पुस्तक समीक्षा मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना करती कविताएँ: खोजना होगा अमृत कलश समीक्षक : माँगन मिश्र “मार्त्तण्ड” ----------...
पुस्तक समीक्षा
मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना करती कविताएँ: खोजना होगा अमृत कलश
समीक्षक : माँगन मिश्र “मार्त्तण्ड”
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समीक्ष्य कृति: खोजना होगा अमृत कलश (कविता संग्रह)
रचनाकार: राजकुमार जैन राजन
प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20- महरौली, नईदिल्ली- 110030
पृष्ठ: 120, मूल्य: 240/- (हार्ड बाउंड)
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राजकुमार जैन राजन की कविताएं समाज और समय के अहम सवालों से न केवल टकराती है अपितु सोचने को विवश भी करती हैं और परोसती है जीने का नया अंदाज भी ।उनकी कविताएं निरुद्देश्य नहीं है, वे हममें आशा और विश्वास का भरपूर संचार करती हैं। इन कविताओं में ईमानदार अभिव्यक्ति की महक है , जीवन का सौंदर्य बोध है तथा मानवीय मूल्यों का पुनर्स्थापन भी है। यह मरुभूमि में ओएसिस है जो तनहाई में झुलसे लोगों को बसंत की सुखद अनुभूति बांटती है। प्रसिद्ध शायर जावेद अख्तर के शेर “ हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी / फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी” के विचारों के विरुद्ध इनकी कविताएं जीवन- राग गाती है । इनकी कविताएं सामयिक विसंगतियों ,विद्रूपताओं व विसंगतियों के विरुद्ध अंधकार से प्रकाश की यात्रा है, जिसमें निराशा के स्वर आशा और विश्वास के गीत गाते नजर आते हैं ।स्वयं कवि भी स्वीकार करते हैं कि ‘यहां सामाजिक विसंगतियों के प्रति चिंता, पनप रही विद्रूपताओं के प्रति आक्रोश, अंधकार से प्रकाश की यात्रा, हताश- निराश के लिए आशा और विश्वास का सघन- सुखद वातायन तथा जीवन मूल्यों की पुनर्स्थापना है’। मैं कवि राजकुमार जैन राजन की इस बात से पूरी तरह सहमत हूं।
राजन जी एक संपूर्ण संवेदनशील तथा सकारात्मक ऊर्जा के सहज कवि हैं । मूलतः आप चर्चित बाल साहित्यकार हैं किंतु बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी भी हैं। एक संपादक, प्रकाशक कई भाषाओं के लेखक तथा साहित्य उन्नायक हैं । अनेक पुरस्कारों तथा सम्मानों से सम्मानित तथा कई आयोजनों के सफल आयोजक भी हैं , अनेक पुरस्कारों- सम्मानों के संस्थापक वितरक भी हैं वस्तुतः आप साहित्य सेवी हैं, साहित्य को पूरी तन्मयता से जीते हैं ।
“खोजना होगा अमृत कलश” लीक से हटकर उनका प्रथम काव्य संग्रह है जो हमारा ध्यान पूरी तरह आकर्षित करता है। यह 50 कविताओं का मनोहर संग्रह है। विभिन्न शीर्षकों में लिखी समभाव की ये कविताएं जीवन- राग से लबालब भरी हैं। कवि ने कल्पना की कलात्मक ऊंचाई को बिंबो, प्रतीकों एवं मुहावरों से सजाकर वास्तविक धरातल पर उकेरा है जो प्रशंसनीय है। उनकी कविताएं सतही वक्तव्यों से बच गई है तथा उनकी अभिव्यक्ति के औजारों में नई धार है। संग्रह की अधिकांश कविताओं का प्रतिपाद्र्य है- हताशा- निराशा रूपी अंधकार के बादलों के बीच से मुस्कुराते सूरज को निकल लेना। वे आम आदमी की कविताएं लिखते हैं,आम आदमी के बीच से शब्दों को चुनते हैं, उनके भावों का संगुंफन करते हैं और उनकी ही भाषा में उनके लिए सहज संप्रेषित कर देते हैं। इस प्रकार राजन की कविताएं आम आदमी के जीवन- संघर्ष से विश्वास का रिश्ता संस्था से जोड़ लेती है ।
इस परिप्रेक्ष्य में उनकी कुछ कविताओं से गुजरना समीचीन लगता है ।सब पर दृष्टिकोण रखना यहां संभव ही नहीं है। संग्रह की पहली कविता है” लाखों संकल्प”- प्रतीकों के माध्यम से जीवन के अहम सवालों को से टकराती है यह कविता। आज उत्तराओं का मुक दर्द ,अर्जनों का पराक्रम क्षुब्ध होकर मौन है ,मन से मन का युद्ध जारी है और शर-शैया पर पड़ा विवेक कराह रहा है तथा संकल्प निष्क्रिय हो गए हैं--” अंतरिक्ष में उच्छ्वासों-सी मंडराती / मूक उत्तरांएँ/ और असंख्य अर्जुनों की छायाएं / छटपटा रही है / मगर क्षुब्ध हृदय का हस्तिनापुर/ क्या बोले ?..........शर- शैया पर पड़ा विवेक कराह रहा है/ और युधिष्ठिर - दुर्योधन जैसे/ लाखों संकल्प / हाथ पर हाथ धरे/ चित्रलिखित से खड़े हैं” …
यहां शिल्प का सामर्थ्य तो है किंतु कथ्य की अपूर्णता कचोटती है ।अगर यह हमें समाधान तक ले जाती तो सोने पर सुहागा का सौंदर्य- बोध प्राप्त होता । फिर भी काव्य तत्व यहां मौजूद है जो सुकून देता है ।
हिंसा- नफरत से बदरंग रिश्तो के रेगिस्तान में “जिंदगी का गीत” लिखने वाले सजग कवि सांस्कृतिक व सामाजिक संकट से चिंतित दिखते हैं पर निराश नहीं। इसलिए वे कहते हैं - “आओ, मिलकर करें कुछ ऐसा / मौत का सन्नाटा / बुनती अंगुलियों को जिंदगी का गीत लिखना सिखाएं”... ताकि स्वार्थ से संलिप्त मानव - मन में फिर मानवीय रिश्तों का संसार बसे।
“ तुम कौन हो “का कवि आतंकी माहौल में भी निराश नहीं है अपितु वह विष- बीज बोने वालों का सत्य जानना चाहता है। संबंधों को क्रूर और भयानक बनाने वालों को बेनकाब करना चाहता है। उसे नंगा कर नई किरणों से जिंदगी का नया गीत लिखना चाहता है। बानगी के तौर पर देखिए,” विष- बीज कौन बो गया है /उसे नंगा किया जाए /नये सूर्योदय के साथ/ जिंदगी का एक नया गीत लिखा जाए”..... यहां कवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के विचारों से पूरी तरह सहमत दिखते हैं- “ अगर हाथ में कलम जिंदगी लिख/ नहीं काम है तेरा परचम उड़ाना ।”
“ हारा भी नहीं हूं मैं “ जिजीविषा की कविता है, उम्मीदों की कविता है, जहां संघर्षों के बीच अपने ही कदमों से राहों को मोड़ देने की ताकत है ।देखिए - “महत्वाकांक्षाओं का सफर/ कटीला भी हो चला है / फिर भी मोड़ दिया है राहों को/ अपने ही कदमों के निशान से।”... यह अपने बाजुओं के भरोसे की कविता है ।इसी भाव को दुष्यंत कुमार निम्न प्रकार अभिव्यक्त करते हैं -” एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ / आज अपने बाजुओं को देख, पतवारें न देख”
“ सभ्यता के सफर में “ नकली चेहरा, छद्म हंसी की कपट, रिश्तों के मुखौटे, झूठ का साम्राज्य विवश होकर मुस्कुरा रहा है । सम सामयिक विडंबनाओं पर प्रहार करते हुए कवि को उम्मीद है कि वह पुरुषार्थ के बल अपने सपनों को अवश्य सजा लेगा -” सच झुठलाया जाता है/ और झूठ सभ्य व्यक्ति की तरह/ हाथ बांधे खड़ा मुस्कुराता है”……” मुझे विश्वास है /आज नहीं तो कल/ फिर चलूंगा अपनी संपूर्ण ऊर्जा से /अब नहीं टूटेगा कोई सपना ।”
“खोजना होगा अमृत कलश” की कविता-” संबंधों पर पहरा “ बहरी इंसानियत तथा खुले आम छले जा रहे जीवन- मूल्यों के विरुद्ध उस अमृत - कलश की मुकम्मल तलाश है जिसमें प्यार की खुशबू , मानवता व सद्भाव का रस लबालब भरा हो - “खोजना होगा उस अमृत कलश को/ भर दे धरा पर जो प्यार की खुशबू / मानवता के घर आंगन को जो / रोशन करें आज फिर/ सद्भाव के वो दीपक जलाएं ।”
यही कविता काव्य संग्रह का शीर्षक भी है जो पूरी तरह से ठीक है ।क्योंकि संग्रह की अधिकांश कविताओं की तरह यह कविता सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण उम्मीद और हौसले की कविता है। आशा और विश्वास की कविता है। वस्तुतः यह कविता कबीर की निम्न वाणी को ही प्रकारांतर से स्थापित करती नजर आती है - “कबिरा- कबिरा क्या कहे, जा जमुना के तीर / एक गोपी के प्रेम में, बह गएकोटि कबीर” । यही प्रेम-औषधि मानवीय संतों का इलाज है जो आज हमसे दूर बहुत दूर हो गई है। यहां अपनी जड़ों से जुड़े रहने तथा मनुष्य बने रहने का आग्रह है ।
“सूखे पत्तों की गंध” कविता निराशा के गहन अंधकार के बीच उम्मीदों की रोशनी बिखेरती है। यह संघर्षों के बीच मुस्कुराने का हौसला देती है , संघर्ष का माद्दा देती है ।देखिए- “ रात्रि के अंधकार में / जगमगाते हुए जुगनूओं की तरह/ क्यों नहीं छेड़ देते तुम/ अंधेरे के खिलाफ जंग / उम्मीदों की रोशनी टूट नहीं सकती/ चलते हुए क्षितिज के सामने/ खिलो, मुस्कुराओ “ देखिए, यह कविता ग़ज़लकार पुरु मालव के निम्न खयालों से कितनी समानता रखती है ,”और इक आसमान बाकी है / पर खुले रख उड़ान बाकी है।”...
“ निराश नहीं है वह आदमी” एक सशक्त जनवादी कविता है । यहां संघर्ष नये सपनों के बीच जीता है । भूख और रोटी की जंग में वह अपना जोश वह होश नहीं खोता अपितु नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ता है... उम्मीदों की दुनिया बनाए रखता है - “भूख और रोटी की जंग में / निराश नहीं है वह आदमी / जिंदगी से …..
फिर पूरे जोश से ढोता है / फिर एक नई बोरी /कुछ नए सपनों के साथ “ यहां कवि प्रसिद्ध शायर बशीर बशीर बद्र के भावों के अति निकट दिखते हैं - “सोने के फूल- पत्ते गिरेंगे जमीन पर / मैं जर्र - जर्र शाखों से जब गुनगुनाऊंगा”.... वस्तुतः कर्मों के संगीत से ही सोने के फूल पत्ते जमीन पर गिरते हैं। फकत हौसलों की धुन की आवश्यक होती है। इसी को अमेरिकी बिजनेस मैन मार्क बी हर्ड इस प्रकार कहते हैं-” सोचते रहना पर काम न करना ,वैचारिक भ्रम के अलावा कुछ नहीं है”
“बचपन की बरसात” दूसरी जनवादी रचना है जिसकी सहजता एवम प्रभविष्णुता हमें आकर्षित करती है ।यहां आम लोगों की चिंता है, पिता का बेचैन चेहरा है ,माँ की बदहवासी है तथा जिंदा बच पाने के उल्लास का उच्छृंकल बचपन है ।वस्तुत: कविता इन्ही पंक्तियों में जीती है।
“नर बीज खो गया है” कविता में सटीक प्रतीकों और बिंबो के धारदार औजार से कवि ने सामाजिक विद्रूपताओं व विडम्बनाओं पर बड़ी सहजता से हाथ रखा है। द्रौपदी का चीर हरण, शकुनि के दांव से सत्य को छलपूर्वक लूटना ,पुलिस द्वारा संरक्षित चौराहे पर से सीता को उठाकर ले जा रहे रावण तथा स्वार्थ के तपते रेगिस्तान में झुलस रहे रिश्ते….. जैसी संवेदना संपृक्त पंक्तियां मानवीय मूल्यों की सद्य व्यथा कथा है जो हमें सोचने को विवश करती हैं। यहां भाषा का प्रवाह तथा कहन का शिल्प प्रशंसनीय है। मुक्त छंद के बावजूद संगीत मुखरित हो रहा है ।
“एक नया संघर्ष” जिजीविषा की कविता है जहां पुरानी पत्तियों के गिरने से पेड़ मरता नहीं है । नए संघर्ष के बल पर परिस्थितियों से मुठभेड़ कर वह बाजी जीत लेता है - “ पर पुरानी पत्तियों से गिरने/ से मरता नहीं कोई पेड़/…... शुरू होगा फिर वही/ नया संघर्ष /हारता नहीं जो परिस्थितियों से/ जीतता है फिर वही पाता है उत्कर्ष”
“एक सूरज फिर उगाना होगा” की कविता हमारी नकारात्मक सोच पर प्रहार करती है- “ रोशनी की कोख में/ अंधेरों को मत उगाओ “ आगे यह भी कि यही नकारात्मक सोच, सकारात्मक ऊर्जा में बदल जाती है, बस जरूरत है - “एक मुट्ठी हौसलों की रोशनी से/ बंद झरोखों को सजा लो / जग में भर जाएगा आलोक “
“हाथ में बसंत”, “अस्तित्व बोध”,”आशा की लौ जलती रहेगी”, “स्मृतियों के पांव”,”खंड खंड अस्तित्व”, “ सपनों की पगडंडी”, “बसंत जरूर आता है”, “ अर्थ खोते रिश्ते”, “भागे ना कोई हार के”, “रोशनी के पहरुओं”, “ संदर्भ हीन संदर्भ”, “ सूरज की इजाजत”, “एक नई सुबह”, “ प्रतीक्षा सूर्योदय की” तथा “जीवन का चक्रव्यूह” जैसी सुकून देने वाली कविताएं भी है यहाँ।
इसके अतिरिक्त भी विभिन्न तेवरों की कविताएं यहां संकलित है । “पीड़ा के दुर्गम पथ “ जहां मनुष्य होने के अर्थ की तलाश है वहीं “अर्थ युग का चमत्कार” एवं “स्मृति पटल पर” कविताएं समसामयिक विसंगतियों पर प्रहार है । यहां इन विसंगतियों को नदी की धार में बहा देने की कामना है ताकि सुंदर संसार बस सके। “व्यथा कथा की” दहेज संत्रास की मर्मान्तक पीड़ा का करुण बयान है। “एक सवाल” कविता प्रजातन्त्र पर सवालों की कविता है जहाँ हर बार मनुष्य इसके मकड़जाल में उलझ कर विवश हो जाता है। इस कविता में साहसिक चेतना है जो विसंगतियों की नब्ज पर अंगुली रखकर प्रश्न पूछने का साहस करती है। “ दुनिया ऐसी क्यों है?” यह भी एक अच्छी कविता है ।
अंतत मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है राजकुमार जैन राजन जी की कविताएं हमें आश्वस्त करती हैं। उनके पास दृष्टि भी है और दृष्टिकोण भी ।”खोजना होगा अमृत कलश” कविता संग्रह की महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है कि यहां कवि की दृष्टि व्यापक है । दार्शनिक सिसरो कहते हैं,”जहाँ जिंदगी है, वहां उम्मीद है । यदि आप उम्मीद नहीं रखते तो इस जीवन का क्या अर्थ है?” निसंदेह इस संग्रह की कविताएं उम्मीदों को बचाए रखती हैं।
कविता का राग पूरी तरह जीवन से जुड़ा हुआ है।
संग्रह की कविताओं में सादगी और सहजता इसे बनावटी नहीं होने देते । इसी कारण अपनी बात पाठकों तक पहुंचाने में कविता समर्थ हुई है ।मुझे विश्वास है कि कवि राजकुमार जैन राजन की काव्य- यात्रा और भी सघन होगी... और यह धीरे-धीरे होगी अनुभव की भट्टी तपकर। हिंदी जगत इस संग्रह का भरपूर स्वागत करेगा इसी मंगल कामना के साथ…
■खोजना होगा अमृत कलश के गुजराती, पंजाबी, मराठी, नेपाली, चीनी एवम सिंहली भाषा में अनुदित संस्करण भी प्रकाशित हो चुके है।
समीक्षक-
मांगन मिश्र मार्तंड
प्रधान संपादक: “संवदिया” त्रैमासिक
“ साकेत”, बंगाली टोला,
फारबिसगंज, जिला -अररिया (बिहार)
पिन- 854318
बहुत सुन्दर समीक्षा , बारीकी से किताब के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए पाठकों के मन में किताब पढ़ने की उत्सुकता जगा रही है ये समीक्षा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर समीक्षा
जवाब देंहटाएंबहुत आकर्षक समीक्षा। समीक्षा पढ़ते ही पुस्तक पर पसंदीदा और बढ़ गई। Rajkumar Jain Rajan जी, हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
जवाब देंहटाएंपुस्तक रचक राजकुमार जैन राजन जी, समीक्षक मांगन मिश्र मार्तंड जी आप दोनों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंराजकुमार राजन जैन जी के प्रथम काव्य संग्रह पर "मांगन मिश्र मार्तंड" जी ये खूबसूरत समीक्षा काब्य संग्रह की तरफ ध्यान आकर्षित करने में पूरी तरह सक्षम है । राजन जी की कविताओं की जिस तरह से उन्होंने विवेचना की है, हर एक कविता के प्रति उत्सुकता जगाती है। मार्तंड जी का कथन, "राजन जी की कविताएँ जीवन राग गाती हैं....अंधकार से प्रकाश की यात्रा है" काब्य संग्रह का परिचय दे जाता है । राजन जी बाल साहित्यकार, कवि ,संपादक कई भाषाओं के लेखक,..राजन जी अदभुत है आपका यह बहुआयामी व्यक्तित्व । आपके प्रथम काव्य संग्रह "खोजना होगा अमृत कलश" के लिए हार्दिक बधाई व अनन्त शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंसुंदर समीक्षा। आप दोनों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।
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