पुस्तक समीक्षा 'सुमंत्र' खण्डकाव्य में सुमंत्र की व्यथा कथा समीक्षक - डॉ0 हरिश्चन्द्र शाक्य, डी0 लिट्0 'सुमंत्र' उत्तर प्रदे...
पुस्तक समीक्षा
'सुमंत्र' खण्डकाव्य में सुमंत्र की व्यथा कथा
समीक्षक - डॉ0 हरिश्चन्द्र शाक्य, डी0 लिट्0
'सुमंत्र' उत्तर प्रदेश के जिला हरदोई में जन्मे तथा वर्तमान में कानपुर में निवास कर रहे कवि डॉ0 अशोक कुमार गुप्त 'अशोक' का सद्यः प्रकाशित खण्डकाव्य है। डॉ0 अशोक किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उनकी प्रस्तुत कृति सहित चौदह कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। डॉ0 अशोक कुमार गुप्त 'अशोक' मूलतः कवि हैं इसलिए उनकी समस्त प्रकाशित कृतियाँ काव्य कृतियाँ हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों में बलिदान इंदिरा गाँधी का (खण्डकाव्य), अशोक गीत बटोही के (गीत संग्रह), धरोहर समय की (कविता संग्रह), माँ की याद में (संकलित काव्य संग्रह), लाख कहिए बात को (ग़ज़ल संग्रह), आस्था के बोल (स्तुति गीत संग्रह), बटोही के बाल गीत (बाल गीत संग्रह), गाय, गुरू और गंगा (संपादित काव्य संकलन), बटोही की बाल कविताएँ, बदल गए परिवेश (गीत संग्रह), गँवई गाँव गरीब (संपादित राष्ट्रीय काव्य संग्रह), नदी मौन है (कविता संग्रह), सुमंत्र (खण्डकाव्य) शामिल हैं। आप देश की अनेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हैं।
समीक्ष्य कृति 'सुमंत्र' एक खण्डकाव्य है जिसका कथानक रामचरित मानस से लिया गया है। प्रस्तुत कृति में सुमंत्र की व्यथा-कथा को प्रस्तुत किया गया है। संपूर्ण कथानक आठ सर्गों वंदन, अवध वैभव, राज्याभिषेक, सुमंत्र आगमन, वन गमन, सुमंत्र की अंतर्दशा, सुमंत्र का अवध आगमन तथा सुभाशा में
निबद्ध है जिनमें से वंदन और सुभाशा को सर्ग नहीं कहा जा सकता क्योंकि इनमें कथानक का अंश शामिल नहीं है। सनातन हिन्दू धर्म की भाव भूमि में रचा पचा कवि भगवान राम के प्रति आस्थावान है। वह राम की स्तुति का गायन कर कहता है-
रघुकुल में जन्मे कौशलेश
तुमको प्रणाम है अज नंदन
कौशल्या जननी को प्रणाम
शत-शत प्रणाम दशरथ नन्दन।
कविवर डॉ0 अशोक कुमार गुप्त 'अशोक' में राम भक्ति के साथ-साथ देश भक्ति भी समाई है। वे 'अवध वैभव' सर्ग के आरंभ में भारत भूमि की प्रशंसा करते हुए कहते हैं-
भू-भाग निराला भारत का
मस्तक पर ताज हिमालय है
पद सदा पखारे सागर-जल
संपूर्ण देश देवालय है।
'अवध वैभव' सर्ग में अयोध्या को तीन लोक से न्यारी बताकर सर्वत्र उसकी प्रशंसा कवि के द्वारा की गई है। 'राज्याभिषेक' सर्ग में महाराज दशरथ अपना बुढ़ापा देखकर अपने ज्येष्ठ पुत्र राम के राज्याभिषेक की तैयारी करते हैं किन्तु दासी मंथरा के बहकावे में आकर उनकी रानी कैकेयी रूठ जाती है और देवासुर संग्राम के समय राजा दशरथ द्वारा दिए गए दो वरदान एक से राम को चौदह वर्ष का वनवास तथा दूसरे से भरत को राजगद्दी माँगे-
हे सत्य संध दृढ़ धीर-वीर
मन मुदित मुझे दे दो, दो वर
हों चौदह बरस राम वन में
होवें मम भरत सिंहासन पर।
'सुमंत्र आगमन' सर्ग में कविवर डॉ0 अशोक कुमार गुप्त 'अशोक' जी कहते हैं-
मंत्री सुमंत्र के सिर पर अब
आ गया अचानक भार बड़ा
इस कर्म-धर्म के पलड़े पर
हो गया ज्ञान साकार खड़ा।
राजा दशरथ सुमंत्र को उनका दायित्व सौंपते हुए कहते हैं-
निज बुद्धि विवेक लगाना तुम
वापस तीनों को लाने में
हर क्षण जाग्रत रहना मन से
तत्पर रहना समझाने में।
सुमंत्र राजा दशरथ का आदेश मानकर राम,सीता और लक्ष्मण को वापस लाने के लिए वन में जाते हैं। 'वन गमन' सर्ग में सुमंत्र की व्यथा कथा देखी जा सकती है-
आज्ञा पाकर नृप दशरथ की
वन चले सुमंत्र व्यथित होकर
ज्यों चला जा रहा एक वणिक
सब मूल सहित सम्पति खोकर।
वे राम, लक्ष्मण, सीता के वन गमन का कारण मंथरा दासी को मानते हुए कहते हैं-
मतिमंद मंथरा दासी ने
कैकेयी मति भरमा डाली
जिसके चलते वन चले गए
सिया राम लखन कर घर खाली।
'सुमंत्र की अंतर्दशा' सर्ग में सुमंत्र की अंतर्दशा देखी जा सकती है-
सिय राम लखन वन चले गए
रोते रह गए सुमंत्र खड़े
क्या करें कहाँ कैसे जाएँ
उनके ना आगे पाँव पड़े।
डॉ0 अशोक कुमार गुप्त 'अशोक' ने अपने प्रस्तुत खण्ड काव्य के माध्यम से सत्य, त्याग, सेवा, दान, शुचिता, मुदिता, करुणा, श्रद्धा, विश्वास, प्रेम, शील, मानवता, तप, आत्म विश्वास, आस्था, विनय, वचन वृत का निर्वाह, भाग्य, कर्तव्य, निश्छलता, सद्वचन, आज्ञापालन, साधना, सुख, शांति, सद्भाव, दया, संयम, कर्म, संतोष, अहिंसा, मर्यादा आदि मानव मूल्यों की स्थापना भी की है। धर्म की स्थापना दृष्टव्य है-
पहचान बनो त्रेता युग की
ऋषि मुनियों का उद्धार करो
हो धर्म धरा पर स्थापित
दुष्टों का चुन संहार करो।
कवि के शब्दों में सद्भाव, सुख, शांति, सेवा तथा शुचिता नामक मानव मूल्यों की स्थापना देखें-
मत भेदभाव घर में करना
मन में रखना संतोष सदा
संयमित रहो सुख में दुःख में
ईश्वर पर रख विश्वास सदा।
अहिंसा नामक मानव मूल्य को कवि ने गौतम बुद्ध व महावीर स्वामी की तरह प्रस्तुत किया है-
सब करें दया वन जीवों पर
यह शिक्षा जन-जन को देना
हर प्राणि मात्र में है ईश्वर
हर्षित मन से प्रश्रय देना।
कवि ने संपूर्ण कृति में प्रकृति-चित्रण भी खूब किया है। प्रकृति को उसने प्रेरणादायक भी माना है। प्रकृति-चित्रण के कतिपय उदाहरण प्रस्तुत हैं-
धरती से तुम ले लो धीरज
सागर से ले लो गहराई
विधु से ले लो तुम शीतलता
सूरज से ले लो अरूणाई।
प्रकृति के प्रेरणादायक रूप का एक उदाहरण और देखें-
आलस्य त्यागना सीखो तुम
वन जीवों और परिन्दों से
जीवन में बच कर तुम रहना
दल-दल में फँसे दरिन्दों से।
प्रस्तुत कृति 'सुमंत्र' के भाव पक्ष के साथ-साथ उसका कला पक्ष भी उत्तम है। भाषा आम बोलचाल की खड़ी बोली है। कवि ने चार चरणों का छंद अपनाया है जिसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ हैं तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण में तुक है। कवि का यह छंद किसी विशेष छंद के नियमों का पालन करने में असमर्थ रहा है तथापि लयात्मकता सर्वत्र विद्यमान है। सहजता, सरलता, सरसता तथा संप्रेषणीयता संपूर्ण कृति में विद्यमान है। अनुप्रास, यमक, पुनरुक्ति प्रकाश, पद मैत्री, वीप्सा, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकार अनायास ही आ गए हैं। कतिपय स्थानों पर नाद सौन्दर्य भी देखा जा सकता है। प्रस्तुत कृति में आए कतिपय अलंकारों के उदाहरण प्रस्तुत हैं-
1. सद्गुरू सेवा से सम्भव सब
सुख-शांति, सम्पदा शुचिताई। (अनुप्रास)
2. मन मुदित मुझे दे दो, दो वर (यमक)
3. जलचर-थलचर-नभचर-वनचर (पदमैत्री)
4. मधुरस सा उर में भर देगी (उपमा)
5. विकसित हो फिर से उर-पंकज (रूपक)
6. ज्यों आकुल जल के बिना मीन (उत्प्रेक्षा)
7. कण-कण में रमते राम-राम (पुनरुक्ति प्रकाश)
8. माँगो-माँगो मन से माँगो (वीप्सा)
9. नदियों के कल-कल का निनाद
झर-झर झरनों का स्वर सुनना (नाद सौन्दर्य)
अंत में निष्कर्षतः यही कहा जा सकता है कि डॉ0 अशोक कुमार गुप्त 'अशोक' का प्रस्तुत खण्डकाव्य 'सुमंत्र' एक अच्छी काव्य कृति है जिसका हिन्दी साहित्याकाश में अवश्य ही कोई न कोई स्थान बनेगा। कवि को मेरी शुभकामनाएँ।
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समीक्ष्य कृति- सुमंत्र (खण्डकाव्य)
रचयिता- डॉ0 अशोक कुमार गुप्त 'अशोक'
प्रकाशक- निखिल पब्लिशर्स एण्ड डिस्टीब्यूटर्स
37, 'शिवराम कृपा' विष्णु कॉलोनी शाहगंज, आगरा
मूल्य- 80 रूपये
पृष्ठ- 80
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समीक्षक - डॉ0 हरिश्चन्द्र शाक्य, डी0लिट्0
शाक्य प्रकाशन, घंटाघर चौक
क्लब घर, मैनपुरी - 205001 (उ0प्र0)
स्थाई पता- ग्राम कैरावली, पोस्ट तालिबपुर
जिला- मैनपुरी (उ0प्र0)
ई मेल - harishchandrashakya11@gmail.com
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