सर्वेक्षण को महा सर्वेक्षण कहने के अलग ही फायदे हैं, वजन बढ़ जाता है कहने का। अब एग्जिट पोल बोलेगें तो सादा-सादा, सूखा लगेगा। पोल शब्द होते ह...
सर्वेक्षण को महा सर्वेक्षण कहने के अलग ही फायदे हैं, वजन बढ़ जाता है कहने का। अब एग्जिट पोल बोलेगें तो सादा-सादा, सूखा लगेगा। पोल शब्द होते हुए भी पोल नहीं खुल पाती है पार्टियों की, कुछ दिन तक बस पोल के सहारे सभी के भविष्य लटक जाते हैं इसलिए हम सर्वेक्षण कहते हैं। फिर महा सर्वेक्षण का जन्म भी महामिलावटी और महागठबंधन जैसे शब्दों से हुआ है। जहां एक दो नहीं दस-बारह जुट गए वो हो गए महा, साथ में सर्वेक्षण जोड़ दिया तो बन गया महा सर्वेक्षण। यानी आठ दस कंपनियों ने मिलकर कर लिया महा सर्वेक्षण और बाकी लोग इसी में मुंह ताकते रह गए कि कोई हमसे से पूछने आएगा।
फिर आती है धूल चटाने की बारी तो भैया, ये राजनीति है। मतलब नीतियों पर राज करो और फलो-फूलो खूब बढ़ो। तो
धूल चटाने के लिए जरूरी नहीं कि पटक मार मारी जाए, लोगों की सोच से आगे निकलना भी धूल चटाने जैसा ही होता है। अब एग्जिट पोल को ही देख लो, कितनी भी बड़ी बड़ी हांक दे लेकिन सच्चाई से सामना कुछ और ही होता है।
हरियाणा में बीजेपी को 22 सीट जीता बता दिया जबकि वहां की कुल सीट ही बस 10 हैं, अब क्या कहें ऐसे ही हाल अन्य प्रदेश के भी रहे। अभी कुछ दिन पहले की ही बात है जब
एक बंधु शाम को बंगाली रसगुल्ले खिलाने आ गए, भई एग्जिट पोल ने उनके नेता को जीतते हुए बताया था। तेईस को हम मिठाई खिलाने चले गए क्योंकि नेता तो जीते हमारी पसन्द के थे और परिणाम देखकर पड़ोसी के मुंह पर बारह बज रहे थे।
तीसरे पड़ोसी भी आ गए बोले भाइयों 'महासर्वेक्षण में बैठे ठाले सबको धूल चटा दी, जनता के पैसों की भी अच्छी बैंड बजा दी।'
सिर चकराया, पूँछा भाई कैसी बातें करते हो, झूठ बोलने से थोड़े तो डरो।
भाई साहब ने फिर एक अखबार दिखाया जिसमें आया इस बार का चुनाव दुनिया का सबसे मंहगा चुनाव है, पचास हजार करोड़ से भी ज्यादा का खर्च आया है।' पढ़कर सारी खबर मेरा ही लड्डू मेरे मुंह में ना समाया, फिर अपनेआप हाथ ने वापिस लड्डू को डिब्बे का रास्ता दिखाया। सुनकर सारी बात नौकर लल्लू भी बोल उठा, मैडम! चुनाव प्रचार पर इस बार कम खर्च का दावा किया गया फिर इतना पैसा किसे किसे दिया गया। किसने ये महासर्वेक्षण करवाया, मुझ जैसे गरीब का भी पैसा खाया है?
सुनकर उसकी बातें मैंने भी मौन साध लिया, चुनाव आयोग के नाक तले चोरी कैसे हो गयी। क्या उनको मालूम नहीं, कहाँ पैसा खर्च हुआ या जानते हुए भी उन्होंने अपना मुंह बंद किया।
कौन-कौन शामिल था सर्वेक्षण में किसी ने भी नहीं बताया, फिर ये सर्वेक्षण का परिणाम मीडिया के पास कहाँ से आया ? कोई चैनल बता रहा था कि चालीस की चालीस सीट जीती, कोई कह रहा था कि कांग्रेस भी नहीं है पीछे। अन्य पार्टियों में एक का नाम भी नहीं बताया, आखिर ये महा सर्वेक्षण किसके आदेश पर हुआ। क्या सारा पैसा लोगों का इसी पर लगा, क्या कुछ कम्पनियों को पैसा दिया गया, जब चुनाव प्रचार में कटौती करने का सभी बता रहे थे।
एक चैनल बार बार कह रहा था कि आठ लाख लोगों का सर्वेक्षण हुआ, जानते सभी हैं कि कुछ जगह रैली हुई, कुछ जगह बहस और कुछ जगह रिपोर्टर ने बात की, चलो तसल्ली के लिए वेबसाइट को भी जोड़ लें तो अरबों की जनसंख्या में यह आठ लाख जो सिर्फ न्यूज़ चैनल के कहने पर हैं वैसे भी एक सामने नहीं आया कि इस सर्वेक्षण का वह हिस्सा था। कैसे यकीन किया जाए, किस किस से पूँछा जाए?
थोड़ी देर खुद से ही सवाल जवाब किया फिर धूल चटाने वाली बात पर ध्यान गया। कुछ नेता हारे थे या हराये गए थे, किसी को तो दिन में तारे दिखाए गए थे। नेता ने धूल चटाई या नहीं, यह बात मीडिया ने हमें चीख चीख कर बताई, साथ ही वह कौन हैं जिन्होंने मुंह की खाई।
आज मीडिया ने अपनी कमी को खूबी में बदल दिया है, बेमतलब की खबर को भी महत्व देने में लगे हुए हैं। वैसे संपादक कभी अपने शहर में ना जाये हाल जानने, जो संग संग शिव के द्वारे चल दिए।
वैसे ममता दीदी की बात एक बड़ी अच्छी लगी, जब बीजेपी अध्यक्ष की गाड़ी पर डंडी पड़ी, बोलीं- 'अध्यक्ष जी भगवान थोड़े हैं, जिनका विरोध नहीं हो सकता।' सुनकर उनकी बातें केजरी चाचा की ओर ध्यान गया, जिनका जनता के बीच जूते चप्पलों से खूब स्वागत हुआ।
जनता जो सिर पर बैठाती है खुद को लुटते देख कदमों में उतारती भी है। ये भी सर्वेक्षण का हिस्सा होना चाहिए, किस नेता का कैसे स्वागत होना चाहिए?
थोड़ी ही देर में मामा जी भी आ गए, महा सर्वेक्षण हुआ है, एक सांस में चार दफा कह गए। मन में थोड़ी उमंग जगी, शायद तीसरे पड़ोसी ने झूठ कही। पूंछ बैठे मामा जी से, कैसे हुआ ये महा सर्वेक्षण? जिसमें एक पार्टी को विजयी और दूसरे को कोशिश करता बताया है, क्या महा सर्वेक्षण में विचार हेतु आपको भी बुलाया था?
मामा बोले सुना ही है हमने कि महा सर्वेक्षण हुआ है, हम वाराणसी में रहते हैं पर हमको नहीं बुलाया इसलिए गुस्सा भी हमें बहुत आया। दोस्त यार से पूंछ बैठे कि क्या तुमको भी बुलाया था वो बोले नहीं तो मन को संतोष आया कि किसी को भी नहीं बुलाया गया।
बोले आज आम तो खिला दो बिन्नी, हमने कहा मामा तुम्हें पता है कि आम बहुत मंहगे हैं, आजकल हजार रुपये दर्जन तक आ रहे हैं। वो बोले क्या बोल रहीं, हमारे यहां तो पचास से सौ रुपये दर्जन के भी आ रहे। हमने कहा सही है, हजार रुपये दर्जन के अमीर खाएं और पचास वाले हम मध्यवर्गीय लोग।
मामा जी गुस्सा गए बोले -
क्या कह रहीं हम मध्यवर्गीय परिवार?
खबरदार जो इनकी बात करी, आजकल तो सब अमीर हैं, तभी तो सबसे ज्यादा निचोड़ा जाता है इन्हें। अंबानी, अडानी जैसे अमीर समझकर। एक पैसे देकर सब काम करा लेते हैं, दूजे गरीबी रेखा के नीचे आकर फ्री सेवा ले लेते हैं, बचते हैं बीच वाले। ये वही बीच वाले हैं जो हिन्दुस्तानी है भैया, ना घर के ना घाट के दुश्मन अनाज के। ना खाने के लिए, ना ढंग से रहने के लिए, ये वही वर्ग है जो सबसे ज्यादा पीसा जाता है, नहीं समझे मतलब सबसे ज्यादा पसीना बहाता है। क्या करें सच्चे हिंदुस्तानी हैं तो कीमत भी चुकाते हैं।
आम का मौसम चल रहा है पचास रुपये से लेकर हजार रुपये दर्जन के अलग अलग किस्म की आम मिल रहे हैं। अरे तुम नेताओं की किस्में मत देखने लगना, नेता तो हमारी बिरादरी के ही हैं बस किस्म अलग है। लोग अपनी किस्में देखकर चुन लेते हैं कि हजार रुपये दर्जन वाले आम अब पचास रुपये दर्जन में मिलने लगेंगें।
हमने कहा मामा आम की छोड़ो और ये तो बताओ, ये सर्वेक्षण के परिणाम घोषित कैसे हो गए? ना तुम गए ना हम, ना पूछा शहर भर से फिर?
मामा बोले- पगलिया! गयी तो मीडिया भी नहीं थी, बस सर्वेक्षण करवाने वाली कुछ कंपनी हैं जिनके पैसे गए वो पास भये। तभी तो जहां सिर्फ़ 5 सीट ही हैं, उस राज्य में मीडिया में दस- बारह सीट बता दी और एग्जिट पोल देखने वालों को चूना लगा दिया।
तुमने नहीं देखा क्या ये सर्वेक्षण?
नहीं मामा, हम पिछले दो साल से देख रहे कि ये लोग बोलते कुछ हैं और नतीजा कुछ और निकलता है। इसलिए हमने न देखा, न घर पे कोई को देखने दिया।
मामा भी बोल उठे- एकदम सही किया, अगले साल से हमें भी इसमें दिमाग नहीं खपाना, सीधे शाम को रिजल्ट वाले दिन टीवी है चलाना।
----- जयति जैन "नूतन"
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