(1.) हम तुम जब मिलते हैं हम तुम जब मिलते हैं जी भर बातें कर लेते हैं उन बातों की डोर...
(1.) हम तुम जब मिलते हैं
हम तुम जब मिलते हैं जी भर बातें कर लेते हैं
उन बातों की डोर पकड़ कुछ रातें जी लेते हैं !
वैसे पंख सभी चिड़ियों को रंग मिले फूलों को
हरियाली सावन ने पायी ,मस्त पवन झूलों को ,
पर तेरी शीतल छाया में गुजरे हैं जो पल मेरे
उन पल के हम छोर पकड़ कुछ रातें जी लेते हैं ,!!
यूं सागर के सीने में मोती होता है होगा
पूनम की रातों में अमृत टपका करता होगा
पर जो तेरे होठों के प्याले से प्यार टपकते हैं
उन प्यालों की धार पकड़ ,कुछ रातें जी लेते हैं ,! !
नदियों की जलधारों पर मन प्यासा विचरण करता
इन्द्रधनुष के पथ पर तेरे पग का दर्शन करता
कहते सभी गुलाब तुम्हें पर मेरा दिल डरता है
नाजुक मेरे एहसासों को कांटें छिल लेते हैं !!
मेरा सपना ले बारात जाये अगवानी करना
आस संजो बैठा कबसे मत आनाकानी करना
रस्मों के बंधन में जो जीना चाहें वो जानें
हम तो भावों के मंडप से दुनिया रच लेते हैं !!
तेरी खुश्बू के आगे जग कस्तूरी झीनी फीकी
मुस्कानों के आगे स्वर्गिक सब रंगीनियाँ फीकी
जिसको जनम दुबारा लेने की है जिद तो होवे
सब जन्मों को मिलन के धागे से हम सी लेते हैं !!
हम तुम जब मिलते हैं जी भर बातें कर लेते हैं
उन बातों की डोर पकड़ कुछ रातें जी लेते हैं !!
------------------------*****--------------------
(२.) तेरे सतरंगी आंचल पर
तेरे सतरंगी आँचल पर ,मैंने जो गीत लिखे हैं
उन्हें तुम गा दो ना ,उन्हें तुम गा दो ना .!
पावस की पुरवाई छेड़े यौवन की अमराई में
यादों में सिहरन भर आयी,मौसम की अगुवाई में
गहरी नदियों से होठों पर ,सोये भाग्य हैं मेरे
उन्हें चमका दो ना ,उन्हें चमका दो ना !!
झरनों की मादक लहरों पर तेरे स्वर बलखाते
दूर तलक गूंजे रव तेरे सपने सच हो जाते
मदिरामय नयनों के नभ में ,भरे हैं प्रीत के प्याले
उन्हें छलका दो ना ,उन्हें छलका दो ना !!
महुआ मन बौराया - सा है तन उमड़ा ज्यों सावन घन
व्याकुल फूलों की गंधों का ,भटका भौंरों सा चितवन
तेरे बिन मछली की तड़पन दिल हर जनम सहा है
इसे समझा दो ना ,इसे समझा दो ना !!
अब तक मिटे न ढाई अक्षर जो जल पर लिख आये
गिरा नहीं है अभी घरौंदा ,जो बचपन में भाये ,
मन के कोरे आंगन पर,घिर आये क्वार के बादल
उसे बरसा दो ना ,उसे बरसा बरसा दो ना .!!
------------------------*****--------------------
-
(3.) मौसम से रूठे बादल को
मौसम से रूठे बादल को फिर से नहीं बुलाऊंगा
मैं सावन का मेघ बनूंगा ,और तुझे नहलाऊँगा,
साँसों में पुरवाई बहती ,आहों में शीतलता है
नेह के नरम बिछौना बैठी ,काया की कोमलता है
तेरे मुखड़े की आभा लेकर मैं रातों को चमकाऊंगा,
मैं सावन का मेघ बनूंगा और तुझे नह्लाऊंगा !!
नरम घास की चादर से अच्छे एहसास के मखमल है
तेरे हुस्न की खुशबू से जीवन में यौवन पल पल है
प्रेमचन्द का मैं होरी और धनिया तुझे बनाऊँगा ,
मैं सावन का मेघ बनूंगा और तुझे नह्लाऊंगा !!
बोलो शकुंतला तुम अपनी मुंदरी कहाँ भुला आई
दमयन्ती बोलो किस किस को अपनी व्यथा सुना आई
कुछ भी नहीं अछूता कवि की नजरों से बतलाऊँगा
मैं सावन का मेघ बनूंगा और तुझे नह्लाऊंगा !!
कन्धों तक जो जुल्फ घनेरी ,बादल से क्या कम लगते
इन्द्रधनुषी आंचल नभ पर क्षितिज में सुन्दरतम लगते
स्वप्नलोक की परी हो तुम ,हृदयासन पर बैठाऊंगा ,
मैं सावन का मेघ बनूंगा और तुझे नह्लाऊंगा !!
तुमसे अगर जुदाई होगी ,दर्द कहाँ सह पाऊंगा
भावों के मंडप में मैं तनहा कैसे रह पाऊंगा
मेघदूत की रचना कर मैं कालिदास बन जाऊँगा
मैं सावन का मेघ बनूंगा और तुझे नह्लाऊंगा .!!
------------------------*****--------------------
(4.) युग की छाती पर कदम रख \
युग की छाती पर कदम रख जन्म लेता मुक्तसर हूँ
मैं तुम्हारे भाल पर अंकित एक हस्ताक्षर हूँ !
फूट पड़ता हूँ शिखर से ,जिन्दगी का स्रोत बनकर
मैं निकल पड़ता हूँ मन में जोश का प्रतिरूप बनकर
कर रहा सिंचित धरा पत्थर का सीना चीर कर
छोड़ पीछे वक्त की रफ़्तार का मैं अग्रसर हूँ .!
मैं मिलाता सांध्य को प्रभात की रश्मि कला से
जोड़ता हूँ गगन को गरिमामयी इस मेखला से
कर रहा सम्पूर्ण शक्ति से उड़ाने नील नभ में
ढूँढ़ लेता ठौर अपना प्राण पण से मैं प्रखर हूँ .!
अपनी ऊर्जा से बनायी समय की तस्वीर को
देख लेना तुम उगाता बीज की तकदीर को
मैं अडिग विश्वास का तरुवर मनोरम झूमता
तेरे सुख सौभाग्य की एक रागिनी का सप्तस्वर हूँ !
तेरी एक आवाज से पहले ही तुमसे आ मिलूँगा
चाह चलने की हो अंतिम रास्ते तक मैं चलूँगा
मैं तुम्हारे और दुनिया मध्य बनकर एक कड़ी हूँ
कौन तोड़ेगा मुझे मैं बिखरता ना टूटकर हूँ .!!
------------------------*****--------------------
(5.) तुम्हारे बिन हमारे दिन
तुम्हारे बिन हमारे दिन कभी काटे नहीं कटते
ये तन्हाई के दुखते पल कभी बांटे नहीं बंटते .!
ये पिंजड़ा तोड़ उड़ जाता गगन को भेदकर रखता
हवाएं चीर देता मैं समंदर सोखकर रखता
मगर ये घाट और ये पाट भी पाटे नहीं पटते.! तुम्हारे बिन .....
हृदय के द्वार खोले मूक आमंत्रण भी रूठे हैं
उमर लम्बी रही किस काम की जब तपन अनूठे हैं
जुदाई से मिले अभिशाप मिटाए भी नहीं मिटते ! तुम्हारे बिन .....
बिना जल बहती ना सरिता ,परिंदे उड़ते ना बिन पर
तपिश की रेत पर गुजरे अकेला प्यासा मन बनकर
कहाँ है पी ,कहाँ पी ,पपीहा थक गया रटके ! तुम्हारे बिन ...
क्षितिज के छोर पर ठिठका हुआ क्षण बन गया हूँ मैं
कई भावों के दरिया में अकेला बह रहा हूँ
लगे अलगाव जन्मों के हटाये भी नहीं हटते ! तुम्हारे बिन .......
(6.) बड़ी कृपा की आमंत्रण
बड़ी कृपा की आमंत्रण स्वीकार हमारे आये तुम
पर पहले स्वागत करलूं जो बिना बुलाये आये हैं.!
यूं बरसात में बादल बरसे ,नदियाँ झरने गाये गीत
सागर उमड़े ,आंधी ,लहरें ,हर मौसम के होते मीत ,
जरा ठहर जाना पूनम की रात तुम्हें भी प्यार करूँगा
पर ,पहले पी लूँ जो आँखों से मदिरा छलकाए हैं .!
बिन मौसम के साथी मिलना बिन पूछे कुछ कहा करे
एकरस से बदलाव है अच्छा उल्टी हवा जब बहा करे ,
दर्पण तुम्हें भी बाद में देखूं अगर वक्त मिल पायेगा
पहले दर्पण टुकड़ों को जो सौ सौ बिम्ब दिखलाए हैं !
रात अगर रूठेगी भी तो फिर उसे मना ली जायेगी
जुल्फ अगर बिखरी हो तो फिर उसे सजा ली जायेगी
पर ,सजधज के बैठ नदी के छोर हमारी आशा में
ठहरो ,उनसे मिललूँ जो अंजुरी से प्यास बुझाए हैं !
------------------------*****--------------------
(7.) हर किसी के हाथ में
हर किसी के हाथ में सम्मान होना चाहिए
दिल में सबके वास्ते स्थान होना चाहिए .!
कार्य सम्पादन मगर अपनी सीमा आधार हो
सादगी ,सौहार्द, मर्यादा लिए व्यवहार हो
मन किसी का ना दुखे ,यह ध्यान होना चाहिए
दिल में सबके वास्ते ................!
खूब अवलोकन करें दिन भर किये जो कार्य हैं
अनुसरण पथ का करें जो सर्वथा स्वीकार्य हैं
भावना में विश्व का कल्याण होना चाहिए .!
दिल में सबके वास्ते ------.......!
खोके भी सम्मान जिये तो भला तुम क्या जिये
देश का गौरव बने ना तो भला तुम क्या किये
“सरफरोशी की तमन्ना “ गान होना चाहिए !
दिल में सबके वास्ते ------------!
खुश रहें और खुश रखें इससे बड़ी ना जिन्दगी
निर्बलों का साथ देने से बड़ी ना बंदगी
दृष्टि पावन से मिलन भगवान होना चाहिए
दिल में सबके वास्ते -------------------!
------------------------*****--------------------
(8.) सीने में जो दबी आग है
सीने में जो दबी आग है ,आज उसे सुलगाना है
भारतवासी जाग उठो जम्मू कश्मीर बचाना है !
देश का दुश्मन बाहर का हो या अंदर का एक समान
स्वर्ग से सुंदर कश्मीर है इसमें रहते हम सबके प्राण ,
पाक अधिकृत जो कश्मीर है उसको मुक्त कराना है .
भारतवासी जाग उठो जम्मू कश्मीर बचाना है !
कश्मीर में अलगाववाद की आंधी आती रहती है
उसपर यह सरकार गलत नीति अपनाती रहती है
वार्ताकारों की मंशा भी पाक का मान बढ़ाना है
भारतवासी जाग उठो जम्मू कश्मीर बचाना है !
जनता को भी ऐसे में अब सावधान होना होगा
किसी मूल्य पर हवा के आगे एक तूफ़ान होना होगा
जो भी शान्ति भंग करेगा उसको मजा चखाना है
भारतवासी जाग उठो जम्मू कश्मीर बचाना है !
चार लाख कश्मीरी पंडित निर्वासित जीवन जीते
अक्षमता सरकार की है ,कई दशक यूँही बीते .
हत्यारी तीन सौ सत्तर धारा को ख़त्म कराना है .
भारतवासी जाग उठो जम्मू कश्मीर बचाना है !
------------------------*****--------------------
(9.) विश्व पटल पर नील गगन में
विश्व पटल पर नील गगन में उडो तिरंगा निर्भय हो
एकसाथ सब मिलकर बोलो भारत माता की जय हो !
अपने वतन से प्यार हमे है ,हममे चाह अमन की है
तिरंगे को मिले सलामी आस्था जन गण मन की है
अमर शहीदों की गाथा हम याद सदा करते तन्मय हो
एकसाथ सब मिलकर बोलो भारत माता की जय हो .!
लोकतंत्र की बलिवेदी पर हम आहुति देनेवाले
आ रहे विदेशी खतरों से हम हैं लोहा लेनेवाले
नहीं किसीका हृदय व्यथित हो दिलमें नहीं किसीको भय हो
एकसाथ सब मिलकर बोलो भारत माता की जय हो !
मंदिर ,मस्जिद ,गुरुद्वारे में प्रेम बढ़े विश्वास बढे
यह गणतंत्र अमर हो अपना नफरत घटे मिठास बढ़े
देश की खातिर मर मिटने का यही वक्त हो यही समय हो ,
एक साथ सब मिलकर बोलो भारत माता की जय हो !
------------------------*****--------------------
(10.) मन के मीठे सपनों का
मन के मीठे सपनों का भी मन तुम्हारा हो
ऐसा धन अर्जित करो जो धन तुम्हारा हो ,
जिन्दगी का लक्ष्य समझो ,राह भी बदला करो
एक पल का मोल समझो ,चाह भी बदला करो ,
हो नजरिया खूबसूरत ,जीवन तुम्हारा हो ,
ऐसा धन अर्जित करो .................
सबके सुख में अपना सुख ,सबके दुःख में अपना दुःख
जब पड़े उपकार करना ,मोड़ना ना अपना मुख
जिसमे देखो स्वयं को दर्पण तुम्हारा हो ,
ऐसा धन अर्जित करो .............
जिन्दगी की लहरों पर तुम मुस्कुराना सीख लो
प्यार करके गैर को अपना बनाना सीख लो
बाँध लो धरती और नभ ,,बंधन तुम्हारा हो .
ऐसा धन अर्जित करो --.................
स्वार्थ को देना जगह , है निमन्त्रण नाश का
शब्दों से ज्यादा अनुभव प्राप्त कर प्रकाश का
सबको बोलो आँखें खोलो ,निवेदन तुम्हारा हो .
ऐसा धन अर्जित करो ................
------------------------*****--------------------
----*****----(कुल दस गीत ,हरिवंश प्रभात के )
--
हरिवंश प्रभात
पिता: स्व.इन्द्रजीत दुबे
माता: स्व.देवमती कुंवर
पत्नी: श्रीमती शोभा प्रभात
जन्म स्थान: कोल्हुआ खुर्द,पूर्वडीहा,चैनपुर,पलामू,झारखण्ड-822101
शिक्षा: बी.एससी., एम.ए. (हिन्दी),डिप.इन टीच.
आजीविका: पूर्व प्रधानाध्यापक,उच्च विद्यालय, चान्दो,चैनपुर, जिला-पलामू(झारखण्ड) -822101
अभिरुचि: लेखन, पठन-पाठन एवं साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारीI
सम्मान:
· डॉ.अम्बेदकर फ़ेलोशिप सम्मान (1993)
· रामदीननेमा स्मृति पुरस्कार(1998)
· ‘साहित्यश्री’झारखण्ड साहित्य परिषद् (2003)
विशेष सम्मान: राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम से राष्ट्रीय अध्यापक पुरस्कार (2004)
सम्पादन: ‘उदीयमान’ द्विमासिक साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन एवं प्रकाशन (1988-1990)
विशेष लेखन: छात्रोपयोगी आधा दर्जन पुस्तकों का लेखनI
प्रकाशन:
· बढ़ते चरण, काव्य संग्रह (1979)
· खुलती पंखुड़ियाँ, काव्य संग्रह (2001)
· गीत मेरी बाँसुरी के, गीत संग्रह (2003)
· बूँद-बूँद सागर, मुक्तक संग्रह (2004)
· फिर भी मैं हूँ, काव्य संग्रह (2006)
· प्रभात दर्शन (व्यक्तित्व औरकृतित्व) (2012)
· गिरा नहीं है अभी घरौंदा, गीत संग्रह (2016)
सम्पर्क: ‘प्रभात श्री’, न्यू एरिया, हमीदगंज, मेदिनीनगर (डालटनगंज), पलामू(झारखण्ड)-
दूरभाष: 09308015371, 09661421988
COMMENTS