१ - " मॉ " मॉ दुनिया का सार है जो स्रष्टि का आधार है । वह दयावान औ 'निडर' है मॉ ही अनाथ की शरण है । मॉ मन की मुदित भा...
१ - " मॉ "
मॉ दुनिया का सार है
जो स्रष्टि का आधार है ।
वह दयावान औ 'निडर' है
मॉ ही अनाथ की शरण है ।
मॉ मन की मुदित भावना है
स्मित करने की कामना है ।
वह संवेदना की शान है
अमर वेदनाओं की आन है ।
सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति है
फैला रही यशकीर्ति है ।
मॉ ही साक्षात् भगवान है
कालजयी और महान है ।
मॉ ताल सरिता समुन्दर है
मॉ पर्वत पठार गुल सुन्दर है
मॉ ही मन्दिर और मस्जिद है
मॉ ही काबा और काशी है ।
मॉ ही बुद्ध विहार है
सारे धर्मों का आधार है ।
मॉ तो जीवन का आगाज है
जिन्दग़ी के मुअम्में का राज है ।
मॉ तो स्याही और तेज कलम है
तड़ाग मध्य खिला कमल है ।
मॉ बच्चों की बुनियाद है
जो पूरी करती फरियाद है ।
जहां में कुछ भी नहीं है
जो मॉ में समाया नहीं है ।
करें सम्मान नहीं जो मॉ का
वह अशिष्ट है
स्वार्थ से लिपटा हुआ वह
नर अनिष्ट है ।
----देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
सीतापुर-उत्तर प्रदेश
२ - " कायरता "
कायर बनकर जो रहता
वह सदा सताया जाता है
बलिवेदी पर सिंह नहीं चढ़ता
केवल मेमना चढ़ाया जाता है ।
कायर की कोई पूँछ नहीं
वह अपमानों में जीता है
सम्मान कहीं वह न पाता
समर नहीं वह जीता है ।
कातर की क्या हिम्मत जो
सामना करें विराट वीरों का
डरता है जो खुद जीवन में
वह मालिक न बनता सीरों का ।
कायरता ने जिसको तोड़ दिया
वह कभी नहीं उठ पाता है
जीवन में जिन्दा रहकर भी
वह मुर्दा सम आंका जाता है ।
इस ख़ातिर अब कायरता को
हो करके 'निडर' छोडों तुम
सम्मान तुम्हें तब मिल जायेगा
जब वीरता से नाता जोड़ों तुम ।
-----देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
सीतापुर-उत्तर प्रदेश
३ --" नील गगन "
मै नील गगन जब निहारता
कौतूहल में खो हो जाता हूँ
है दिगम्बर क्या क्या कहता
मै जिज्ञासु बहुत हो जाता हूँ
कभी समझ में यह आता कि
बेहतर सन्देश है बांट रहा
पर कभी कभी ऐसा है लगता
मानों गलती पर है डांट रहा
कहीं कहीं यह बीर धीर सा
मानो सीना ताने है खड़ा हुआ
अपने पथ पर चलने को आतुर
'निडर' राही सम है अड़ा हुआ
कहीं कहीं तो यह अम्बर
प्रचण्ड वेग सा चलता है
चाहे जो आवे पथ में बाधा
वह 'निडर' भाव से बढ़ता है
कहीं कहीं पर घात-प्रतिघात
करने वाला वह दिख जाता है
हो जैसे लड़ रहा विपत्तियों से
ऐसा 'निडर' बीर दिख जाता है
कहीं कहीं पर वह मानों
क्रोध करके है उछल रहा
डरता न तनिक भी यह
खुद करतब पर है चौक रहा
विकट हुंकार कहीं भरने को
आतुर मन्ज़र जैसा दिख जाता है
भारत के चरणों में गिरने का
परिदृश्य नजर भी आता है
नील नभानन से पूरा जग
नीलामय हो जाता है
हुंकार गूंजती स्वागत की
जब जग एक रंग हो जाता है
मुख से वाणी ऐसे निकले
जैसे वह वाचालों का वाचाल हो
मुखार तरंगे ऐसे उद्वेलित होती
मानों करने वाली कोई कमाल हो
कभी कभी यही गगन ही
गुलाबी चादर ओढ़े दिखता है
जैसे पास में हो सुख समृद्धि
भावों से नभानन खिलता है
लेके कहीं सुनहली किरणों को
दुनिया का सैर कराता है
जैसे हो उसकी वही समर्थक
न किसी से वह बैर कराता है
श्रंगारबद्ध आलिंगन से
कहीं प्रकृति प्रेम में निमग्न हुई
सुखानुभूति के लालच में
कहीं खुद ही है स्निग्ध हुई
कुछ अवनि के मतवालों को
यह प्रतीक प्रेम का प्यारा है
धवल गगन का यह मन्ज़र
लगता उनको न्यारा है
हंसी हंसी का कलनाद
कहीं कहीं दिख जाता है
तब मन मयूर हो कर के
बढ़िया स्वप्न सज जाता है
कहीं के आलिंगन से ऐसे
मानों हृदय की प्यास है बुझी नहीं
ऐसे दिखते उनके मन्ज़र जैसे
प्यार आश की है झुकी नहीं
यह अम्बर है बहुत रहस्यमय
इसका अखिल राज खोल न पाऊँगा
जिसमें परतें दर परतें है दबी हुई
जिनको अब और नहीं निकाल पाऊँगा ।
जानने ख़ातिर अम्बर की गहराई को
फिर कोशिश 'निडर' करूँगा
पर अभी तो बस यही तक
अपने कोशिश का खुद अन्त करूँगा ।।
----- देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
सीतापुर-उत्तर प्रदेश
४ --" अभियान गीत "
आओ आओ मिलकर
अब दूर तलक चलना है
कर्तब्य बोध ढंग से करके
सुन्दरतम् कृति रचना है ।
आओ आओ.............
सफल कहानी गढ़ने को
ऊंची उड़ान भरने को
जीवन रहस्य पढ़ना होगा
अटपट पथ पर चलना होगा
पर इस पथ से अब तुमको
कभी नहीं हटना हैं ।
आओ आओ .............
साथ दे जो उसका भी
जो न संग रहे उसका भी
सबको सम्मान दिया जाये
किसी का भेदभाव
तनिक न किया जाये
और उसको कभी
तंग नहीं करना है
आओ आओ............
चन्दा तक चढ़ने को
सूरज का ताप मापने को
झरनों की गिरा जानने को
अतल समुंद्र की
तली तक छानने को
संघर्ष काल तक
अविरल संघर्षों पर डटना है ।
आओ आओ ..............
मानवता का जग में मान
बढ़ाने को
विश्व फलक पर
भारत की शान बढ़ाने को
ऐसे ख्वाबों के
राहों पर चलकर
असली सपनों को
संग साथ मिल बुनना है ।
आओ आओ ...........
सामाजिक कुरीतियों को
'निडर' छोड़छाड़
भ्रष्ट ब्यवस्था का भण्डा
बेझिझक फोड़फाड़
नैतिकता को सम्बल देकर
बढ़ जाना है अवलम्बन लेकर
पाने को गुरुत्तर गरिमा
फिर विश्व गुरु बनना है ।
आओ आओ.............
-----देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
सीतापुर-उत्तर प्रदेश
५ -- " जनतन्त्र "
जनतन्त्र का सदा सर्वदा
स्वागत करता है कर जोड़ दिवाकर ।
और प्रतीक्षा करता रहता है
जब तक न आ जाये पूर्ण निशाकर ।।
यही श्रृंखला चलती रहती है
जितने भी होते निशि वासर ।
प्रकृति शक्ति भी हाथ जोड़ कर
स्वागत करती है आ जा कर ।।
जनतंत्र के पावन पर्वों पर
खुशी आती है हर चेहरे पर ।
मनमाफिक रहनुमा चुनूंगा
यह ख्याल बना है मुखड़े पर ।।
नहीं चुनूंगा उस नेता को
जो भ्रष्ट और बदनाम हो।
अब उसकी हम नहीं सुनेंगे
जो करता न कोई काम हो।।
मान रखूंगा उस नेता का
जो जनतंत्र का बढ़िया रक्षक हो ।
निदान करें हर समस्या का
न किसी के हक का भक्षक हो ।।
जाति धर्म पर नहीं अटूंगा
चाहे जितना दे लालच ।
वर्ना पंच वर्ष तक मैं भी
हो जाऊंगा उनका याचक ।।
अब याचक बनना दो छोड़छाड़
लोकतन्त्र के विराट वीर बनो ।
अच्छे अच्छे कर्मो से
लोकतन्त्र की सुन्दर शान बनो ।।
जनता जब अपने पर आती है
भ्रष्ट नेताओं को सबक़ सिखाती है ।
वर्ना उनकी काली करतूतों का
खुल्लम खुल्ला उपहास उड़ाती है ।।
-----देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
सीतापुर-उत्तर प्रदेश
६ -- " मिलकर चलना "
मिल कर रहना
मिल कर चलना
है सबके बस की बात नहीं ।
वंचित जन की
आवाज उठाना
उनके सब
अधिकार बताना
अधिकार बताकर
साथ में चलना
है सबके बस की बात नहीं
मिलकर रहना............
काम करे जो
सुन्दर सुन्दर
जिसकी चर्चा
हो इधर-उधर
ऐसे सृजनशील
क्षमता को
अवसर देना
और दिलाना
है सबके बस की बात नहीं ।
मिलकर रहना.............
मधुमक्खी जब जब
मिलकर रहती है
तब तब मीठा
मकरन्द बनाती है
एक अकेले जीवन
में वह कटी पतंग
सी हो जाती है ।
फिर ऊँची उड़ान भरना
और ऊँचाई पर डटना
है सबके बस की बात नहीं ।
मिलकर रहना............
चीटियां जब सारी
मिलकर है रहती
तब अपने राह
में हैं फबती
फिर कितनी
सुन्दर वें दिखती
जब सीधी लाईन
में चलती
तब साथ साथ सीधा चलना
है सबके बस की बात नहीं
मिलकर रहना...........
चिड़ियां जब
फुर्र फुर्र करके
उड़ जाती हैं ।
तब सबके मन
को भाती है ।
शिकार बनाकर
प्यारी चिड़ियों का
दुस्साहस करना ।
है सबके बस की बात नहीं ।
मिलकर रहना...........
चमन तभी है
मन को भाती
गुलों की जब
सदा महक है आती
वरना एक अकेला गुल
खारों में रह जायेगा
जिसका खास मोल भाव करना
है सबके बस की बात नहीं
मिलकर रहना.........
......देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
सीतापुर-उत्तर प्रदेश
७ -- " गौरैय्या "
'गौरैया दिवस' पर
मेरी रचना------
जब चिड़ियां मुण्डेरों
पर निर्भय उड़ती थी ।
मन मयूर हो जाता था
जब चूं चूं करती थी ।।
आज प्रकृति से जब
इनकी संख्या घटती है ।
तो दिल में दर्द बहुत
होने से चिंता बढ़ती है ।।
फुदक फुदक कर जब
बागों से आती जाती थी ।
तब कितना अच्छा था
औ शान बड़ी निराली थी ।।
फुर्र- फुर्र के कलरव से तन
मन विह्वल हो जाता था ।
गौरैया के मनमोहक नीड़ों
से सौन्दर्य बोध हो जाता था ।
गौरैया आज बड़े तड़के
अपनी कथा बांचती है ।
कितने झंझावत मै सहती
यह पीड़ा बहुत सालती है ।
दुखियां बनकर तुमसे
कुछ काम चाहती हूँ ।
संरक्षण करो सब मेरा
ऐसा आशीष चाहती हूँ ।
जो रक्षा और सुरक्षा
देगा मै उसे दुआएं दूँगी ।
प्रगति करेगा जीवन में
जयकार फिज़ाओं में होगी ।।
-----देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
सीतापुर-उत्तर प्रदेश
८ -- " रिश्ता "
मस्त हो मौसम
तो मन मचलता है ।
गर उर में हो भय
तो तन बदलता है ।।
धोखा जब दे कोई
तो दिल सिसकता है ।
तब दुख की चिंगारी में
वह भी निख़रता है ।।
रूमानी बहार हो
तो तन मन बहकता है ।
चन्दा से जुदा प्रकाश हो
तो वह भी भटकता है ।।
मुश्किले राह छोड़े अपने
तो बहुत खटकता है ।
मिलकर रहे जब अपने
तब रिश्ता महकता है ।।
किरण से रवि होता
जुदा तो वह तड़पता है ।
एक दूजे की के लिए
वह भी रूप बदलता है ।।
जिन्दगी जंजाल है
लिहाजा रखना सजगता है ।
वर्ना पछताओगे फंसकर
मुअम्में में और सिहरता है ।।
लालच में न गया जो
वह ही नहीं फिसलता है ।
'निडर' रह पायेगा वही
जो ईमानी आग से दहकता है ।।
----देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
सीतापुर-उत्तर प्रदेश
९ - " रानी बिटिया का संकल्प '
अम्मा मै भी पढ़ने जाऊँगी ।
भईया के संग जाऊँगी ।
बनकर तेरी न्यारी बिटिया ।
जग में नाम कमाऊँगी ।।
हो करके कड़क ऑफीसर ।
सब पर डांट लगाऊँगी ।।
ज्ञान करूँगी बढ़िया हासिल ।
औ दुनिया को राह बताऊँगी ।।
मापूँगी अवनि से अम्बर तक ।
ऐसा साहस मै दिखलाऊँगी ।।
नापूँगी की जलधि की गहराई ।
यह भी करके मै दिखलाऊँगी ।।
बनकर ईमानदार ऑफीसर ।
बेईमानों को सबक सिखाऊँगी ।।
और बनूँगा पायलट हे ! पापा ।
रोज जहाज उडा़ऊँगी ।।
बनकर पुलिस की मै हाक़िम ।
दुष्टों को गिरफ्तार कराऊँगी ।।
मन लगाके विज्ञान पढ़ूँगी ।
फिर वैज्ञानिक मै बन जाऊँगी ।।
हम हैं मानो चन्दा की किरणें ।
महि पर स्वच्छ चांदनी लाऊँगी ।।
पढ़-लिख 'निडर' बन करके ।
सरहद पे लड़ने जाऊँगी ।।
अच्छे अच्छे काम करूँगी ।
तब रानी बिटिया कहलाऊँगी ।।
जीवनियाँ पढ़कर विद्वानों की ।
सामाजिक मुहिम चलाऊँगी ।।
अब मैं भी संघर्ष करूँगी ।
सारे वचन निभाऊँगी ।।
करके अजब गजब के करतब ।
जग में नाम अमर कर जाऊँगी ।।
स्वरचित....देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
सीतापुर-उत्तर प्रदेश
१० -- " हौसल अफज़ाई "
शोहरत गर है पाना तो बन्दे हुनर पैदा कर
मेहनत के बलबूते तू असर पैदा कर ।
इस कायनात में गर मीठे फल है खाने ।
तो जिन्दगी में बेहतरीन शज़र पैदा कर ।।
कोई कुछ कहे पर कच्चे कान मत बन ।
दोस्त के दीदार ख़ातिर नज़र पैदा कर ।।
मुसीबत कितनी भी आये फर्ज़े राह में ।
तू उसे सहन करने का सबर पैदा कर ।।
शराफत न डगमगाये कभी इस फानी में ।
ईमानी कामों से तू पक्की मुहर पैदा कर ।।
गर सूरज की तरह चाहते हो चमकना ।
तो तम मिटाने की किरन पैदा कर ।।
जरायम के जहां से गर चाहते हो टकराना ।
तो 'निडर' जैसा फौलादी जिगर पैदा कर ।।
देश समाज का यदि भला चाहते हो बढ़िया
तो हरेक बच्चे को पढ़ाने की जुर्रत पैदा कर ।
मुल्क को मालामाल बनाते रहो मेरे अदीब ।
हर वक़्त हुब्बलवतनी की बहर पैदा कर ।।
ज़िन्दगी ख़ौफ का अक़्श है मेरे दोस्त ।
इसलिए हर घर में तू 'निडर' पैदा कर ।।
-------------देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
साहित्यकार , सामाजिक चिंतक
शिक्षाविद् , संस्थापक - मिशन
महापुरुष मूवमेंट मंच ( एम ४ )
ग्राम - अल्लीपुर , पत्रालय - कुर्सी
तहसील - सिधौली , ज़िला - सीता
-पुर , राज्य - उत्तर प्रदेश पिन कोड
- २६१३०३ ,
बहुत अच्छा गुरू जी🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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