...प्यार ना कर.... बड़े प्यार से ...कह दिया मैंने प्यार मुझसे न कर मैं चला जाऊंगा ....जिन्दगी से तेरी इंतजार मेरा तू न कर याद रखूंगा मु...
...प्यार ना कर....
बड़े प्यार से ...कह दिया मैंने
प्यार मुझसे न कर
मैं चला जाऊंगा ....जिन्दगी से तेरी
इंतजार मेरा तू न कर
याद रखूंगा मुलाकातें सभी
अजनबी बन के सारी जिन्दगी
बन के तू भी अजनबी
ना आना पास मेरे कभी
ना प्यार कर तू मुझसे
जमाने में कहीं
सांसों का भरोसा तो
बिल्कुल भी नहीं
राजेश गोसाई
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चल गीत लिखें......
चल गीत लिखें .......चल गीत लिखें .....
चल दिल से दिल के गीत लिखें
चल बाहों में हम प्रीत लिखें
चल राहों में हम मीत लिखें
ना जग में कोई बैरी हो
जब उठें सुबह सुनहरी हो
ना कोई ऊँच ना कोई नीच दिखे
बस अमन चैन के गीत लिखें
कोई देश का हम. गीत लिखें
कोई भेष का फिर गीत लिखें
कोई उन्नति का हम गीत लिखें
कोई भक्ति का हम गीत लिखें
कोई मीत बन के गीत लिखें
कोई प्रीत के मीत बन हम गीत लिखें
मेरी कलम कोई ऐसा गीत लिखे
हो जग मन मीत मेरा कोई ऐसी प्रीत लिखे
राजेश गोसाई
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....जीवन दान.....
कभी कभी गीतों में भी
होती है बड़ी जान
मरते हुये भी किसी को
मिल जाता है ....जीवनदान
लिख दे गीत कोई ऐसा तू
ओ मेरी कलम महान
दे दूँ मैं भी किसी को
अपने गीतों से ...जीवनदान
तू लिख दे शब्द महान......2
मिल जाये कोई संजीवनी
शब्द कोई अमृत समान
सुर लय के मंथन में
सुरीली निकले तान
राजेश गोसाई
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....निर्णायक युद्ध....
अब जो भी बन्दूक उठायेगा......
खाक में मिल जायेगा...............
सुन ले..... कान खोल के......
ओ आतंकी ....पाकिस्तान......
अब की बारी देख आँख उठा के
चूर चूर हो जायेगा
हिन्दुस्तान जिन्दाबाद है
जिन्दाबाद ही रह जायेगा
बस दुनिया के नक्शे से
नापाक पाकिस्तान तू मिट जायेगा
बढ़ चले अब कदम हमारे
तेरी छाती में चलेंगे आरे
तिरछी नजर ना देख इस ओर
अब सीमा पर ही नहीं
सारे पाकिस्तान में
निर्णायक युद्ध हो जायेगा
राजेश गोसाईं
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......आर पार.....
आर दो पार दो
दुशमन को ललकार दो
सामने शत्रु है मार दो
सिंह की दहाड़ दो
उठे तिरछी आँख इस पार जो
तिरंगा वहां भी अपना गाड़ दो
शक्ति की हुंकार हो
बारूदों की बौछार हो
भयंकर अब यलगार हो
रक्तपिपासु प्रलयंकर सब तलवार हो
शक्ति का अवतार हो
रुके नहीं झुके नहीं
हर कदम निर्णायक अब पार हो
राजेश गोसाईं
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.......रक्त बीज....
चुन चुन के रक्तबीजों का रक्त
अब बन्दूकों को पिलाना है
फसल ए बारूद के खेतों में
अब तोपों को फिर चलाना है
तोड़ के सारी मुंढेरें अब
सेना को अग्नि प्रलय
करने पार अब जाना है
बंजर करके शत्रु की छाती
हर तिरछी आँख में
हिन्दुस्तान नया बनाना है
वक्त आ गया है
ऐक ऐक इंच जमीन पर
लाहौर कराची पिण्डी में
तिरंगा अपना फहराना है
राजेश गोसाईं
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.......चिट्ठियां......
हमनें लिखी थी इन हाथों से जो चिट्ठियां
तुमने पढ़ी ही नहीं अभी तक ये चिट्ठियां
जवाब कोई भी आया नहीं इक अरसे से
रुक रुक के बताती हैं ये मेरी हिचकियाँ
हर हिचकी का जवाब हम तुमसे ले लेंगे
अभी तो यादों में मस्त हैं मेरी हिचकियाँ
जी उठा लो कागज कलम और लिख दो
पैगाम ए मोहब्बत की कुछ हमें चिट्ठियां
डूब जायेंगे हम दोनों ही यादों की झील में
कुछ हिचकियाँ ले के लिख दो ये चिट्ठियां
दिल ही दिल में बहुत सताती हैं हिचकियां
पर यादों की मरहम बन जाती हैं चिट्ठियां
राजेश गोसाईं
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सेवा धर्म
सेवा धर्म की जय में
यह जीवन समर्पण हो जाये
नर सेवा नारायण सेवा में
यह जीवन समर्पण हो जाये
किसी के काम आ जाऊं
मैं इंसान बनूं
किसी का दर्द अपनाऊं
मैं इंसान बनूं
मानव सेवा में
यह जीवन समर्पण हो जाये
किसी की खुशी में
मैं फूल बन जाऊं
किसी निर्बल-निर्भया का
मैं त्रिशूल बन जाऊं
दिव्यांग-बुजुर्गों की
लाठी बन कर
यह जीवन अर्पण हो जाये
सेवा धर्म में
मानव का कर्ज उतार चलूं
चार कन्धों के
सफर में
लाखों सांसे प्यार ले चलूं
एक बनो सब नेक बनो
जीवन की लम्बी कतारों में
दुख में या त्यौहारों में
खुश रहना मेरे प्यारो
दे के यह संदेश जीवन अर्पण हो जाये
राजेश गोसाईं
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....खो गये हम....
खो गये हैं हम भी सफर में कहीँ
इस सुहानी सुबह की डगर पे कहीँ
ये देखो नन्हे फूलोँ की क्यारी
इधर खुशबु भी है इनकी प्यारी
देखो तितलियों ने रंग ये बिखेरे
मनचले भंवरों ने लगाये यहीं फेरे
ये मक्खी चली पहन के चश्मा
मच्छर तो लगाये चक्कर यूँ ही
टोपी वाला बन्दर बड़ा शैतान है
बिल्ली की म्याऊँ म्याऊं तान है
शेर बन के कुत्ता भी दहाड़े
पनघट पे मेंढक भी पुकारे
सुनाई देती हैं बैलों की घंटियाँ
दूध दे रही है उधर कुछ गइयां
चहक रही है हरी फूलों की डाली
भोर ने लगा ली सूरज की लाली
कहीं गुनगुन.... कहीं रुनझुन
टन टन आ रही है कलरव संग कहीं
इन नजारों से हटती नजर नहीं
तभी तो खो गयें हैं हम भी कहीं
राजेश गोसाई
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पीला कुर्ता......
ऐक कुर्ता पीला सा
बहुत ही मनभावन पीला सा
कहीं हरी हरी बूटियों से भरा हुआ
कहीं नारंगी फूलों से सजा हुआ
दिल को बहुत ही भा रहा है
ऐक कुर्ता पीला सा
धानी धरती पर
हर दिल को भाता
दूर दूर तक नजर आता
लहलहाते खेतों में
ऐक कुर्ता पीला सा
राजेश गोसाईं
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12..... नगीना......
देश के लिए जीना है
इस सेवा में ही मरना है
जिन्दगी की अंगूठी में
ये मौत इक नगीना है
ये दहाड़ है सिंहों की
गर्जन है मेघों की
जीने का मौसम ही
देश सेवा में मरना है
जिन्दगी की अंगूठी में
ये मौत इक नगीना है
ये गिरता हुआ झरना
सरहद पे मरन सुहाना है
तिरंगे में लिपट कर सोना ही
इक अनमोल बिछौना है
जिन्दगी की अंगूठी में
ये मौत इक नगीना है
राजेश गोसाईं
.....आजादी.....
मनाया रे आजादी वाला जशन मैंने आज मनाया रे
आओ मेरे देश के प्यारों ओ धरती माँ के दुलारों
मनाया रे........
डोल बजाती है ये पवन सुहानी
नाचे मन खुशी से हर हिन्दुस्तानी
मेरी तरह तुम भी नाचो, ओ भारत माँ के तारों
मनाया रे.......
देखो मैंने तिरंगा ये लहराया
राष्ट्रगान भी हम सबने है मिल के है गाया
दो फूल शहीदों को आके चढ़ाओ ...ओ धरती माँ के प्यारों
मनाया रे........
राजेश गोसाईं
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