माँ माँ ही दृष्टि, माँ ही सृष्टि माँ ही धरती गगन होती है, माँ मन से मधुबन होती है । माँ का रूप महाकाव्य है माँ के स्वर में छंद व्याप...
माँ
माँ ही दृष्टि,
माँ ही सृष्टि
माँ ही धरती गगन होती है,
माँ मन से मधुबन होती है ।
माँ का रूप महाकाव्य है
माँ के स्वर में छंद व्याप्त है
माँ गीत, संगीत, कीर्तन होती है
माँ मन से मधुबन होती है ।
माँ ही तीरथ, परमधाम है
माँ की मूरत में भगवान है
माँ ही जीवन, सृजन होती है
माँ मन से मधुबन होती है
माँ प्रेम - प्रीति का सावन है
माँ निर्मल,निश्छल, मनभावन है
माँ दग्ध निवारक चंदन होती है
माँ मन से मधुबन होती है
माँ का पद-रज परम तिलक है
माँ के चरणों में अनंत रतन है
माँ ताप - परिताप निकंदन होती है
माँ मन से मधुबन होती है
श्रीप्रकाश सिंह, (उपनाम : मनोज कुमार सिंह), सलाहकार, राष्ट्रीय मयूर, हिंदी मासिक पत्रिका,( यह कविता “अभिनव इमरोज” साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है ।)
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“मंथन”
शाख से टुटी पत्ती का मै स्पंदन हूं
भूखे बच्चे को लोरी सुनाती माँ का क्रंदन हूं
पत्थर पर घिसकर अफसोस ! मै बिखर गया
वरना शीतल, सुगंधित मैं भी एक चंदन हूं
किसी की ऑखों में सजना हो तुझे मुबारक
मै तो अश्कों में बह जाने वाला अंजन हूं
मैं भी उद्दीप्त प्रिय स्वर्ण था कभी लेकिन
अब बेवा के श्रृंगार से फेंका हुआ कंचन हूं
स्वागत-थाल में मैं भी सजा करता था शान से
पर आज मै एक परित्यक्त अभिनंदन हूं
दुख नही कि मैं हास्य पात्र बना हूं सबका
यह क्या कम है कि मैं एक सस्ता मनोरंजन हूं
अश्क हूं,आर्त हूं,उच्छ्वास से फेंका हुआ आह हूं
देव - दैत्य के संघर्ष में मथा हुआ मैं मंथन हूं
श्रीप्रकाश सिंह, स्नातकोत्तर ( उपनाम : मनोज कुमार सिंह) अध्ययन महाविद्यालय, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, उमियाम-793103, शिलॉग, मेघालय, मो. न. 9436193458 ( यह कविता सृजनलोक प्रकाशन के “समकालीन कविता संकलन” में प्रकाशित है ।
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नदी
सुबह सुनहली, शाम रूपहली
ऋतु मधुर, मतवाली है
पनघट पर पायल छनकाती
बलखाती कौन मस्तानी है ।
मंद- मंद चली पुरवाई
केसर- गंध उड़ाती है
क्षितिज पार नील गगन संग
कौन गोरी हुई दीवानी है ।
लहरदार, रंगीन चुनरिया
चोली बूटेदार सजी,
प्रणय-प्रकीर्तन, प्रीति मद में
कौन खिल रही सयानी है ।
अंबर के संग अंग लगने को
उफन रही है कौन कुमारी
लोकलाज का मान नही
यह कैसी उसकी मनमानी है ।
व्याकुल व्योम को चुम्बन लेकर
सरिता शॉत अब क्षितिज प्रशॉत में
सविता अस्तॉचल में डूब गया
वह शरम से पानी- पानी है ।
मर्यादा भान विहगों की टोली
छोंड़ चली उसे एकॉत
श्याम-रंग अपनी चुनरी से
उसे ढ़क रही संध्यारानी है ।
श्रीप्रकाश सिंह (उपनाम: मनोज कुमार सिंह), स्नातकोतर अध्ययन महाविद्यालय, उमियाम, शिलॉग, मेघालय, ( यह कविता साहित्यिक पत्रिका “ साहित्य अमृत में प्रकाशित हो चुकी है ।)
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मैं परी बदली हूं
मैं परी बदली हूं
उड़ने गगन चली हूं
किरणॉं के रंग में रंगकर
पवनों के संग मचली हूं
मैं परी बदली हूं
आसमाँ को छू लूं मैं
तारों को चूम लूं मैं
ओढ़ दोपहरी धूप को
छाया देने निकली हूं
मैं परी बदली हूं
कभी श्याम, कभी उजली हूं
मैं स्वर्णाभ कमली हूं
अम्बर के ऑगन में
मैं खिली- खिली कली हूं
मैं परी बदली हूं
कौन कहता- मैं अबली हूं
मत छेड़ो, मैं बिजली हूं
पर्वत से लड़कर मैं
पर्वत के पार निकली हूं
मैं परी बदली हूं
श्रीप्रकाश सिंह (उपनाम- मनोज कुमार सिंह) स्नातकोत्तर अध्ययन महाविद्यालय, उमियाम, शिलॉग, मेघालय, (यह कविता साहित्यिक पत्रिका “ साहित्य अमृत में प्रकाशित हो चुकी है ।)
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नारी
कौन कहता, तुम पराई हो ?
तुम शक्ति संपन्न, सुंदर नारी हो !
सृष्टिकर्ता की अद्भुत सृष्टि तुम,
उनकी अनुपम कलाकारी हो !
पगली,
क्यों कोसती हो खुद को ?
देखो, तो,
तुम कितना बलशाली हो !
चॉद कहॉ चॉदनी बिन,
रवि कहॉ रश्मि बिन,
शरीर कहॉ श्वॉस बिन,
सबके तुम दुलारी हो !
पानी पर तुमने बहुत लिख दिया,
अब पत्थर पर तुझे लिखनी होगी,
बहुत सुना ली अपनी करूण कहानी,
अब क्रॉतिकारी बननी होगी |
पत्थरों की छाती पर तुमको
नवंकुर उगाना होगा,
तुम सुशील, सुहृद, सुलज्जा हो पर,
अब अपना घूंघट उठाना होगा |
तुम, पानी, अग्नि और दामिनी हो,
तुम गीत, गजल और रागिनी हो
सजल संवेदना की पर्तिमूर्ति हो तुम,
हर रिश्ते की पूजारिन हो |
अपनी शक्ति पहचान तू बावली,
रूदन छोड़, अब ललकार लाड़ली,
करूणा से तेरा कर्म भरा है
चाहो तो, तुम प्रलयकारी हो
कौन कहता तुम पराई हो,
तुम शक्ति संपन्न, सुंदर नारी हो
सृष्टिकर्ता की अद्भुत सृष्टि तुम,
उनकी अनुपम कलाकारी हो !
श्रीप्रकाश सिंह (उपनाम : मनोज कुमार सिंह ) सदस्य, सलाहकार संपादक मंडल, राष्ट्रीय मयूर,नई दिल्ली, ( यह कविता “अभिनव शब्द प्रवाह” साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है ।)
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आत्मा के तस्करों से
पत्थर भी लहूलुहान हो कराह रहा है
चोट खाकर मानव की जोरदार ठोकरों से
मान, ईमान, सम्मान सब बेच दिया
कैसे बचा जाये इन आत्मा के तस्करों से
जुबॉ पर अॅगार है,पंजा- नाग- फण-सा
पाक को नापाक करते अपने एक-एक अच्छरों से
जख्म पर नमक छिड़कना, यही इनका काम है
दर्द देकर सेंकते हैं, चाटुकारी मरहमों से
बहु, बेटी, भगिनी , सभी आज त्रस्त हैं
कोई नहीं बचता है, इनकी बुरी नजरों से
खुदा, ईश्वर, ईशा, अब तुम ही बता
कौन करे प्रश्न, इन आज के रहबरों से
धर्म और मजहब पर, लड़ना भाई, छोड़ दो !
सुनो, यह आवाज आती कब्र और मकबरों से
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श्रीप्रकाश सिंह (उपनाम : मनोज कुमार सिंह ) सदस्य, सलाहकार संपादक मंडल, राष्ट्रीय मयूर,नई दिल्ली, ( यह कविता “अभिनव इमरोज” साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है।)
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मैं रंक लाजबाब हूं
जमाने के सितम से अब ना मैं डरता हूं
लेकर खुद का जनाजा अपने संग चलता हूं
कौन कहता है, मैं अकेला हूं, मेरा कोई नहीं
हमसफर हूं खुद का, हँसकर सफर करता हूं
तुम चलते हो ठोकरों से बचकर हर कदम पर
मैं तो ठोकरों का भी हर जज्बात समझता हूं
मुझपर पत्थरों का फेंकना मुबारक हो तुझे
मैं तो हर पत्थर को ही फूल किया करता हूं
दिन ले लो, रात दे दो, मेरे हिस्से में
भग्न्दीप हूं, फिर भी जला करता हूं
दर्द, जख्म, अश्क, जो भी देना चाहो, दे दो !
मैं रंक लाजवाब हूं, इन्हें ही लूटा करता हूं
बद्दुआ दिया, कुछ तो दिया- दुआ ले लो,
कुछ देना तो सीखा, लो सलाम करता हूं
श्रीप्रकाश सिंह ( उपनाम : मनोज कुमार सिंह), सलाहकार, राष्ट्रीय मयूर, मासिक पत्रिका, दिल्ली, ( यह कविता अभिनव इमरोज साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है ।)
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महादान
सुना है आज ही उसने कन्यादान दिया है
घरबार बेचकर सारा सामान दिया है
यह कैसी बेबसी है बेटी वालों की
बिटिया विदाई करके अपनी जान दिया है
उसके ऑखों में ऑसू, हाथों में मेंहदी
एक बेटी ने यह कैसा इम्तिहान दिया है
पिता को देकर कफन,अपना करके श्रृंगार
एक सुहागन होने की पहचान दिया है
भरकर सॉसों में आह और हृदय में वेदना
अपने साजन के संग प्रस्थान किया है
कितनी बहुयें जली, कितनी बेटियॉ मरी
एक बेटी ने फिर से बलिदान दिया है
इधर अर्थी सजी, उधर डोली उठी
छोड़ बाबुल का घर बेचारी बेटी चली
खूब रोती रही, खुद को कोसती रही
गरीब को क्यों बिटिया भगवान दिया है
यह कैसा इंसान, जरा बताओ भगवान,
जो चंद पैसों के खातिर ईमान दिया है
यह कैसी दस्तूर है दुनिया वालों की
बहुयें मारकर के देवी का नाम दिया है
जो आई थी कल लाल चुनरी में सजकर
हत्यारा साजन ने उसे श्मशान दिया है
इधर पिता की अर्थी, उधर बेटी की मैयत
अपना ले लो दहेज, यह महादान दिया है
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श्रीप्रकाश सिंह ( उपनाम : मनोज कुमार सिंह), सलाहकार, राष्ट्रीय मयूर, मासिक पत्रिका, दिल्ली, ( यह कविता प्रेरणा भारती“ समाचार पत्र में प्रकाशित हो चुकी है ।)
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कितने सुंदर रिश्ते हैं तकरारों के
कितने सुंदर रिश्ते हैं तकरारों के
रक -झक देखो, लहरों और किनारों के
बीत गये वे दिन अब बहारों के
तू - तू, मैं - मैं, नोक- झोक यारों के
प्रेम - प्रीति के रगड़े – झगड़े भी
अब मोटी हेडिंग बनते हैं अखबारों के
प्रेम -प्रीति की रीति वे क्या समझे
जो भाषा बोलते रहते हैं तलवारों के
सूनी गलियॉ रो रही बंजारों की
सूखी रोटी लूट गये लाचारों के
गूंगे, अंधे, बहरे पहरेदारों से
सितम रोकने चले हैं सितमगारों के
कर्तव्य करना अपना हम भूल गये
पर बात करते रहते हैं अधिकारों के
ईमानदारी कहीं रो रही फूट्पाथों पर
रौनक है महलों में मक्कारों के
कौन सुनता सिसकी टूटे सपनों की
कैसे कह दूं- कान होते दीवारों के
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श्रीप्रकाश सिंह, स्नातकोत्तर ( उपनाम : मनोज कुमार सिंह) अध्ययन महाविद्यालय, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, उमियाम-793103, शिलॉग, मेघालय, ( यह कविता सृजनलोक प्रकाशन के “समकालीन कविता संकलन” में प्रकाशित है ।
लेखक परिचय एवं साहित्य के क्षेत्र में योगदान
नाम : श्रीप्रकाश सिंह
उपनाम : मनोज कुमार सिंह
पिता का नाम : स्व. केशव सिंह
माता का नाम : श्रीमती फूलझरी देवी
स्थायी पता : ग्राम- इब्रहिमाबाद, पोस्ट- इब्रहिमाबाद, जिला- बलिया, उत्तर प्रदेश
पत्राचार का पता : कॉलेज ओफ पोस्ट ग्रेजुएट स्ट्डिज
सेंट्रल एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी, उमियाम, बारपानी- 793103, शिलॉग, मेघालय
Email- singhmanojprakash@gmail.com
जन्म तिथि : 15/07/1969
शैक्षणिक योग्यता : एम. ए., बी. एड.
व्यवसाय : सरकारी नौकरी
सदस्यता : Ex-Associate Member, Film Writer Association
प्रकाशित पुस्तक : उपन्यास- मंगलसूत्र
: काव्य- मेरी प्रेयसी
इसके अतिरिक्त “अभिनव इमरोज”, साहित्य अमृत, शब्द प्रवाह साहित्यिक पत्रिकाओं सहित अन्य विभिन्न राष्ट्रीय पत्र- पत्रिकाओं में रचनाओं का नियमित प्रका शन ।
साहित्यिक पदभार एवं कार्य :
1-स्नातकोत्तर अध्ययन महाविद्यालय, कृषि विश्वविद्यालय, उमियाम, रि-भोई, मेघालय में गठित हिंदी समिति के सचिव के रूप में हिंदी के प्रचार-प्रसार का कार्य्।
2- सदस्य, सलाहकार मंडल एवं स्तंभकार, मासिक हिंदी पत्रिका “राष्ट्रीय मयूर”,नई दिल्ली ।
3- सलाहकार संपादक- कंचन मेधा, अध्यात्मिक पत्रिका ।
पुरस्कार एवं सम्मान 1- वर्ष 1996 में स्नातकोत्तर महविद्यालय, खलीलाबाद मे आयोजित भाषण एवं वाद-विवाद प्रतियोगिता में क्रमश: प्रथम एवं द्वितीय पुरस्कार.
2-“साहित्य रत्न” 2012 ( समता साहित्य अकादमी, महाराष्ट्र के सौजन्य से डॉ माता प्रसद, पूर्व राज्यपाल, अरूणॉचल प्रदेश के द्वारा 26 मई,2012 को मुम्बई में आयोजित राज्यस्तरीय एवं राष्ट्रीय गौरव पुरस्कार 2012 के अंतर्गत प्रदान किया गया)
3- भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2012 का ‘डाँ. भीम राव अम्बेडकर राष्ट्रीय फेलोशीप सम्मान’ 2012.( यह सम्मान भारतीय दलित साहित्य अकदमी, नई दिल्ली के दो दिवसीय 28 वें राष्ट्रीय सम्मेलन दिसम्बर 9 -10,2012 मे प्रदान किया गया)
4- “अखिल भारतीय साहित्य सम्मान 2013” शब्द प्रवाह साहित्य मंच उज्जैन, मध्य प्रदेश द्वारा प्रदान किया गया |
5-माण्डवी प्रकाशन फेसबूक ग्रुप द्वारा 3/3/2013 को आयोजित QATA’AT AUR MUKTAK प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार
6- India+ Nepal Friendship International Award -2013 “ से सम्मानित. यह सम्मान 10 /11/2013 को कठमाण्डु, नेपाल में आयोजित समता साहित्य अंतर्राष्ट्रीय साहित्यकार सम्मेलन-2013 मे नेपाल अकैडेमी के चांसलर माननीय तिल विक्रम नियांग द्वारा दिया गया.
7 -पूर्वोत्तर हिंदी एकेडेमी, शिलॉग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय हिंदी विकास सम्मेलन एवं अखिल भारतीय लेखक सम्मान समारोह में “ डॉ. महारज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान- 2014” से सम्मानित |
8- भारतीय वाड्मय पीठ, साहित्यिक संस्था, कोलकता द्वारा “ युगपुरूष स्वामी विवेकानंद पत्रकार- रत्न सारस्वत सम्मान- 2016.
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