हम प्यार में हैं प्रायः समय नहीं होता साथ उस एक समय में जब तुम ...
हम प्यार में हैं
प्रायः समय नहीं होता साथ
उस एक समय में
जब तुम होते हो साथ
चाँद की हर तारीख से पहले
धुल जाता है आसमां
और फैल जाता है फिरोजी रंग
उकड़ू बैठ के सितारे
छेड़ देते हैं अन्त्याक्षरी
कि तभी मस्त छैला सा टहलता
हुआ चाँद दिखाई दे जाता है
बर्फ की सिगरेट फूंकता
और हमारे चेहरे पे फूंक देता है
ठण्ठे यख़ छल्ले
फिर हँसता है हँसता जाता है
उसे कैसे पता कि
हम प्यार में हैं...!
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तुम हो
तुम हो
या नहीं हो
इतना ही है भ्रम,
भ्रम को दूर करने की
कोशिश भी नहीं,
अभी चमक रहा है सूरज
तो भी अंधेरा है कमरे में,
जब छत पर होंगे हम
चाँद भी होगा आसमान पर
तो भी खेजते हुए कुछ
कट जाएगी रात
ऐसे ही रात दिन....
पूरा करेंगे एक युग
हमारा और तुम्हारा समय
कौन खोजेगा?
हाँ, एक दूब उगेगी धरती के
किसी एक बिंदु पर,
एक मद्धिम तारा टिमटिमाएगा
इतने बड़े आकाश में,
अभी या कभी.....
एक दूब होना धरती के लिए
एक तारा होना आकाश के लिए
अच्छा है एक समय होना
इस पूरे युग के लिए।।
शेष
न रहेगी बांसुरी
न हृदयों के तिलस्म
ना सुनामी, ना चक्रवात
न मीठी मीठी बातें
न जुल्फों की छांव
न हिरणी के पांव
कुछ भी ना रह जाएगा
शेष....
न जलसों की श्रंखलाएं
न युद्धों का अह्वान
न इंद्रधनुषी पर्व
न मेघों की पद्चाप
भूख रहेगी ना तृप्ति
न वासनाओं के वरूण
न ईष्टों की जय जयकार
न ऋतुओं के सिंगार
अंततः
कुछ ना बचेगा शेष कवि जी
इस भूमि पर बस...
प्रेम ही रह जाएगा.
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होंठों के फूल
धानी होते जंगलों में
उतरती है सांझ दबे पांव जब-जब
उसके मौसमी गीत बहुत याद आते हैं
बेतरह और बेतरफ, बहुत
बेतरतीब हो के रह जाते हैं अंतस के
उजाले तब,
थोड़ी देर के लिए ठहर जाते हैं
सन्नाटे,
आँखों के सूने पन में झूम उठता है
गुलमोहर
जिसपे पंछी पांव रखते हैं
भर-नजाकत से
और मैं,
देर तक देखती रहती हूँ
अपने हिस्से में आती हुई
उसके हिस्से की गुलमोहरी धूप
और
नाजुक टहनियों से लिपटे हुए
हमारे नारंगी-नारंगी
होंठों के फूल।।
मेरे महबूब मुझे खत लिक्खा कर
नहीं, नहीं, फोन नहीं,
एस ए एस नहीं
ई मेल भी नहीं
हो सके तो खत लिक्खा कर
मेरे महबूब मुझे खत लिक्खा कर
कोई सबूत भी तो हो तेरी
चाहत का/कोई सामां तो हो
रूह ए जां की राहत का
मुझे कासिद की बाट जोहना अभी
भाता है
मुझे ओदी प्रतीक्षाओं का संबल दे दे
कितना सुख है गुलाबी रूक्के पे
बिखरे हुए नगीनों का
जैसे आकाश में छुवा छू खेलते
तारे नीले
बुरा हो साईंस का कि नोच डाले
जज्बे सब
कहाँ कि चूम चूम सौबार पढ़े जाते थे खत
कहाँ कि सातों पहर फोन घनघनाता है
जरा सी देर में उड़ जाते हैं भाप बनके
हर्फ/या फिर सस्ते लफ्जों में एस एम एस
फड़फ़ड़ाता है।/बाकी, ई मेल तो कल्चर ही
बिगाड़ जाता है/दिल की दुनियांओं के गुलशन
उजाड़ जाता है/
अपनी बेशकीमती रातों से कुछ लम्हे चुन कर
अपने बोसे उतार कागज पे
प्रेम पत्र लिखते हुए बा‘ज अच्छे लगते हैं लोग
और मुझे भाता है म नहीं मन मुस्काना उनका
इसलिए
ऊदे कागज पे तारों का हाल लिक्खा कर
चाँद ओ अब्रों की शरारतें सारी/रात के तीसरे
पहर का कमाल लिक्खा कर
ना....ना
फोन नहीं, एस एम एस नहीं
ई मेल भी नहीं
मेरे महबूब मुझे खत लिक्खा कर
हुस्न तबस्सुम ‘निंहाँ‘
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय
गांधी हिल्स, वर्धा महाराष्ट्र
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