श्रीमती उमा मेहता एम.ए.(हिन्दी ) सोलह श्रृंगार का महिलाओं के जीवन में चिरकाल से संबन्ध रहा है। पुरातत्ववेत्ताओं ने खु...
श्रीमती उमा मेहता
एम.ए.(हिन्दी )
सोलह श्रृंगार का महिलाओं के जीवन में चिरकाल से संबन्ध रहा है। पुरातत्ववेत्ताओं ने खुदाई के समय विभिन्न धातुओं के आभूषण प्राप्त किये हैं जो तत्कालीन समाज में महिलाएँ धारण करती थी। पत्थर,ताँबा,पीतल,गिलेट,शंख-सीप,सोना,चाँदी आदि कई प्रकार की धातुएँ उस समय प्रचलित थीं। फूलों के भी सुन्दर आभूषण महिलाएँ धारण करती थीं। महाकवि कालिदास विरचित अभिज्ञान शाकुन्तल में शकुन्तला फूलों से निर्मित आभूषण ही पहनती थी। नयनाभिराम वस्त्रों के साथ-साथ नख-शिख तक सुन्दर आभूषण नारी सौन्दर्य की श्रीवृद्धि कर देते हैं। इस लेख में हम अपने सुज्ञ पाठकों से बहुप्रचलित कुछ आभूषणों की चर्चा करेंगे।
नारी के सोलह श्रृंगार के अन्तर्गत बिन्दी,गजरा,टीका,सिन्दूर,काजल,मंगलसूत्र,कंठहार,लाल चूनर,मेहंदी,बाजूबन्द,नथ,चूड़ी,कंगन,अँगूठी,हाथफूल,कमरबन्द,पायल,बिछिया आदि प्रचलित प्रमुख आभूषण है। देशकाल वातावरण के अनुसार इनमें परिवर्तन देखा जा सकता है। वर्तमान समय में भारी आभूषणों का स्थान हल्के वजन वाले आभूषणों ने ले लिया है।
1. बिन्दी- यश गौरव,पराक्रम तथा तेजस्विता की प्रतीक बिन्दी भारतीय नारी के अटल सौभाग्य और सम्मान का प्रतीक है। प्रत्येक शुभअवसर पर लालरंग की बिन्दी विशेषरूप से प्रचलन में है। बिन्दी के विभिन्न आकार हैं। महिलाएँ अपनी मुखाकृति के अनुसार बिन्दी का प्रयोग करती हैं। किसी कवि ने कहा है -
नारी का अभिमान है बिन्दी,
नारी का श्रृंगार है बिन्दी‘‘।
बिन्दी सौभाग्य सूचक तो है ही यह स्वास्थ्य के लिए भी अतिलाभप्रद है। मस्तिष्क के मध्य भाग में आज्ञाचक्र होता है जिससे मन शान्त रहता है। बिन्दी मन की चंचलता को स्थिर करती है। सिरदर्द और अनिद्रा में आज्ञाचक्र वाले स्थान पर बिन्दी लगाने से आराम मिलता है। प्राचीनकाल में हल्दी और चूने से बनाए जाने वाले कुंकम से माथे पर बिन्दी लगाई जाती थी। यह बिन्दी कीटाणु रोधक होती थी।
2. गजरा - मोगरा, जूही, गुलदाउदी आदि सुगन्धित पुष्पों से सिर पर जूड़ा या वेणी को सजाने का प्रचलन है। सम्पूर्ण भारत विशेषकर दक्षिण भारत में केश सज्जा में सुगंधित पुष्पों का विशेष महत्व है।
3 टीका,रखड़ी - मस्तिष्क पर माँग पर लगाए जाने वाले टीके का श्रृंगार के साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी विशेष महत्व है। मानसिक तनाव को दूर करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शरीर की गर्मी को दूर करता है। मस्तिष्क में ठंडक करता है।
4 सिन्दूर - भारतीय संस्कृति में विवाह की शुभ वेला में वर - वधू की माँग सिंदूर से भरता है। यह सौभाग्य सूचक है। यदि सिन्दूर शुद्ध हो तो यह स्वास्थ्य के लिए उत्तम है।
5 काजल - प्राचीन समय में औषधि मिश्रित काजल वयोवृद्ध महिलाएँ घर पर ही निर्मित करती थी। आधुनिक समय में विभिन्न प्रकार की काजल-पेंसिल बाजार में उपलब्ध हैं। महिलाएँ इनका उपयोग अपनी आँखों के सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए करती है। कारे - कारे कजरारे नैन वधू के सौन्दर्य में चार चाँद लगा देते हैं।
6 मंगलसूत्र, हार - नारी के गले के सौन्दर्य को बढ़ाने वाला यह महत्वपूर्ण आभूषण है। वर-वधू को विवाह मंडप में मंगलसूत्र धारण करवाता है। इसे पहनने के पश्चात् ही कन्या सौभाग्यवती कहलाती है। यह स्वास्थ्यवर्धक है। हृदय सम्बन्धी व्याधियों को दूर करता है। ब्लडप्रेशर को नियंत्रित करता है। कंठहार गले की आवाज पर नियंत्रण रखता है। कंठ रोग नियंत्रित रहते हैं।
7 लालचूनरी - विवाह में वधू को लाल चूनरी पहिनाई जाती है। सौभाग्य की निशानी होती है। प्रत्येक महिला किसी भी शुभ कार्य में लाल चूनर ही पहनती है। लालरंग पहनकर मन चुस्त, फुर्तीला और प्रसन्न रहता है।
8 मेंहदी - सोलह श्रृंगार का वर्णन मेंहदी के बिना अधूरा है। जब तक वर-वधू के हाथों में मेंहदी नहीं लगती है तब तक विवाह का आनन्द अधूरा है। कहा जाता है जिस मेंहदी का गहरे रंग में रचना वर और वधू के भविष्य में आपसी प्यार और सुखद भविष्य का द्योतक है। मेंहदी स्वास्थ्यवर्धक भी है।
9 बाजूबन्ध - भुजाओं में पहने जाने वाला यह आभूषण स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी है। कंधे के तथा भुजाओं के दर्द में राहत देता है।
10 नथ - नाक में पहने जाने वाला यह आभूषण गर्भाशय तथा नाक,कान तथा गले के रोगों की रोकथाम में सहायक है। यह विभिन्न आकृतियों में प्राप्त होती है। नाक में लौंग भी पहनी जाती है।
11 चूड़ीकंगन - ये विभिन्न प्रकार की होती हैं। सोना,डायमंड के कंगन व चूड़ियाँ हाथ के सौंदर्य को बढ़ाते हैं। इन्हें शुभ अवसरों पर पहना जाता है। काँच,मेटल तथ लाख की सुन्दर - सुन्दर चूड़ियाँ साड़ियों के मेचिंग कलर में उपलब्ध हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से ये गहना आवश्यक है। इससे पॉज़िटिव ऊर्जा का संचार होता है। हार्टबीट नियंत्रित रहती है। ब्लडप्रेशर में भी लाभदायक है। गले सम्बन्धी रोगों को भी नियंत्रित रखती है।
12 अँगूठी - विभिन्न ऊँगलियों में पहने जाने वाली अँगूठियों का अलग - अलग महत्व है। स्वास्थ्य की दृष्टि से अँगूठी पहनना आवश्यक है। विवाह में पहनाए जाने वाली अँगूठी का हृदय से सम्बन्ध रहता है।
13 कर्णफूल,बाली - कान में पहनने वाले आभूषण भी स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक है। कर्णभूषण एक्यूप्रेशर का कार्य करते हैं। सोचने समझने की तर्क शक्ति बढ़़ाते हैं। मासिक धर्म में होने वाली विभिन्न समस्याओं में महिलाओं के लिए सहायक है। कुँआरी कन्याओं के स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उपयोगी है।
14 कमरबन्द - कमर में धारण किया जाने वाला यह आभूषण,चाँदी,डायमण्ड तथा स्वर्ण में उपलब्ध है। पाचनतंत्र पर कमरबन्ध का प्रभाव पड़ता है।
15 बिछिया - पैर के बीच की तीन ऊँगलियों में बिछिया पहनी जाती है। यह चाँदी का आभूषण है। इसे धारण करने से चन्द्रमा की कृपा बनी रहती है। पैरों में स्वर्ण धारण करना वर्जित है। सोना गर्म धातु है। इसकी तस्वीर गर्म होती है। बिछिया पहनना स्वास्थ्यवर्धक है। इसे पहनने से मासिकधर्म नियमित रहता है। यह एक्यूप्रेशर का कार्य करती है। तलवे से लेकर नाभिमंडल तक सभी नाड़ियाँ व्यवस्थित रहती है। आजकल तीन-तीन बिछुड़ियों का चलन नगरीय क्षेत्रों में नहीं दिखलाई देता है। गर्भाशय तथा हृदयतंत्र तक यह स्वस्थ रखती है। ब्लडप्रेशर नियंत्रित रखती है। चाँदी विद्युत की सुचालक है। शरीर को ताजगी प्रदान करती है। अँगूठे में भी चाँदी का छल्ला धारण किया जाता है। सीतामाता का रावण ने अपहरण किया था तब सीताजी ने रास्ते में जो आभूषण गिराये थे उनमें पैर के आभूषणों में बिछिया और पायल का वर्णन है।
16 पायल - पैरों में धारण की जाने वाली पायल नकारात्मक ऊर्जा दूर कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। आयुर्वेद के अनुसार जिन महिलाओं को मासिकधर्म के समय कष्ट होता हो उन्हें वजनदार पायल धारण करना चाहिए। इससे दर्द में भी राहत मिलती हे। पेट तथा नितंब की वसा पर पायल नियंत्रण रखती है। इससे हड्डियाँ भी मजबूत होती है। यह आभूषण हेमोग्लोबीन के असन्तुलन को नियंत्रित रखता है।
इनके अतिरिक्त चूड़ामणि,हँसली,हाथफूल,गोखरू,नवलखाहार,माला,चेन छोटे तथा लम्बे हार,कान के झुमके,लटकन, बाली,पैरों में चाँदी के कड़े, आयल साँकले तथा विभिन्न आकृतियों की मुद्रिका तथा डायमण्ड के सभी प्रकार के आभूषणों के इस लेख में केवल नाम ही दिये गये हैं। मैंने उनका वर्णन नहीं किया है। लिपस्टिक, नेलपॉलिश, हेअर-कलर, नेलआर्ट, हेअर स्टाइल, आईब्रो, मेडिक्योर, पेडीक्योर आदि सभी नारी के आधुनिक श्रृंगार के अन्तर्गत आते हैं। ब्यूटी पार्लरों में भी इन सब श्रृंगार के लिए सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
नारी के सौंदर्य को निखार प्रदान करने वाले ये आभूषण प्राचीनकाल से ही उपयोगी माने गये हैं। एक समय था जब बैंक आदि में पैसा जमा करने के साधन नहीं हुआ करते थे, तब विभिन्न प्रकार के आभूषण ही वित्तीय संकट में, विपरीत परिस्थितियों में व्यक्ति की सहायता करते थे।
आधुनिक समय में भी शासन ने गोल्डलोन स्कीम के अन्तर्गत अपने ग्राहकों को विŸाय सहायता देने की योजना क्रियान्वित कर रखी है। इस प्रकार ये आभूषण स्वास्थ्य लाभ के साथ ही वित्तीय संकट में मददगार होते हैं। भारत में ही नहीं विदेशों में भी वहाँ की महिलाएँ आभूषण धारण करती हैं। देशकाल वातावरण के अनुसार उनमें भिन्नता हो सकती है। विदेशों में 15 फरवरी का दिन ‘‘ज्वेलरी दिवस’’ के रूप में मनाया जाता है।
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श्रीमती उमा मेहता
(एमए हिन्दी)
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