कोलाज कला कोलाज कला अन्य कलाओं की ही तरह एक कला कर्म है। जिसमें सृजन की अनगिनत संभावनाऐं है। कोलाज का प्रयोग मुख्य रूप से दृश्य कलाओं में ...
कोलाज कला
कोलाज कला अन्य कलाओं की ही तरह एक कला कर्म है। जिसमें सृजन की अनगिनत संभावनाऐं है। कोलाज का प्रयोग मुख्य रूप से दृश्य कलाओं में अधिक होता है। कोलाज शब्द फ्र्रेंच भाषा से आया है, इसका अर्थ होता है ‘‘चिपकाना‘‘ । कला जगत में कोलाज ऐसा पारिभाषिक शब्द है जिसमें विविध चीजों के संयोजनों से नवीन कृति का निर्माण होता है जैसे मैग्जीन के रंगीन पेपर, टेक्ट पेपर, रिबन, रगीन हैडमेड कागज, फोटोग्राफ्स, अथवा उपलब्ध अन्य वस्तुएं। कोलाज कला के लिये भी अकादमिक समझ और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, इस हेतु रंगों, आकारों, संयोजन सिद्धांत, और परिप्रेक्ष्य की पूर्ण जानकारी का होना आवश्यक है।
इतिहास की दृष्टि से कोलाज कला का आगाज घनवादी कलाकार जार्ज ब्राक और पिकासो ने बीसवीं सदी में ही कर दी थी। बाद में विभिन्न कलाकार अपनी अपनी तरह से इस विधा में सृजनात्मक कार्य करने लगे। त्रिआयामी प्रभाव के कारण इसमें चित्रकला और मूर्तिकला दोनों का ही आनंद मिलता है कोलाज के लिये प्रसिद्ध भारतीय वरिष्ठ चित्रकार अमृतलाल बेगड़ कहते हैं - मै अपनी पेंटिंग में एक मैग्जीन के कलर्ड पेपेर का प्रयोग करता हूं इसलिये मेरे पास ऐसी मैग्जीन के करीब पांच सौ इश्यू हर समय रहते हैं। उनका कहना है कि कोलाज कला इतनी आनंददायक होती है कि जब एक कागज पर दूसरा कागज और अच्छा न लगे तो तीसरा -चौथा पेपर का टुकड़ा चिपकाते जायें, कागज इतना पतला होता है कि तीन चार परत चिपकाने के बाद भी कोई अंतर दिखाई नहीं देता । कोलाज चित्रण में अनूठा इफेक्ट तब और आकर्षक हो जाता है जब कोवा आंख बन जाए, नदी के डेल्टा का दलदल हैंडलूम की साड़ी बन जाती है। यह हर बार नया और अनोखी छटा के साथ सामने आता है। भारतीय चित्रकार एम.एफ. हुसैन ने भी फिगरेटिव कोलाज से शुरूवात की थी । इसके बाद काइट कोलाज की श्रृंखला बनाई जिसमें उनके चिर परिचित शैली में घोड़े व देवी देवताओं का चित्रण था।
कोलाज चित्रण में भारतीय चित्रकारों ने अनेक प्रयोग किये जिसमें शांतिनिकेतन के कला गुरू विनोद बिहारी मुखर्जी ने कागजों के सुन्दर कोलाज का निर्माण किया। बंगाल के ही बलराज पानेस्सर ने इन कोलाज परम्परा में खूबसूरत नैसर्गिक दृश्य चित्रों का संसार कागजों की कतरनों से किया। मध्यप्रदेश में प्रसिद्ध चित्रकार अमृतलाल बेगड़ कोलाज कला के अग्रणी चित्रकार रहे हैं। झारखंण्ड निवासी वीरेन्द्र ठाकुर वुडकोलाज में अनेक कलाकृतियों की संरचना की है जिसमें लकड़ी के छोटे छोटे टुकड़ों को केनवास में आपस में जोड़कर भारतीय संस्कृति के अनुरूप एक साकार कृति का रूप प्रदान किया।
मुम्बइ्र के चित्रकार ने जले हुए फोटोग्राफ्स को चारकोल से बनी ड्राइंग पर चिपकाकर नया अनूठा इफेक्ट दिखाया वहीं आगरा की एक कलाकार ने ताजमहज की कई कोलाज पेंटिंग बनाई। इस मिक्स मीडिया पेंटिंग में उन्होंने एक्रेलिक कलर का प्रयोग भी किया था।
कोलाज चित्रण में प्रयुक्त सामग्री के अनुरूप कोलाज चित्रण के विभिन्न रूप सामने आते हैं जिन्हें अलग अलग कलाकारों ने अपने अनुरूप सामग्री और उनके स्वभाव के अनुरूप प्रयुक्त कर नवीन कृति का सृजन किया। जिसे समयानुसार भिन्न भिन्न नामों से जाना गया जैसे पेपर कोलाज, केनवास कोलाज, फोटो मोन्टाज, वुडन कोलाज, डिजिटल कोलाज इत्यादि
कोलाज की एक अन्य प्रविधि में जिसे फोटो मोन्टेज कहलाता है में अलग-अलग फोटोग्राफ्स या उनके टुकड़ों को काटकर किसी दूसरे फोटो से जोड़कर चिपका कर नवीन कृति का सृजन किया जाता है। वर्तमान में अनेक कलाकार इस प्रविधि का प्रयोग कर नवीन प्रयोग कर रहे हैं।
डिजिटल कोलाज -कम्प्यूटर के बढ़ते प्रयोगों ने कोलाज में भी अपना प्रभाव दिखाया है। इसे डिजिटल कोलाज का नाम दिया गया। इसमें एडिटिंग का काम कम्प्यूटर से किया जाता है, साथ चित्र में डिजिटल इफेक्ट देने के लिये बाजार में विभिन्न साफ्टवेयर उपलब्ध हो रहे हैं जिससे बनाने की कला और भी आसान होने लगी है।
वुड कोलाज- इसमें लकड़ी के टुकड़ों को बोर्ड पर चिपका कर नवीन संयोजनों का सृजन किया जाता है। साथ ही किसी भी बेकार मान ली गई वस्तुओं से भी कोलाज बनते हैं जैसे टूटे हुए कप ,इन्हें और आकर्षक बनाने के लिये रंगीन रस्सीयों, धागों का प्रयोग होता है। कोलाज कला दिल से निकली अभिव्यक्ति है और विविध आयामों को एक आयाम के
रूप में प्रस्तुत करने जेसा है। जैसे सात रंगों को मिलाकर स्पेक्ट्र्म पूरा होता है।
केनवास कोलाज- इस प्रकार के तकनीक ब्रिटिश कलाकार जान वाकर ने 1970 में अपनी पेंटिंग में किया था जिसमें उसने पूर्व में निर्मित केनवास पेंटिग के छोटे छोटे टुकड़ों को केनवास में चिपकाकर नवीन चित्र का सृजन किया। हालाकि इसे हम मिश्रित माध्यम का ही एक प्रमुख प्रकार मान सकते हैं। 1960 के आसपास अमेरिकन कलाकार जान फ्रेंक जेसे कलाकारों ने अपनी पूर्व निर्मित केनवास चित्रों को कई छोटे छोटे हिस्सों में काटकर पुनः उन्हें नये संयोजन के रूप में चिपका कर नई कृति का निर्माण करते थे।
डिकूपेज -यह कोलाज की ऐसी तकनीक है जिसे क्राफ्ट के रूप में परिभाषित किया गया। इस तकनीक से निर्मित कृतियों की अनेक प्रतियां बनाई जा सकती थी। इसमें किसी वस्तु पर अलंकरण के निमित्त चित्रों को काटकर चिपकाया जाता है। और उस पर वार्निश या अन्य का वाश कर सुरक्षित किया जाता है। 20 वीं शती के पूर्वाद्ध में इस प्रविधि का उपयोग कर अनेक प्रयोग किये गये जिसमें यर्थाथ अंकन की अपेक्षा अमूर्त आकृतियों का अंकन अधिक किया गया। इस प्रविधि में पेब्लो पिकासो और हेनरी मातिस ने अनेक कृतियों का सृजन किया जिसमें हेनरी मातिस की कृति ’’ब्लू न्यूड द्वितीय’’ प्रसिद्ध है।
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