व्यंग्य - विजय शंकर विकुज - मेरे मायके में ...

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मैं घर में रहते हुए जितनी देर अपनी श्रीमतीजी से बातें करता हूं, उतनी देर में वे हर दसवें या पंद्रहवें वाक्य में अपने मायके का जिक्र जरूर करत...

मैं घर में रहते हुए जितनी देर अपनी श्रीमतीजी से बातें करता हूं, उतनी देर में वे हर दसवें या पंद्रहवें वाक्य में अपने मायके का जिक्र जरूर करती हैं। मसलन ..... आज मेरी सहेली सरोज अपने बेटे के साथ आई थी। हमदोनों ने एक साथ स्कूल से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई की है। अब देखिये कि हमारी शादी भी हुई तो हम दोनों की ससुराल यहां आस-पास की कालोनियों में ही है। अच्छा है, बीच-बीच में मिलना होता रहता है। आती है तो अपने भाई-भाभी के व्यवहार को लेकर हमेशा ही अपना दुख प्रकट करती रहती है। सरोज के एक ही बड़े भाई हैं। सालभर में कभी दो-चार दिन मायके में रहने की सोचकर जाती है मगर भाई-भाभी के व्यवहार के कारण टिक नहीं पाती है। दूसरे ही दिन वापस चली आती है। और एक मेरा मायका है जहां जाने पर मेरे तीनों ही भाई-भाभी मुझे छोड़ना नहीं चाहते। मुझे पलकों पर बिठाकर रखते हैं। दो दिन के लिए जाती हूं तो बड़ी मुश्किल से जान छुड़ाकर वहां से वापस आने में सप्ताह - दस दिन लग ही जाते हैं। आप तो जानते ही हैं कि मेरे मायके में ......

जाहिर है आप समझ गये होंगे कि मेरी श्रीमतीजी के लिए उनके मायके का कितना महत्व है। हो सकता है कि आपकी श्रीमतीजी के लिए भी उनका मायका कुछ इसी प्रकार का हो तो ताज्जुब की कोई बात नहीं। सभी लोगों की श्रीमतियों का मायका कुछ ऐसा ही होता है। होना भी चाहिये, मायका तो आखिर मायका ही होता है और हर महिला को अपने मायका को अपने दिल में बसाकर रखना चाहिये। उसे सम्मान देना चाहिये। और किसी महिला का मायका अच्छा हो तो यह वहां के दामादों के लिए भी गर्व की बात होती है।

बहरहाल अब मुख्य प्रसंग पर आया जाये कि कई रोज पहले मैं अपनी शादी से पहले की टीवी खराब हो जाने पर जब अच्छी कीमत वाली एलईडी का नया टीवी खरीदकर घर लाया तो उसे देखते ही मेरी श्रीमतीजी मुंह बिचकाते हुए बोल उठीं - हुंह, इस तरह की टीवी तो आजकल हर घर में है। मेरे मायके की टीवी को देखियेगा, कैसी हाई क्वालिटी की है। उतनी अच्छी टीवी मैंने आज तक कहीं नहीं देखी। ऐसे में मैं अपनी तारीफ सुनने की जगह मेरी श्रीमतीजी के मायके की टीवी की प्रशंसा सुनने के बाद मन मसोस कर रह गया।

अक्सर शहर में रहने वाले मेरे मित्रों-परिजनों के यहां किसी न किसी अवसर पर दावत में श्रीमतीजी के साथ जाना होता है। ऐसे में विभिन्न तरह के नाश्ते-पकवानों के डिश परोसे जाते हैं। उंगलियां चाटते हुए उन पर हाथ साफ करने के बाद घर लौटने पर मेरी श्रीमतीजी कहती हैं कि वैसी डिशेज उनके मायके में क्या जायकेदार बनती हैं कि सुगंध से ही पेट में चूहे कूदने लगते हैं। ऐसे में मुझे इस बात से अफसोस होने लगता है कि मुझे अपने मित्रों-परिचितों की पत्नियों की पाक-कला की प्रशंसा नहीं करनी चाहिये थी। साक्षात अन्नपूर्णा तो मेरे घर में ही है जिन्हें मैं अपना मुंह दिखाने के काबिल भी नहीं रहा।

मेरे पड़ोसी अपने बच्चों की पढ़ाई में सुविधा के लिए कई दिनों पहले नया कंप्यूटर खरीदकर लाये। उसी शाम मेरे पड़ोसी-पड़ोसन ने हम दोनों को अपने यहां चाय-नाश्ते के बहाने बुलाकर वह कंप्यूटर दिखाया। उसे देखने के बाद मेरी श्रीमतीजी ने कहा कि कंप्यूटर तो अच्छा है, आज के जमाने में बगैर कंप्यूटर के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई संभव नहीं है। वहीं घर लौटने पर उन्होंने मुझसे कहा कि उनके भैया अपने बच्चों के लिए बहुत ही उम्दा किस्म के कॉर्डलेस कंप्यूटर लेकर आये हैं। माउस और की-बोर्ड के लिए तार का कोई झंझट नहीं है। बच्चे पलंग पर लेट-बैठकर कंप्यूटर चलाते हैं। वहीं मेरी श्रीमतीजी ने यह गुप्त जानकारी भी दी कि उनके भैया के घर के कंप्यूटर की तरह एक भी कंप्यूटर हम जिस कॉलोनी में रहते हैं, किसी घर में नहीं है।

मसलन मेरी पत्नी के मायके में फ्रीज, पंलग, सोफा, वाशिंग मशीन, टीवी, कंप्यूटर, कपड़े, गहने, घर से लेकर हर चीज दुनिया में सबसे नायाब किस्म की है। हो सकता है कि उनके घर का नौकर भी मुझसे उम्दा क्वालिटी का हो। बहरहाल उनके मायके की तारीफ के साथ मैं मन ही मन सोचता हूं कि उनके उसी मायके का एक नमूना मेरी जिन्दगी और घर को भी आबाद कर रहा है। तारीफ तो करनी पड़ेगी। धन्य है मेरा भाग्य !

महिलाओं के इस मायके प्रसंग को लेकर मेरे मन में कई दिनों पहले कुछ शोध करने का विचार आया। मैंने सोचा कि महिला और मायका के अलावा क्या और भी कुछ शब्द हैं जिन्हें इनके समकक्ष रखा जा सके जैसे कि पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण या चाय, चीनी व दूध या हाथी, घोड़ा, बैल लेकिन आश्चर्य है कि दिमाग को महीनों परेशान करने के बाद ऐसा एक शब्द भी नहीं मिला। मैंने महिला और मायके शब्दों के कारण पहले ‘म’ अक्षर से ऐसे किसी शब्द की तलाश शुरू की तो शब्दकोष में भी इनके समानान्तर एक शब्द नहीं मिला। फिर मैंने सोचा कि स्वर और व्यंजन वर्ण मिलाकर पूरे शब्दकोष को खोजा जाये, आखिर कोई न कोई तो शब्द तो होगा। आश्चर्य है कि पूरा शब्दकोष ऐसे किसी शब्द से रिक्त नजर आया।

मैं समझ गया कि महिला और मायका के बाद इनके समकक्ष किसी दूसरे शब्द का निर्माण ही नहीं हुआ होगा। शायद शब्दकोष रचने वाला भी जानता होगा कि महिला और मायका के समकक्ष कोई दूसरा शब्द है ही नहीं। जब विधाता की हिम्मत नहीं हुई होगी तो इस दुनिया में दूसरा और कौन है जो महिला और मायका के बाद इनके समकक्ष किसी तीसरे शब्द की रचना कर दे। वैसे भी महिलाओं के मायके को लेकर कुछ भी लिखना या सोचना किसी तलवार की धार पर चलने के बराबार है। शायद इसीलिए फिल्म वालों ने ‘ससुराल’ शीर्षक से विभिन्न तरह की अनगिनत फिल्में बनायी हैं लेकिन ‘मायके’ शीर्षक से एक भी फिल्म या धारावाहिक बनाकर अपनी जान जोखिम में डालने की हिम्मत उनकी नहीं हुई।

अब महिला और मायका विषय में शोध पर मैंने ऐसा कुछ पाया हो या ना हो लेकिन एक पारिवारिक ज्ञान मुझे गहराई से प्राप्त हुआ। वह यह है कि अपनी किसी विशेष तकलीफ या समस्या को सुलझाना हो तो बस अपनी श्रीमतीजी के मायके की प्रशंसा कर दीजिये। महीने के आखिर में जब जेब खाली हो तो अपनी समस्या की एक झलक पेश करते हुए उनके मायके की थोड़ी प्रशंसा कर दीजिये। देखियेगा, आपकी पत्नी पता नहीं किस कारू के खजाने से निकालकर आपको हजार-दो हजार पकड़ा देंगी कि इससे काम चला लीजिये। तनख्वाह मिलने पर सौ या दो सौ प्रतिशत के हिसाब से मय ब्याज वापस कर दीजियेगा।

इसी तरह अगर कुछ अच्छा खाना हो तो अपनी पत्नी के मायके की प्रशंसा करके ऑफिस चले जाइये। शाम को घर लौटियेगा तो डिनर के लिए आपके पसंदीदा पकवान आपके इंतजार में तैयार मिलेंगे। वहीं आपने यह भी महसूस किया होगा कि किसी दिन आपने अपनी पत्नी के मायके की किसी बात में थोड़ी भी नुक्ता-चीनी की तो वह सारा दिन आपका खराब जायेगा। यहां आप यह मत समझ लीजियेगा कि अपने मायके की निन्दा सुनने के बाद आपकी श्रीमतीजी ने मन ही मन आपको श्राप दिया होगा। लेकिन कहीं की भी यात्रा बनाने के लिए अपनी पत्नी के मायके अर्थात अपनी ससुराल की प्रशंसा जरूरी है। हर शादी-शुदा पुरुष को अपनी पत्नी के मायके को महत्व देना चाहिये क्योंकि जो ऐसा नहीं करता है, वह महापापी है।

यहां मैं सिर्फ अपनी श्रीमतीजी के मायका पुरान की बात नहीं छेड़ रहा बल्कि मैंने देखा है कि बल्कि हर औरत बातचीत के दौरान किसी न किसी बात में अपना मायका प्रसंग उठा ही देती है। मैं एक बार अपने एक चर्चित कवि मित्र के यहां गया। गरमागरम पकौड़ों व चाय के नाश्ते के बाद मेरे मित्र ने अपनी दो नई कविताएं सुनायीं। उनकी कविताओं ने मुझे बहुत ही प्रभावित किया। मैंने कविताओं की प्रशंसा की। मेरे मित्र की पत्नी भी वहीं सामने बैठी थीं। उन्होंने मेरी बात खत्म होते न होते तुरंत कहा कि उनके मायके में उनका बारह वर्षीय भतीजा भी बहुत अच्छी कविताएं लिखता है। लोग उसे पत्र-पत्रिकाओं में कविता भेजने के लिए कहते हैं, मगर वह कहीं नहीं भेजता। मैंने अपने मित्र की ओर देखा। उनका चेहरा सफेद पड़ गया था। मैं समझ गया कि घर की मुर्गी दाल बराबर !

यहां मैं सभी पुरुषों अर्थात घर-घर के दामादों को यही सलाह दूंगा कि वे अपनी-अपनी श्रीमतियों का सम्मान करें। उनके मायके प्रशंसा को लेकर किसी तरह की कुढ़न अपने अंदर न पालें क्योंकि इससे आपकी सेहत पर फर्क जरूर पड़ेगा। इतना तो है कि हम पुरुष एक-दूसरे से दिल खोलकर इस कुढ़न को जाहिर कर ही सकते हैं तो फिर चिन्ता की क्या बात है। वैसे एक बात तो है कि महिलाएं शायद इसी बात को लेकर अपने पतियों पर ज्यादा शक करती हैं कि कहीं उनके पति अपने दोस्तों में अपनी श्रीमतीजी के मायके की प्रशंसा को लेकर उनकी बखिया तो नहीं उघेड़ते। उन्हें एक डर हमेशा सताता रहता है कि वे अपने मायके की प्रशंसा हर जगह क्यों न करें लेकिन उनके पति ही वहां की पोल-पट्टी दूसरों के सामने खोल सकते हैं।

महिलाओं के मायका प्रसंग पर दुनिया में शायद सबसे अधिक अनुभव या कहानियां मिल जायेंगी लेकिन वे आपको मौखिक ही सुनने को मिलेंगी। लिखित रूप में कम से कम मैंने तो कहीं नहीं पढ़ी। आपने कहीं पढ़ी हो तो बात अलग है। मुझे तो बस यही डर लग रहा है कि मैंने किसी तरह कलम उठायी है, कल जाने क्या अंजाम हो। वैसे इस विषय में कलम उठाने के बाद मुझे लगने लगा है कि यह विषय गागर में सागर को समेटने के समान है। भगवान करे यह घड़ा हमेशा भरा रहे और छलके तो हमारी अनुपस्थिति में ही छलके। वास्तव में इसके छलकने का शोर कुछ इस तरह का होता है कि आप इससे बचने के लिए अपनी श्रीमतीजी के सामने अपने कानों में उंगली भी नहीं डाल सकते। आप ही क्या, दुनिया में किसी की हिम्मत नहीं है कि ऐसे मौके पर अपने कानों में उंगली डाल ले। आप शादीशुदा हैं तो आप जानते ही होंगे कि हर विवाहित व्यक्ति का दुख क्या होता है। आपको सारी जिन्दगी आपकी श्रीमतीजी के मायके की रामकथा हमेशा ही सुनती रहनी होगी और आप उससे बचकर नहीं रह सकते। और अगर कंवारे हैं तो कितने दिनों इस शामत से बचने का मजा लीजियेगा, एक न एक दिन तो ऊंट पहाड़ के नीचे आएगा ही।

विजय शंकर विकुज

द्वारा - देवाशीष चटर्जी

ईस्माइल (पश्चिम), आर. के. राय रोड

बरफकल, कोड़ा पाड़ा हनुमान मंदिर के निकट

आसनसोल - 713301

ई-मेल - bbikuj@gmail.com

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रचनाकार: व्यंग्य - विजय शंकर विकुज - मेरे मायके में ...
व्यंग्य - विजय शंकर विकुज - मेरे मायके में ...
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