वैभव को होली का त्यौहार बहुत अच्छा लगता था। होली खेलने में उसे बहुत मज़ा आता। होली पर वह ख़ूब मस्ती करता और धमाल मचाता। वह तो नया साल शुरू होत...
वैभव को होली का त्यौहार बहुत अच्छा लगता था। होली खेलने में उसे बहुत मज़ा आता। होली पर वह ख़ूब मस्ती करता और धमाल मचाता। वह तो नया साल शुरू होते ही गिनने लगता था कि होली आने में कितने दिन रह गए हैं।
इस साल तो होली मार्च के आख़िरी दिनों में आ रही थी। वैभव की स्कूल परीक्षाएँ भी ख़त्म हो चुकी थीं। इसलिए पढ़ाई और इम्तहानों की भी कोई चिंता नहीं थी। वह बहुत उत्साहित था कि इस बार जमकर होली मनानी है। होली से कई दिन पहले ही उसने तरह-तरह की योजनाएँ बनानी शुरू कर दी थीं कि वह होली पर इस-इस तरह मस्ती करेगा।
एक दिन शाम को वह अपने दोस्तों के साथ खेलकर घर वापिस आया, तो आते ही मम्मी को कहने लगा,”मम्मी, रोहित ने कहा है कि उसके पापा होली पर उसे नई तरह की पिचकारी लेकर देंगे। मैं भी ऐसी ही पिचकारी लूँगा। पिछले सालवाली पिचकारी से होली नहीं खेलूँगा।“
“ठीक है, ले देंगे।“ मम्मी ने अपने काम में लगे-लगे कहा।
“मम्मी, इस बार होली पर गुझिया और बड़ी-बड़ी बनाना। ढेर सारी भी। जी भर के खाऊँगा।“
“मगर बेटू, इस बार तो गुझिया बना नहीं पाऊँगी मैं।“ मम्मी मजबूरी-भरे स्वर में बोलीं।
मम्मी की बात सुनकर वैभव हैरान हो गया। पूछने लगा,” क्यों नहीं बना पाओगी, मम्मी?”
“इस बार होली पर यहाँ होना नहीं है न मुझे।“ मम्मी ने जवाब दिया।
“क्यों नहीं होना यहाँ?” वैभव ने पूछा।
“ मुझे जाना है भोपाल तुम्हारे मामू के पास। वे ऑफिस की तरफ़ से एक साल की ट्रेनिंग के लिए लंदन जा रहे हैं न। इसलिए उनसे मिलने जाना है मुझे।“ मम्मी बताने लगीं।
मम्मी की बात सुनकर वैभव को झटका-सा लगा। वह बोल उठा,”मम्मी, आप यहाँ नहीं होंगे, तो होली का मज़ा कम हो जाएगा। पापा ने भी तो नहीं आना है अभी। वे तो दो महीने बाद ही छुट्टी पर आएँगे।“ वैभव के पापा थल सेना में थे।
मम्मी कुछ जवाब देती, इससे पहले ही दादा जी वहाँ आ गए। उन्हें देखते ही वैभव जैसे उनसे मम्मी की शिक़ायत करते हुए बोला, “दादू देखो ना, मम्मी होली पर मामू के पास जाने का प्रोग्राम बना रही है!“
वैभव की बात सुनते ही दादा जी कहने लगे,”जाना तो मुझे भी है जम्मू कुछ दिनों के लिए।“
“आपको क्यों जाना है, दादू?” वैभव पूछने लगा।
“बचपन के कुछ दोस्तों ने प्रोग्राम बनाया है कि इस बार होली इकट्ठी मनाई जाए। इसलिए होली से दो दिन पहले निकल जाऊँगा और होली के तीन दिन बाद वापिस आ जाऊँगा।“ दादा जी ने जवाब दिया।
“ तो इसका मतलब यह है कि होली पर सिर्फ़ रश्मि दीदी और रामू काका ही होंगे घर पर। फिर तो होली खेलने का मज़ा बहुत ही कम हो जाएगा।“ वैभव ने धीमी-सी आवाज़ में कहा।
“रश्मि भी घर नहीं आ रही इस होली पर। किसी प्रोजेक्ट का काम पूरा करना है, इसलिए होली पर होस्टल में ही रहेगी।“ मम्मी कहने लगीं। वैभव की बड़ी बहन, रश्मि, चण्डीगढ़ में पढ़ती थी और वहाँ पर होस्टल में रहती थी।
मम्मी के मुँह से रश्मि दीदी के न आने की बात सुनकर वैभव का हाल बुरा हो गया। वह कुछ कहता, इससे पहले रामू काका वहाँ आ गए और दादा जी से कहने लगे,”मालिक, गाँव से फोन आया है। मेरी बेटी के लिए लड़का देखना है। इस वास्ते कुछ दिनों के लिए मुझे गाँव जाना है। लड़का होली में छुट्टी लेकर घर आ रहा है, इसलिए मुझे उन्हीं दिनों जाना होगा।“
-3-
वैभव को लगा कि दादा जी शायद उसे जाने से मना कर देंगे, मगर उन्होंने ऐसा नहीं कहा। “ठीक है।” बस यही कहा उन्होंने।
वैभव का माथा चकरा गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह हो क्या रहा है। वह रुआँसा-सा हो आया। होली पर ख़ूब सारी मस्ती करने और धमाल मचाने की उसकी सारी योजनाएँ ख़त्म होती नज़र आ रही थीं।
वह धीमी-सी आवाज़ में मम्मी से कहने लगा,”मम्मी, फिर मैं घर में अकेला कैसे रहूँगा?”
वैभव की बात सुनकर दादा जी हल्के-से हँसे और कहने लगे,”डरो मत, घर के बाहर से ताला लगा देंगे। कोई अंदर नहीं आ पाएगा। तुम दिन-रात टी. वी. चलाए रखना, डर बिल्कुल नहीं लगेगा। टी. वी. पर ही होली के प्रोग्राम देखते रहना।“
“तुम्हारे लिए ढेर सारा खाना बनाके जाऊँगा। जब-जब भूख लगे, खा लेना।“रामू काका थे।
“एक मोबाइल फ़ोन भी तुम्हारे पास छोड़ जाएँगे। जब भी बात करनी हो, कर लिया करना।“ मम्मी कहने लगीं।
मगर इन सब बातों से वैभव की तसल्ली नहीं हुई। वह अनमना-सा अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गया। कुछ ही देर में उसे नींद आ गई।
लगभग दो घण्टे बाद मम्मी ने उसे जगाया और कहा कि खाना खा ले। मुँह-हाथ धोकर उसने खाना खाना शुरू किया ही था कि मम्मी ने उसे बताया कि शाम को जब वह सो रहा था तो उसका दोस्त, रोहित, आया था। मम्मी ने यह भी बताया कि रोहित का कुछ दिनों के लिए अपने चाचा जी के पास हैदराबाद जाने का कार्यक्रम अचानक बन गया है और वह कल ही चला जाएगा।
यह सुनते ही वैभव का मन बिल्कुल ही उचाट हो गया। घर में भी कोई नहीं होगा और उसका सबसे अच्छा दोस्त,रोहित, भी यहाँ नहीं होगा, तो होली का मज़ा ही क्या आएगा - सोचते हुए उसने अनमने ढंग से किसी तरह खाना ख़त्म किया और कुल्ला करके सोने चला गया। वैसे तो सोने से पहले हर रोज़ वह दादा जी से एकाध घण्टे तक कहानियाँ सुना करता था और दुनिया-भर की बातें किया करता था, लेकिन आज उसका मन बहुत उखड़ा हुआ था।
बिस्तर पर लेटने के बाद बहुत देर तक उसे नींद नहीं आई। उसके दिमाग़ में तो बस यही बात बार-बार आ रही थी कि इस बार की होली कैसी अजीब-सी होगी। बड़ी देर तक यही सब सोचते-सोचते आख़िर उसे नींद ने आ घेरा।
अगली सुबह वैभव की नींद पापा की आवाज़ से खुली,”उठ जाओ, जवान! सुबह हो गई है।“ पापा प्यार-से उसे जवान कहकर बुलाते थे। वैभव को लगा कि वह कोई सपना देख रहा है। तभी उसने अपने कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श महसूस किया। उसने झट-से आँखें खोल दीं। पापा सचमुच उसके बिस्तर के पास खड़े थे। वह हैरान-सा हो गया। फिर ख़ुशी के मारे उछलकर खड़ा हुआ और पापा से लिपट गया।
“आपने तो आना नहीं था न इस बार होली पर!” पापा से लिपटे-लिपटे वह बोला।
जवाब में पापा कुछ कहते, इससे पहले ही वह फिर बोलने लगा,”मगर पापा, इस बार तो होली पर न दादा जी घर पर होंगे, न मम्मी होंगी और न रामू काका। रश्मि दीदी भी नहीं आ रहीं इस बार। रोहित भी जा रहा है अपने चाचा जी के पास हैदराबाद।“ कहते-कहते वैभव रुआँसा-सा हो आया।
“किसने कहा कि ये सब लोग इस बार होली पर यहाँ नहीं होंगे?”पापा पूछने लगे।
पापा को जवाब देने के लिए वैभव ने सिर ऊपर उठाया तो देखा दादा जी और मम्मी पास ही खड़े मुस्कुरा रहे हैं। वैभव को लगने लगा कि कोई बात है जो उससे छुपाई जा रही है। वह कुछ बोलता, इससे पहले ही पापा कहने लगे,”जवान, तुम को उल्लू बना रहे हैं सब। होली पर सबने होना है यहाँ पर। रश्मि भी आ रही है कल।“
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वैभव ने हैरानी से मम्मी की ओर देखा तो मुस्कुराते हुए वे कहने लगीं, “हाँ बेटू, पापा सही कह रहे हैं। रश्मि कल आ रही है। रोहित भी कहीं नहीं जा रहा।“
तभी दादा जी बोल उठे,”यह सारी योजना तो हम लोगों ने जानबूझकर बनाई थी। हमें तो यह भी पता था कि तुम्हारे पापा होली पर आ रहे हैं।“
दादा जी की बात सुनकर वैभव बोल उठा,” मगर इस सारे ड्रामे के बाद इस बार की होली मुझे और भी मज़ेदार लगेगी।“
“और यादगार भी!” पापा ने कहा तो सब मुस्कुरा पड़े।
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: हरीश कुमार ‘अमित’,
304, एम एस 4,
केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56,
गुरुग्राम 122011(हरियाणा)
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संक्षिप्त परिचय
नाम हरीश कुमार ‘अमित’
जन्म मार्च, 1958 को दिल्ली में
शिक्षा बी.कॉम.; एम.ए.(हिन्दी); पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
प्रकाशन 800 से अधिक रचनाएँ (कहानियाँ, कविताएँ/ग़ज़लें, व्यंग्य, लघुकथाएँ, बाल कहानियाँ/कविताएँ आदि) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित
एक कविता संग्रह ‘अहसासों की परछाइयाँ’, एक कहानी संग्रह ‘खौलते पानी का भंवर’, एक ग़ज़ल संग्रह ‘ज़ख़्म दिल के’, एक लघुकथा संग्रह ‘ज़िंदगी ज़िंदगी’, एक बाल कथा संग्रह ‘ईमानदारी का स्वाद’, एक विज्ञान उपन्यास ‘दिल्ली से प्लूटो’ तथा तीन बाल कविता संग्रह ‘गुब्बारे जी’, ‘चाबी वाला बन्दर’ व ‘मम्मी-पापा की लड़ाई’ प्रकाशित
एक कहानी संकलन, चार बाल कथा व दस बाल कविता संकलनों में रचनाएँ संकलित
प्रसारण लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण. इनमें स्वयं के लिखे दो नाटक तथा विभिन्न उपन्यासों से रुपान्तरित पाँच नाटक भी शामिल.
पुरस्कार (क) चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट की बाल-साहित्य लेखक प्रतियोगिता 1994,
2001, 2009 व 2016 में कहानियाँ पुरस्कृत
(ख) ‘जाह्नवी-टी.टी.’ कहानी प्रतियोगिता, 1996 में कहानी पुरस्कृत
(ग) ‘किरचें’ नाटक पर साहित्य कला परिष्द (दिल्ली) का मोहन राकेश सम्मान 1997 में प्राप्त
(घ) ‘केक’ कहानी पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान दिसम्बर 2002 में प्राप्त
(ड.) दिल्ली प्रेस की कहानी प्रतियोगिता 2002 में कहानी पुरस्कृत
(च) ‘गुब्बारे जी’ बाल कविता संग्रह भारतीय बाल व युवा कल्याण संस्थान, खण्डवा (म.प्र.) द्वारा पुरस्कृत
(छ) ‘ईमानदारी का स्वाद’ बाल कथा संग्रह की पांडुलिपि पर भारत सरकार का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार, 2006 प्राप्त
(ज) ‘कथादेश’ लघुकथा प्रतियोगिता, 2015 में लघुकथा पुरस्कृत
(झ) ‘राष्ट्रधर्म’ की कहानी-व्यंग्य प्रतियोगिता, 2017 में व्यंग्य पुरस्कृत
(ञ) ‘राष्ट्रधर्म’ की कहानी प्रतियोगिता, 2018 में कहानी पुरस्कृत
(ट) ‘ज़िंदगी ज़िंदगी’लघुकथा संग्रह की पांडुलिपि पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान, 2018 प्राप्त
सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त
पता 304, एम.एस.4 केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56, गुरूग्राम-122011 (हरियाणा)
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