राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन, दृष्टि, दर्शन और चिंतन के माध्यम से दुनिया ने अहिंसा के विश्व-वैभव से व्यावहारिक साक्षात्कार किया। परन्तु...
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के
जीवन, दृष्टि, दर्शन और चिंतन के माध्यम से
दुनिया ने अहिंसा के विश्व-वैभव से
व्यावहारिक साक्षात्कार किया।
परन्तु, स्मरण रहे कि महात्मा गांधी ने
किसी नए दर्शन की रचना नहीं की है
वरन् उनके विचारों का जो दार्शनिक आधार है,
वही गांधी दर्शन है।
सर्वविदित है कि 2 अक्तूबर को उनके जन्मदिन को
अब विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।
30 जनवरी को शहीदी दिवस पर गांधी जी को याद किया जाता है।
एक तरफ तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने महात्मा को हाड़-माँस के उस दुबले अधनंगे फ़कीर के रूप में सम्बोधित किया था, दूसरी तरफ प्रख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन का कहना था कि आने वाली पीढ़ियों को यह यकीन ही नहीं होगा कि ऐसा भी कोई व्यक्ति इस धरती पर आया था। आगे भी कोई ऐसा महामानव हो पाएगा, फिलहाल तो कहना संभव नहीं है। क्योंकि, वैश्विक स्तर पर व्याप्त हिंसा, मतभेद, बेरोजगारी, महँगाई, भष्टाचार, अनाचार, दुराचार और तनावपूर्ण माहौल में आज भी हम समाधान के लिए बार-बार गांधी के करीब अगर जाते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं है कि उनकी सार्वकालिकता आज भी प्रश्नातीत है। हम जिसे गांघीवाद कहते हैं, वह दरअसल कोई सिद्धांत नहीं, प्रत्यक्ष जीवन का भरोसेमंद संवाद का ही दूसरा नाम है। अकादमिक परिसर के गांधी और मानवता के विस्तृत फलक के महात्मा के अंतर को समझे बगैर उनके कालजयी व्यक्तित्व की कोई भी समझ अधूरी ही मानी जाएगी।
आज एक बार फिर सांप्रदायिक कट्टरता और आतंकवाद के इस वर्तमान दौर में गांधी तथा उनकी विचारधारा की प्रासंगिकता और बढ़ गई है, क्योंकि उनके सिद्धांतों के अनुसार सांप्रदायिक सद्भावना कायम करने के लिये सभी धर्मों-विचारधारों को साथ लेकर चलना ज़रूरी है। उनके सिद्धांत आज जितने ज़रूरी हैं, इससे पहले उनकी इतनी ज़रूरत कभी महसूस नहीं की गई। लेकिन वडंबना यह है कि हम गांधी का नाम तो बड़े जोर-शोर से या श्रद्धा व प्रार्थना के भाव के साथ लेते हैं, किन्तु उनके काम की शैली अपनाने में हमें हिचक ही नहीं, बहुत से अवसरों पर मुँह फेरते भी देखा जा सकता है। गाँधी के नाम पर मुखर होना आसान है, पर गांधी के जीवन से सीधे सरोकार होना बिलकुल अगल बात है। वास्तव में हम लोगों ने तो उस रास्ते को ही बंद कर दिया है, जिस पर आगे बढ़ने की आज के दौर में महती आवश्यकता है।
इसे भी विडंबना नहीं तो और क्या कहा जाय कि गांधी ने तीन दशक से अधिक तक आज़ादी की लड़ाई लड़ी, लेकिन स्वतन्त्र भारत में वे केवल 168 दिन ही जीवित रह पाए। आज दुनिया के किसी भी देश में जब अहिंसा या शांति बहाली की बात आती है तब गांधी सबसे पहल याद आते हैं। अत: यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि गांधी के विचार, दर्शन तथा सिद्धांत सर्वकालिक हैं। इसके पीछे भारत और भारतीयता की शक्ति की बड़ी भूमिका थी। गांधी जी का कहना था - "भारत की हर चीज़ मुझे आकर्षित करती है। सर्वोच्च आकांक्षाएँ रखने वाले किसी व्यक्ति को अपने विकास के लिये जो कुछ चाहिये, वह सब उसे भारत में मिल सकता है।"
निश्चित रूप से गांधी जी एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व हैं और उनकी सीमाएं भी हो सकती हैं। उनकी सीमाओं पर बहुत लिखा गया है, लेकिन बावजूद इसके गांधी जी की असीमता की अंतहीन गूंज आज भी सुनाई पड़ती है। उनका जीवन स्वयं प्रयोगशाला के समान था। लेकिन यह प्रयोग बुद्धिविलास तह सीमित नहीं था, बल्कि इसे उन्होंने अपने जीवन में भी उतारा। फलस्वरूप वे आलोचना के पात्र भी बने रहे। ध्यान दिया जाना चाहिए कि उनके चिंतन और प्रयोगों में ‘लोग क्या कहेंगे’ जैसे शब्दों का स्थान नहीं था। उन्होंने अपने भीतर की आवाज़ को हमेशा ज़िंदा रखा और बाहर की दुनिया को उसकी ताकत का आभास होने में देर न लगी। यही कारण है शायद कि 20वीं शताब्दी के प्रभावशाली लोगों में ऐसे ख्यात व्यक्तित्व हैं जिन्होंने बहुआयामी कार्यों में गांधी की विचारधारा का उपयोग किया और अहिंसा को अपना हथियार बनाकर परिवर्तन की हरसंभव कोशिशें कीं । यह प्रमाण गांधी की विश्व दृष्टि का है।
गांधीजी ने भारत के बाहर भी अहिंसा के दम पर अन्याय का विरोध किया। दृष्टि में शांति और आधार में अडिग संकल्प लेकर वे आगे बढ़ते गए। विरोध की इसी निराली शैली में गांधी ने अहिंसात्मक प्रतिरोध या सत्याग्रह या सविनय अवज्ञा यानी का अनोखा मार्ग चुना जिसके आगे तमाम दमनकारी शक्तियों को अंततः झुकना पड़ा। सत्याग्रह उनके अनुसार एक सत्याग्रही सदैव सच्चा, अहिंसक व निडर रहता है। सच तो यह है कि उन्हें मनुष्यता में विश्वास था और वे मानते थे कि हर व्यक्ति के भीतर ईश्वर है। इसीलिए वह सत्याग्रह का अधिकारी है। साथ ही सत्याग्रह उसका कर्तव्य भी है। मानव की ताकत और मानवता की ताकत को वे एक मानते थे। उनका अचल विश्वास था कि अंधकार में प्रकाश की और मृत्यु में जीवन की अक्षय सत्ता प्रतिष्ठित है। इसलिए, उन्हें मृत्यु का भय कभी नहीं रहा। मौत के मुँह में भी पहुंचकर जो जीवन की आरती उतरने के लिए उत्सुक हो, उसे इस फ़ानी दुनिया से भला कुछ करने में कठिनाई कैसे हो सकती है ? ऐसे लोग ही दुनिया को अलविदा कहकर बार-बार याद आते हैं। लोग उन्हें याद करते हुए बार-बार अनुभव करते हैं -
मौत उसकी है करे ज़माना जिसका अफ़सोस
यूं तो आए हैं दुनिया में सभी मरने के लिए।
दक्षिण अफ्रीका के संघर्ष के दिनों में गांधी जी एक विरोधी जनरल स्टमस ने बाद के दिनों में स्वीकार करते हुए कहा - वह कभी भी किसी स्थिति के मानवीय पक्ष को नहीं भूले, न कभी क्रुद्ध हुए, न घृणा से वशीभूत हुए और सबसे कठिन परिस्थिति में भी उनकी विनोद भावना स्थिर रही। हमारे आज के युग में जो बर्बरता पाई जाती है, उससे उनका स्वभाव और उनकी भावना उस समय भी सर्वथा भिन्न थी और बाद में भी रही। गांधी जी की दृष्टि में जो कुछ अशुभ है, असुंदर है, अशिव है, असत्य है, वह सब अनैतिक है। जो शुभ है, जो सत्य है, जो शुभ्र है वह नैतिक है। वही सत्य, वही शिव और सुंदर है।
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