(चित्र - सुभाष वोहरा की कलाकृति) बेमिसाल विक्की यानि 'विक्रम' कन्नु यानि 'क्रान्ति' नाम सोचे थे हमने अपने होने वाले सुपौत्र...
(चित्र - सुभाष वोहरा की कलाकृति)
बेमिसाल
विक्की यानि 'विक्रम' कन्नु यानि 'क्रान्ति' नाम सोचे थे हमने अपने होने वाले सुपौत्र और सुपौत्री के..दस वर्ष के लंबे इंतजार के बाद आ रहा था घर में नन्हा मेहमान. अपने शहीद पति एयर विंग कमांडर बलबीर सिंह के शौर्य और जांबाजी के अनगिन किस्से सुना सुनाकर बहू बेटे के इरादों को सुदृढ़ करने में मैं सफल रही थी.अब तो जांबाज बेटे एयर विंग कमांडर शक्ति सिंह और एयर फोर्स स्कूल में तैनात कंप्यूटर टीचर बिंदु पर ही सारी आशाएं टिकी हुई थीं मेरी.
सोती हुई अपनी पोती कन्नु के मासूम चेहरे को देख उसके माथे को चूमते हुए मैं फख्र महसूस कर रही थी. सोने से पहले कही गई उसकी बातें मेरे कानों में गूंज रही थीं-
--दादी मां!पापा बजरंगबली जी की तरह खूब ताकतवर है ना,फिर दादू की तरह जहाज में उड़कर दुश्मन को मारकर घर जल्दी क्यों नहीं आते?
वो तो लंका के ढेर सारे राक्षसों को मार देते हैं.आग भी लगाकर राख कर देते हैं सब...हैं ना दादी
उनके हाथ में तो गदा भी होती थी...
--अरे मेरी रानी! तेरे पापा के पास तो बंदूक और बम से भी बड़ी गदा है.वो तो खुद ही हम सबका भगवान है बेट्टी...
रह-रहकर सूखे सीने में जोश की आर्द्रता हिलोरें मार रही थी.
-- बगल में रखे रेडियो को ऑन करते ही स्वरों की कड़वाहट से कसैला हो गया था मेरे कानों का स्वाद...
- देश के इतिहास में अपनी मिसाल छोड़ गए बेमिसाल एयर विंग कमांडर शक्ति सिंह ...
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चिंगारी
तीन बालकों की मां रानी तंग आ चुकी थी पति से होने वाली रोज-रोज की चक-चक बाजी से.
--बंसी पहले तो कैसा भला मानुस लगै था.. सिगरट ,सराब,जुआ इनका कभी नाम भी ना लेवे था ..अर अब..अब तो पी-पीकर नसैड़ियों का भी बाप बनरा है...कई दफै तो हाथ भी उठा लओ..
- अपने शरीर पर जहां तहां पड़े नीलों और चोटों के निशान देख-देखकर उसकी सूजी हुई आंखों से चिंगारियां फूट रही थीं.
-कितनी नरमाई से समझाया था उसने तो बंसी को कि -सस्ती जहरीली सराब ना पीवे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़े है बहुत..
पर दुष्ट ने नसे में कितना मारा मुझे..
पोर-पोर में दुक्खन समाई थी रानी के तन में.बुदबुदाई जुबान फिर भी आस से जुड़ी थी.
--हे परभु संकर ! बुद्धि दे दो मेरे मरद को बस ..तीन तीन छोरियों का बाप..अर ऐसा घोर पाप..
-- खुद भी तंग होकर अपनी मां के घर जाए भी तो भला कैसे? .. रोटी के लाले ही पड़े रहते हैं वहां तो...
जब भागी थी बंसी के साथ तो जी में चैन था कि चलो बापू की तरह ठर्रा पीकर सराबी भर्तार हात तो नई उठाएगा.पर कल तो हद्द कर दी मरे नै...पुलिस वाले लात मारते हुए लाए रहे झुग्गी तक उसके बंसी को...जेब काटने की भी जुर्रत कर डाली हरामी ने...वो भी पुलिस वाले की..हे भगवान...जुए का भी सोक लग गओ है..
मौत ही आ जाए बस इससे तो..मालकिन पूछेंगी तो का बोलूंगी ?स्वयं से ही सवाल करते हुए चबूतरे पर सोच में डूबी रानी सुबकने लगी थी,तभी पड़ोसन मीनू ने दोनों हाथों से उसके कंधे हिलाते हुए कहा-काहे को रोवे है री! चल उठकै देख .. सहर से भैनजी आई हैं ..शहर में जहरीली सराब पीकर ढेर सारे बेवड़े मर गए ..बस वहीं से क्रोध की चिंगारी लपेटके लाई हैं रे!
सबको इकट्ठा करके रैली निकालने का पिरोगराम है.. सारे सराबी नशामुक्ति केन्द्र में भेजे जाएंगे.चल उठ भी..
एक झटके से रानी फुफकारती हुई उठी और झुग्गी की ओर लपकी.
रैली में रानी समेत उसकी बस्ती की बहुसंख्यक नशैड़ियों की पीड़ित बीवियों की तेज आवाजें गूंज रही थीं-
-"कैंडिल नहीं अब सैंडिल मार्च..
नारी पर ना आए आंच"
एवं
-"जो करे पीकर अत्याचार
उसको मारो सैंडल चार"
-- सामने से ही कुछ मृत शराबियों की लाशें लादे हुए
मैटाडोर बस्ती की ओर चली आ रही थीं.
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सास बहू
सासु मां की दूसरी किडनी भी परेशानी का सबब बन रही थी उनकी सेहत के लिये.एक आंख से तो दीखना बंद सा ही हो गया था. इस बात से सबसे ज्यादा दु:खी थी उनकी बहू कलाकृति यानि कला.सुबह-सुबह छै: बजे स्कूल जाते वक्त हड़बड़ी में फैली हुई किचन छोड़ना,दोनों बच्चों के लंच पैक करना, मांजी की और बाउजी की दवाइयां मेज पर रख छोड़ना...अधूरे पड़े सारे ही काम उसकी अनुपस्थिति में मांजी सलीके से निपटाती थीं. हर समय कितनी दुआएं देतीं रहतीं ... गिनती ही नहीं कर सकता कोई ...
कॉलोनी की ममतालु दादीमां के खिताब से नवाजा गया था रेजीडेशियल मीटिंग में उसकी सासु मां को.. उन्हें दोनों बच्चों ने मदर टेरेसा ग्रैंड मां कहना शुरू कर दिया था.
स्कूल में जब भी स्टाॅफ रूम में सास-बहू झगड़ों पर बे सिरपैर की बहस होती तो कला बोर होकर कहती-बंद भी करो बकवास अब यार...टॉपिक चेंज करो..
कुछ ईर्ष्यालु बहसबाज टीचर्स उठकर चल देते.
आज दुर्गा दी बता रही थीं उसे -हमने तो दधीचि समिति में परसों देहदान का फार्म भर दिया है भई.
क्या पता बच्चे पास हों ना हों मरते समय.
बेटा अमेरिका में और बेटी केनेडा में सपरिवार सैटल्ड हैं. भारत आने में समय भी तो लगता है ना..
-नेक काम है बेट्टी...सबमें ना होता ऐसा साहस...पास ही बैठी कला की सासु मां बोली,जो काफी ध्यान से उन दोनों की बातचीत सुन रही थीं.
मांजी विव्हल सी हो गई थीं, जब नैना ने आकर उनके कानों में कहा - दादी! आज आपकी एक आंख और किडनी बदली जाएंगी ...अब आप मम्मी की आंख से देखोगी..आपका ऑपरेशन है.
मॉम की अंतिम इच्छा थी यह..
ओह!कल सुबह ही तो कला ने कहा था-मां बस आप ही तो मेरा सहारा हो...ये तो बरसों पहले ही
हमें छोड़कर लापता क्या हुए वापस मुड़कर ही नहीं आए.
काश!आपके किसी काम आ सकूं मैं.. आप संबल हो हमारा वरना ये परिवार तो कबका बिखर जाता.
क्या हार्ट अटैक इतना निर्मोही होता है ? कब सोचा उसने देहदान का..सोचकर बूढ़ी आंखों से भरभराकर ढेर सारे आंसू बह निकले.
चलो दादी...चलो ग्रैंड मां..टीचर पोती और डॉक्टर पोता उन्हें सहारा देकर वैन की ओर बढ़ रहे थे. उन्हें तो अभी चलना ही होगा अविराम..
बहू के ऐसे अनोखे त्याग की महिमा उनके व्याकुल और तप्त बूढ़े शरीर को रोमांचित कर रही थी. कॉलोनी के लोग चर्चा जो कर रहे थे गजब सास की अजब बहू थी.
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डॉ.अंजु लता सिंह
सी-211/212
पर्यावरण काम्प्लेक्स
समीपस्थ-गार्डन ऑफ फाइव सैंसेज
सैदुलाजाब
नई दिल्ली-30
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