-एक- उजड़ा चेहरा देख रहा हूँ, कि उल्टा शीशा देख रहा हूँ। आने वाले कल के कल का, कच्चा चिट्ठा देख रहा हूँ। अपने ही जैसा बेटा है, जा...
-एक-
उजड़ा चेहरा देख रहा हूँ,
कि उल्टा शीशा देख रहा हूँ।
आने वाले कल के कल का,
कच्चा चिट्ठा देख रहा हूँ।
अपने ही जैसा बेटा है,
जानो सपना देख रहा हूँ।
धुंधलाई आँखों पर यारा,
अन्धा चश्मा देख रहा हूँ।
मौत के आँगन में जीवन का,
बुझता चूल्हा देख रहा हूँ।
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-दो-
आंखों-आखों जलन बहुत है,
पाँवों-पाँवों चुभन बहुत है।
धुआँ-धुआँ है सारा आलम,
साँसों-साँसों घुटन बहुत है।
धरती-धरती धूप घनी है,
अंबर-अंबर पवन बहुत है।
बस्ती-बस्ती धूल उड़ी है,
सहरा-सहरा तपन बहुत है।
कथनी–करनी में अंतर है,
नार्रों में यूँ कसक वहुत है।
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-तीन- -
आज फिर आँख से निकला पानी,
बाद बरसों के है पिघला पानी।
कैसे लिक्खूँ मैं प्यार के नगमें,
मुट्ठी से मिरी रेत-सा फिसला पानी
हँसने-रोने का हुनर तक भूला,
भला किस सोच में उलझा पानी।
न हवा चली, न बिजली तड़की,
जाने किस तौर है बरसा पानी।
न तो रोता, न कभी हँसता है,
यूँ वक्त की मार से बदला पानी।
इस कदर हैं ‘तेज’ हवाएं निकलीं,
छोड़के जमीं अपनी उछ्ला पानी।
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-चार-
होना भी अब क्या होना है,
जीना भी अब क्या जीना है।
जख़्म हुए नासूर जो उनको,
सीना भी अब क्या सीना है।
झीने आँचल की छाया में,
पीना भी अब क्या पीना है।
आज न पूछो उम्र ने मुझसे,
छीना भी तो क्या छीना है।
‘तेज’ करें क्या जब अपने ही,
सपनों का जख्मी सीना है।
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-पाँच-
साहिबो - रहबर नए-नए
हैं सारे मंजर नए—नए।
उम्र ढली तो देखे मैंने,
घर के तेवर नए—नए।
मौत मिरी चौखट से लौटी,
पहन के जेवर नए—नए।
सुबह पुरानी रात पुरानी,
लेकिन बिस्तर नए—नए।
अपनों के भी हाथ लगे हैं,
अबकी खंजर नए—नए।
शीशे का घर वही पुराना,
लेकिन पत्थर नए—नए।
‘तेज’ करे अब कहाँ बंदगी,
हैं मंदिर-मस्जिद नए—नए।
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-छ:-
मैं सफ़र से ऐसे गुजर गया,
ज्यूँ दरिया कोई उतर गया।
मिलने वाला मिल नहीं पाया,
मैं इधर गया वो उधर गया।
दर्पण देखा तो आँखों में,
रुख अपना ही उभर गया।
बासी फूल की पत्ती हूँ मैं,
ठसक लगी कि बिखर गया।
रात की खामोशी में तनहा,
न जाने कब संवर गया।
कल तक ‘तेज’ साथ था मेरे,
आज न जाने किधर गया।
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-सात-
मुझको अब कोई आस नहीं,
है खुद की कोई तलाश नहीं।
गुजरे कल की बात क्या करना,
उसमें है कुछ खास नहीं।
खुशबूदार हवा का मौसम,
आया मुझको रास नहीं।
रिश्तों में अब पहले जैसी,
जानो तो कोई बात नहीं।
आज पड़ा यूँ कल पर भारी,
कि कल का कुछ अहसास नहीं।
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-आठ-
सोचा हुआ अगर हो जाता,
सारा आलम घर हो जाता।
खुल जातीं मंजिल की राहें,
आसां बहुत सफ़र हो जाता।
अश्क तिरी आँखों से गिरते,
आँचल मेरा तर हो जाता।
हँसने पर तारे खिल उठते,
रोना बड़ी खबर हो जाता।
खुशबूदार बारिशें होतीं,
हरा-भरा बंजर हो जाता।
चलते-चलते मैं भी ‘तेज’
धरती से अम्बर हो जाता।
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-नौ-
खुद अपने से हार गया मैं,
हर लम्हा लाचार गया मैं।
लेकर खाली जेब न जाने,
क्या करने बाजार गया मैं।
खुद ही मैंने बाजी हारी,
वो समझे कि हार गया मैं।
आँख झुकाकर क्या बैठा कि,
वो समझे कि मान गया मैं।
‘तेज’ मैकदे की जद से उठ,
कब कैसे किस हाल गया मैं।
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-दस-
जीवन से अब डरता कब हूँ,
मरने से अब डरता कब हूँ।
आँखों में अब ख्वाब कहां हैं,
नीदों में अब जगता कब हूँ।
शेष कहां सांसों में खुशबू,
अब उनको मैं जँचता कब हूँ।
खुद को ही पढ़ता रहता हूँ,
अब मैं उनको पढ़ता कब हूँ।
सरदी-गरमी में पानी पर,
चलने से अब डरता कब हूँ।
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-ग्यारह-
परियों का फ़न जाने अब,
जुल्फों के ख़म जाने अब।
सारी उम्र निभाए रिश्ते,
रिश्तों का सच जाने अब।
साँसे करने लगीं जुगाली,
उम्र का करतब जाने अब।
अपनों का अपनापन जाने,
गैरों का रुख जाने अब
उम्र ढली तो ‘तेज’ मुकम्मिल,
जीवन का सच जाने अब।
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-बारह-
परबत जैसे नहीं बड़े हम,
लेकिन सीना तान खड़े हम।
जीने के लालच में मानो,
मौत से हर इक सांस लड़े हम।
सावन के मेघों के जैसे,
रफ्ता-रफ्ता रोज झड़े हम।
चलते-चलते जीवन सिमटा,
मंजिल से पर दूर खड़े हम।
‘तेज’ धूप में पलकें झुलसीं,
सांसें उखड़ीं मौन पड़े हम।
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लेखक: तेजपाल सिंह तेज (जन्म 1949) की गजल, कविता, और विचार की कई किताबें प्रकाशित हैं- दृष्टिकोण, ट्रैफिक जाम है, गुजरा हूँ जिधर से, तूफाँ की ज़द में व हादसों के दौर में (गजल संग्रह), बेताल दृष्टि, पुश्तैनी पीड़ा आदि (कविता संग्रह), रुन-झुन, खेल-खेल में, धमा चौकड़ी आदि ( बालगीत), कहाँ गई वो दिल्ली वाली ( शब्द चित्र), पाँच निबन्ध संग्रह और अन्य सम्पादकीय। तेजपाल सिंह साप्ताहिक पत्र ग्रीन सत्ता के साहित्य संपादक, चर्चित पत्रिका अपेक्षा के उपसंपादक, आजीवक विजन के प्रधान संपादक तथा अधिकार दर्पण नामक त्रैमासिक के संपादक रहे हैं। स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर आप इन दिनों स्वतंत्र लेखन के रत हैं। हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार ( 1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से सम्मानित किए जा चुके हैं।
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ई-3/ए-100 शालीमार गार्डन, विस्तार –2 ( साहिबाबाद), गाजियाबाद (उ. प्र.) - 201005
: ईमैल—tejpaltej@gmail.com
bahut sundar
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