वसंत बीत पतझड़ है आता, पतझड़ बीत वसंत है आता, कभी हँसाता, कभी रूलाता, प्रकृति का चक्र है चलता जाता, मोर नाचता, पपीहा गाता, शाम बीतती, सवे...
वसंत बीत पतझड़ है आता,
पतझड़ बीत वसंत है आता,
कभी हँसाता, कभी रूलाता,
प्रकृति का चक्र है चलता जाता,
मोर नाचता, पपीहा गाता,
शाम बीतती, सवेरा आता,
कभी धूप, कभी छाँव,
प्रकृति का ये रूप सबको भाता,
कही प्रेम, कही नफ़रत,
जीवन तो बस यही सरगम गाता,
पर जब प्रेम हो अधिक और नफ़रत हो कम,
तब जीवन का सरगम है सबको भाता,
वसंत बीत पतझड़ है आता,
पतझड़ बीत वसंत है आता,
कभी हँसाता, कभी रूलाता,
प्रकृति का चक्र है चलता जाता
कवि मनीष
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जब चलती है झरकती हवा,
चिलचिलाती धूप में बिलबिलाती हवा,
तब ऐसा लगता है मानों,
ख़त्म कर देना चाहती है वो जीने की दुआ,
जब फूलों को छूके ये गुजरती है,
जीवन को मंत्र मुग्ध कर जाती है,
ज़िन्दगी की जैसे क़ुबुल हो जाती है दुआ,
जब चलती है महकती हवा,
जब शीत के थपेडों को ये लेके आती है,
हृदय विगलित कर देती है,
दिल की धड़कनें बढ़ा जाती है,
जैसे मांग रही हो ख़ातिर हमारे मौत की दुआ,
जब चलती है अस्थि भेदती हवा,
पर ये तो है मौसमी प्रकोप,
इसे झेलना है उन सबको जिनका जन्म धरती पे है हुआ,
हर किसी को खेलना ही है ये जुआ,
जब चलती है झरकती हवा,
चिलचिलाती धूप में बिलबिलाती हवा,
तब ऐसा लगता है मानों,
ख़त्म कर देना चाहती है वो जीने की दुआ
कवि मनीष
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खिलौना प्यारे बच्चों की दुनिया है,
खिलौना ही उनकी खुशियाँ है,
मन को जो देता है आनंद उनके,
खिलौना वो प्रेम की नदिया है,
यूँ तो मन बहलानें के और भी हैं साधन,
पर खिलौना है तो बचपन की मस्तियाँ है,
खिलौना प्यारे बच्चों की दुनिया है,
खिलौना ही उनकी खुशियाँ है,
हो रात या सुबह की लालिमा,
खिलौना रहता नहीं उनसे कभी जुदा है,
अग़र कभी हो जाए वो ग़ुम,
वो ढ़ूँढ़ता उसे यहाँ-वहाँ है,
खिलौना प्यारे बच्चों की दुनिया है,
खिलौना ही उनकी खुशियाँ है,
मन को जो देता है आनंद उनके,
खिलौना वो प्रेम की नदिया है,
कवि मनीष
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किसान ही देश की माँ है,
रहके ख़ुद भूखा,
वो मिटाता है सबकी भूख,
वही सच्चा इन्साँ है,
किसान ही देश की माँ है,
करता है जी तोड़ परिश्रम,
पर देता अपनीं जाँ है,
किसान ही देश की माँ है,
किसान ही देश की माँ है,
बनाए हजारों क़ानून सरकार ने,
इनके लिए,
पर मिलता लाभ इनको कहाँ है,
किसान ही देश की माँ है,
बिचौलिये, साहूकार मारते हैं इनका हिस्सा,
जब दिखता नहीं कोई रस्ता,
तब ले लेते ये अपनी जाँ है,
किसान ही देश की माँ है,
किसान ही देश की माँ है,
किसान ही देश की माँ है,
किसान ही देश की माँ है
कवि मनीष
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बढ़ मुसाफ़िर बढ़ता जा,
बढ़ मुसाफ़िर बढ़ता जा,
बढ़ मुसाफ़िर बढ़ता जा,
बढ़ मुसाफ़िर बढ़ता जा,
बनाके ख़ुद को हिमालय सा,
बनाके ख़ुद को अटल शिला सा,
नील गगन में तू उड़ता जा,
बनके सूरज तू जलता जा,
बढ़ मुसाफ़िर बढ़ता जा,
बढ़ मुसाफ़िर बढ़ता जा,
बढ़ मुसाफ़िर बढ़ता जा,
बढ़ मुसाफ़िर बढ़ता जा,
निराशा को आशा से मार,
मन में भरके गंगा धार,
विजय पथ पे तू बढ़ता जा,
अमन पथ पे तू बढ़ता जा,
बढ़ मुसाफ़िर बढ़ता जा,
बढ़ मुसाफ़िर बढ़ता जा,
बढ़ मुसाफ़िर बढ़ता जा,
बढ़ मुसाफ़िर बढ़ता जा
कवि मनीष
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मजदूर ही मजबूत है,
जो दे छाँव ये वो धूप है,
मजदूर ही मजबूत है,
जो दे छाँव ये वो धूप है,
जो जाग-जाग के रात-रात,
जो देता है सुबह की सौगात,
जो जाग-जाग के रात-रात,
जो देता है सुबह की सौगात,
असल मेहनत का वही सबूत है,
मजदूर ही मजबूत है,
मजदूर ही मजबूत है,
मजदूर ही मजबूत है,
बेक़ार वो कभी बैठता नहीं,
बेक़ार उसे कभी करना नहीं,
बेक़ार वो कभी बैठता नहीं,
बेक़ार उसे कभी करना नहीं,
उसके घर में भी भूख है,
मजदूर ही मजबूत है,
मजदूर ही मजबूत है,
मजदूर ही मजबूत है,
मजदूर ही मजबूत है,
जो दे छाँव ये वो धूप है,
मजदूर ही मजबूत है,
जो दे छाँव ये वो धूप है,
मजदूर ही मजबूत है,
मजदूर ही मजबूत है,
मजदूर ही मजबूत है,
मजदूर ही मजबूत है
कवि मनीष
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चार चराग जलाने से,
रौशनी नहीं होती,
मन में इक दीया जलाके तो देख,
मन में इक दीया जलाके तो देख,
रौशनी ही रौशनी होगी,
चार चराग जलाने से,
रौशनी नहीं होती,
प्यार ही जीवन है, सदा,
ये मानकर चलो,
नफ़रत के दीये से कभी,
नफ़रत के दीये से कभी,
रोशनी नहीं होती,
चार चराग जलाने से,
रोशनी नहीं होती,
मन में इक दीया जलाके तो देख,
मन में इक दीया जलाके तो देख,
रोशनी ही रोशनी होगी
कवि मनीष
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जीवन ले जाये जिस तरफ़,
हमें चल जाना चाहिए,
हवा करे रूख़ जिस ओर,
हमें मुड़ जाना चाहिए,
होता नहीं ठीक हर घड़ी,
जीवन के विरुद्ध जाना,
जीवन जो हमें दे उसे,
ले लेना चाहिए,
समय की धारा में हमें बहना चाहिए,
जीवन ले जाये जिस तरफ़,
हमें चल जाना चाहिए,
किनारे को पकड़ के सदा हमें चलना चाहिए,
होता नहीं ठीक हरघड़ी सपनों में ख़ोये रहना,
होता नहीं ठीक हरघड़ी सपनों में ख़ोये रहना,
हक़ीकत की दहलीज़ पर हमें रहना चाहिए,
हक़ीकत की दहलीज़ पर हमें रहना चाहिए,
जीवन ले जाये जिस तरफ़,
हमें चल जाना चाहिए,
हवा करे रूख़ जिस ओर,
हमें मुड़ जाना चाहिए,
जीवन ले जाये जिस तरफ़,
हमें चल जाना चाहिए,
हवा करे रूख़ जिस ओर,
हमें मुड़ जाना चाहिए
कवि मनीष
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जय भारत माँ,
जय भारत माँ,
जय भारत माँ,
जय भारत माँ,
तुझसा कोई नहीं है माँ,
तुझसा कोई नहीं है माँ,
है आशा जहाँ तू है माँ,
है सवेरा जहाँ तू है माँ,
तू ही जीत की पताका है माँ,
तू ही ईश्वर और विधाता है माँ,
तू ही जीत की पताका है माँ,
तू ही ईश्वर और विधाता है माँ,
जय भारत माँ,
जय भारत माँ,
जय भारत माँ,
जय भारत माँ,
तू है वो सरिता जो कभी सूखे ना,
तू है वो रिश्ता जो कभी टूटे ना,
तू है वो दीपक जो कभी बुझे ना,
तू है वो पर्वत जो कभी झुके ना,
तू है पहचान हमारी ऐ ! भारत माँ,
तू है अभिमान हमारी ऐ ! भारत माँ,
तू है पहचान हमारी ऐ ! भारत माँ,
तू है अभिमान हमारी ऐ ! भारत माँ,
जय भारत माँ,
जय भारत माँ,
जय भारत माँ,
जय भारत माँ
कवि मनीष
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जल ही जीवन है,
जल से ही सजता आंगन है,
जल से ही महकता जीवन का गुलशन है,
जल ही जीवन है,
बगैर जल के जीवन की नहीं की जा सकती कल्पना,
बगैर जल के जीवन का है मतलब निशाचरों की भाँति भटकना,
जल से ही है सजता जीवन का मधुवन है,
जल ही जीवन है,
जल से सदा प्यार करना,
जल की कमी कभी न होने देना,
इसे संरक्षित करना ही जीवन है,
जल ही जीवन है,
जल ही जीवन है,
जल से ही सजता आंगन है,
जल से ही महकता जीवन का गुलशन है
जल ही जीवन है
कवि मनीष
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