तभी एक दिन दिनेश आया था और हँसी-मज़ाक भरी अपनी बातों से उसने स्नेहा का मन हल्का कर दिया था. अपनी पत्नी, गीता, की असामयिक मृत्यु के बाद भी वह अपने ससुरालवालों को पूरा मान और स्नेह देता था.

स्नेहा ने दीपिका को फोन किया और कहने लगी, ‘‘दीपिका, बच्चों की तो गरमी की छुट्टियाँ चल रही हैं न इन दिनों. क्यों नहीं तुम लोग कुछ दिनों के लिए हमारे पास आ जाते. हमारा मन भी बहल जाएगा और मेरी कुछ मदद भी हो जाएगी.’’

‘‘मदद? कैसी मदद, भाभी?’’ दीपिका ने चौंककर पूछा.

तब स्नेहा ने दिनेश की दुर्घटना वाली बात दीपिका को बता दी. यह भी बता दिया कि अगले कुछ दिनों तक वह उन लोगों के पास ही रहेगा. स्नेहा ने एक बार फिर से कह दिया कि अगर दीपिका यहाँ आ जाएगी तो घर के काम-काज में उसे मदद हो जाएगी.

स्नेहा की बातें सुनकर दीपिका बच्चों समेत कुछ दिनों के लिए उनके यहाँ आने के लिए मान गई. उसने कहा कि वे लोग अगली सुबह तक पहुँच जाएँगे.

और फिर अगले दिन से तो राहुल और स्नेहा के घर का माहौल ही बदल गया. दिनेश, दीपिका, अखिल और निखिल की मौजूदगी से घर में ख़ूब चहल-पहल हो गई थी. सुबह से शाम कब हो जाती - पता ही नहीं चलता था.

दोनों बच्चे दिनेश से बहुत हिलमिल गए थे. दीपिका को भी दिनेश का साथ अच्छा लगने लगा था. इस मामले में राहुल और स्नेहा ने भी बहुत योगदान दिया और पूरी कोशिश की कि दीपिका और दिनेश दिन में ज़्यादातर समय इकट्ठे ही रहें.

हालाँकि कुछ दिन पहले राहुल और स्नेहा ने दिनेश और दीपिका की शादी के बारे में ख़ूब बातें की थीं, पर उन दोनों के पिछले कई दिनों से उनके अपने घर में सारा-सारा दिन सामने होने पर भी इस बारे में बात कर पाने की हिम्मत न राहुल को हो पा रही थी और न ही स्नेहा को.

लेकिन जो बात राहुल और स्नेहा नहीं कह पाए, वही बात दिनेश और दीपिका की आँखों में नज़र आने लगी थी. दिनेश और दीपिका की ज़्यादा-से-ज़्यादा वक़्त इकट्ठा बिताने की कोशिशें, उन दोनों का आपस में बातचीत करने का लहज़ा और इसी तरह की कई और छोटी-बड़ी बातें खुलेआम इस बात की गवाही दे रही थीं कि आग दोनों तरफ़ है बराबर लगी हुई. यह सब देख राहुल और स्नेहा को लगने लगा कि उनका काम अब आसान होता जा रहा है.

राहुल और स्नेहा सोच ही रहे थे कि दिनेश और दीपिका से किसी रोज़ उनकी शादी की बात की जाए, कि उससे पहले ही एक शाम को मौका देखकर दिनेश ने राहुल और स्नेहा को अपने दिल की बात कह दी. उसने कहा कि वह और दीपिका शादी करना चाहते हैं और अखिल-निखिल भी उन दोनों के साथ रहेंगे.

दिनेश के मुँह से यह सब सुनते ही राहुल और स्नेहा ख़ुशी के मारे उछल पड़े. उन्हें तो मुँहमाँगी मुराद मिल गई थी जैसे. उन दोनों ने दिनेश को मुबारक़बाद दी. दिनेश ने यह भी बताया कि उसने दीपिका से इस बारे में बात कर ली हुई है और वह भी इस रिश्ते के लिए राज़ी है.

स्नेहा ने आवाज़ देकर दीपिका को भी वहीं बुला लिया. अब परदेवाली बात तो कोई रह नहीं गई थी.

दीपिका आई तो उसने भी यह स्वीकारोक्ति की कि वह दिनेश से शादी करना चाहती है और अखिल और निखिल उनके साथ ही रहेंगे. फिर उसने अर्थपूर्ण नज़रों से दिनेश को देखते हुए कहा, ‘‘मेरी एक इच्छा और भी है.’’

दिनेश, राहुल और स्नेहा प्रश्नवाचक नज़रों से दीपिका की ओर देखने लगे.

‘‘मैं चाहती हूँ कि शादी के बाद मेरी सास भी हमारे साथ ही रहें.’’ दीपिका ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है! गायत्री जी भी हम लोगों के साथ रहेंगी तो दोनों बच्चों का ध्यान और अच्छी तरह रखा जा सकेगा.’’ दीपिका की बात सुनते ही दिनेश उत्साह-भरी आवाज़ में बोल उठा.

दिनेश और दीपिका की ओर देखते हुए तभी राहुल कहने लगा, ‘‘मेरी भी एक इच्छा है.’’

‘‘क्या?’’ दीपिका थी.

‘‘मैं चाहता हूँ... मैं चाहता हूँ...’’ कहते-कहते राहुल रूक गया.

‘‘कहिए न, क्या कहना चाहते हैं?’’ दिनेश पूछने लगा.

‘‘मैं चाहता हूँ कि शादी के बाद तुम सब लोग इस घर में हमारे साथ रहो.’’ राहुल एक ही साँस में कह गया.

‘‘अरे वाह, यह तो बड़ी अच्छी बात होगी!’’ राहुल की बात सुनते ही स्नेहा ख़ुशी से उछल पड़ी.

‘‘यह तो बहुत बढ़िया रहेगा!’’ दीपिका की आवाज़ में ख़ुशी का समन्दर लहरा रहा था.

‘‘यह सब तो वाकई बहुत अच्छा रहेगा! सब मिल-जुलकर प्रेम-प्यार से रहेंगे.’’ कहते-कहते दिनेश एक पल को रूका और फिर बड़ी गंभीर आवाज़ में कहने लगा, ‘‘मगर एक बात मुझे समझ नहीं आ रही.’’

‘‘क्या?’’ राहुल ने सवाल किया. स्नेहा और दीपिका भी सवालिया निगाहों से दिनेश की ओर देखने लगीं.

‘‘यही कि यह घर जो मेरा ससुराल है, मेरा मायका बन जाएगा क्या?’’

दिनेश की बात पूरी होते-न-होते कमरे में हँसी के फव्वारे छूटने लगे.

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संक्षिप्त परिचय

नाम हरीश कुमार ‘अमित’

जन्म मार्च, 1958 को दिल्ली में

शिक्षा बी.कॉम.; एम.ए.(हिन्दी); पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा

प्रकाशन 800 से अधिक रचनाएँ (कहानियाँ, कविताएँ/ग़ज़लें, व्यंग्य, लघुकथाएँ, बाल कहानियाँ/कविताएँ आदि) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित

एक कविता संग्रह ‘अहसासों की परछाइयाँ’, एक कहानी संग्रह ‘खौलते पानी का भंवर’, एक ग़ज़ल संग्रह ‘ज़ख़्म दिल के’, एक लघुकथा संग्रह ‘ज़िंदगी ज़िंदगी’, एक बाल कथा संग्रह ‘ईमानदारी का स्वाद’, एक विज्ञान उपन्यास ‘दिल्ली से प्लूटो’ तथा तीन बाल कविता संग्रह ‘गुब्बारे जी’, ‘चाबी वाला बन्दर’ व ‘मम्मी-पापा की लड़ाई’ प्र‍काशित

एक कहानी संकलन, चार बाल कथा व दस बाल कविता संकलनों में रचनाएँ संकलित

प्रसारण लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण. इनमें स्वयं के लिखे दो नाटक तथा विभिन्न उपन्यासों से रुपान्तरित पाँच नाटक भी शामिल.

पुरस्कार (क) चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट की बाल-साहित्य लेखक प्रतियोगिता 1994,

2001, 2009 व 2016 में कहानियाँ पुरस्कृत

(ख) ‘जाह्नवी-टी.टी.’ कहानी प्रतियोगिता, 1996 में कहानी पुरस्कृत

(ग) ‘किरचें’ नाटक पर साहित्य कला परिष्‍द (दिल्ली) का मोहन राकेश सम्मान 1997 में प्राप्त

(घ) ‘केक’ कहानी पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान दिसम्बर 2002 में प्राप्त

(ड.) दिल्ली प्रेस की कहानी प्रतियोगिता 2002 में कहानी पुरस्कृत

(च) ‘गुब्बारे जी’ बाल कविता संग्रह भारतीय बाल व युवा कल्याण संस्थान, खण्डवा (म.प्र.) द्वारा पुरस्कृत

(छ) ‘ईमानदारी का स्वाद’ बाल कथा संग्रह की पांडुलिपि पर भारत सरकार का भारतेन्दु हरिश्‍चन्द्र पुरस्कार, 2006 प्राप्त

(ज) ‘कथादेश’ लघुकथा प्रतियोगिता, 2015 में लघुकथा पुरस्कृत

(झ) ‘राष्‍ट्रधर्म’ की कहानी-व्यंग्य प्रतियोगिता, 2017 में व्यंग्य पुरस्कृत

(ञ) ‘राष्‍ट्रधर्म’ की कहानी प्रतियोगिता, 2018 में कहानी पुरस्कृत

(ट) ‘ज़िंदगी ज़िंदगी’लघुकथा संग्रह की पांडुलिपि पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान, 2018 प्राप्त

सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त

पता 304, एम.एस.4 केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56, गुरूग्राम-122011 (हरियाणा)

ई-मेल harishkumaramit@yahoo.co.in

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रचनाकार: कहानी सच होते सपने - हरीश कुमार ‘अमित’
कहानी सच होते सपने - हरीश कुमार ‘अमित’
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