- राजेश माहेश्वरी परिचय राजेश माहेश्वरी का जन्म मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में 31 जुलाई 1954 को हुआ था। उनके द्वारा लिखित क्षितिज, जीवन कैसा ह...
- राजेश माहेश्वरी
परिचय
राजेश माहेश्वरी का जन्म मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में 31 जुलाई 1954 को हुआ था। उनके द्वारा लिखित क्षितिज, जीवन कैसा हो व मंथन कविता संग्रह, रात के ग्यारह बजे एवं रात ग्यारह बजे के बाद ( उपन्यास ), परिवर्तन, वे बहत्तर घंटे, हम कैसे आगे बढ़ें एवं प्रेरणा पथ कहानी संग्रह तथा पथ उद्योग से संबंधित विषयों पर किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।
वे परफेक्ट उद्योग समूह, साऊथ एवेन्यु मॉल एवं मल्टीप्लेक्स, सेठ मन्नूलाल जगन्नाथ दास चेरिटिबल हास्पिटल ट्रस्ट में डायरेक्टर हैं। आप जबलपुर चेम्बर ऑफ कामर्स एवं इंडस्ट्रीस् के पूर्व चेयरमेन एवं एलायंस क्लब इंटरनेशनल के अंतर्राष्ट्रीय संयोजक के पद पर भी रहे हैं।
आपने अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, सिंगापुर, बेल्जियम, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग आदि सहित विभिन्न देशों की यात्राएँ की हैं। वर्तमान में आपका पता 106 नयागांव हाऊसिंग सोसायटी, रामपुर, जबलपुर (म.प्र) है।
46. असफलताएँ
असफलताएँ दर्ज होती है
इतिहास के पृष्ठों पर।
उन्हें हर कोई
दुहराता है बार बार।
वे दिखलाती है
हमारी पीढियों को रास्ता।
परंतु असफलताओं को
कोई याद नहीं करता
वे चली जाती है
विस्मृतियों के गर्भ में।
हमें अपनी असफलताओं को भी
ध्यान में रखना चाहिए
क्योंकि वे बताती है
हमारी गलतियों को
और दिखलाती है
हमारी कमियों को
हमें याद रखना चाहिए
असफलता ही
सफलता की जननी होती है।
47. जीवन पथ
हम है उस पथिक के समान
जिसे कर्तव्य बोध है
पर नजर नहीं आता है सही रास्ता।
अनेक रास्तों के बीच
हो जाता है दिग्भ्रमित।
इस भ्रम को तोडकर
रात्रि की कालिमा को भेदकर
स्वर्णिम प्रभात की ओर
गमन करने वाला ही
पाता है सुखद अनुभूति और
सफल जीवन की संज्ञा।
हमें संकल्पित होना चाहिए कि
कितनी भी बाधाएँ आएँ
कभी नहीं होंगें
विचलित और निरूत्साहित।
जब धरती पुत्र मेहनत,
लगन और सच्चाई से
जीवन में करता है संघर्ष
तब वह कभी नहीं होता पराजित
ऐसी जीवन शैली ही
कहलाती है जीवन की कला
और प्रतिकूल समय में
मार्गदर्शन देकर
दे जाती है जीवन दान।
48. नीला आकाश
मेघों से आच्छादित आकाश
उमड घुमड कर बरस रहे बादल
गरज रही बिजली।
वायु का एक तीव्र प्रवाह
छिन्न भिन्न कर देता है बादलों को
शेष रह जाता है
विस्तृत नीला आकाश।
कौन है ऐसा
जिसके जीवन रूपी आकाश में
घिरे ना हो परेशानी के बादल
गरजी ना हो मुसीबत की बिजलियाँ।
वह जो सकारात्मकता, सृजनशीलता और
धर्म निष्ठा के साथ जूझता है
परेशानियों और मुसीबतों से
उसके संघर्ष की वायु का प्रवाह
निर्मल कर देता है
उसके जीवन के आकाश को।
लेकिन जहाँ होती है नकारात्मकता
जहाँ होता है अधर्म, वहाँ होता है पलायन,
वहाँ होती है पराजय,
वहाँ होती है कुंठा और अवसाद।
वहाँ छाये रहते है बादल,
वहाँ गरजती रहती है बिजलियाँ।
प्रत्येक का जीवन होता है नीला निर्मल आकाश।
व्यक्ति की सोच, सच्चाई और सक्रियता
भर देती है उसे बादल, पानी और बिजली से
अथवा कर देती है उसे नीला, निर्मल और प्रकाशवान,
यही है जीवन का यथार्थ।
49. आशा
दुनियाँ में ऐसा कोई नही
जिसे चिंता ना हो
ऐसी कोई चिंता नहीं
जिसका निवारण ना हो।
चिंता एक निराशा है
और उसके निवारण
का प्रयास आशा है
आशा है सुख
और निराशा है कष्ट
जीवन है
आशा और निराशा के बीच
झूलता हुआ पेण्डुलम।
आशा से भरा जीवन सुख है
निराशा के निवारण का प्रयास ही
जीवन संघर्ष है।
जो है इसमें सफल
वह है सुखी और संपन्न।
असफलता है
दुख और निराशा से
जीवन का अंत।
यही है जीवन का नियम
यही है जीवन का क्रम।
50. कर्म पर नियंत्रण
मिट सकता है भ्रष्टाचार
बहुत कठिन भी है
और बहुत आसान भी।
हमारे कर्म पर हो हमारा नियंत्रण
सीमित करें हम
अपनी आवश्यकताएँ,
जीवन में लाए
सदाचार और सद्कर्म।
आवश्यकता के अनुरूप ही
संचित करें धन।
त्याग करें असीमित
धन संचय की प्रवृत्ति का।
प्रतिबिम्बित हो इसमें मानवता।
समाज में सम्मानित हो
ईमानदारी और निष्ठा।
सकारात्मक हो
चिंतन और मनन।
परोपकार में हो तत्परता
और हृदय में हो समर्पण।
भ्रष्टाचार स्वतः मिट जाएगा
यदि ऐसा हो हमारा जीवन।
51. सार्थक
शिक्षा, जीवन के हर पल को
देती है दिशा।
विद्यार्थी हर पल से लेता है
एक नई शिक्षा।
मनुष्य का भाग्य
उसकी हानि और लाभ
सभी कुछ है विधाता के हाथ।
जो ईमानदारी से करता है श्रम
विधाता भी देता है उसी का साथ।
जिसमें होता है परिवार,
समाज और देश के प्रति
अपने कर्तव्यों के पालन का
संकल्प, तत्परता और समर्पण
उसे ही मिलती है सफलता
उसे ही मिलती है शांति
यही है जीवन के मूल तत्व
इन्हें अपनाकर ही
हम कर सकते है
अपने जीवन को सार्थक।
52. सत्य
सत्य होता है सदैव
स्वनिर्मित, अटल और परिवर्तनशील।
वह कटु हो सकता है
किंतु वह हेता है
दीपक के समान प्रकाशवान।
असत्य हमेशा प्रयास करता है
सत्य बनने का
किंतु सफल नहीं होता
क्योंकि वह होता है परिवर्तनशील।
सत्य की आभा
देती है हमें प्रसन्नता
और कराती है
पुण्य का अहसास।
असत्य करता है हमारी
आत्मा पर प्रहार
देता है कष्ट
और देता है पाप का अपराधबोध।
सत्य पूजा, सेवा व समर्पण है
इसमें समाहित है
ईश्वर की भक्ति।
असत्य निराशा है
वह है दिया तले का अंधेरा।
सत्य मीठा नहीं होता
पर देता है शीतलता।
असत्य होता है मीठा
लेकिन देता है कष्ट।
इस संसार सागर से
पार उतरने के लिये
सत्य नौका है
वह पतवार भी है
और है वह हमारा आत्मबल
जिसके सहारे सफल
होता है हमारा जीवन।
असत्य दिग्भ्रमित करता है
वह हमें भटकाता है
यदि हम चलेंगे सत्य की राह पर
तो वह देगा शक्ति हमें,
हमारे परिवार को, समाज को
और हमारे देश को
तथा सत्य की यह शक्ति
देगी नई दिशा।
53. संतुष्टि
आसान नहीं है
जीवन में मंजिल पा जाना,
पर नहीं है असंभव भी।
जो ठहर गया
उसके लिये कठिन है राहे
और जो चल पडा
उसके लिए राहे
होती जाती है आसान।
यदि श्रम और कर्म
का हो संगम
तो राहें भी बन जाती है
मार्गदर्शक और प्रेरणा स्त्रोत।
यदि मस्तिष्क एवं हृदय में हो
धैर्य और लगन
तब मंजिल हेती है कदमों में।
कांटों में ही खिलते है गुलाब
सफलता, कठिनाईयों के बीच
कही रास्ता बनाती है।
इसी से मिलता है
जीवन में सुख
इसी से आती है
जीवन में समृद्धि
और इसी में छुपी है
जीवन की संतुष्टि।
54. संघर्ष पथ
आस्था जीवन का आधार है
पर वह जीवन नहीं है।
श्रद्धा और भक्ति
दिखलाती है रास्ता
पर वह मंजिल नहीं है।
हमें संघर्षरत रहना है,
अनवरत बहती हुई हवा
और बहते हुए पानी सा।
सत्य जीवन को देता है ऊर्जा
और बनाता है मानव को मानव।
काल अपनी गति से चलता है
उससे क्या घबराना
वह चलता है अपनी राह पर
हमें है अपनी राह पर जाना।
हम पथिक है
कठिनाईयों और परेशानियों के बीच
हमें खोजना है सफलता का रास्ता
बढना है आत्मविश्वास के साथ
संयम के साथ, अविचलित।
यह प्रयास ही जीवन है।
स्ांघर्ष की गाथा है।
सफलता की कुंजी है
इसी से बनेगा समाज में स्थान,
इसी से मिलेगा सम्मान,
यही है जीवन का प्रारंभ
यही है जीवन का अवसान
यही है परमात्मा की कृपा
यही है जीवन का ज्ञान।
55. जीवन संघर्ष
प्रतिभा, प्रतीक्षा, अपेक्षा और उपेक्षामें
छुपा है जीवन का रहस्य।
सीमित है हमारी प्रतिभा,
पर अपेक्षाएँ है असीमित।
यदि हम अपनी प्रतिभा के जानें
फिर वैसी ही करें अपेक्षा
तो बचे रहेंगे उपेक्षा से।
प्रतिभावान व्यक्ति
सफलता की करता है प्रतीक्षा
वह पलायन नहीं करता
वह करता है संघर्ष
एक दिन वह हेता है विजयी
उसे मिलता है सम्मान
दुनिया चलती है उसके पीछे
और लेती है उससे
सफलता और विकास का ज्ञान।
यही है जीवन का चरमोत्कर्ष।
कल कोई और प्रतिभावान
करेगा संघर्ष
और पहुँचेगा उससे भी आगे।
यही है प्रगति की वास्तविकता
कल भी थी
आज भी है
और कल भी रहेगी।
56. सफलता का आधार
जब मन में हो दुविधा
और डिग रहा हो आत्म विश्वास
तब तुम करो आत्म चिंतन
और करो स्वयं पर विश्वास
यह है ईश्वर का अद्भुत वरदान
इससे तुम्हें मिलेगा
कठिनाईयों से निकलने की राह का आभास
ये जीवन के अंत तक
देंगे तुम्हारा साथ
कठिनाइयों और परेशानियों को दूर कर
हर समय ले जाएंगे
सफलता की ओर
इनसे मिलेगी तुम्हें कर्म की प्रेरणा
और तुम बनोगे कर्मयोगी
लेकिन धर्म को मत भूलना
धर्मयोग है ब्रह्मस्त्र
वह हमेशा तुम्हारी मदद करेगा
और विपत्तियों को
जीवन में आने से रोकेगा
सफलता सदैव मिलती है
साहस, लगन और परिश्रम से
इससे मिलती है मस्तिष्क को संतुष्टि
और हृदय को मिलती है तृप्ति
यही है जीवन में सफलता का आधार
कल था, आज है और कल भी रहेगा।
57. मूल मंत्र
सूरज आता है
प्रतिदिन सबको जगाता है
हर ओर बिखर जाती है उसकी किरणें
उसका प्रकाश नहीं करता है
जाति, धर्म, वर्ग, संप्रदाय या
अमीर गरीब का भेद।
वह उपलब्ध होता है
सभी को समानता से।
वह है एकता और सदभाव का प्रतीक।
उसके बिना संभव नहीं है
इस सृष्टि में जीवन का अस्तित्व।
उदय और अस्त होकर वह
देता है ज्ञान
समय की पाबंदी का।
देता है संदेश
सतत् कर्मरत रहने का।
अस्त होकर भी प्रकाशित करता है
चंद्रमा को।
समझाता है मानव को
जीवन की निरन्तरता और
कर्मठता का रहस्य।
जीवन की सफलता और
सार्थकता का मूल मंत्र।
58. अपना धर्म
हिंदू हिंदुत्व को पहचाने,
मुस्लिम कुरान को जाने।
ईसाई बाइबिल को समझे
और सिख गाये गुरूग्रंथ के तराने।
सभी में है मानवीयता को संदेश,
सभी में है आदमी से आदमी का प्यार।
सभी में है भाईचारे का संदेश
सभी में है देश की माटी से दुलार
सभी में है शांति का संदेश
और सभी में है जीवन का श्रृंगार।
सभी मानें अपना धर्म,
और करें उसकी पूजा।
लेकिन यह भी समझे,
वैसा ही है दूजा।
तब होगा हमारा देश
संगठित, शक्तिशाली और महान।
तब पूरा विश्व करेगा
भारत माँ का सम्मान।
59. समय के हस्ताक्षर
समय खोज रहा है
अपने हस्ताक्षर
थका हुआ
बोझिल आंखों से
निहार रहा है
परिवर्तन को।
ईमानदारी के दो शब्द पाने को
अपनी ही ईमान बेच रहा है
इसकी व्यथा पर
कोई दो आंसू भी नहीं बहा रहा
समय की पहचान
समय पर नहीं कर रहा इंसान
समय बढ़ता जा रहा है
मानव अपनी ही भूल पर पछता रहा है।
60. अनुभव
अनुभव अनमोल हैं
इनमें छुपे हैं
सफलता के गोपनीय सूत्र
इनमें है अगली पीढ़ियों के लिये
नया जीवन और मार्गदर्शन।
बुजुर्गों के अनुभव और
नयी पीढ़ी का
श्रम व सृजन में
निहित है देश व समाज का विकास
इससे निर्मित इमारत
होगी इतनी मजबूत कि
उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे
आँधी या भूकम्प
ठण्ड गर्मी बरसात और धूप।
अनुभवों को अतीत समझकर
तिरस्कृत मत करो
ये अमूल्य हैं
इन्हें करो स्वीकार और अंगीकार
इनसे मिलेगी
राष्ट्र को नयी दिशा
व समाज को सुखमय जीवन।
61. अनुभूति
व्यर्थ मत समझना अनुभूति को
अनुभूतियाँ होतीं हैं
वर्तमान का दर्पण
और भविष्य का आधार।
चिन्तन से मिलता है
राह एवं दिशा का ज्ञान
समय आने पर
ये ही देता है जीवन दान।
जीवन की अनुभूति
देती है नई स्फूर्ति
मृत्यु की अनुभूति
करती है सचेत।
अनुभूति उपकार है
चमत्कार है ईश्वर का
इसका होना
भाग्यवानों को होता है नसीब।
62. ओ मेरे सूर्य
बचपन बीता शिक्षा, संस्कार
और संस्कृति की पहचान में।
यौवन बीता
सृजन और समाज के उत्थान में।
अब वृद्धावस्था में
अपने अनुभव समाज को बाँटो।
युवाओं को दिखलाओ
अपने अनुभवों से रास्ता।
संचालित करो
सेवा और परोपकार की गतिविधियाँ
आने वाली पीढियों के लिये
बन जाआ प्रेरणा।
तुम हो सूर्य के समान ऊर्जावान
अपनी ऊर्जा से
समाज में प्रकाश भर दो।
बचपन की शिक्षा
यौवन का सृजन
और वृद्धावस्था के अनुभव
जब इनका होगा संगम,
तब यह त्रिवेणी
करेगी राष्ट्र की प्रगति
सच हो जाएगा
भारत महान का सपना
युवाओं को सौंपकर देश की कमान
इसे बनाओ विश्व में महान।
63. संस्कार
हमारा धर्म निर्धारित करता है
हमारे कर्म की दिशा।
हमारे कर्म जन्म देते है
हमारे संस्कारों को।
हमारे संस्कार
निर्मित करते हैं हमारी संस्कृति
और विकसित करते है सभ्यता।
हमारी विकसित और सतत्
विकासशील संस्कृति और सभ्यता
हमारी धरती को बनाती है
संपन्न तथा शक्तिशाली और
सृदृढ करती है उसका आधार।
इससे विपरीत स्थिति में
बढती है विध्वंसक गतिविधियाँ।
गरीबी, मंहगाई, बेरोजगारी और
अनैतिक कार्यकलापों का
आदर्शों से होता है टकराव।
आज विश्व में यह तो हो रहा है।
सारी दुनिया सिमट गई है
अपने अपने देशों की सीमाओं में।
संघर्ष चल रहा है
उदारावादी और कट्टरपंथी विचारधाराओं में।
जितना हो रहा है सृजन
उससे अधिक हो रहा है विध्वंस।
यदि विश्व में बहने लगे
शांति, सद्भाव और सुसंस्कृति की बयार
तो सारी दुनिया बन जाए एक उद्यान।
कलयुग में भी आ जाए सतयुग
और स्वर्ग भी उतर आए धरती पर।
आओ हम सब मिलकर करें प्रयास
मिलकर कदम बढाएं और
उतारें वसुधा का कर्ज।
तब निश्चित ही
अपनी धरती बन जाएगी स्वर्ग।
64. प्रगति की सीढी
अपवादों को छोड दे तो
आज आदमी इसलिये दुखी है
क्योंकि उसका पडोसी सुखी है
किसी के दुख पर सहानुभूति रखना
और उसे प्रगट करना बहुत आसान है
पर बहुत कठिन है
किसी को सुखी देखना।
दुख का कारण सुख का न होना है
सुख का कारण दुख का ना होना है
हम इसलिये दुखी है क्योंकि
हमारी अपेक्षाए हैं अधिक
और योग्यता है कम।
हम नहीं रख पाते है अपनी
योग्यता और अपेक्षाओं में सामंजस्य
हम नहीं कर पाते है
सही समय की प्रतीक्षा
अपेक्षाओं की संतुष्टि की
जल्दबाजी में
ले लेते है गलत निर्णय
और उठा लेते है गलत कदम।
सुख का मूल मंत्र है
सीमित अपेक्षाए,
स्वयं की योग्यता की पहचान,
उपेक्षा को सहने की शक्ति
और उचित समय की प्रतीक्षा।
यदि हममें यह आ जाए
तो हम निश्चित सफलता पायेंगें।
प्रगति की सीढियां चढते जायेंगे।
अपने लिये, अपने परिवार के लिये,
अपने समाज के लिये,
और अपने राष्ट्र के लिये
एक सार्थक इकाई बन जायेंगें।
65. सतयुग का आभास
भाग्यरूपी रथ पर
समय रूपी चक्र हो
धैर्य व सत्कर्म हों सारथी,
थ्चंतन और मनन हो दिशा दर्शक
रथ पर सवार हो आत्मा
ऊर्जा दे रहा हो सूर्य का प्रकाश
इन सब का समन्वय ही है
मानव जीवन।
प्रतिकूल परिस्थितियों में
यही समन्वय
बनता है जीवन में
विजय का आधार।
सृजन होगा विजयी
विध्वंस होगा पराजित।
परिवर्तनशील समाज में
उदय होगा
एक नयी सोच का।
आर्थिक उपलब्धियाँ
सफलता की चांदनी
और वसुधा का सौन्दर्य
तन और मन को करेगा
भाव विभोर, तृप्त और संतुष्ट
कलयुग में भी होगा
सतयुग का आनंद।
66. यात्रा
जलाते चलो
आशाओं के दीप।
हटाते चलो
हृदय से निराशा का अंधेरा।
संवारते चलो
धरती को सृजन से।
मिटाते चलो
विध्वंस की कल्पना
गर्व करो
अपनी सफलता, सृमद्धि तथा वैभव पर।
दूर रहो अभिमान से
विश्वास रखो उस परमात्मा पर
वही करेगा तुम्हारा पोषण
वही दिखलाएगा रास्ता
वही है तुम्हारी जिंदगी का मालिक
और वही है तुम्हारा हमसफर।
वही हटाएगा राह के कांटे
वही बिछाएगा राहों में फूल
ऐसे ही चलेगी जीवन की यात्रा
और फिर एक दिन
इस यात्रा के बाद
जाना होगा एक दूसरी यात्रा पर
अनंत की यात्रा
उसके लिए भी रहो तैयार।
उसे भी ऐसे ही करना स्वीकार।
67. प्रकृति और हम
मेघों से आच्छादित आकाश,
हरियाली से लहलहाती वसुधा,
फल फूल, पत्तों से लदे वृक्ष
पक्षियों के कलरव से चहकता वातावरण
सृष्टिकर्ता का अद्भुत सृजनात्मक वरदान
मानवीय त्रुटि से हो गया असंतुलित।
स्वयं के स्वार्थ में प्रकृति का अति दोहन,
प्रकृति से खिलवाड
कही पर खनन, कही पर निर्माण।
अनायास ही हो गया, विकास के साथ साथ
विध्वंस का प्रारंभ, सौन्दर्य का विनाश।
हम भूल रहे हैं -
प्रकृति के अस्तित्व पर ही
अवलम्बित है हमारा अस्त्तित्व
हमें करना होगा जन चेतना का जागरण
बनाना होगा
प्रकृति और विकास के बीच संतुलन
तभी हरा भरा होगा हमारा संसार।
सहज, सुखी और प्रफुल्लित होगा
धडकता हुआ प्रत्येक हृदय,
संसे लेता हुआ हर जीवन।
68. युवा
युवा तुम हो शक्ति, क्षमता
और शौर्य से भरपूर
व्यर्थ मत हेने दो अपनी ऊर्जा।
तुम्हें संवारना है अपना
समाज का, देश का, मानव मात्र का
और इस संपूर्ण सृष्टि का भविष्य मत बनो।
किसी के हाथों की कठपुतली,
जागृत रखो अपना विवेक अर्थात
उचित और अनुचित के मूल्यांकन की क्षमता।
निर्धारित करो अपने जीवन का लक्ष्य
और फिर संलग्न हो जाओ
लक्ष्य के संधान में।
तुम्हें करना है नये निर्माण
और देना है समाज को नयी दिशा।
तुम्हारी राह में रोडा बनकर खडे है
भांति भांति के स्वयं भू मठाधीश।
वे तुम्हें दिखलायेंगे
तरह तरह के सब्ज बाग
और फिर तुम्हारे कंधे पर चढकर
बढ जाएंगे आगे
तुम्हें छोडकर अकेला।
तुम्हें रहना है इनसे सर्तक
और बढना है अपने लक्ष्य की ओर,
अपने सृजन और संकल्पों के साथ।
जीवन पथ पर बढो आगे
और अपने कर्मयोगी स्वरूप से
स्वयं और समाज को बनाओ
सुखी, समृद्ध और सार्थक।
69. मैं कौन हूँ
मैं कौन हूँ
आज क्यों मौन हूँ
खोज रहा हूँ
अपने को अपने में।
देख रहा हूँ समुद्र की लहरों में
दूर वहाँ क्षितिज में हो रहा है सूर्यास्त।
चौराहे पर खडा हुआ मैं
अपने भीतर उमडना महसूस कर रहा हूँ
भावनायें और कामनाओं का।
मैं भरपूर हूँ आत्मविश्वास से।
मन में चल रहा है
विचारों का आगमन और निर्गमन।
इन्ही विचारों, कल्पनाओं और हकीकत से
जन्म लेती है कविता
कविता की प्रशंसा करती है भाव विभोर।
उसकी आलोचना देती है नयी शक्ति
और फिर जागता है प्रश्न
मैं कौन हूँ ?
स्वयं की खोज में जन्म ले रही है
फिर एक नयी कविता।
फिर वही प्रशंसा
फिर वही आलोचना
जीवन का यही क्रम है
कल था, आज है और कल भी रहेगा।
सूर्योदय के साथ होगा प्रारंभ
और सूर्यास्त में थम जाएगा।
70. वसुधैव सः कौटुम्बकम्
ईमानदारी की राह
सच्चाई का संकल्प
धर्मपूर्वक कर्म की प्रवृत्ति
जीवन में लगन और श्रम
तथा सद्कार्यों का समर्पण
कठिन हो सकता है
पर असंभव नही।
हम जागरूक करें अपनी चेतना
होने दे विचारों का
आगमन और निर्गमन।
ये विचार सकारात्मक भी होंगे
और नकारात्मक भी।
नकारात्मक विचारों को
मनन, चिंतन तथा सतत् प्रयास से
बदलें सकारात्मक विचारों में
स्मरण रखें असफलता ही बनती है
जीवन में सफलता का आधार
यह परिवर्तन देगा हमको नई दिशा
करेगा नये संस्कारों का उदय
जिससे होगा हमारा भाग्योदय।
हम धरती के पुत्र है
हम पर वसुधा का कर्ज है
हमें यह कर्ज चुकाना है
अपना फर्ज निभाना है
यह कठिन है पर असंभव नही।
हम उभारें अपनी प्रतिभा
जन्म दे एक नयी मानसिक क्रांति को
हर नागरिक हो स्वावलंबी एवं जागरूक।
धरती पर उदित हो
विकास की क्रांति का नया सूर्य।
जग में गूँज उठे
मानवीयता का गान।
वसुधैव सः कौटुम्बकम् की भावना का
फिर से हो सम्मान।
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