सिगरेट - कविताएँ - ओम प्रकाश अत्रि

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१. कविता-- 'सिगरेट' जब धुआं जहर बनकर फेफड़ों को चीर कर शरीर में मड़राता है, तब नसों- नसों में मानों ऐंठन का दौरा सा पड़ने लगता है। चौं...

१. कविता-- 'सिगरेट'

जब धुआं
जहर बनकर
फेफड़ों को चीर कर
शरीर में मड़राता है,
तब नसों- नसों में
मानों ऐंठन का
दौरा सा पड़ने लगता है।
चौंधियानें लगती हैं आँखें
सिर जब चक्कर खाकर
कत्थक करने लगता है,
तब बोलती है सिगरेट
मौत का गुबार लेकर
जब जीना ही था
जीवन को खुशी से
तो पिया क्यों मुझे तुमने खुलकर ?
हर एक डिबिया पर
लिखकर संकेत करती रहती हूं,
मत पियो मुझे
मत देखो मेरी तरफ
मैं खतरे से भरी
तुम्हारी मौत की दवा हूं।
खिसिया कर तुम्हारे कान
मदमस्ती में डूबकर तुम्हारी आँखें
मेरी बात को अनसुना
अनदेखा करती हैं,
दिन रात खाँसी दमा में घुटकर
ज़िन्दगी के घटते दिनों को देखती हैं।
जब सांप बनकर
डसता है धुआं उसका
तब शैय्या पर पड़कर
जीवन को जीने की दुआ मांगते हैं,
कोसते रहते हैं
सिगरेट को नासमझ
अपनी नासमझी पर पर्दा डालते हैं।
याद तब आती हैं
अपनी कमज़ोरी की जड़
जब कैंसर से लड़कर
लड़ाई हार जाते है,
नई-नई उमंगों में
गोता लगाकर
आ रही पीढ़ी को
सिगरेट की लत से बचने को कहते हैं।

२. कविता-- 'बदलते खेत'

नहीं रहे वे खेत
जिसमें से गुजरकर
सोधी-सोधी खुशबू के साथ
हवा के झकोरे आते थे,
नहीं रहे वे किसान
जो दिन भर काम करने के बावजूद
कभी नहीं थकते थे।
नहीं रही वह रौनक
जब किसान को देखकर
खेत दूर से मुस्कुराते थे,
जोतते हुए बैलों के गले में
पड़े घुँघरूओं की आवाज में
मदमस्त होकर
मानो हल के साथ -साथ चलते थे।
तब नहीं पड़ती थी
खेतों में कीटनाशक दवाएं
और न ही पड़ती थी
खेत को नष्ट करने वाली विभिन्न खादें,
गोबर ही था उस समय
खेतों का रक्षक
पैदा नहीं होता था दूषित अनाज
और न ही होती थी अब जैसी मौतें।
माना कि फसल
कम पैदा होती थी खतों में
फिर भी आज जैसी
बड़ी-बड़ी जानलेवा
बीमारी नहीं घेरती थी,
नहीं खतरा था किसी जान-माल का
मनुष्य के साथ-साथ
खेती भी हरी-भरी रहती थी।
तब नही दुहते थे किसान
आज की तरह खेतों को,
आज तो मानो ऐसे दुहते हैं खेतों को
जैसे इन्जेक्शन लगाकर
दुहते हैं अनपेन्हाई भैंसों को।
नहीं जोतते थे उन हलों से
जो खेत को तहस-नहस करते थे,
नहीं डालते थे वे रसायन
जिससे खड़े के खड़े खेत
बांगर बनकर नष्ट हो जाते थे।
कितना खुश नसीब रहा होगा
वह किसान
जो खेत में जाकर
फसल को देखकर
गदगद हो गया होगा,
कितना बदकिस्मत है
आज का किसान
जो अपने ही पैरों पर
कुल्हाड़ी मारता
फिर बीमारी से परेशान होकर
रो रहा है बैठा अभागा ।

३. कविता-- 'राजनेता'

सत्तर सालों से
वही वादे वही भाषण
सुनती चली आ रही जनता
कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है
वही राजनीति वही दल-बल
वही हैं पुराने झूठे राजनेता।

चेहरे बदले हैंं समय बदला है
पर नहीं बदली है उनकी नीचता,
जितने भी देश में काले कारनामें हैं
सब उनके किए हैं
जो हैं राजनीति में अनीतियों के नेता।

जीत कर चुनाव चले जाते
विदेशों बैठकर छुट्टियां मनाते
पांच साल लूटते हैं पैसा देश का,
देश बिके या जनता मरे
नहीं कुछ फिकर करते
क्योंकि अब हो गए हैं
बहुत बड़े राजनीति के नेता ।

मालूम है उनको भली-भांति
जनता की मूर्खता का हाल
इसी लिए दिन जब
वापस आएंगे चुनाव के,
आएंगे तब लौटकर
जाति- धर्म के रथ पर चढ़कर
नफ़रत का शस्त्र लेकर
सीधी-साधी जनता पर
एक से एक तीक्ष्ण बाण जनता पर चलाएंगे ।

बिंध जाएगी सारी जनता
लड़ जाएगी धर्म पर
लड़ते हुए देखकर वे फायदा उठाएंगे,
लड़ती रहेगी मूर्ख बनकर
मरती रहेगी सारी जनता
वे दुबारा जीत कर फिर से चले जाएंगे।

फिर वही अलाप फिर वही कोसना
जैसे पहले से करते आए हैं,
नही समझ पाते हैं
राजनीति के दांव -पेंच
इस लिए सिर पकड़ कर
पूरा जीवन कष्ट में रोते हुए बिताते हैं।

४. कविता-- 'सियासत'

भूल जाते है लोग
सारे रिश्ते नाते
भूला देते हैं बीते दिन
सियासत की दुनिया में आकर,
कुर्सी के लालच में
भाई -भाई से पिता-पुत्र से
भिड़ जाते हैं जमकर।

नहीं बख्शते हैं
अपने ही खून को
और न ही समझते हैं
अपने वंश को,
नीचा दिखाते हैं उसी को
अपने सियासी दावों से
जिसकी गोदी से
अभी-अभी निकले हैं खेलकर।

सोते- जागते
और उठते-बैठते
पाठ सिर्फ पढ़ते हैं
नफ़रत की राजनीति का,
बीज सिर्फ बोते हैं
जाति-धर्म के द्वेष का
रात-दिन सोचते हैं
जनता को लड़ाने का ।

दोस्ती शिद्दत से
कभी नहीं निभाते हैं
सियासत की दुनिया में,
न किसी के सगे हैं
सलीका दुश्मनी निभाने का
और न ही सीख पाए हैं ।

उछल-कूद करते है
पार्टियां बदलते हैं
कुर्सी को हथियाने में,
सोचो क्या कर पाएंगे
क्या अच्छे दिन लाएंगे
ये देश के विकास में ।

चुनाव को लड़ने में
यदि पैसा कम पड़ता है
तो बेंच देंगे देश को
विदेशियों के हाथ में,
डुबो देंगे कर्ज में
जकड़ देंगे जनता को
गुलामी की जंज़ीर में।

५ .कविता-- 'व्याकुल किसान'

देखा है मैंने
बहुत नजदीकी से
हलवाहे को भरी दोपहरी में
हल को चलाते,
हमने भी सहा है
अपने सिर के ऊपर
चिलचिलाती धूप
खुरपी से खेत को निराने में ।
दिन भर खटता है
किसान जब खेतों में
तब जाकर कहीं
अनाज के दाने
घरों को आते हैं ,
सूखा बाढ़ ओला
आदि अनावृष्टियों के
कहर को सहा है
देखा है आँखो से
वर्ष भर की मेहनत को
चंद क्षणों में बर्बाद होते।
फसल की उन्नति में
लागत अधिक लगार
देखा है हमने सौ-सौ बार
उसे रक्त को जलाते,
निष्प्राण हो गया है
देखकर फसल को
कौड़ी के भाव
बाजारों में बिकते ।
माना कि अब वह
खेती का मालिक है
पर दिन और बदतर हैं
अंग्रेजों के समय से,
आज के समय में
कर मुक्त खेती है
फिर भी मरते रहते हैं
किसान महंगाई से।
नहीं रही जमींदारी
न व्यवस्था रैयतवाड़ी है
फिर भी डरता है
किसान भुखमरी से,
घर की बची पूंजी से
खेती को जिलाता है
पर नष्ट हो जाती  है
फसल कम कीमत से।
नए-नए अध्यादेश
आते हैं हर साल
पर लाभ नहीं दिखता है
कृषक को कृषि में,
इसी लिए हर वर्ष
मरते हैं किसान
किसानी की समस्या से ।

६. कविता--  'शोषण'

दूर कर दिया है
हमको
हमारे ही समाज से,
छीन लिया गया है
हमारे अपने अधिकार से।
दलित समझकर
दबाया जा रहा है,
पिछड़ा हूं इसी लिए
पछाड़ा जा रहा है
हमें अपने ही रांह से।
स्वतन्त्रता के बावजूद
सदियों से चले आ रहे
मनुवादियों के चाबुक से
हमें बार-बार
मार-मारकर हांका जा रहा है।
देखती रहती हैं सरकारें
हँसता रहता है धर्मसंघ
पड़ते है कोड़े जब
धर्म के मेरे तन पर छपाक से।
बदला नहीं है
आज भी समाज
और न ही बदली है
लोगों की मन:स्थिति ,
जैसे पहले थे वैसे आज भी हैं
नया दिखता नही है
कुछ भी
आज लोकतन्त्र होने से।
फर्क बस इतना है
पहले लोग
हमें छूकर नहाते थे
आज नहा-धोकर हमें छूते हैं,
हजम कर जाते हैं
हमारे हिस्से की रोटी
बेधर्मी मन से
अधर्मी बातों से
स्वयं धर्माचार्य बनते हैं।
छल-कपट से छीन लेते हैं
हमारे हाथों से रोजगार
ऊपर से अपने को
महा-ज्ञानी कहते हैं,
द्वेष का बीज बोकर
सत्यनिष्ठ बनते है
दलन का कार्य करते
और हमें दलित बताते हैं।

- ओम प्रकाश अत्रि
शिक्षा - नेट/जेआरएफ(हिन्दी प्रतिष्ठा ),शोध छात्र विश्व भारती शान्तिनिकेतन (प.बंगाल )
पता- ग्राम -गुलालपुरवा,पोस्ट-बहादुरगंज, जिला- सीतापुर (उत्तर प्रदेश)
ईमेल आईडी- opji2018@gmail.com

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आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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रचनाकार: सिगरेट - कविताएँ - ओम प्रकाश अत्रि
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