ताजगी भरे व्यंग्य रचनाओं का रोचक संग्रह है “ मैं आम आदमी हूँ ” साहित्यकार डॉ. अजय जोशी के लेखन का सफ़र बहुत लंबा हैं। राजस्थान क...
ताजगी भरे व्यंग्य रचनाओं का रोचक संग्रह है “ मैं आम आदमी हूँ ”
साहित्यकार डॉ. अजय जोशी के लेखन का सफ़र बहुत लंबा हैं। राजस्थान के बीकानेर शहर के निवासी जोशी पेशे से महाविद्यालय में प्रोफ़ेसर थे। वे कई वर्षों से लगातार व्यंग्य, कविता, फीचर, लेख, कहानी, इत्यादि विधाओं में लेखन कार्य कर रहे है। रोजगार, शिक्षा, परिवार, अर्थव्यवस्था, उद्योग, निवेश आदि विषयों पर अजय जोशी के आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। लेखक की दैनिक युगपक्ष में नियमित रूप से व्यंग्य-तरंग नाम से व्यंग्य स्तंभ में रचनाएं प्रकाशित हो रही हैं। जोशी मरू नवकिरण साहित्यिक पत्रिका के संपादक है। लेखक को साहित्यिक संस्कार अपने पिताजी से विरासत में मिले। लेखक का पहला व्यंग्य संग्रह “ मैं आम आदमी हूँ ” प्रकाशित हुआ है. व्यंग्यकार ने इस संग्रह की रचनाओं में वर्तमान समय में व्यवस्था में फैली अव्यवस्थाओं, विसंगतियों, विद्रूपताओं, इत्यादि अनैतिक आचरणों को को रेखांकित किया है और बिना भय और पक्षपात के उजागर करके इन अनैतिक मानदंडों पर मीठे प्रहार किये हैं। इस व्यंग्य संग्रह की भूमिका बहुत ही सारगर्भित रूप से वरिष्ठ साहित्यकार श्री भवानी शंकर व्यास “ विनोद ” ने लिखी है और साथ ही साहित्यकार डॉ. श्रीलाल मोहता , प्रो. प्रतापराव कदम , मधु आचार्य “आशावादी” और डॉ. राजेश कुमार व्यास ने इस पुस्तक पर अपनी सारगर्भित टिप्पणी लिखी हैं। श्री भवानी शंकर व्यास “ विनोद ” लिखते है " डॉ.अजय जोशी में अपने युग को समझने, परखने तथा विश्लेषित करने की क्षमता है। ” डॉ. श्रीलाल मोहता ने अपनी टिप्पणी में लिखा है “ डॉ. जोशी का व्यंग्य लेखन के क्षेत्र में यह प्रथम प्रयास है इसको देखते हुए प्रतीत होता है कि भविष्य में निश्चित रूप से इस विधा में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने में कामयाब होंगे। ” प्रो. प्रतापराव कदम ने लिखा है “ भाषा चाकचौबंद है, गागर में सागर की तरह ! व्यंग्य साहित्य में बहुत कुछ जोड़ता है यह संग्रह ! ” मधु आचार्य “आशावादी” के अनुसार व्यंग्य विधा में यह संग्रह डॉ. जोशी की मजबूत दस्तक है। डॉ. राजेश कुमार व्यास ने कहा है कि इन व्यंग्य रचनाओं में शब्दों का अनावश्यक आडम्बर नहीं है। यही इस संग्रह की बड़ी विशेषता है।
शीर्षक रचना “ मैं आम आदमी हूँ ” में व्यंग्यकार लिखते है “ मेरे नाम पर बहुत से लोग मौज उड़ाते हैं। ये लोग नेता हो सकते हैं, अफसर हो सकते हैं, बड़े उद्योगपति भी हो सकते हैं। उनके लिए मेरी कीमत बनती-बिगड़ती रहती है। कभी मैं उनके लिए अमूल्य होता हूँ तो कभी मेरी कीमत दो कौड़ी की भी नहीं होती। ” यह रचना नेताओं , अधिकारियों , उद्योगपतियों, सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों के आचरण पर तीव्र प्रहार हैं। “ जे सुख चावे जीव ने तो… ” व्यंग्य रचना में लेखक कहते है “ जे सुख चावे जीव ने तो गेलो बणर जी ” “ ये लोकोक्ति हम अपने पुरखों से सुनते आ रहे है। कई लोग इसको जे सुख चावे जीव ने भोंदू बनकर रहना भी मानते हैं। ” लेखक इस रचना के माध्यम से कहना चाहते है कि जीवन में सुखी रहना चाहते हो तो वेड़ा बनकर पेड़ा खाते रहो। व्यंग्य रचना “ पहले भेंट-पूजा फिर काम होगा ” में लेखक कहते है “ आजकल सरकारें हमारे पीछे पड़ने लग गई है। बहुत सी जगह डिजिटल व्यवस्था लागू कर दी है। अब यह लेनदेन काफी मुश्किल होता जा रहा है। लेकिन इस मामले में हम ज्यादा चिंतित नहीं है। क्योंकि हमारे पास एक से बढ़कर एक कलाकारों की टीम मौजूद है, जो सरकार की ऐसी हर व्यवस्था की स्टडी करके उसका तोड़ निकाल लेती है। ” यह व्यंग्य भ्रष्टाचारियों और रिश्वत लेने वाले लोगों पर गहरा कटाक्ष है. “ भृकुटी ताने रखिये इन्टरव्यू लेते समय ” रचना में व्यंग्यकार ने नौकरी के लिए साक्षात्कार लेने वाले महानुभावों की पोल खोल कर रख दी है। मोहें भूल गए सांवरिया ! , जे सुख चावे जीव ने तो , साहित्य चोरी है माखनचोरी , सम्मान ले लो सम्मान , नाक का सवाल , एक लाइक का सवाल है बाबा , …तो अब गोली खा ! , यूज एण्ड थ्रो , प्रभुजी मेरे अवगुण चित न धरो… जैसी रोचक व्यंग्य रचनाएं अपनी विविधता का अहसास कराती है और पढ़ने की जिज्ञासा को बढ़ाती हैं। जीवन के प्रति व्यापक दृष्टि होने के कारण व्यंग्यकार ने इस संग्रह में व्यवस्था में मौजूद हर वृत्ति पर कटाक्ष किए हैं। साहित्य , कला , संस्कृति , राजनीति , लाल फीताशाही , सोशल मीडिया , अर्थतंत्र , गबन और घोटाले , फिल्म जगत इन सब विषयों पर व्यंग्यकार ने अपनी कलम चलाई हैं।
व्यंग्यकार जोशी एक संवेदनशील रचनाकार है। इस संग्रह में लेखक ने अपनी भावनाओं को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है। व्यंग्य लिखने का डॉ. अजय जोशी का अपना अलग ही अंदाज है। जोशी ने अपनी सहज लेखन शैली से गहरी बात सामर्थ्य के साथ व्यक्त की है। लेखक को अपने आसपास की जो घटनाएं झकझोरती हैं, वे उसी समय अपनी लेखनी से त्वरित व्यंग्य आलेखों के माध्यम से राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक क्षेत्र से जुड़े सभी कर्णधारों को सचेत करते रहते है और पाठकों का ध्यान आकृष्ट कर उन्हें सोचने को मजबूर कर देते है। आलोच्य कृति “ मैं आम आदमी हूँ ” में कुल 37 व्यंग्य रचनाएं हैं। लेखक ने अपनी कुछ रचनाओं में मुहावरों और लोकोक्तियों का बेहतरीन प्रयोग किया हैं। कुछ व्यंग्य रचनाओं में लेखक की गहरी दार्शनिकता दृष्टिगोचर होती हैं। पुस्तक में कुछ प्रूफ और टंकण की त्रुटियाँ जरूर हैं। आशा की जानी चाहिए कि अगले संस्करण में यह सुधार ली जाएगी।
पुस्तक : मैं आम आदमी हूँ
लेखक : डॉ. अजय जोशी
प्रकाशक : कलासन प्रकाशन, अलख सागर रोड, बीकानेर
मूल्य : 200 रूपए
पेज : 96
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दीपक गिरकर
समीक्षक
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,
इंदौर- 452016
मोबाइल : 9425067036
मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com
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