(चित्र - सुरेन्द्र वर्मा की कलाकृति) बात मार्च माह की है,जब सर्दियों का मौसम धीरे-धीरे खिसक रहा था और ग्रीष्म ऋतु दहलीज पर थी। विवान अपनी कक...
(चित्र - सुरेन्द्र वर्मा की कलाकृति)
बात मार्च माह की है,जब सर्दियों का मौसम धीरे-धीरे खिसक रहा था और ग्रीष्म ऋतु दहलीज पर थी।
विवान अपनी कक्षा 12वीं की परीक्षाओं की तैयारियों में पूरी तरह से व्यस्त था,क्योंकि विवान ने पहले से निश्चय कर लिया था की इस वर्ष कक्षा 12वीं वह प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करेगा बस रात-दिन उसके दिलों-दिमाग में सिर्फ एक ही बात गूंज रही थी की वह इस परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपने माँ-बाप का नाम पूरे प्रदेश में रोशन करेगा। आखिरकार परीक्षा का समय आ गया और उसने उसी लगन और मेहनत के साथ परीक्षा दी और जैसे उसने सोचा था ठीक वैसा ही हुआ उसने पूरे प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपने गाँव,जिले व अपने माता-पिता का नाम पूरे प्रदेश में रोशन कर इतिहास रच दिया ।विवान बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि का शांत,सरल,सभ्य और मेहनती लड़का था !
अब कक्षा 12वीं उत्तीर्ण करने के बाद आगे की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिये उसे शहर जाना था,उसको पिताजी के साथ साथ उसके सारे गाँव वाले सम्मानपूर्वक स्टेशन छोड़ने आये हुये थे।
वह बार-बार रुआंसा होकर पिता को देखे जा रहा था क्योंकि पहली बार वह अपने पिता को छोड़ किसी अनजान शहर में जा रहा था जैसे ही वह अन्तिम बार पिता जी से लिपट गया तो पिताजी के आँखों से भी आँसू टपकने लगें किसी कदर उन्होंने खुद के आँसू पोंछ बेटे से कहा-बेटा तुम पहली बार इस गाँव के माहौल से निकलकर शहर जा रहे हो,इसलिए बड़े ही सजगता और हिम्मत से अपना हर कार्य करना,कभी भी ऐसा कोई कदम नहीं उठाना जिससे मुझे और तुम्हारी माँ को समाज में सर नीचा करना पड़ें। बस मन लगाकर पूरी शिद्दत के साथ पढ़ाई करना,बाकी तुम तो मेरे सबसे समझदार और होशियार बेटे हों मुझे तुम पर पूर्णतः विश्वास हैं ऐसी समझाईश देकर बेटे को विदा करके वह गाँव वालों के साथ वापस गाँव लौट गये।
अब विवान ने ठान लिया की पिताजी के द्वारा कही गयी समस्त बातों पे गौर करेगा और उन्हें अक्षरशः अपनी जिंदगी में सम्मिलित करेगा और पिताजी के द्वारा देखे गये सपनों को साकार करेगा,
अब विवान शहर पहुँच कर जाने मानें इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला पा जाता हैं और उस कालेज में प्रवेश पाना उसका और उसके पिताजी का सपना था अब वह जुट जाता है अपने और अपने पिताजी के सपनों और खरा उतरने के लिए। वह मन लगाकर पढ़ाई करने लग जाता है।
उसने कालेज से कुछ दूर एक होटल के पास किराये से एक कमरा ले लिया और वहीं रहने लगा। अब वह प्रतिदिन कालेज जाता और वहाँ से सीधे अपने कमरे में वापस लौट आता वह खाना खाने के लिये पास वाले होटल में जाता खाना खाता और चुपचाप अपने कमरे में वापस आ जाता। समय अच्छे से बीतता जा रहा था अब वह शहर के रंग में भी पूरी तरह ढ़लता जा रहा था। कालेज में भी उसके बहुत सारे नये मित्र बन गये थे। उसके कमरे के पास वाले होटल के सामने गर्ल्स हॉस्टल था वहाँ की सारी लड़कियाँ खाना खाने उसी होटल में आया करती थी जहाँ विवान भी प्रतिदिन खाना खाता था।
विवान बहुत दिनों से एक चीज गौर कर रहा था की सभी लड़कियों की भीड़ में एक लड़की है जो उन्हीं लड़कियों के साथ हॉस्टल में रहती है और प्रतिदिन होटल भी खाना खाने आती हैं और होटल में खाना खाते वक्त वह सब लड़कियों की भीड़ से अलग बैठकर बड़ी ही सादगीपूर्ण ढंग से चुपचाप खाना खाती हैं और फिर हॉस्टल चली जाती यह सिलसिला वह लगातार एक माह से देख रहा था। वह लड़की आती अकेले बैठ खाना खाती और होटल से वापस चली जाती विवान ये सब बखूबी इसलिये देख रहा था क्योंकि वह भी उसी समय वहीं मौजूद रहता था और उससे थोड़ी दूर सामने वालीं कुर्सी पर ही बैठता था। अब अगले दिन से विवान ठीक लड़की के बगल वाली कुर्सी पर बैठने लगा और उस लड़की को बड़ी ही बारीकी से निहारने लगा ऐसा अब वह प्रतिदिन करने लगा उसका वो शांत,सरल चेहरा उसको बेहद भाने लगा। वह होटल में प्रतिदिन उसके आने से पहले ही पहुँच जाता और चुपचाप उसके बगल में बैठकर उसे निहारता रहता मानों की उसे कोई काम सा मिल गया हों।
शायद उसके दिल के दरवाजों पर वो चेहरा बड़ी तेजी से दस्तक दे रहा था। उसका उस लड़की के प्रति आकर्षण तीव्र गति से बढ़ता जा रहा था। अब वह दिन-रात बस एक ही चेहरा महसूस करता,पढ़ाई में भी अब उसका मन नहीं लगता था। उसको तो बस उस पल का बेसब्री से इंतजार रहता था की कब वह होटल में आये और वह उसको जी भर देख सके।
अब वह दिनों-दिन उसके खयालातों में डूबने लगा था।
वह उसकी खूबसूरत में लिप्त होता जा रहा था उसकी वो बड़ी-बड़ी आँखें जो उसकी नायाब खूबसूरती को बयाँ कर रही थी,उसके गुलाब की पंखुडियों से होंठ मानों विवान से कुछ कहना चाहते हैं और उसके कानों में वो चमकदार झुमके जो विवान को बेहद आकर्षित कर रहे थे। सच में वो पूर्णतः अप्सरा सी नजर आती थी।
विवान को प्यार का परवान चढ़ चुका था उसके झुमके की चमक से मानों अब विवान की आँखें चौधियाँ गई थी।
दिन-रात बस उसका ही जिक्र करता उसी की फिक्र रहती
थी उसे,सच मानों तो अब वह उससे बेइन्तहा प्यार करने लगा था। इधर अपने माता-पिता के सारे सपनों और वादों का गला घोट चुका था उसे खुद को पता ही नहीं चला कि कब वह उसके प्यार में इतना मशगूल हो गया।
पढ़ाई लिखाई से मानों अब उसका कोई नाता ही नहीं रहा जैसे वह शहर पढ़ने नहीं बल्कि प्यार करने आया था।
आखिरकार उसने ठाना कि आज वह दिल की सारी बात उसे बता देगा और बतायेगा की वह किस हद तक इश्क करने लगा हैं। वह तैयार हो शाम को होटल पहले पहुँच गया और बड़ी बेसब्री से उसका इंतजार करने लगा वो कहते हैं न कि जब प्यार का नशा चढ़ जाता है तो एक-एक पल सौ-सौ साल के जैसे प्रतीत होते है और बेचैन और बेकरारी से भरीं नजरें अपने हमराज को बड़ी तीक्ष्णता से निहारती रहती है कुछ इसी तरह का हाल यहाँ विवान का था कुछ मिनटों के इन्तजार के बाद वह आयी और अपने स्थान पर ठीक वैसे ही बैठ गई जैसे वह प्रतिदिन बैठती थी। जैसे ही वह पहला निवाला मुँह में डालने वाली थी विवान उसके सामने जा पहुँचा और अपनी कुर्सी खींच ठीक उसके सामने बैठ गया।
वह भौचक्की होकर एकटक उसे निहारने लगी वह कुछ कह पाती उससे पहले विवान बोल पड़ा,
"कैसी है आप"? वह स्तब्ध होकर बस उसे निहारती रही तभी उसने दोबारा वही दोहराया- "कैसी है आप"?
अब भी उसने कुछ नहीं बोला मगर विवान ने एक ही साँस में अपने नाम के साथ अपने दिल का पूरा हाल भी सुना दिया।
अब भी वह सिर्फ विवान को ही एकटक देख रही थी। तुम कुछ बोल क्यूँ नहीं रही-विवान ने खीझते हुये कहा;
फिर भी उसके मुँह से कोई आवाज नहीं निकली,लेकिन वह बहुत कुछ कहना चाहती थी शायद वह भी अपना दिल-ए-हाल बताना चाहती थी उसके होंठ तेजी से फड़फड़ा रहे थे मानों वह दिल के सारे जज्बातों को बयाँ करने के लिये बेकरार हों,सिर्फ विवान उसके होंठों को नहीं पढ़ पा रहा था। आखिरकार कुछ देर के बाद हाथों से इशारा करते हुये उसने स्पष्ट किया कि वह बोल नहीं सकती,बाकी देख सकती है,सुन सकती हैं और महसूस कर सकती हैं।
यह देखते ही विवान को एक पल के लिये ऐसा लगा कि मानों उसके सारें अरमानों का सरेआम कत्ल हो गया,उसके सजोये हुये सपनों की बगियों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया,एक क्षण के लिये उसे लगा की ये जहाँ सारा रुक सा गया है उसके सारे सपने धरे के धरे रह गये उसके प्यार का भूत उतर सा गया, लेकिन जब उसने उस लड़की के मायूस चेहरे को देखा जिसमें साफ-साफ दिख रहा था कि वो लड़की भी उतनी शिद्दत के साथ उसको मोहब्बत करती हैं,वह स्तब्ध तो तब रह गया जब उसने उसे खुद से लिखा लेटर सौंप दिया जैसे ही उसने लेटर की पहली पँक्ति पढ़ी जिसमें लिखा था "प्यार मेरे लिये दुनिया का सबसे खूबसूरत तोहफा हैं जिसने मुझे जीने के लिये तब भी प्रेरित किया जब मैं मर जाना चाहती थी"
विवान जितनी लगन से तुमने मुझसे प्यार किया हैं उतनी ही तल्लीनता से मैंने तुम्हें चाहा है मगर मैं कभी कह नहीं पाती,कभी जता नहीं पाती क्योंकि मैं बोल नहीं सकती हूँ न,शायद मेरे एहसास का अन्दाजा नहीं होगा तुम्हें मैंने अपनी साँसो को भी सिर्फ तुम्हारे नाम कर रखा हैं अब तुम मुझे अपनाओ या ना अपनाओ कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मैंने अपनी सारी जिंदगी तुम्हारी चाहत के नाम कर दिया हैं,और हाँ; आखिरी बात जो मैं कभी अपनी जुबां से तुम्हें बता नहीं पाऊंगी,
सुनो; मेरा नाम 'वेदिका' हैं।
इतना पढ़ते ही उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े,उसने अपनी पलकें झुका ली मानों उसने बहुत बड़ा पाप कर दिया हो तभी 'वेदिका' ने उसकी तरफ रूमाल बढ़ाया और उठ कर बड़ी तेजी से विवान को गले लगा लिया और खुद रो पड़ी। विवान को उसके प्यार का एहसास पूर्णतः हो चुका था और वह खुद पर गर्व महसूस कर रहा था की उसने एक बहुत ही शानदार जीवनसाथी का चुनाव किया हैं जो बेजुबां तो हैं मगर प्यार की वास्तविक प्रतिमूर्ति हैं जिसने प्यार का असली मतलब समझाया हैं कि प्यार की कोई भाषा नहीं होती,प्यार का कोई मजहब नहीं होता,प्यार बस हो जाता हैं,प्यार पवित्रता और समर्पण की भावनाओं से ओतप्रोत होता है।
अन्ततः विवान और वेदिका ने एक बार फिर से प्यार की परिभाषा ही बदल दी और दिखा दिया की बेजुबां इश्क़ में भी बेहद ताकत हैं जिसमें एक दूसरे के लिये दोनों आवाज और अल्फाज भी बन जाते हैं !!
सच में प्यार का वास्तविक अर्थ जीवन में एक-दूसरे को गहराई से समझना उसके मन के आन्तरिक भावों को महसूस करना और बिना किसी शिकायत के साथ जीवन की डोरी से जुड़े रहना है !!
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-©शिवांकित तिवारी "शिवा"
युवा कवि एवं लेखक
सतना (म.प्र.)
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