मेरी दुबई यात्रा - डॉ. मधु संधु

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दुबई संयुक्त अरब अमीरात का ऐश्वर्यशाली, अत्याधुनिक शहर है। इस बार अरब के इस स्वर्ग की यात्रा का मन बनाया। परीक्षाओं के दिन होने के कारण इस ब...

दुबई संयुक्त अरब अमीरात का ऐश्वर्यशाली, अत्याधुनिक शहर है। इस बार अरब के इस स्वर्ग की यात्रा का मन बनाया। परीक्षाओं के दिन होने के कारण इस बार बच्चे साथ नहीं थे, पर उनमें उत्साह उतना ही था। जहाज में बैठने के बाद भी सर्वज्ञ का फोन आया- मॉम जहाज कब तक चलेगा, हम देखने के लिए छत पर आ गए हैं।

हमारे पैकेज में टिकिट के साथ- साथ होटल, आने जाने का सिलसिला, दर्शनीय स्थल, उनकी टिकटें– सब सम्मिलित थे। यह बीस जनवरी 2019 का रविवार था। सर्दी और कोहरे वाला दिन। फ्लाइट कोई दो घंटे देरी से थी। 11.50 की उड़ान ने 1.45 पर जाना था। साढ़े तीन घंटे में ही हम दुबई पहुँच गए। दुबई का हवाई अड्डा खूब बड़ा था। कितनी बार सीढ़ियों वाले और चलने वाले एलेवेटर आए, ट्रेन आई । हैंड बैग का कैरियर हैंडल बार-बार खोलना बंद करना पड़ रहा था। बेल्ट टेर्मिनल तक आ सामान लिया। अब देखना था कि यात्रा प्रबंधक ने हमें लेने के लिए किसे भेजा है। निर्धारित स्थल पर नामपट्टी लेकर अनेक ड्राईवर या ट्रैवल- एजेंट खड़े थे, पर अपने नाम की पट्टी थी ही नहीं। पराये देश में यह पहली परेशानी थी। भारतीय मोबाइल न० वहाँ काम कर नहीं सकते थे और वहाँ के लिए लिया न० अभी चालू नही किया था। यात्रा ग्रुप के लिए लिया गया वाट्सएप भी कैसे चलता ? लेकिन वहाँ ऐसी परेशानियों का हल निकालने वाले सरकारी मुलाज़िम भी थे। जल्दी ही वाट्सएप संदेश मिला कि अपनी सेलफ़ी भेजो, जैसे ही सेलफ़ी भेजी, ड्राईवर आ पहुंचा। उसने बताया कि फ्लाइट लेट होने से ट्रैवल एजेंसी ने उसे कहीं ओर भेज दिया था। खैर, जल्दी ही हम अपने गंतव्य ‘ला मनार ग्रांड होटल’ में थे। अब सब ठीक था। तरोताजा होकर बैठे ही थे कि दुबई के यात्रा- प्रबन्धक का वाट्सएप संदेश मिला। टैक्सी आ गई थी। साढ़े आठ से साढ़े दस तक मरीना समुद्र तट पर क्रूजिंग थी। यानी जल विहार करता एक दोमंज़िला छोटा जहाज। रेस्टोरेन्ट की तरह सज़ा- संवरा । हर ओर शीतल बयार, चमचमाती रोशनियां और पानी में पड़ रहे उनके प्रतिबिंब थे। हल्का संगीत था और अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटक समूह वातावरण को वैश्विक बना रहे थे। आज का डिनर क्रूज में ही था। बफे डिनर में शाकाहारी मांसाहारी भोजन अपनी पूरी विविधता के साथ उपलब्ध था। सूप से लेकर फलाहार तक। खाना समाप्त होते ही बर्तन उठा पूरी साफ- सफाई कर दी गई। अब दुबई के गीत- संगीत और नृत्य का कार्यक्रम था। एक खूब लंबा स्थानीय युवक विशेष परिधान यानी रंगबिरगी आकर्षक स्कर्ट पहन कर आया। उसने अपनी जादुई स्कर्ट और टोकरियों से ऐसा अद्भुत स्थानीय नृत्य किया कि मुग्ध दर्शक दांतों तले अंगुलियाँ दबा कर रह गए। सधे हाथों में कलात्मक टोकरियों का नियंत्रण बनाए वह झूम और चक्राकार घूम रहा था। गर्दन और चेहरा भिन्न हाव- भावों को स्वर दे रहे थे। नृत्य का दूसरा चरण वह था, जब उसकी स्कर्ट पर असंख्य बल्बों की लड़ियाँ जगमगाने लगी और वह अपनी कला से सबको आश्चर्यचकित करता रहा। नृत्य की समाप्ति पर उसने पर्यटकों में से तीन- चार- छह लोगों को वही लहंगा पहना कर नृत्य के लिए प्रेरित किया, पर सब दो- तीन क्षणों में ही चक्कर खाकर गिरने को हुये। रात के साढ़े दस हो चुके थे। यह हमारा होटल वापसी का समय था।

दूसरे दिन यानि 21 जनवरी को हमें दुबई शहर के निर्धारित पर्यटक स्थलों पर जाना था। सुबह- सुबह उठकर तैयार हो होटल के डाइनिंग हाल में ब्रेकफ़ास्ट के लिए पहुंचे। बफे था। खास बात यह थी कि पूरा हाल सिर्फ भारतियों से भरा हुआ था। ज़रा भी आभास नहीं हुआ कि किसी अरब देश में हैं। यहाँ तक कि होटल मैनेजर और दूसरे कर्मचारी- अधिकारी भी भारतीय या पाकिस्तानी थे। घूमने का दौर शुरू होने पर पता चला कि इस वंडर लैंड के सभी टैक्सी ड्राईवर भी हमारे या हमारे पड़ोसी देश के हैं। हाँ ! दो ड्राईवर उज़्बेगिस्तान के भी मिले । खूब पढे- लिखे। अँग्रेजी तो बोलते ही थे, पर उनको भी हिन्दी आती थी। अमिताभ बच्चन का ‘कौन बनेगा करोड़पति’ भी शायद देखा करते थे। यहाँ का पर्यटन विभाग इतना सशक्त है कि एयरपोर्ट पर, मॉल पर- जगह जगह उनकी शाखाएँ यात्रियों की हर दुविधा का समाधान देने के किए तत्पर रहती हैं।

दुबई में कोई आधा दर्जन बीच यानी समुद्री तट हैं। देखने में भले ही शांत लगें, पर अल्हड़ लहरों के आवेग और खिलवाड़, सुनहरी बालू और ताड़ के पेड़ इन्हें पिकनिक स्थल बना देते हैं। यहाँ भारतीय, पाकिस्तानी, अंग्रेज़, नीग्रो, चीनी- सभी प्रकार के पर्यटक हर तरह के परिधान में देखे जा सकते हैं।

दुबई म्यूज़ियम यू. ए. ई. का मुख्य म्यूज़ियम है। यह अलफरीदी फोर्ट में स्थित है। उस भवन का निर्माण 1787 में हुआ था। यहाँ पुरातन समय की चीज़ें प्रदर्शित की गई हैं। शासको के वस्त्र- आभूषणों आदि का संग्रह है। फोटो खींचना वर्जित है। यहाँ तेल की खोज से पहले की दुबई के चित्र भी थे।

22 जनवरी को हमें बुर्ज खलीफा जाना था। बुर्ज खलीफा दुबई की/ संयुक्त अरब अमीरात की गगनचुंबी इमारत है। यह विश्व का मानव निर्मित सबसे ऊँचा ढांचा है। इसकी ऊँचाई 829.7 मीटर/ 2716.7 फीट है। 168 मंज़िला इस इमारत का काम 2004 में आरंभ हुआ और लोकार्पण 4 जनवरी 2010 को किया गया। कहते हैं कि मुख्यत: शीशे और स्टील की बनी इस इमारत पर 1.5 बिलियन डॉलर खर्च आया था। लंबी घूम- घुमैया लाइनों के बाद हमें लिफ्ट से सीधे 124 वीं मंज़िल तक पहुंचा दिया गया। लिफ्ट में तीव्र संगीत चला और रुक गया। इतने में हम 124 वीं मंजिल पर थे। यह विश्व की सबसे तेज रफ्तार लिफ्ट है। नीचे से दुबई दिख रहा था। भिन्न भवन, सर्पीली सड़कें, सड़कों पर भागती खिलौनों सी गाडियाँ, दुबई कैनाल। पर्यटकों की इस मंज़िल पर खाना पीना वर्जित है। पहले ही स्कैन करके ऐसी चीजें रख ली जाती हैं। यहाँ से सीढ़ियाँ चढ़कर हम 125 वीं मंज़िल आए। नीचे के दृश्य यहाँ कहीं अधिक स्पष्ट थे।

साढ़े तीन के आसपास अक्वैरिअम यानी मच्छली घर पहुंचे । प्रथम आकर्षण एक लंबी पानी की दीवार थी। जिसमें छोटी-बड़ी हर नस्ल की ढेरों मछलियाँ तैर रही थी और बीच में डाइवर भी घूम रहे थे। टिकिट लेकर हम अंदर आए। भिन्न जीव यहाँ भागमभाग कर रहे थे। सभी अति व्यस्त, दर्शकों के औत्सुक्य से अनभिज्ञ। पानी की नदिया सी छत और उसमें तैरती मछलियाँ विस्मित करने को पर्याप्त थी। हर तरफ भिन्न आकारों के अतिसुन्दर वॉटर टैंक विभिन्न प्रकार के जल जीवों से सुसज्जित थे। भिन्न रंगों के कछुए, बिल्ली के आकार के जल मूसक, मगरमच्छ। यहाँ तीन सौ प्रकार के जलजीव थे।

अब हम दुबई शॉपिंग मॉल में थे। कई किलोमीटर में फैला यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मॉल है। शॉपिंग मॉल भी एक भूलभुलाइयां ही थी। दुबई मॉल का सौंदर्य, वैविध्य, छटा अपने में अद्भुत आकर्षण लिए है। यह खरीददारी, खान-पान और मनोरंजन का अद्वितीय स्थल है। इसकी अनेक मंज़िलों में स्थित लगभग 1300 दुकानों में विश्व ही हर चीज उपलब्ध है।

शाम को मॉल के एक खुले भाग में फाउंटेन शो यानी फ़व्वारों का नृत्य प्रदर्शन था। लेमन मिंट के गिलास हाथों में थामें हम भी कुर्सियों पर आ डटे। खूब भीड़ जुट चुकी थी। मोबाइल सेलफ़ी स्टिक्स पर अटके पड़े थे। हर कोई वीडियो बनाने के लिए अपने कैमरे को और अधिक ऊँचा कर रहा था। शाम के साढ़े छह बजे एकदम संगीत लहरियाँ गूंजने लगी और उनके साथ ही असंख्य फव्वारे मस्त- अलमस्त झूमने लगे। किसी सधी हुई नृत्यांगना की तरह वे बल खा रहे थे, मुद्राएं बदल रहे थे और दर्शक आश्चर्य चकित होते हुये आनंद से सराबोर हो रहे थे।

23 जनवरी को बाद दोपहर हम डेजर्ट सफारी के लिए निकले। पहला पड़ाव अल-मैडन पर था। यहाँ चौपहिया मोटर साईकल किराये पर ले ऊबड़- खाबड़ रेत पर, रेत के ढूहों या खड्डों पर चलाने का रोमांचक मज़ा लेते पर्यटक थे। बाहर दो ऊँट वाले सवारी के लिए खड़े थे, पर ज़्यादातर लोग ऊँट के साथ फोटो उतरवाने में ही इतिश्री कर रहे थे। यहाँ से डेजर्ट सफारी का साहसिक, खतरनाक सफर शुरू होना था। सब ने बेल्ट लगाई, हैंडल पकड़े और एडवेंचरस यात्रा के लिए तैयार हो लिए। घंटे- पौन घंटे के जबरदस्त हिचकौले ..... मन में यही था कि कब समाप्त होगा यह सफर और उसके विराम लेते ही सांस लौट आए। सफारी सपाट सड़क पर आई और थोड़ी ड्राइव के बाद हम गन्तव्य पर पहुंचे। यहाँ ठंडी रेत से वातावरण निहायत सर्द था। ज़मीन पर सिरहाने के आकार की गद्दियाँ और उनके आगे स्टूल/ मेज से थे । जमीन पर ही बैठना था। वी. आई. पी. प्रबंध भी था। सफारी के हिसाब से बैठने का प्रबंध था। केंद्र में एक मंच था। पहले एक युवती ने नृत्य प्रस्तुत किया। फिर एक युवक टोकरियों के साथ लोक नृत्य प्रस्तुत करने लगा। यह वही नृत्य था, जो हमने क्रूज में देखा था। फिर अग्नि के साथ दो नृत्य आए। एक बच्ची ने भी नृत्य किया। चाय- खाना सब व्यवस्थित था। आठ बजे फारिग होकर हम सवा नौ तक होटल लौट आए।

24 जनवरी यानी बृहस्पति को हमारी अबूधाबी के लिए तैयारी थी। यह संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी, और प्रमुख स्थल है। तेल के अतिरिक्त इसकी ख्याति अत्याधुनिक टावरों के लिए है। यहाँ की जनसंख्या भी सबसे अधिक है। भिन्न होटलों से पर्यटकों को लेते हुये चालक ने जैसे ही बस को अबूधाबी की ओर मोड़ा, कंडक्टर-कम-गाइड ने अबू धाबी का प्रथम दर्शनीय स्थल अगदाद टावर दिखाया। मिराज इंटरनेशनल से होते हुये हम अबू धाबी की विशाल मस्जिद में पहुंचे। यहाँ ड्रेस कोड़ था। स्त्रियॉं के लिए सिर से पैर तक ढका होना जरूरी था। बहुत सी सवारियों के परिधान में कमियाँ थी। गाइड के पास कुछ बुर्केनुमा काले चोगे थे, जिनसे सबका काम चल गया। कहते हैं कि इस मस्जिद में एक साथ 41000 प्राथी नमाज़ पढ़ सकते हैं। यहाँ से मरीना मॉल होते हुये, हम फेरारी वर्ल्ड पहुंचे। और फिर 140 मील का वापसी का सफर।

अगला शुक्रवार का दिन हमने अपने लिए रखा हुआ था। आज हमें तनुष के लिए खिलौना गाड़ी, लावण्या के लिए बड़ी गुड़िया, देवज्ञ के लिए ऊँट और सर्वज्ञ के लिए बुर्ज खलीफा लेना थे। कुछ और भी छिटपुट चीज़ें थी। हालांकि यह सारे काम भीड़-भाड़ वाले मीना बाज़ार से ही हो गए।

अंतिम दिन यानी शनिवार 26 तारीख को हम सबसे पहले माइरेकल गार्डेन पहुंचे। रेगिस्तान में हरीतिमा बिखेरता यह सचमुच चमत्कारी उपवन ही था। रंगबिरंगे पुष्प गुच्छों से भरा यह बगीचा दाँतो तले अंगुलियाँ दबाने के लिए प्रयाप्त था। फूल- पत्तों से बने गगनचुंबी टेड़ी, हाथी, बिल्लियाँ उपवन की शोभा बढ़ा रहे थे। असली हवाई जहाज जितना बड़ा फूलों का जहाज भी था। उपवन की सैर के लिए ऑटो रिक्शा जैसी गाडियाँ थी। उसमें बैठकर हमने चक्कर भी लगाया और पार्क का विडियो भी बनाया। खाने- पीने के लिए छोटे छोटे रेस्टोरेन्ट भी थे।

इस यात्रा का अंतिम पड़ाव ग्लोबल विलेज था। यहाँ विश्व भर के देशों के विलेज/ बाज़ार थे, जहां उनकी लगभग हर चीज मिल सकती थी। मीलों फैले भीड़-भाड़ वाले इस स्थल पर घूमने की न तो हिम्मत थी और न ही यह संभव था। कुछ देशों के विलेज देखने के बाद हम भारत के बाज़ार पहुंचे। पानी पूड़ी खाई और लौट आए।

कहने को दुबई रेगिस्तान है, रेत और तेल का घर है, लेकिन उस शहर के सौंदर्य का एक प्रमुख उपाधान वहाँ की प्राकृतिक हरीतिमा है। हर तरफ पुष्प-गुच्छ, मोहक दूब ही दिखाई देती है। जगह- जगह हरहराते पेड़ हैं। सड़कें घर के दालान सी साफ– स्वच्छ। कहीं कुत्ते- गाय रास्ता रोके नहीं खड़े थे। हाँ ! बिल्लियाँ जरूर कहीं-कहीं दिखाई दी। सब आकर्षक, अति उत्तम और विशिष्ट लग रहा था। सच ! दुबई की साफ-सफाई का तो कोई मुक़ाबला ही नहीं।

अनुशासन ऐसा कि कहते हैं, अपराध करने पर राजकुमार को भी वही सज़ा होती है, जो आम आदमी को। सच में शेर और बकरी एक ही घाट पानी पीते हैं। ट्राफिक रूल्स की तो बात ही मत करो। किसी भी चौराहे पर कहीं पुलिस का नामो-निशान नहीं था। गलती करो तो अकाउंट से अपने आप जुर्माना कट जाएगा। कई स्थलों पर लिखा था कि खाद्य, मनोरंजन और खरीददारी स्थलों पर सम्मानीय वस्त्र पहनें। यहाँ के सुचारू शासन को देख कर लगता तो यही था कि लोकतन्त्र से राजतंत्र भी उत्तम हो सकता है। रेत को सोने में बदलने वाला शासनतन्त्र। पीने का पानी यहाँ खरीदना पड़ता है। दो दिरहम की बोतल, जबकि पेट्रोल इससे सस्ता है। कहते हैं, यहाँ कारें सस्ती और उनके नंबर महंगे होते हैं। शायद इसीलिए हर तरफ पाँच अंको के नंबर ही दिखाई दे रहे थे।

अमृतसर हवाई अड्डे पर पहुँचते ही मोबाइल बजने लगा। सर्वज्ञ, लावण्या, देवज्ञ, तनुष- सब व्यग्रता से प्रतीक्षा कर रहे थे।

madhu_sd16@yahoo.co.in

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रचनाकार: मेरी दुबई यात्रा - डॉ. मधु संधु
मेरी दुबई यात्रा - डॉ. मधु संधु
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