========= ग़ज़ल (बना है बोझ ये जीवन कदम) 1212 1122 1212 1122 बना है बोझ ये जीवन कदम थमे थमे से हैं, कमर दी तोड़ गरीबी बदन झुके झुके से ...
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ग़ज़ल (बना है बोझ ये जीवन कदम)
1212 1122 1212 1122
बना है बोझ ये जीवन कदम थमे थमे से हैं,
कमर दी तोड़ गरीबी बदन झुके झुके से हैं।
लिखा न एक निवाला नसीब हाय ये कैसा,
सहन ये भूख न होती उदर दबे दबे से हैं।
पड़े दिखाई नहीं अब कहीं भी आस की किरणें,
गगन में आँख गड़ाए नयन थके थके से हैं।
मिली सदा हमें नफरत करे जलील जमाना,
हथेली कान पे रखते वचन चुभे चुभे से हैं।
दिखी कभी न बहारें मिले सदा हमें पतझड़,
मगर हमारे मसीहा कमल खिले खिले से हैं।
सताए भूख तो निकले कराह दिल से हमारे,
नया न कुछ जो सुनें हम कथन सुने सुने से हैं।
सदा ही देखते आए ये सब्ज बाग घनेरे,
'नमन' तुझे है सियासत सपन बुझे बुझे से हैं।
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ग़ज़ल (जीवन पथिक संसार में)
बह्र-- 2212 2212 2212 2212
जीवन पथिक संसार में चलते चलो तुम सर्वदा,
राहों में आए कष्ट जो सहके चलो तुम सर्वदा।
अनजान सी राहें तेरी मंजिल कहीं दिखती नहीं,
काँटों भरी इस राह में हँसके चलो तुम सर्वदा।
बीते हुए से सीख लो आयेगा उस को थाम लो,
मुड़ के कभी देखो नहीं बढ़ते चलो तुम सर्वदा।
बहता निरंतर जो रहे गंगा सा निर्मल वो रहे,
जीवन में ठहरो मत कभी बहते चलो तुम सर्वदा।
मासूम कितने रो रहे अबला यहाँ नित लुट रही,
दुखियों के मन मन्दिर में रह बसते चलो तुम सर्वदा।
इस जिंदगी के रास्ते आसाँ कभी होते नहीं,
तूफान में भी दीप से जलते चलो तुम सर्वदा।
जो देश हित में प्राण दे सर्वस्व न्योछावर करे,
ऐसे इरादों को 'नमन' करते चलो तुम सर्वदा।
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ग़ज़ल (हिन्दी हमारी जान है)
बहर 2212 2212 की रचना।
हिन्दी हमारी जान है,
ये देश की पहचान है।
है मात जिसकी संस्कृत,
माँ शारदा का दान है।
साखी कबीरा की यही,
केशव की न्यारी शान है।
तुलसी की रग रग में बसी,
रसखान की ये तान है।
ये सूर के वात्सल्य में,
मीरा का इसमें गान है।
सब छंद, रस, उपमा की ये
हिन्दी हमारी खान है।
उपयोग में लायें इसे,
अमृत का ये तो पान है।
ये मातृभाषा विश्व में,
सच्चा हमारा मान है।
इसको करें हम नित 'नमन',
भारत की हिन्दी आन है।
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ग़ज़ल (सबसे रहे ये ऊँची मन में)
22 122 22 // 22 122 22
भाषा बड़ी है प्यारी, जग में अनोखी हिन्दी,
चन्दा के जैसे सोहे, नभ में निराली हिन्दी।
पहचान हमको देती, सबसे अलग ये जग में,
मीठी जगत में सबसे, रस की पिटारी हिन्दी।
हर श्वास में ये बसती, हर आह से ये निकले,
बन के लहू ये बहती, रग में ये प्यारी हिन्दी।
इस देश में है भाषा, मजहब अनेकों प्रचलित,
धुन एकता की डाले, सब में सुहानी हिन्दी।
शोभा हमारी इससे, करते 'नमन' हम इसको,
सबसे रहे ये ऊँची, मन में हमारी हिन्दी।
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ग़ज़ल (जीने की इस जहाँ में दुआएँ मुझे न दो)
221 2121 1221 212
जीने की इस जहाँ में दुआएँ मुझे न दो,
और बिन बुलाई सारी बलाएँ मुझे न दो।
मर्ज़ी तुम्हारी दो या वफ़ाएँ मुझे न दो,
पर बद-गुमानी कर ये सज़ाएँ मुझे न दो।
सुलगा हुआ हूँ पहले से भड़काओ और क्यों,
नफ़रत की कम से कम तो हवाएँ मुझे न दो।
वाइज़ रहो भी चुप ज़रा, बीमार-ए-इश्क़ हूँ,
कड़वी नसीहतों की दवाएँ मुझे न दो।
तुम ही बता दो झेलने हैं और कितने ग़म,
ये रोज़ रोज़ इतनी जफ़ाएँ मुझे न दो।
तुम दूर मुझ से जाओ भले ही ख़ुशी ख़ुशी,
पर दुख भरी ये काली निशाएँ मुझे न दो।
सुन ओ 'नमन' तुम्हारा सनम क्या है कह रहा,
वापस न आ सकूँ वो सदाएँ मुझे न दो।
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ग़ज़ल (तूफाँ में जल सको तो मेरे साथ तुम चलो)
221 2121 1221 212
तूफाँ में जल सको तो मेरे साथ तुम चलो।
दुनिया उथल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।।
सत्ता के नाग फन को उठाए रहे हैं फिर।
इनको कुचल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
बदहाली, भूख में भी सियासत का दौर है।
ढर्रा बदल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
भोजन को बीन कचरे से मासूम तक पलें।
इनमें भी पल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
नेतागिरी यहाँ चले भांडों से स्वांग में।
इससे निकल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
झूठे खिताब-ओ-नाम को पाने में सब लगे।
इन सब से टल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
सेवा करें वो देश की गल गल के बर्फ में।
गर उन सा गल सको तो मेरे साथ तुम चलो।
लफ़्फ़ाजी का ही मंचों पे अब तो बड़ा चलन।
जो इस में रल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
इक क्रांति की लपट की प्रतीक्षा में जग 'नमन'।
दे वो अनल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
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ग़ज़ल (जग में जो भी आने वाला)
22 22 22 22
जग में जो भी आने वाला,
वह सब इक दिन जाने वाला।
कोउ न दुख में साथ निभाये,
हर कोई समझाने वाला।
साथ चला रहबर बन जो भी,
निकला खार बिछाने वाला।
लाखों घी डालें जलती में,
बिरला आग बुझाने वाला।
राख 'नमन' खुद पे तु भरौसा,
कोउ न हाथ बँटाने वाला।
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ग़ज़ल (यादों के जो अनमोल क्षण)
बहर :- 2212 2212 2212 2212
यादों के जो अनमोल क्षण मन में बसा हरदम रखें,
राहत मिले जिस याद से उर से लगा हरदम रखें।
जब प्रीत की हम डोर में इक साथ जीवन में बँधे,
उन सुनहरे ख्वाबों को हम दिल में जगा हरदम रखें।
छाती हमारी शान से चौड़ी हुई थी जब कभी
उस वक्त की रंगीन यादों को बचा हरदम रखें।
जब कुछ अलग हमने किया सबने बिठाया आँख पे,
उन वाहवाही के पलों को हम सजा हरदम रखें।
जो आग दुश्मन ने लगाई देश में आतंक की,
उस आग के शोलों को हम दिल में दबा हरदम रखें।
जो भूख से बिलखें सदा है पास जिनके कुछ नहीं,
उनके लिये कुछ कर सकें ऐसी दया हरदम रखें।
जब भी 'नमन' दिल हो उठे बेजार गम में डूब के,
बीते पलों की याद का दिल में मजा हरदम रखें।
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ग़ज़ल (इंसान के खूँ की नहीं)
2212 2212 2212 2212
इंसान के खूँ की नहीं प्यासी कभी इंसानियत,
फिर भूल तुम जाते हो क्यों अक्सर यही इंसानियत।
पर भूल जाते लोग कुछ
जो जिंदगी तुम दे नहीं सकते उसे लेते हो क्यों,
पर खून बहता ही रहा रोती रही इंसानियत।
जब गोलियाँ बरसा जमीं को लाल खूँ से तुम करो,
संसार में आतंक को ना मानती इंसानियत।
हे जालिमों जब जुल्म तुम अबलों पे हरदम ही करो,
मजलूम की आहों में दम को तोड़ती इंसानियत।
थक जाओगे तुम जुल्म कर जिंदा रहेगी ये सदा,
करता 'नमन' इसको सदा सबसे सही इंसानियत।
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ग़ज़ल (ढूँढूँ भला खुदा की मैं रहमत)
बहर:- 221 2121 1221 212
ढूँढूँ भला खुदा की मैं रहमत कहाँ कहाँ,
अब क्या बताऊँ उसकी इनायत कहाँ कहाँ।
सहरा, नदी, पहाड़, समंदर ये दश्त सब,
दिखलाए सब खुदा की ये वुसअत कहाँ कहाँ।
हर सिम्त हर तरह के दिखे उसके मोजिज़े,
जैसे खुदा ने लिख दी इबारत कहाँ कहाँ।
सावन में सब्जियत से है सैराब ये फ़िज़ा,
बहलाऊँ मैं इलाही तबीअत कहाँ कहाँ।
कोई न जान पाया खुदा की खुदाई को,
ये गम कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ।
अंदर जरा तो झाँकते अपने को भूल कर,
बाहर खुदा की ढूँढते सूरत कहाँ कहाँ।
रुतबा-ओ-जिंदगी-ओ-नियामत खुदा से तय,
इंसान फिर भी करता मशक्कत कहाँ कहाँ।
इंसानियत अता तो की इंसान को खुदा,
फैला रहा वो देख तु दहशत कहाँ कहाँ।
कहता 'नमन' कि एक खुदा है जहान में,
जैसे भी फिर हो उसकी इबादत कहाँ कहाँ।
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परिचय -बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
शिक्षा - B. Com.
जन्म दिन - 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान - तिनसुकिया (असम)
रुचि - काव्य की हर विधा में सृजन करना। मुक्त छंद, पारम्परिक छंद, हाइकु, मुक्तक, गीत, ग़ज़ल, इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वार्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न हूँ।
परिचय - वर्तमान में मैँ असम प्रदेश के तिनसुकिया नगर में हूँ। मैं साहित्य संगम संस्थान, पूर्वोत्तर शाखा का सक्रिय सदस्य हूँ तथा उपाध्यक्ष हूँ। हमारी नियमित रूप से मासिक कवि गोष्ठी होती है जिनमें मैं नियमित रूप से भाग लेता हूँ। साहित्य संगम के माध्यम से मैं देश के प्रतिष्ठित साहित्यिकारों से जुड़ा हुवा हूँ। whatsapp के कई ग्रुप से जुड़ा हुवा हूँ जिससे साहित्यिक कृतियों एवम् विचारों का आदान प्रदान गणमान्य साहित्यकारों से होता रहता है।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्रों में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती है। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
Web Site - nayekavi.com
Blog - https: nayekavi.blogspot.com
बहुत सुन्दर ग़ज़लें बासुदेव नमन जी की। हार्दिक बधाई नमन जी।
जवाब देंहटाएंसुरेश भारद्वाज निराश धर्मशाला हिप्र