कहानी - सबसे बड़ी खुशी - विजय शंकर विकुज

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सन्नाटा था कि खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था। हां, उसकी बोझिलता घर में सभी महसूस कर रहे थे। सन्नाटे ने दिल और दिमाग को जैसे एक साथ जकड़ लिय...

सन्नाटा था कि खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था। हां, उसकी बोझिलता घर में सभी महसूस कर रहे थे। सन्नाटे ने दिल और दिमाग को जैसे एक साथ जकड़ लिया था जिससे मन के मवाद का फूटकर बह निकलने की बेचैनी और बढ़ती जा रही थी। इस बेचैनी को जहां ममता अपने अंदर महसूस कर रही थी, वहीं नरेन्द्र भी अपने अंदर की छटपटाहट से कुलबुला रहा था।

खामोशी तो कोई धारण करने वाली चीज नहीं है मगर स्थितियां ही कुछ ऐसी बन गई थीं जिसने एक साथ सबको अपनी जकड़ में ले लिया था। नरेन्द्र उबाल मारने वाली खामोशी को ओढ़े चुप्पी साधे हुए था। ममता स्वयं भी पहल नहीं करती तो वह क्या करे ? बच्चों से भी बातचीत कम हो गई है। बच्चे भी अपने माता-पिता की संवादहीनता का कारण समझ नहीं पा रहे थे इसलिए उनके दौरान भी खामोशी घुलती हुई गहरी होती जा रही थी। ममता और नरेन्द्र के बीच बातचीत बंद होना पूरे घर के वातावरण पर भारी पड़ रहा था।

अकेले होने पर जब ममता नरेन्द्र के व्यवहार के बारे में सोचने लगती तो उसकी आंखों में मोतियों की बूंदें झिलमिला उठतीं। अंदर एक हूक-सी उठती तो उसे लगता कि कहीं सैलाब न फूट पड़े। और वह तुरंत साड़ी के पल्लू से उन मोतियों को पोंछकर अपने काम में लग जाती। दूसरी ओर नरेन्द्र स्वयं को कभी पत्र-पत्रिकाओं में बांटने लगता तो कभी सिगरेट पर सिगरेट पीते हुए कड़वे धुंए के साथ मौन दर्द को उगलने लगता। मगर चुप्पी थी कि अपनी जगह जमी हुई थी।

उन दोनों के बीच यह फासले की स्थिति चार-पांच दिन पहले पैदा हुई थी जब ममता ने नरेन्द्र से कहा था कि इस बार वह एबार्शन करवा लेगी। तीन बच्चे हैं, अब और नहीं चाहिये। इन्हीं तीनों में घर संभालना कठिन हो जाता है। चौथा आयेगा तो समस्याएं और बढ़ जायेंगी। इन तीनों का ही भविष्य ठीक तरह से संवारा जाये तो वह बहुत होगा। इसलिए वह अब इस अनचाहे चौथे गर्भ से छुटकारा पाना चाहती है, तथा आगे कोई बच्चा ने हो, उसका ऑपरेशन भी करवा लेगी।

उसके सुझाव पर नरेन्द्र कुढ़ गया था, ' तीसरे के समय ही ऑपरेशन करवा लिया जाता तो अच्छा रहता। अब चौथा ईश्वर ने हमारे सिर मढ़ दिया है तो उसे नष्ट करना उसकी हत्या करना होगा। मैं यह होने नहीं दूंगा। '

नरेन्द्र की बातों से ममता चिढ़ गई थी, ' तुम्हारे दकियानूसी ख्याल को मैं नहीं मानने वाली। आखिर बच्चा गिराना हत्या जैसी बात कैसे हुई ? '

ममता की बात से नरेन्द्र के अहं को चोट लगी। वह भीतर ही भीतर तिलमिला उठा और फिर उन दोनों के दरम्यान समस्या को सुलझाने की बातचीत बहस में तब्दील हो गई। ममता जहां भविष्य की सोचते हुए बच्चा गिराने के पक्ष में थी वहीं नरेन्द्र उसके सुझाव को किसी तरह मानने को तैयार नहीं था। बात के बतंगड़ ने पूरे घर के माहौल को बेहद बोझिल बना दिया था।

उस दिन से उन दोनों के बीच नाराजगी और चुप्पी ने अपनी जगह बना ली थी। दोनों एक दूसरे से किसी भी बात के लिए कतराना चाहते थे मगर समस्या अपनी जगह थी जो उनकी आंखों से झांकती रहती तो चेहरे पर अपना प्रभाव अलग छोड़ती। जब तक समस्या से समाधान न हो, तब तक आदमी में एक व्यग्रता हमेशा ही सक्रिय रहती है। यही उन दोनों के साथ हो रहा था। उनकी बातचीत बंद होने की स्थिति ने तीनों बच्चों को भी गंभीर बना दिया था। उनकी चंचलता पर जैसे ग्रहण-सा लग गया था। नरेन्द्र और ममता बच्चों की मानसिक स्थिति को समझ रहे थे लेकिन अपने आप से मजबूर थे।

नरेन्द्र बच्चों को अपने पास बुलाकर उनसे बातचीत करता, उन्हें हंसाने की कोशिश करता, उनके साथ खेलना चाहता पर मां-बाप के बीच संवादहीनता की स्थिति के कारण बच्चे पहले जैसा सहज नहीं हो पा रहे थे। यही स्थिति ममता के साथ थी। मां होने के बावजूद घर में उत्पन्न स्थिति के कारण वह भी बच्चों में सहज नहीं हो पा रही थी।

मां-बाप का मनमुटाव बच्चों पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है। आखिर घर की किसी भी स्थिति का असर उन पर भी तो होता है। बड़े लड़के राहुल की उम्र आठ साल हो गयी थी और वह रिश्तों की संवेदनशीलता को अच्छी तरह समझने लगा था। कई दिन ऐसे हालात को झेलते हुए उससे नहीं रहा गया तो पांचवे दिन जब ममता रसोईघर में थी, राहुल ने आकर पूछ लिया, ' मम्मी, आप और पापा आपस में बात क्यों नहीं करते ? '

सब्जी तलती हुई ममता की नाराजगी राहुल के सामने झिड़क के रूप में प्रकट हुई, ' जाओ, अपने पापा से पूछो। मेरी भी कोई अहमियत है इस घर में !'

मां के जवाब ने बेटे को ओठों पर ताला जड़ दिया। वह उदास नजरों से अपनी मां को निहारने लगा। दूसरे कमरे में कुछ कर रहे नरेन्द्र ने ममता की आवाज सुन ली थी, वह झट वहां आ गया और ममता को धीरे से बोला, ' बच्चों पर अपना गुस्सा मत उतारा करो। जो कहना है मुझे कहो। देखो, हमदोनों के व्यवहार का असर बच्चों पर नहीं पड़ना चाहिये। यह अच्छा नहीं है। '

ममता की ममता पिघल उठी। उसने राहुल को अपने से चिपका लिया और उसके बालों में प्यार से उंगलियां फेरते हुए बोली, ' कुछ नहीं हुआ है। बस मेरी तबीयत कुछ दिनों से खराब है और तुम्हारे पापा की भी। हमने डॉक्टर को दिखाया है, जल्द ठीक हो जायेंगे। '

' सच्च !' राहुल ने उन दोनों को निहारा।

' अरे हां बाबा, हां। अब तुम जाकर पढ़ने बैठो। ' नरेन्द्र ने धीरे से मुस्कुराकर राहुल का कंधा थपथपाया। राहुल के चेहरे पर एक अंजानी खुशी झलक उठी। वह दौड़कर दूसरे कमरे में मोनाल और पुतुल के पास पहुंचा। मोनाल उससे दो साल छोटा था और पुतुल साढ़े तीन साल छोटी थी। उसके वहां पहुंचते ही दोनों ने उसके चेहरे पर अपनी सवालियां नजरें गड़ा दीं। उनकी आंखों में आकुलता भी थी मगर राहुल के चेहरे पर खुशी देखते ही वे दोनों भी मुस्कुरा उठे। मोनाल तुरंत उत्सुक हो उठा, ' क्या हुआ ? '

' कुछ नहीं, बस पापा-मम्मी की तबीयत कुछ खराब थी। अब वे लोग ठीक हैं। ' राहुल ने कहा और और अपनी किताब लेकर एक ओर बैठते हुए बोला, ' पापा-मम्मी में बातचीत होने लगी है।'

पुतुल ताली बजाने लगी, ' आज मैं मम्मी को कहूंगी कि शाम को पकौड़ी बनाये। '

' अच्छा, अब पढ़ाई करो। ' राहुल ने उन दोनों को देखकर कहा और खुद अपनी किताब उठाकर पढ़ने लगा। मोनाल और पुतुल ने भी अपनी किताबें अपने हाथों में उठा ली थीं।

राहुल के जाने के बाद रसोईघर में नरेन्द्र और ममता कुछ देर तक एक दूसरे की आंखों में कुछ टटोलने की कोशिश करते हुए चुपचाप खड़े रहे। क्या कहें-क्या नहीं का कश्मकश दोनों के चेहरों पर स्पष्ट झलक रहा था। अचानक दोनों ने अपनी-अपनी नजरें झुका लीं। ममता ने सब्जी की कड़ाही उतार गैस को बंद कर दिया। नरेन्द्र हल्के कदमों से चलकर उसके करीब आया और धीरे से बोला, ' मैं एक-दो दिनों में डॉक्टर से बात कर लूंगा। इसके बाद तुम्हारा एबार्शन करवा दूंगा।'

' तुम्हें दुख तो नहीं होगा ?' ममता की आंखें झिलमिला उठीं।

' नहीं, दरअसल भूल हमलोगों से ही हुई है। जब पुतुल हुई थी तो उसी समय मुझे तुम्हारा एबार्शन करवा देना चाहिये था लेकिन उस समय तुम काफी कमजोर हो गई थी। इसीलिए मैंने इस बात को इतना महत्व नहीं दिया था। अब तीन साल बाद तुम्हारी कोख फिर हरी हो गई तो मैं बच्चे का मोह मार नहीं सका। आखिर मैं भी तो एक पिता हूं लेकिन कभी-कभी परिस्थितियों को भी स्वीकार करना पड़ता है। और तुमने ठीक ही कहा था कि मैं दकियानूसी ख्याल का हो गया हूं। खैर, मैं आज-कल में तुम्हें अस्पताल में भर्ती करवा दूंगा। '

' यह हम सभी के लिए ही अच्छा रहेगा। अब देखो न, हमारे सामने वाले क्वार्टर में तुम्हारे ही विभाग में काम करने वाले सिन्हाजी की पत्नी ने एक ही संतान होने पर अपना ऑपरेशन करवा लिया था। आज उनकी वही लड़की कितने सुख में पल रही है और वे लोग उसे डॉक्टरी पढ़ाने की सोच रहे हैं।' ममता बर्तनों को ठीक करते हुए बोली।

' मैं समझ रहा हूं। दरअसल हमलोगों ने ही लापरवाही बरती है। अब सुधार भी हमें ही करना है। हमारे तीन ही बच्चे बहुत हैं ..... '

' अच्छा, मैं एक बात कहना चाहती हूं ' अचानक ममता नरेन्द्र की बात को काटकर उसे गौर से निहारने लगी।

' क्या ? ' नरेन्द्र उसकी ओर सवालिया नजरों से देखने लगा।

' कल तुम्हारे ऑफिस जाने के बाद मिसेज दास आई थीं। अरे वही, आपके विभाग में काम करने वाले गोपाल दास जी की पत्नी। ' ममता ने गंभीरता से कहा।

' अच्छा-अच्छा, वो। ' नरेन्द्र मुस्कुराया, ' उनके पति तो मेरे अच्छे दोस्त हैं। उनकी शादी हुए तो अठारह-बीस साल हो गये मगर दुर्भाग्य से वे लोग आज तक संतान सुख से वंचित हैं। उनकी पत्नी पहली बार प्रेग्नेंट हुई थीं तो शायद कोई दुर्घटना घट गई थी। उस समय डॉक्टर ने कह दिया था कि मिसेज दास अब कभी मां नहीं बन सकेंगी। उनलोगों के साथ बेहद ही दुखदायी घटना घटी है। गोपाल दास जी का प्रमोशन होने वाला है, हो सकता है कि कुछेक महीनों में उनका तबादला कहीं और हो जाये ...... अच्छा, वे क्या कुछ कह रही थीं ?'

' मैं तो वही कहना चाह रही हूं .... दरअसल .... ' ममता की आवाज लटपटा उठी।

' अरे बोलो न, क्या बात है ? ' नरेन्द्र ने आत्मीयता से मुस्कुराकर उसकी आंखों में झांका। उसकी आंखों में आश्वासन का आभास पाकर ममता ने धीरे से कहा, ' दरअसल .... वे चाहती हैं कि हमलोग अपने बच्चे को न गिराकर उन्हें दे दें। '

' क्या ?' नरेन्द्र के चेहरे पर असमंजस की लकीरें उभर आयीं, ' यह कैसे संभव है ? आखिर हम उन्हें अपना बच्चा क्यों देने जायें ?'

ममता एकबारगी सकपका गयी लेकिन तुरंत ही उसने अपने आप को संतुलित कर धीरे से मुस्कुराकर कहा, ' ताकि मैं चाहती हूं कि मेरा बच्चा संसार देखने के पहले असमय मौत के मुंह में न चला जाये। पहले मैं कुछ और सोच रही थी लेकिन अब लगता है कि वह गलत था।'

' किस तरह ?' सवालिया नजरों के साथ नरेन्द्र ने दृढ़ता से कहा, ' किसी गैर के लिए हमें कोई झंझट अपने सिर लेने की जरूरत नहीं है। '

' अगर हम हर बात में सिर्फ अपना ही स्वार्थ देखेंगे तो हममें मनुष्यता कहां बचेगी ? और यदि हम उन्हें अपना बच्चा दे देंगे तो उस दंपत्ति को जीवन की सबसे बड़ी खुशी मिल जायेगी। मैं एक मां होकर एक दूसरी औरत को मां बनने का सुख देना चाहती हूं। और मैं जानती हूं कि आपका मन तो और बड़ा है। '

नरेन्द्र जैसे किसी कश्मकश की स्थिति से उबरने की कोशिश करता हुआ बोला, ' मगर मेरा मन उनकी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है। आखिर बच्चा तो हमारा है और वे थोड़ी नीची जाति के हैं। यह असंभव है। '

' कुछ भी असंभव नहीं है, और जाति-वाति क्या है, यह हमलोगों द्वारा ही रचा गया आडंबर और भ्रम है। यह सोचिये कि वे लोग शिक्षित और सभ्य हैं। हमारे बच्चे की परवरिश वहां बहुत अच्छी तरह होगी। उसका भविष्य हमारे इन तीन बच्चों से ज्यादा अच्छी तरह संवरेगा। सबसे बड़ी बात कि तुम जिस काम को हत्या कह रहे हो, हमलोग उस पाप से बच जायेंगे।'

' तो क्या हमारा मन उस बच्चे के लिए नहीं छटपटायेगा ? '

ऐसा लगा ममता के पास कोई उत्तर नहीं हो। उसके चेहरे पर एक मां की करुण स्थिति की परछाइयां उभर आयीं। दो पल बाद ही उसने अपना संतुष्टि भरा चेहरा उठाया और दृढ़ता भरे एक विश्वास के साथ कहा, ' जब मन में यह तसल्ली हो कि वह सही जगह है और हमेशा सुखी रहेगा तो नहीं छटपटायेगा। वैसे भी उनलोगों का ट्रांसफर हो रहा है और मिसेज दास ने कहा है कि इस डिलीवरी का सारा खर्च वे ही लोग उठायेंगे, ऑपरेशन भी करवा देंगे तो हमें किस बात की चिन्ता है।'

' ओह !' नरेन्द्र ने उसे गहरी और चिन्तित नजरों से देखा, ' इसका मतलब कि तुम पहले से ही सारा कुछ तय कर चुकी हो। चलो सारी बातें ठीक हैं लेकिन लोग क्या कहेंगे ?'

' मैं एक मां होकर यह नहीं सोच रही कि लोग क्या कहेंगे क्योंकि मैं एक अजन्मे बच्चे की भलाई सोच रही हूं। और जो लोग अच्छे तथा सामाजिक होते हैं, वे भी ऐसा-वैसा कुछ नहीं सोचेंगे। अगर हमलोग ऐसा निर्णय लेते हैं तो हमें अभी से उसके लिए अपने मन को तैयार करना होगा। मैं तो चाहती हूं कि मिसेज दास भी मां बनें और शायद उनके लिए ही भगवान ने इस बच्चे को हमारे यहां भेजा हो।' ममता के स्वर में एक अद्भुत तेज की झलक पाकर नरेन्द्र आत्म विभोर हो उठा। वहीं दो पल बाद उसके चेहरे पर फिर चिन्ता की लकीरें उभर आयीं, ' लेकिन लड़का या लड़की ... उनलोगों ने तो कुछ आस तो लगाई होगी ?'

' उनलोगों को बस एक संतान चाहिये।' ममता ने मुस्कुराकर कहा।

' आज मुझे एक मां के अंदर भगवान का स्वरूप नजर आया है,' नरेन्द्र भावुक हो उठा, ' मुझे कोई एतराज नहीं। मैं तुम्हारे फैसले की कद्र करता हूं। मैं तुम्हारे अंदर छुपी एक सच्ची मां को हृदय से प्रणाम करता हूं। यह सौभाग्य सभी को प्राप्त नहीं होता। भगवान जो करता है, अच्छा करता है। '

नरेन्द्र ने उसके हाथ को अपने हाथ में थाम लिया। ममता नरेन्द्र के सीने में सिमट गयी।

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विजय शंकर विकुज

द्वारा - देवाशीष चटर्जी

ईस्माइल (पश्चिम), आर. के. राय रोड

बरफकल, कोड़ा पाड़ा हनुमान मंदिर के निकट

आसनसोल - 713301

ई-मेल - bbikuj@gmail.com


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रचनाकार: कहानी - सबसे बड़ी खुशी - विजय शंकर विकुज
कहानी - सबसे बड़ी खुशी - विजय शंकर विकुज
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