सुशील शर्मा -- मेरे कदम (नवगीत) सुशील शर्मा शूल प्रस्तर बिछे पथ पर मेरे कदम चलते रहे। पीर पर्वत सी उठी है, कसक की कुछ फुनगियाँ हैं...
सुशील शर्मा
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मेरे कदम
(नवगीत)
सुशील शर्मा
शूल प्रस्तर बिछे पथ पर
मेरे कदम चलते रहे।
पीर पर्वत सी उठी है,
कसक की कुछ फुनगियाँ हैं।
अनकही कुछ व्यथा मन की ,
मौन सी अभिव्यक्तियाँ हैं।
है अखंडित सत्य दुःख का
दर्द मन पलते रहे।
आस्तीनों में सांप भी,
अब ख़ुशी देते मुझे।
घृणा की बौछार में ,
नेह के दीपक बुझे।
आग रिश्तों में लगी है
और हम जलते रहे।
आज फिर से मैं छपा हूँ,
वेदना के अख़बार में।
मैं अकेला और तनहा,
दर्द के बाजार में।
हम बिके उनके लिए,
वो हमें छलते रहे।
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स्मृति तुम्हारी
नवगीत
सुशील शर्मा
कसक रही स्मृति तुम्हारी
हृदय विरह में जीता है।
स्फुट कलियों की मंशा में
काटों का काठिन्य मिला।
पुलक प्रणय की अभिलाषा में ,
विरह नागफन आज खिला।
मुड़-मुड़ कर
पथ देखा तेरा
दूर तलक सब रीता है।
अनगिन विरह की घड़ियाँ भोगीं
पर्वत पीर किनारे थे।
पीड़ा के घूँघट से झाँका
तुम न कभी हमारे थे।
हृदय लिए अवलम्बन तेरा
झूठी आस पे जीता है।
बिखरा है ऋतुराज वसंती
मन में गहन अँधेरे हैं।
बाहर खिलते सुमन वृन्त हैं
अंतस मरुथल डेरे हैं।
मुखर वेदना मौन हुई है ,
हृदय गरल अब पीता है।
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ज्योति किरण
सुशील शर्मा
ज्योति की युगल-किरण।
ओढ़े निज आवरण।
ओ दिनकर वरण।
अन्तःसलिल प्रकृति।
समय की संयत स्वीकृति।
दिनकर सी जागृति।
कम्पन शैथिल्य रहित।
निर्झर निर्लक्ष्य विहित।
कनी कनी शृंखलित।
अरी ओ महाकिरण।
तोड़ डाल आवरण।
प्रगट प्रमाण आचरण।
उष्ण कष्ट ये उमस।
धुंध धुआँ ये धमस।
निकल मिटा ये तमस।
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1 क्षितिज पर
क्षितिज पर
सिहर-सिहर
अवलोकित
रूपायित
विस्तृत अभिलाषा।
गोधूलि सी तुम
रभांती ढांपती
निहोरती
अकम्पित निर्धूम
क्षितिज पर।
2 व्योम में
एक तारा
दीप सा
सघनतर तमस को
देता चुनौती
सतत निर्बाध
सर्जना में
खुद को जलाता
व्योम में
एक तारा।
3 वसंत
पीले वसंत फूल
उमँगी सिहरनों में
टपकता मधुमास
उमगता हरसिंगार
प्रकृति के कैनवास में
रंजित सा रंगित पलाश
प्रणय भिक्षुक
आज क्यों अमलतास ?
सुशील शर्मा
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तीन दृश्य शहीदों की चिताओं के
सुशील शर्मा
1
आज सबेरे
सूरज रोया
झर झर आंसू
उसके बहते
छह माह के बालक ने
दी मुखाग्नि
अपने शहीद पिता को।
2
शहीदों की चिताओं से
निकलती ज्वाला में
देश के सामने घने
आशंकाओं के बादल गहरे।
वोटों की आस में
चमकते नेताओं के चेहरे।
3
फुलवामा से एक चिट्ठी
काश माँ
मैं लड़ कर शहीद होता।
पीठ पर वार किया
सीने को तो छुआ होता।
मेरी चिता पर
मत बहाना तुम आंसू
हँसते मुस्कुराते
तेरा बेटा विदा होता।
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बाल कविताएँ
सुशील शर्मा
गौरैया उड़ी।
तिनके बीने।
मुनिया की खिड़की पर।
एक घोंसला।
बिजली के लट्टू सा।
मुनिया ने देखे।
घोंसले में ,
दो तीन अण्डे।
सेती गौरैया
मुनिया हँसी।
आंधी आई।
गौरैया चिचिआई।
मुनिया भागी।
घोंसला टूटा।
अण्डे फूटे।
गौरैया चुप थी
मुनिया रोई।
2
मम्मी मुझको तुम बतलाओ।
इतना तो मुझको समझाओ।
रंग बिरंगे फूल क्यों खिलते।
जुगनू झिम झिम क्यों हैं जलते।
पक्षी हवा में कैसे उड़ते।
टूटे तारे कैसे जुड़ते।
रिमझिम पानी कैसे गिरता।
झरना झर झर क्यों है झरता।
रहते ये भगवान कहाँ हैं।
अच्छे से इंसान कहाँ हैं।
किसने यह स्कूल बनाया
कठिन पाठ हमको पढ़वाया।
हरे रंग का क्यों है पौधा।
आसमान क्यों लटका औंधा।
पापा क्यों बच्चों को डांटें ।
सारा ज्ञान हमीं को बाँटें।
मम्मी मुझको तुम बतलाओ।
इतना तो मुझको समझाओ।
3
छुक छुक छुक छुक रेल चली।
रेल चली भाई रेल चली।
गार्ड ने सीटी जोर बजाई
हरी हरी झण्डी लहराई।
लाल सिग्नल हरा हुआ
मुन्नू रोया डरा हुआ।
देखो गाड़ी टहल चली।
छुक छुक छुक छुक रेल चली।
डिब्बे में है भीड़ भड़क्का।
दादाजी ने खाया धक्का।
धमा चौकड़ी लोग मचाते।
ऊपर चढ़ते नीचे आते।
हम सबको तो सीट मिली।
छुक छुक छुक छुक रेल चली।
मूंगफली वाला चिल्लाया।
गरम समोसे वाला आया।
गरम चाय की प्याली आई।
चना बेचने वाली आई।
बच्चों को आइसक्रीम मिली।
छुक छुक छुक छुक रेल चली।
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वीरों की जयकार कर
(फुलवामा में शहीद वीरों को समर्पित)
सुशील शर्मा
आज लहू केसर बन जाये,
दुश्मन को ललकार कर।
आज उठा बंदूक हे भारत,
वीरों की जयकार कर।
नमकहरामों की बस्ती में,
सांप सपोले रहते हैं।
केसर की सुंदर क्यारी में,
बम के गोले बोते हैं।
राजनीति के गलियारों में,
गद्दारों की फौज खड़ी।
जब भी आतंकी को मारो,
इनको होती पीर बड़ी।
जिन हाथों में पुस्तक होती,
उन में पत्थर आज थमाए हैं।
फूलों की क्यारी में किसने,
बम बारूद लगाए हैं।
संविधान की सीमाओं को,
किसने आज चुनौती दी?
भारत के टुकड़े करने की,
किसने आज मनौती की ?
आतंकों के मंसूबों को,
किसने आज फ़िज़ा दे दी।
गुलशन के गलियारों को,
किसने आज खिज़ा दे दी।
पैंसठ और इकहत्तर में,
जिसने मुँह की खाई थी।
हाथ उठा कर दोनों जिसने,
मुँह कालिख पुतवाई थी।
कश्मीरी काँधे पर रख,
वह बन्दूक चलाता है।
उन्मादी जेहाद चला कर,
युवकों को फुसलाता है।
भारत के अंदर भी जो,
गद्दारों की टोली है।
खा करके भारत की रोटी,
पाक की वो हमजोली है।
दिल्ली की गद्दी पर बैठे,
सब ये सत्ताधीश सुनें
या तो पाक को सबक सिखायें
या फिर वन सन्यास चुनें।
नहीं खून गर अब खौला तो,
खून नहीं वह पानी है।
अगर देश के काम न आये,
वह बदजात जवानी है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,
आज कहाँ मुँह धोती है।
भारत माता की हर सिसकी,
जन जन में अब रोती है।
आग उगलती हैं अब आँखें,
मन में अब प्रतिशोध बहे।
खून का बदला खून से लेना,
भारत ये समवेत कहे।
वीर शहीदों की कुर्बानी,
यूँ न खाली जाएगी।
रावल से लाहौर तलक,
अब मौत निराली जाएगी।
गिन गिन कर हम बदला लेंगें,
भारत में स्वर एक कहे।
आज शपथ है इस भारत को,
अब न ये आतंक सहे।
पूरा भारत देश दे रहा,
नम आंखों से आज विदाई।
वीर शहीदों को प्रणाम,
रोक न सकोगे आज रुलाई।
फुलवामा की धरती में,
जिन वीरों का खून जला।
उनकी माँ को नमन करें हम,
जिनको ये बलिदान मिला।
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जिजीविषा
सुशील शर्मा
विस्मृति के अँधियारे में
झरते नैनो के पथ पर
सँकरी, पथरीली,
अबरीली ,ढबरीली
कल्पित छवि।
कुछ सपनीली
गोधूलि की सँझा सी
धूल धूसरित
ह्रदय-स्पंदित
स्मृति संचित
तुम्हे पाने की जिजीविषा।
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माँ आशुतोषी
सुशील शर्मा
आदि माता नर्मदे आत्मपोषी।
माँ आशुतोषी माँ आशुतोषी।
उमारूद्रांगसंभूता,हे पावन त्रिकूटा।
ऋक्षपादप्रसूता,रेवा ,चित्रकूटा।
सर्व पाप विनिर्मुक्ता ,हे नर्मदे
पुण्य संगम ,,पारितोषी।
माँ आशुतोषी, माँ आशुतोषी।
दशार्णा ,शांकरी ,मुरन्दला।
इन्दुभवा ,तेजोराशि,चित्रोत्पला।
दुर्गम पथ गामनी,हे नर्मदे ,
महार्णवा ,मुरला, सुपोषी।
माँ आशुतोषी, माँ आशुतोषी।
विदशा ,करभा ,विपाशा।
रंजना ,मुना ,सुभाषा।
अमल शीतल सतत,हे नर्मदे।
अविराम, सुपथ, शत कोषी।
माँ आशुतोषी, माँ आशुतोषी।
विमला ,अमृता,शोण ,विपापा।
महानद ,मन्दाकिनी,अपापा।
नील धवल जल ,हे नर्मदे।
रम्य अहिर्निश ,सहस्त्र कोशी।
माँ आशुतोषी, माँ आशुतोषी।
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माँ और शारदे माँ
सुशील शर्मा
माँ ने प्यारा जीवन देकर
धरा पर मुझे उतारा है।
मैं माटी का अनघड़ पुतला
तूने मुझे संवारा है।
प्रथम पाठ माँ से सीखा है।
शब्दों का संसार दिया ।
बुद्धि देकर तूने माते।
अर्थों का आधार दिया।
संस्कार सीखे माता से।
प्रेम का मीठा ज्ञान मिला।
माँ तेरी अविरल धारा में।
विद्या का वरदान मिला।
माँ गर जीवन की गति है तो।
तुम सुरभित चेतन अस्तित्व।
माँ इस तन को देने वाली।
तुम वो पूर्ण अमित व्यक्तित्व।
जन्म हुआ भारत भूमि पर
देश प्रेम का मार्ग चुना।
माँ तेरे बल के ही कारण
शौर्य आत्म विश्वास बुना।
माता मेरी प्रथम गुरु हैं।
मातु शारदे रक्षक हैं।
माता है अमृत घट प्याला।
आप पाप की भक्षक हैं।
माता भावों की जननी हैं
शब्द समंदर आप भरें।
कृपा कटाक्ष से तेरे ही माँ।
हम सब सुंदर सृजन करें।
करे दूर अवगुण से माता
जीवन को आदर्श करे।
माँ तेरा चिंतन हम सबको।
जीवन विमल विमर्श करे।
त्याग की मूरत माता होती।
आप ज्ञान का सागर हैं।
माता अमृत का है प्याला।
आप अमिय की गागर हैं।
नहीं ऊऋण दोनों से हम हैं।
दोनों ज्ञान के रूप हैं।
नाम अलग दोनों के लेकिन।
दोनों ब्रह्म स्वरुप हैं।
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सखि बसंत में तो वो आ जाते
सुशील शर्मा
सखि बसंत में तो वो आ जाते।
विरह जनित मन को समझाते।
दूर देश में पिया विराजे,
प्रीत मलय क्यों मन में साजे,
आर्द्र नयन टक टक पथ देखें
काश दरस उनका पा जाते।
सखि बसंत में तो वो आ जाते।
सुरभि मलय मधु ओस सुहानी,
प्रणय मिलन की अकथ कहानी,
मेरी पीड़ा के घूँघट में ,
मुझसे दो बातें कह जाते।
सखि बसंत में तो वो आ जाते।
सुमन-वृन्त फूले कचनार,
प्रणय निवेदित मन मनुहार ,
अनुराग भरे विरही मन को
चाह मिलन की दे जाते ,
सखि बसंत में तो वो आ जाते।
दिन उदासी ,रात विहरन ,
बन गया बसन्त सिहरन,
इस प्रगल्भा भोर में ,
ऋतुराज का सन्देश पाते।
सखि बसंत में तो वो आ जाते।
बीतीं कुछ विह्वल घड़ियाँ,
स्मृति संचित प्रणय लड़ियाँ,
हूकती सी कूकती सी
धड़कनों को झनझनाते।
सखि बसंत में तो वो आ जाते।
मुखर तपती वासनाएँ,
मन बसंती व्यंजनाएँ,
विरह की तपती धरा पर
प्रणय का वो जल गिराते।
सखि बसंत में तो वो आ जाते।
चांदनी, उन्मादिनी सी ,
मुग्ध मनसा रागनी सी ,
विरह तम की रात में वो
नेह का दीपक जलाते।
सखि बसंत में तो वो आ जाते।
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प्रणमामि माँ शारदे
(दोहा छन्द)
सुशील शर्मा
वीणापाणी तम हरो ,दिव्य ज्ञान आधार।
धवल वसन सुरमोदनी ,हर लो सभी विकार।
ज्ञान शून्य जीवन हुआ ,मन में भरे विकार।
माँ अब ऐसा ज्ञान दो ,विमल बने आचार।
ज्ञान सुधा से तृप्त कर ,कलम विराजो आप।
शब्द सृजन के पुष्प से ,करूँ तुम्हारा जाप।
जयति जयति माँ शारदे ,आए तेरे द्वार।
सृजन शक्ति मुझको मिले ,प्रेम पुंज व्यवहार।
मधुर मनोहर काव्य दे ,गद्य गहन गंभीर।
छंदों का आनंद दे ,तुक ,लय तान ,प्रवीर।
उर में करुणा भाव हों ,मन में मलय तरंग।
बासंती जीवन खिले ,मृदुल मधुर रसरंग।
वाग्दायिनी ज्ञान दो ,मन को करो निशंक।
प्रणत नमन माँ सरस्वती ,शतदल शोभित अंक।
शुक्लवर्ण श्वेताम्बरी ,वीणावादित रूप।
शतरूपा पद्मासना,वाणी वेद स्वरूप।
हाथ में स्फटिकमालिका,धवल वर्ण गुण नाम।
श्वेत वसन कमलासना ,बसो आन उर धाम।
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