वर्ष 2018 में पृथ्वी का वैश्विक तापमान वर्ष 1880 के बाद से अब तक का चौथा सबसे गरम वर्ष रहने के बावजूद दुनियाभर में सर्दियों के मौसम में भीषण...
वर्ष 2018 में पृथ्वी का वैश्विक तापमान वर्ष 1880 के बाद से अब तक का चौथा सबसे गरम वर्ष रहने के बावजूद दुनियाभर में सर्दियों के मौसम में भीषण और रिकॉर्डतोड़ सर्दियों का सामना किया गया। देश की राजधानी दिल्ली में ओलावृष्टि और बर्फ़ीली हवाएं चलने की वज़ह से पिछले आठ बरस की सर्दियों का रिकॉर्ड टूट गया। अब से पहले वर्ष 2014 में दिन का अधिकतम तापमान इतना नीचे आया था। पिछले चार बरस में इस फ़रवरी माह ने इतनी अधिक बारिश देखी। इधर मुंबई में भी पिछले दस बरस में यह वर्ष सबसे अधिक सर्द रहा। दो बरस पहले भी पश्चिमी महाराष्ट्र में पारा जमाव बिंदु पर पहुँच गया था। ये मौसम परिवर्तन सामान्य नहीं है।
फ़रवरी में बर्फ़बारी के चलते जम्मू-कश्मीर और उसके आसपास स्थित पचास फ़ीसदी तक, सेब और अखरोट के बाग़ तबाह हो गए। शिमला की अधिकांश सड़कें बंद हो गईं। प्रदेशभर में सात राष्ट्रीय राजमार्गा समेत जो 1125 सड़कें अकेले शिमला जो़न की रहीं। उनमें 550 सड़कें अकेले शिमला ज़ोन में रहीं। बर्फ़बारी के साथ ही साथ जगह-जगह हिमखंड भी गिरते रहे। जिसकी वज़ह से चिनाब नदी का बहाव अवरूध्द हो गया।
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाडी़ इलाके़ बर्फ़ की सफ़ेद चादर से ढँक गए और मैदानी इलाक़ों में बारिश ने भीषण सर्दी का अहसास करवा दिया। बर्फ़ एवं हिमस्खलन अध्ययन केन्द्र की ओर से पहाड़ी इलाक़ों में हिमस्खलन की चेतावनी निरंतर जारी रही। मौसम विभाग के मुताबिक़ पश्चिमी विक्षोभ की वज़ह से ही मौसम में यह बदलाव आया है। मौसम का यह बदलाव कुछ समय तक और बने रहने की संभावना व्यक्त की गई है। जिससे ज़ाहिर होता है कि सर्दियाँ अभी भी रहेंगी।
स्काइमेट का कहना है कि बिहार से छत्तीसगढ तक एक ट्रफ; बन गई है। इस कारण बंगाल की खाड़ी से उठने वाली नम हवाएं पूर्वी भारत में आ रही हैं। बंगाल की खाड़ी से उठने वाली ये नम हवाएं बंगाल, झारखंड, बिहार और उत्तरप्रदेश में बारिश के साथ सर्दी बढ़ा सकती हैं। पहाड़ों पर सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ और चक्रवाती हवाओं के मिलने से पश्चिमी उत्तरप्रदेश पहले ही नुकसान उठा चुका है। बारिश और ओलावृष्टि से सरसों की फ़सल लगभग बर्बाद हो चुकी है। उत्तर भारत में इस बार मार्च तक शीत लहर चलने की संभावना व्यक्त की जा रही है। ज़ाहिर है कि दुनिया का मौसम असामान्य हो चला है। मौसम परिवर्तन की असामान्यता का सवाल, एक ज़रूरी सवाल है।
मौसम वैज्ञानिक बता रहे हैं कि मार्च शुरू होते-होते तक उत्तर भारत में ’ला-लीना’ तूफ़ान सक्रिय होना है। ’ला-लीना’ की सक्रियता के कारण प्रशांत महासागर अपेक्षाकृत अधिक सर्द रहेगा। जो उत्तर भारत के मौसम को सर्वाधिक प्रभावित कर सकता है। ’ला-लीना’ की सक्रियता से उत्तर भारत का पर्वतीय क्षेत्र भारी बारिश और बर्फ़बारी का सबब बन सकता है। कहा जा रहा है कि वर्ष के प्रारंभ से अब तक हाड़ कँपाने वाली सूखी सर्दी का सितम झेल रहे लोगों को बारिश, कोहरे और शीतलहर का लंबा खिंचता कहर झेलना पडे़गा। उत्तरप्रदेश में भारी बारिश की संभावना बनी रहेगी। मानाकि दिसम्बर से फ़रवरी तक बारिश का स्तर शून्य बना हुआ है, लेकिन जल्द ही ’ला-लीना’ तूफ़ान की आमद उत्तर भारत में हो सकती है। तूफ़ान की यह आमद बर्बादी की संभावनाएं बढ़ा सकता है। ये सब असामान्य है।
बसंत पंचमी अर्थात् 10 फ़रवरी से सर्दी में राहत मिलने की संभावना दर्शायी गई थीं, किंतु ऐसा कुछ भी संभव होता दिखाई नहीं दिया। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरी राजस्थान और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में सर्द हवाओं ने बसंत के आगमान को कुछ आगे बढ़ा दिया। उत्तर भारत के मैदानी इलाक़ों में पश्चिमी विक्षोभ का अच्छा खासा प्रभाव देखने को मिला है। रह-रहकर सर्द हवाएं अपना असर दिखाती रहीं। देश के तेरह राज्यों में हल्की बारिश हुई। मौसम का ऐसा हाल अरब सागर में नमी के कारण हुआ। पिछले दस बरस में इस बरस जैसी सर्दी कभी नहीं रही।
इस बरस सर्दियाँ ज़रा विलंब से आईं, लेकिन कंपकंपाने वाली सर्दी के दिन एक दशक में सबसे ज़्यादा इन्हीं दिनों में रहे। इस मौसम के पचास दिनों में, पच्चीस से ज़्यादा दिनों का, दिन का न्यूनतम तापमान दस डिग्री सेल्शियस से कम बना रहा। पच्चीस में से भी दस दिन तो सीवियर कोल्ड़ डे के बतौर बीते । मौसम विभाग की मानें तो सर्दियाँ अभी बनी रहेंगी। हमारे मौसम विशेषज्ञ वैज्ञानिकों ने इस बरस की सर्दियों में गर्मियों की सज़ा मिलने की संभावना बताई थी, किंतु वह निर्मूल साबित हुई। सर्दियाँ देर से ज़रूर आईं, लेकिन आईं और वे सर्दियों में गर्मियों की सज़ा से मुक्त होकर ही आईं। अब इन्हीं मौसम-विशेषज्ञ वैज्ञानिकों द्वारा मार्च के महीने में कड़ाके की सर्दी की आशंका जताई जा रही है। भगवान भोलेनाथ रक्षा करें! महाशिवरात्रि अर्थात् चार मार्च का कार्य दिवस कंपकंपाने वाली सर्दी से किसी हद तक मित्रवत मुक्त बना रहा।
इसी बीच कोलंबिया विश्वविद्यालय ने बताया कि विज्ञान जगत में जलवायु-विज्ञान के पितामह बालेस स्मिथ ब्रोकर का न्यूयॉर्क सिटी अस्पताल में निधन हो गया। 97 बरस के बालेस स्मिथ ब्रोकर का जन्म 1931 में शिकागो में हुआ था। बालेस स्मिथ ब्रोकर ऐसे पहले जलवायु-वैज्ञानिक थे, जिन्होंने भविष्यवाणी की थी कि वायुमंडल में कॉर्बन डाईऑक्साइड का स्तर बढ़ने से ग्लोबल वार्मिंग का ख़तरा बढ़़ेगा। मौसम वैज्ञानिक ब्रोकर ने वर्ष 1975 में अपने एक पत्र में सबसे पहली बार ’ग्लोबल वॉर्मिंग’ शब्द का इस्तेमाल किया था। वे वर्ष 1959 में ही कोलंबिया विश्वविद्यालय से जुड़ गए थे। ग्लोबल वॉर्मिंग शब्द को एक अति प्रचलित शब्द बना देने का श्रेय बालेस स्मिथ ब्रोकर को ही दिया जाता है।
ग्लोबल वॉर्मिंग को परिभाषित करने के साथ ही साथ देश और दुनिया के मौसम वैज्ञानिकों द्वारा भविष्यवाणी करने का काम भी प्रमाणिकता पाने लगा। कहा जाता है कि आधुनिकीकरण और मॉनिटरिंग की वज़ह से मौसम के पूर्वानुमान अब सच के क़रीब होते हैं। इससे पहले एक समय था जब मौसम विभाग के पूर्वानुमान अक़सर ही उपहास का विषय बन जाया करते थे। भविष्यवाणी झमाझम बारिश होने की, की जाती थी और तेज़ धूप से सामना होता था। हालात इतने हास्यपद हो जाते थे कि लोगों ने मौसम के पूर्वानुमानों पर विश्वास करना ही छोड़ दिया था, किंतु कहा जाने लगा है कि अब हालात बदल गए हैं और मौसम की सटीक भविषयवाणी होने लगी है। मौसम विभाग की कार्यप्रणाली का यह बदलाव प्रामाणिक और विश्वसनीय से अधिक, दिलचस्प ज़रूर है, जिसे पिछले तीन-चार माह की मौसम भविष्यवाणियों से जोड़-घटाकर देखा जा सकता है।
वर्ष 2006 में केन्द्र सरकार ने स्वतंत्र भूविज्ञान मंत्रालय का गठन किया था। इससे पहले हमारे देश में मौसम विभाग के लिए अलग से कोई मंत्रालय नहीं था। वर्ष 2006 से पहले मौसम विज्ञान विभाग की तीन भिन्न-भिन्न शाखाएं थीं। ये भिन्न-भिन्न तीनों शाखाएं, मौसम विभाग दिल्ली, राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान-केन्द्र नोएडा और आईआईटीएएम, पूणे अपना अलग-अलग पूर्वानुमान जारी करती थीं। इन तीनों में सामंजस्य नहीं होने के कारण मौसम पूर्वानुमानों की स्थिति बेहद हास्यास्पद बन जाती थी। अब ऐसा दावा किया जाने लगा है कि इन केन्द्रों में ’सुपर कम्प्यूटर स्थापित कर दिए जाने के बाद, मौसम पूर्वानुमानों में गुणात्मक सुधार हुआ है, किंतु इसमें कितनी सच्चाई है, इसका आकलन मौसम पूर्वानुमानों के उन तमाम पिछले ताज़ा आंकड़ों से किया जा सकता है, जो राष्ट्रीय स्तर पर, राज्य स्तर पर और ज़िला स्तर पर जारी किए गए हैं।
इन दिनों भारत ही नहीं, बल्कि अमेरीका और यूरोप सहित समूचे उत्तरी गोलार्ध्द में कड़ाके की सर्दी से सामान्य जनजीवन बुरी तरह से त्रस्त हुआ है। वर्ष की शुरूआत से ही ऑस्ट्रेलिया भयंकर गर्मी के प्रकोप में रहा। 24 जनवरी को ऑस्ट्रेलया में 46.6 डिग्री सेल्सियस तापमान रिकॉर्ड किया गया। वहीं भीषण गर्मी के बाद पूर्वी ऑस्ट्रेलियाई राज्य क्वींसलैंड बाढ़ की चपेट में आ गया। उत्तर-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में मॉनसून के दौरान भारी बारिश होती है, लेकिन हाल ही में हुई बारिश, सामान्य से बहुत अधिक है। राहत और बचाव कार्यां के लिए सेना की तैनाती करना पड़ी है। तबाही का आलम यहाँ तक देखा गया कि मगरमच्छ रिहायशी इलाक़ों की सड़कों तक पहुँच गए। मौसम विशेषज्ञों ने इसे सदी की सबसे भयानक बाढ़ बताते हुए एक हफ़्ते में बरसभर जितनी बारिश का अंदेशा, व्यक्त किया। ज़ाहिर है कि मौसम-परिवर्तन की असामान्यता की गंभीरता को समझा जाना चाहिए।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में भीषण गर्मी के बाद अब बाढ़ का प्रकोप दिखाई दिया, तो अमेरिका भीषण सर्दी से ठिठुरता रहा। उत्तरी अमेरिका में भयंकर सर्दी और बर्फ़बारी होने के कारण तक़रीबन 40-50 लोग मर गए। अमेरिका के मध्य-पश्चिम इलाक़ों में न्यूनतम तापमान 30-40 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चलता रहा। स्कूलों की पढ़ाई रोक दी गईं। उड़ानें रदद् कर दी गईं और कई इलाक़ों में आपात्काल जारी कर दिया गया। नेशनल वेदर सर्विस के मुताबिक़ तो कई जगहों का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक लुढ़क गया। दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन के लिए ’ग्लोबल वॉर्मिंग’ को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है, ज़रूरी है कि मौसम-परिवर्तन की सूक्ष्मताएं बेहतर समझी जाएं।
दुनियाभर में इन दिनों ’ग्लोबल वॉर्मिंग’ की ही चर्चा ज़ोरों पर है। जलवायु परिवर्तन के कारण जिस तरह पृथ्वी गरम हो रही है, उससे मौसम वैज्ञानिक और पर्यावरणविद् चिंतित हैं। ’ग्लोबल वॉर्मिंग’ की वज़ह से ही दुनियाभर के मौसम उल्टे-पुल्टे हो रहे हैं। कहीं भीषण गर्मी तो, कहीं भयंकर बाढ़ और कहीं कड़ाके की सर्दी पड़ रहीं है। ’ग्लोबल वॉर्मिंग’ के इस दौर में एक सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि अगर दुनिया का तापमान बढ़ रहा है और पृथ्वी अधिक गरम हो रही है, तो मौसम में इतनी सर्दियाँ क्यों हैं? आम लोगों सहित यह सवाल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी पूछ रहे हैं कि आख़िर ’ग्लोबल वॉर्मिंग’ कहाँ है?
विस्मय का विषय है कि ’ग्लोबल वॉर्मिंग’ का दौर-दौरा होने के बावजूद इस दौरान दुनिया के बड़़े हिस्से में यह समय, सर्दियों के प्रकोप का क्यों चल रहा है? अमेरिका के कुछ हिस्सों में ताममान का स्तर 50 डिग्री से नीचे चला गया है। ऑस्ट्रेलिया में भीषण गरमी के बाद बाढ़ है। जापान में इक्कीस फीट ऊँची बर्फ़ की चादर जम गई। भारत के पहाड़ी इलाकों में निरंतर बर्फ़बारी हो रही है। हद दर्ज़े की सर्दी और हद दर्ज़े की गर्मी से जनता त्रस्त है और मौसम वैज्ञानिकों को हँसी का पात्र बनाया जा रहा है। मानाकि एक निश्चित अंतराल के बाद मौसम अवश्य ही बदलता है, लेकिन किसी भी जारी अवधि में होने वाला मौसम-परिवर्तन सामान्य कैसे कहा जा सकता है? ’ग्लोबल वार्मिंग’ को नज़र अंदाज़ करना वाज़िब कैसे होगा? दुनियाभर में मौसम परिवर्तन की असामान्यता का सवाल आखिर क्या साबित कर रहा है? फ़रवरी में मुंबई के पसीने क्यों छूटे? क्यों मसूरी और नैनीताल का मार्च बर्फ़ की चादर में सिमटता दिखाई दिया? क्यों उत्तरी कैलिफोर्निया में भीषण बाढ़ है और क्यों इन्हीं दिनों में दिल्ली ने शीत लहर का आठ बरस का रिकॉर्ड तोड़ दिया?
सम्पर्क-331, जवाहरमार्ग, इंदौर-452002
ईमेलः rajkumarkumbhaj47@gmail.com
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