विश्व के सबसे महंगे चुनाव भारत में होने जा रहे हैं . सत्रहवीं लोक सभा के लिए ये चुनाव पैसों की बरसात के सहारे सहारे चलेंगे. इस बार पैसा बरसे...
विश्व के सबसे महंगे चुनाव भारत में होने जा रहे हैं . सत्रहवीं लोक सभा के लिए ये चुनाव पैसों की बरसात के सहारे सहारे चलेंगे. इस बार पैसा बरसेगा सत्तर लाख की सीमा बहुत पीछे रह जायगी. पिछले चुनाव में लगभग ४० हज़ार करोड़ लगा था , बढ़ी महंगाई के अनुसार यह आंकड़ा एक लाख करोड़ तक जा पहुचे तो कोई आश्चर्य नहीं. अमेरिका के विशेषज्ञ इसे ७१००० हज़ार करोड़ का मान कर चल रहे हैं, चंदा कहाँ से कितना आया इसपर चर्चा करना बेकार है. सब प्रत्याशी चुनाव जीतना चाहते है, कुछ भी खर्च करने को तैयार है. पार्टी जो खर्च करती है उस पर कोई रोक टोक नहीं है. प्रत्याशी आधा अधूरा हिसाब देते है शुभ चिंतक कोई हिसाब नहीं देते. बस जीतने के बाद अपना काम , टेंडर, टेक्स में छूट या कोटा परमिट लाइसेंस लेते हैं आयकर, जीसटी की फ़ाइल् निकलवा लेते हैं पैसे का क्या करना है?लगभग ९० करोड़ लोग वोट देंगे एक लोकसभा क्षेत्र में १५ से २० लाख मत दा ता है और सब को कुछ न कुछ चाहिए. गुप्त रूप से होने वाला यह खर्च ही आगे जाकर महंगाई बढाता है हम पर टेक्स की डबल मार पड़ती है. कम से कम दस से बीस गुना ज्यादा पैसा बरसेगा. कार्यकर्ता लक्जरी गाड़ी में घूम रहे हैं इन चुनावों पर कितना खर्च आएगा इसे सही सही बताना संभव नहीं होगा. लेकिन मोटे अनुमान, सर्वे लगाये जा रहे हैं . और जो आंकड़े निकल कर आ रहे हैं वे गज़ब के हैं. एक लोकसभा सीट का सरकारी खर्च इस आलेख का उददेश्य नहीं है , वो तो आवश्यक खर्च है और होना ही है. लेकिन जो चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी और राजनीतिक दल खर्च करते हैं उस पर चर्चा कम होती है, कई बार तो गुप्त खर्च से ही प्रत्याशी जीतता है. चुनावों के दौरान समाचार पत्र, रेडियो , चैनलों पर जो विज्ञापन आते हैं उनका खर्च अरबों में हैं. एक गंभीर उम्मीदवार एक लोक सभा क्षेत्र में कम से कम दस से बीस करोड़ रुपया खर्च करेगा, पारटी का खर्च अलग होगा. चुनाव खर्च की सीमा आयोग ने २८ लाख से बढाकर ७० लाख कर दि हैं , मगर इस सीमा को कोन मानेगा और मानेगा तो चुनाव हार जायगा. दोनों बड़ी पार्टिया अरबों रुपयों से ज्यादा इस चुनाव में लगाएगी और हा र जाने के बावजूद यह अर्थ व्यय जा री रहेगा. उम्मीदवार के शुभचिंतक यह राशी देते हैं और हर बड़ा व्यापारी उद्द्योग्पति जीतने वाले रेस के घोड़े पर दाव लगाकर एक के सो वसूल करता है , यह परम्परा भारत में ही हो एसा नहीं है अमेरिका –यूरोप सब जगह यही सब होता है. नगर निगम के चुनावों, पंचायत चुनावों विधानसभाओं , सब जगह मुद्रा राक्षस चलता है , जो टिकट लेने के साथ ही शुरू हो जाता है . राज्य सभा के टिकट तो बड़े उद्द्योग्पति ही खरीद पा ते हैं . लोक सभा के टिकट के बारे में भी यही सब चलता है. ज्यादा तर पैसा पार्टियाँ खर्च करती है कुछ समझदार प्रत्याशी या छोटे निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव में पैसा बना भी लेते हैं वेल विशर्स से प्राप्त पैसा दबा लेते हैं या फिर कोई और काम में लगा देते हैं.
लेकिन अपन इस चुनाव की ही बात करते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार पांच बड़ी पार्टियों को जो पैसा मिला उसका स्रोत का पता नहीं चल पाया. एक बड़ी पार्टी ने जो शानदार दफ्तर बनाया है वो फाइव स्टार लगता है. एक पार्टी ने चंदे में पारदर्शिता की बात की मगर सत्ता में आने के बाद सब भूल गयी. एक क्षेत्रीय पार्टी के अनुसार हम चुनाव इसलिए हार गए क्योंकि पैसा कम था याने बा हुबल नहीं केवल अर्थ ही चुनाव को जितायेगा. चुनावों में सरकार भी मत दाताओं के खाते में सीधा पैसा डाल कर परोक्ष रूप से चुनाव में पैसे का बल स्वीकार करती है.
आखिर यह अनाप शनाप पैसा आता कहाँ से है ?
आम तौर पर पार्टियां स्वैच्छिक दान, क्राउड फंडिंग, कूपन बेचना, पार्टी का साहित्य बेचना, सदस्यता अभियान और कॉर्पोरेट चंदे से पैसे जुटाती हैं. कम्पनियां अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए चंदा देती है जो चेरिटी कहलाता है . यह कु ल प्रॉफिट का दो प्रतिशत होता है जिसे सोशल जिम्मेदारी फंड के खाते में डाला जाता है. - चुनावी चंदे में पारदर्शिता के नाम पर इस सरकार ने राजनैतिक चंदे की प्रक्रिया में तीन परिवर्तन किए. पहला, अब राजनैतिक पार्टियां विदेशी चंदा ले सकती हैं. दूसरे, कोई भी कंपनी कितनी भी रकम, किसी भी राजनीतिक पार्टी को चंदे के रूप में दे सकती है. और तीसरे, कोई भी व्यक्ति या कंपनी गुप्त रूप से चुनावी बॉन्ड के जरिए किसी पार्टी को चंदा दे सकती है. लेकिन ये उपाय आधे अधूरे है सब जानते है इन कारकों से चुनाव नहीं जीते जा सकते . आज कल तो सब कुछा खुला खेल हो गया है. चुनाव लड़ने के लिये पार्टी ४० से ५० प्रतिशत पैसा देती है. प्रत्याशी खुद का भी पैसा लगता है बाकि अन्य स्रोतों से पैस प्राप्त करता है , ये अन्य श्रोत बाद में फायदा उठाते हैं लेकिन यह स्थिति केवल भारत है हो एसा नहीं हैं सभी देशों में यह सब चलता है.
प्राप्त चंदे को किस तरह खर्च किया जाता है इसका विश्लेषण भी किया गया है. 20 से २५ प्रतिशत पैसा विज्ञापन पर खर्च होता है जो रेडियो, दूर दर्शन चैनलों अख़बारों को मिलता है. पेड न्यूज़ न्यूज़-रोपण पर भी काफी राशी व्यय होती है. फेक न्यूज़ पर भी पैसा लगता है अपनी छवि निखारने व् विपक्षी को नीचा दिखने में काफी व्यय होता है. हवा बनानें मे भी माल लगता है. सोशल मीडिया पर भी पार्टियाँ पैसा फूंकती हैं उम्मीदवार व् पार्टी कि हवा बनाने केलिए विदेशी बड़ी कम्पनियों की सेवाएँ ली जाती है सिएटल से लगाकर गुरु ग्राम तक कम्पनियां यह काम करती है.
१० से १५ प्रतिशत पैसा झंडे बेनर पोस्टर पर लगता है. खाने पी ने , शराब आदि पर भी 20 -२५ प्रतिशत पैसा जाता है. पैसा वाहनों चाय नाश्ता, माला, शराब, कार्यालय, लंगर , टेंट , सभा, रेली, प्रचार सामग्री, कार्यकर्ताओं के भुगतान आदि पर भी खर्च होता है . जातिगत व्यवस्था के साथ साथ उम्मीदवार को बैठाने में भी पैसा लगता है. मतदाताओं को उपहारों में ३० प्रतिशत पैसा जाता है ये उपहार साड़ी, शर्ट , सूट मंगल सूत्र, मोटर साईंकल राशन , तक हो सकते हैं कई जगहों पर केश भी बांटा जाता है साड़ी या शर्ट में नोट रखे जाते हैं चुनाव आयोग की निगरानी किसी का म नहीं आती. पिछले आम चुनाव में ३००करोद रुपया व् इतने का ही सामान आयोग ने जब्त किया था. आचार संहिता है मगर पार्टी और उम्मीदवार किसी की नहीं सुनते. एक अमरीकी विशेषज्ञ के अनुसार चुनाव का परिणाम कोई नहीं जनता मगर पैसे का खेला साफ दिख रहा है. भारत के चुनाव अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनावों की तरह ही खर्चीले हो गये हैं. सेवा की राजनीति मेवा की राज निति बन गयी है. चुनावों के तुरंत बाद महंगाई बढ़ती है , नए टेक्स लगते हैं, निर्माण कार्यों की बाढ़ आती है क्योकि जनता व आम आदमी के पास यह पैसा आता है. सरकार की मदद करने वाले उद्द्योग्पति अपना हिस्सा वसूलने में लग जाते हैं. सरकारें चुपचाप मदद करने वाले की मदद करती है यही प्रजातंत्र की मजबूरी है.
टिकट मिलने के बाद ही यह गोरखधंधा शुरू हो जाता है. एक लोक सभा क्षेत्र के चुनाव में इस बार एक गंभीर उम्मीदवार दस करोड़ तक लगाएगा और फिर भी यदि हार गया तो क्या होगा , मगर चुनाव गरीब नहीं लड़ सकता गरीब उपहार लेकर वोट दे सकता है , वैसे, नोट बंदी ने पैसे की नश्वरता सब को सिखा दी है. मगर चुनावों का अर्थशास्त्र विचित्र किन्तु सत्य है इस आम चुनाव में एक लाख करोड़ रुपयों तक का व्यय पार्टियाँ व् प्रत्याशी करेंगे यह प्रजातंत्र की कीमत है जो देना जरूरी है .
००००००००००००००००००००००००
यशवंत कोठारी , ८६, लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बहार जयपुर -३०२००२
COMMENTS